वायुगोला, योषापस्मार (Hysteria)हिस्टीरिया और मिर्गी के दोरों का अन्तर)

(वायुगोला, योषापस्मार (Hysteria)हिस्टीरिया और मिर्गी के दोरों का अन्तर)

रोग परिचय-यह स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है। बल्कि यह शरीर

में जड़ जमाये हुए अनेक दूसरे रोगों का एक लक्षण मात्र है। यह मृगी रोग भी नहीं है। किन्तु फिर भी मृगी (अपस्मार) की ही भाँति इसके दौरे पड़ा करते हैं। यह रोग प्रायः स्वियों को ही हुआ करता है, वैसे पुरुष भी इस रोग के शिकार हो सकते हैं। स्वियों को यह रोग गर्भाशय की किसी विकृति के कारण हुआ करता है। यौन विकृति भी इस रोग का कारण हो सकती है। अन्य कारणों में प्रदर विकार, बिलासी जीवन, अत्यधिक काम-वासना, पुरानी कब्ज, अधिक आयु तक विवाह का न होना, चिन्ता, असफलता, भय, क्रोध, अजीर्ण, पेट, फूलना, अश्लील उपन्यास कहानियाँ पढ़ना या चलचित्र देखना भी है। वास्तव में यह एक नर्वस रोग है, जो नर्वस सिस्टम (स्नायु संस्थान) के दोषों से होता है। यह प्रायः 12 से 50 वर्ष आयु की स्वियों को हुआ करता है।

इस रोग में स्त्री का गला घुटता प्रतीत होता है और ऐसा आभास होता है कि गोला उदर से उठकर गले में फँस गया हो इसके बाद स्वो को दौरा पड़ जाता है। हाथ पैर ऐंठने लग जाते हैं और स्वी बेहोश हो जाती है।

नोटः-कई बार गले में गोला उठता नहीं भी प्रतीत होता है और स्त्री को दौरा पड़ जाता है। स्त्री यकायक चीखमारकर जोर से रोने या हँसने लगती है। इसके बाद स्त्री बेहोश होकर गिर पड़ती है। बेहोशी से पूर्व प्रायः छाती और जाँघों पर जोर से हाथ मारने और पीटने लगती है ताकि, गले में फैसा गोला निकल जाये। रोगिणी प्रायः सिर के बालों को भी नोंचती है, उसके हाथ पैर ऐंठ जाते हैं।

कई बार रोगिणी अपने कपड़े फाड़ डालती है, सिर को दीवार से टकराती है, समीप खड़े मनुष्यों को काटने का प्रयत्न करती है, ठण्डी आहें भरती है। सांसकठिनाई और अनियमितता से शीघ्र-शीघ्र आने लगता है। कोई-कोई रोगिणी बेतुकी बातें भी करने लगती है। हृदय अधिक धड़कता है तथा अफरा हो जाता है किन्तु रोगिणी बेहोशी की हालत में भी सभी बातों को सुनती रहती है। उसका मुख लाल हो जाता है, जबड़े बन्द हो जाते है, कुछ समय पश्चात् जब रोगिणी का दौरा कुछ कम होता है अर्थात दीर का जोर कम पड़ता है तो रोगिणी काँपने लगती है। इसके बाद एकाएक रोग के लक्षणों का जोर हो जाता है। कई बार दौरे पड़ जाते हैं। दौरा समाप्त होने पर मूत्र अधिक आया करता है। कई बार के भी आ जाती है। दौरा समाप्ति के पश्चात् रोगिणी सो जाती है।

दौरा कम होने पर स्वी के पेट से गोला उठकर गले की ओर आता है तो रोगिणी उसे निकालने का प्रयत्न करती है, उसको साँस रुकती सी प्रतीत होती है। पेट फूल जाता है और डकारें आती हैं। स्वी को थकावट, सिर दर्द, और गर्दन में कठोरता प्रतीत होती है। कुछ देर बाद यह लक्षण दूर हो जाते हैं। प्रायः इस रोग का दौरा समाप्त होने के बाद विभिन्न अंगों में अनेक कष्ट हो जाते हैं-हाजमा खराब हो जाता है, प्रायः कब्ज रहने लगती है, उत्साह और इच्छा-शक्ति कमजोर हो जाती है, स्वी बहमी हो जाती है, शरीर में दर्द अनुभव होता है, कई बार मूत्र रुक जाता है। कई स्वियों को खुश्क खाँसी और कई स्त्रियों को हिचकियाँ आने लग जाती है। इस रोग से ग्रसित खियाँ मक्कार भी हो जाती हैं।

हिस्टीरिया और मिर्गी के दोरों का अन्तर



1. हिस्टीरिया का दौरा धीरे-धीरे पड़ता है तथा देर से दूर होता है। परन्तु मिर्गी का दौरा एकाएक तुरन्त पड़ जाता है और स्वयं ही दूर हो जाता है।

2. हिस्टीरिया का दौरा होने पर स्वी स्वयं को सम्भालते हुए गिरती हैं। जबकि मिर्गी में स्त्री या पुरुष स्वयं को संभाल नहीं सकता और गिर पड़ता है।

3. हिस्टीरिया के दौरे की बेहोशी में स्त्री दूसरों की बातें सुनती रहती है किन्तु उनका उत्तर नहीं पाती, किन्तु मिर्गी में ऐसा नहीं होता है।

4. हिस्टीरिया के दौरे में स्वी के मुख से झाग नहीं आते हैं वह अक्सर दाँत पीसती है, किन्तु उसकी जीभ दाँतों में आकर नहीं कटती है। इसके विपरीत मिर्गी रोग में मुख से झाग आते है और दाँतों में दब जाने से जीभ कट जाती है।

5. हिस्टीरिया में स्वी के जबड़े और मुख बन्द हो जाते हैं। जब कि मिर्गी में जीभ बाहर निकल आती है और मुख खुला हुआ होता है।6. हिस्टीरिया रोग प्रायः स्वियों को तथा मिर्गी रोग प्रायः पुरुषों को हुआ करता है।

7. हिस्टीरिया के दौरा के समय में मूत्र और पाखाना नहीं निकलता है, जबकि मिर्गी के दौरे में मूत्र व पाखाना अनजाने ही रोगी के कपड़ों में ही निकल जाता है।

8. हिस्टीरिया में चेहरा लाल और आँख बन्द, आँखों के पपोटे हिलते हुए और आँखों की पुतलियां बिना हिले एक स्थान पर ठहरी रहती हैं। प्रकाश डालने पर (टार्च इत्यादि से) पुतलियाँ सिकुड़ जाती है। जब कि मिर्गी में मुख का रंग नीला, आँखें उभरी हुई अधखुली, आँखों के ढेले और पुतलियाँ फैली हुई और हिलती है तथा प्रकाश डालने पर सिकुड़ती नहीं है। 0

उपचार- यदि यह रोग पैत्रिक हो या नर्वस कियाओं के विकार से उत्पन्न हुआ हो तो कष्टसाध्य होता है और यदि यह रोग डिम्ब-ग्रन्थियों, गर्भाशय या आमाशय की खराबियों और दोषों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुआ हो तो उचित चिकित्सा व्यवस्था से ठीक हो जाता है।

• दौरे के समय चूना तथा नौसादर सममात्रा में मिलाकर हाथ में खूब रगड़कर अथवा किसी साफ स्वच्छ शीशी में खूब हिला मिला कर सुँघायें। अथवा ऐमोनियाँ कार्ब (एमोनियाँ फोर्ट) बाजार से बना बनाया (अंग्रेजी दवा की दुकानों पर प्राप्य) लेकर खूब हिलाकर रोगी को सुधाकर होश में लायें। अथवा दौरे के समय स्वी को नरम बिस्तर पर लिटाकर बाजुओं और जाँघों को जोर से बाँध दें तथा प्याज कुचलकर हींग, लहसुन, जैसी तीव्र गन्ध वाली वस्तुयें सुधायें । गन्धक या गूगल की धूनी नाक में सुधायें अथवा बीड़ी का धुआ नाक में जोर से फूंक मारकर पहुंचायें। इन उपायों से स्वी होश में आ जाती है।

यदि जबड़े बन्द हो तो दाँतों के बीच में चम्मच या कोई सख्त वस्तु डालकर उसको खोल दें। होश आ जाने पर वास्तविक रोग के कारण को जान व समझकर उसकी चिकित्सा करें। यदि मासिक बन्द या रुका हुआ हो तो हिस्टीरिया की चिकित्सा के साथ मासिकधर्म लानी वाले औषधियों का प्रयोग करें। यदि विवाह से पूर्व यह रोग हो गया हो और लड़की आयु काफी हो चुकी हो तो तुरन्त उसका विवाह कर दें, उसका यह रोग विवाहोपरान्त स्वयं ही ठीक हो जायेगा ।

• यदि गर्भकाल में हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगें तो गुलकन्द दो तोला में 1 माशा असली रुमी मस्तंगी का चूर्ण मिलाकर खिलाने से लाभ होता है।

• निर्बसी, अगरु, हींग, काफूर, जटामांसी, कुनीन, बन्सलोचन तथा केसरसभी सम मात्रा में लेकर सबको खरल करके चने के बराबर गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। ये 1 से 2 गोली तक दिन में 2 बार खिलायें ।

• खुरासानी बच 10 ग्राम लेकर खूब बारीक पीसकर 3 बार कपड़छन करके सुरक्षित रख लें। इसे 2 से 4 ग्रेन तक शुद्ध घी, मक्खन अथवा मलाई के साथ चटाकर ऊपर से खीर खिलायें तथा रोगिणी को दूध अधिक मात्रा में पिलायें । दिन में 3-3 घण्टे बाद 4 बार दवा प्रयोग करायें। मात्र 3-4 दिनों के सेवन से ही हिस्टीरिया रोग सदैव के लिए 'अलविदा' कह जयेगा ।

• हिस्टीरिया में मूर्च्छा (बेहोशी) होने पर ठण्डे जल से सिर आँखों पर छींटा मारना, अथवा शीतल जल की धारा देना भी अत्यन्त लाभप्रद है।

• जटामांसी, बच और घी में भुनी हींग प्रत्येक 2-2 तोले, कूट और काला नमक प्रत्येक 4-4 तोले और बायबिडंग 16 तोला सभी को एकत्र कूट पीसकर कपड़छन कर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 1 से 3 माशा की मात्रा में गुनगुने जल के साथ प्रतिदिन 3 बार सेवन करायें। योषापरस्मार में अत्यन्त लाभप्रद है। आक्षेप नाशक, गर्भाशय विकारजन्य कम्पवात, अपस्मार तथा मस्तिष्क तनाव में गुणकारी तथा अनिद्रा नाशक भी है।

• सर्पगन्धा मूल 10 सेर, खुरासानी अजवायन 2 सेर, जटामांसी और भाँग 1-1 सेर एकत्र कर जौकुट कर चूर्ण कर लें। तदुपरान्त इस चूर्ण को अठगुने जल में रात्रि को भिगोकर प्रातःकाल मन्दाग्नि पर पकायें तथा कलछी से बलाते रहें। अष्टमांश द्रव्य शेष रहने पर नीचे उतार लें और वस्त्र में मसलकर छान लें। फिर दूसरी बार छानकर मन्द-मन्द आग पर पकावें। जब काढ़ा गाढ़ा हो जावे तब इसमें पीपलामूल का चूर्ण 20 तोला मिलाकर गोली बनाने योग्य जल वाष्प पर सुखाकर 2-2 रत्ती की गोलियाँ बनाकर रख लें। ये 2 से 3 गोलियाँ जल या दूध से रात्रि को सोने से 1-2 घण्टे पूर्व अथवा जब दौरा हो जाय तब सेवन करायें। यह औषधि मस्तिष्क-तनाव शामक है। रक्तचाप कम करने वाली, वेदनाहर गुण के कारण योषापस्मार में लाभप्रद है शान्त निद्रादायक है।

• सारस्वतारिष्ट (भैषज्य रत्नावली) भोजनोपरान्त 1 तोला द्रव बराबर जल मिलाकर प्रतिदिन 2 बार पिलाना लाभप्रद है। इसके अतिरिक्त इस रोग में हिंग्वष्टक चूर्ण, ब्रह्मरसायन भी बहुत ही अनुभूत योग है।

• कायफल 5 भाग, नक छिकनी 2 भाग, छोटी इलायची के बीज, तुलसी पत्र, पीपल छोटी, कपूर, समस्त 1-1 भाग लें। सबको अलग-अलग कूट पीसकरकपड़छन कर लें, फिर एक भावना आक के दूध की देकर सूक्ष्म पीस लें। आवश्यकता पड़ने पर इसकी नश्य दें।

• घोड़ा सा नमक घोलकर 4-5 बूँदें नासा-पुटों में भी डालना भी दौरे के समय की बेहोशी दूर करने में लाभप्रद है।

• एक पाव दूध में 2 चम्मच एरन्ड-तेल मिलाकर रात्रि को सोते समय पिलायें कब्ज मिटाने एवं वातजनित योषापस्मार के लिए प्रशस्त योग है।

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• कुलंजन के कपड़छन चूर्ण को पोटली बनाकर (दौरे में) सुधाना या रोगिणी के पैर के तलुवों पर राई और सेंधा नमक की मालिश करना अथवा पैरों पर गरम जल की धारा छोड़ना अथवा सिर पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टी रखना, मुँह पर ठण्डे पानी के छीटे मारना अथवा किसी पक्षी के पंखों को जलाकर उसका धुँआ नाक में देना या चन्दन की मोटी बत्ती अथवा कोई सी साधारण धूप बत्ती जलाकर उसका धुँआ नाक में देना, या हींग सरसों, राई, गूगल, लौहवान की धूनी देना इत्यादि सभी उपाय हिस्टीरिया के आक्रमण काल (दौरे के समय) की बेहोशी दूर करने के हैं। मौके पर जो भी उपलब्ध हो, उसे करें ।

• सौठ पीपल और मिर्च का चूर्ण मसूढ़ों पर रगडने से हिस्टीरिया रोगी के भिचे हुए दाँत खुल जाते हैं।

• हिस्टीरिया रोगी की आँखों में यदि लाली हो तो गुलाबजल डालें। अथवा अंग्रेजी दवा का आई ड्राप्स लोकूला 30 प्रतिशत आँखों में डालें। (लौकूला गुलाब जल में सोडियम सल्फाएसिटेमाइड का 10 से 30 प्रतिशत तक घोल होता है।

• हिस्टीरिया रोगिणी की गर्भाशय सफाई हेतु बायबिडंग 6 ग्राम, समुद्रफेन 3 ग्राम, बिरोजा और सेंधा नमक भी 3-3 ग्राम लेकर सभी को कूट छानकर मलमल के 3 कपड़ों में 3 पोटलियां बनाकर योनि में गर्भाशय के मुख के दाँये-बाँये व सामने रखें। इस योग से गर्भाशय में जमा हुआ खून भी निकल जाता है। यह क्रिया निरन्तर 3 दिन तक करने से गर्भाशय का शोधन हो जाता है।

• जटामांसी, रास्ना, पीपल के पेड़ की छाल, एरन्ड के जड़ की छाल, सौंठ अजवायन तथा एलुआ प्रत्येक 3-3 ग्राम लेकर मिट्टी के बरतन में आधा किलो जल में पकावें। जल 500 ग्राम शेष रहे, तब छानकर सेवन करायें। इस क्वाथ का सेवन प्रत्येक प्रकार के हिस्टीरिया में लाभप्रद है। रजावरोध नाशक है। रज की गाँठों को गलाकर बहा दोता है। गर्भाशय शोधन हेतु उत्तम क्वाथ है। कम्पवात नाशक भी है।• प्रताप लंकेश्वर रस सुबह शाम 125 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सेवन करायें तथा भोजनोपरान्त दशमूलारिष्ट पिलायें। यह योग गर्भाशय विकारों को नष्ट कर हिस्टीरिया रोग से मुक्ति प्रदान करता है।

• वृहत वात चिन्ता मणिरस 250 मि.ली. सुबह शाम शहद के साथ सेवन करायें तथा भोजनोपरान्त दशमूलारिष्ट और द्राक्षासव समान मात्रा में जल मिलाकर सेवन करायें। यह योग वात नाशक है। इसके सेवन से हिस्टीरिया के दौरों का पुनः आक्रमण भी नहीं होता है।

• जे. एण्ड जेंडीशन (हैदराबाद) के द्वारा निर्मित पेटेन्ट औषधि विटल ऐसेन्स, 250 मिली. ग्रा. फ्रक्टोजाइम 250 मि.ग्रा. तथा अगर कम्पाउन्ड 125 मि.ग्रा. तीनों को मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से भी दौरों का पुनः आक्रमण नहीं होता है। यह योग भी वातनाशक है।

• शुद्ध हीरा हींग 10 ग्राम, बच व जटामांसी 10-10 ग्राम, कूट 2 ग्राम, काला नमक 20 ग्राम, बायविडंग 10 ग्राम सभी को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 2 से 4 ग्राम की मात्रा में गर्म जल से दिन में 4 बार सेवन करायें । हिस्टीरिया नाशक है।

• असली केशर 4 ग्राम, जावित्री 4 ग्राम, असगन्ध 1 ग्राम, जायफल 1 ग्राम, गौदुग्ध में उबाली हुई छोटी पीपल 1 ग्राम, कच्चा अदरक 20 ग्राम, पके हुए सफेद बंगला पान के 10 पत्ते (नग) सभी को महीन पीसकर 250 मि. ग्राम, बजन की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। रोगानुसार तथा ऋतु (मौसम) का ध्यान रखते हुए (क्योंकि इस योग की तासीर गरम है) एक गोली पान के बीड़े में रखकर दिन में 2 से 4 बार सेवन करायें। यह योग भी हिस्टीरिया नाशक है।

हिस्टीरिया नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

सरपिना टेबलेट (हिमालय) आवश्यकतानुसारं आधा से 1 गोली तक दिन में 2-3 बार दें।

सिलेडिन टेबलेट (अलारसिन) 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें। रात्रि को सोते समय भी प्रयोग करायें ।

हेम पुष्पा (पेय) (राजवैद्य शीतल प्रसाद) साथ में मिली हैमटेब 1 टिकिया ताजा पानी से निगलकर 1-2 चम्मच दवा दुगुना ताजा जल मिलाकर दिन में 2- 3 बार प्रयोग करायें। मासिकधर्म के दिनों में प्रयोग बन्द रखें।इथिनोर लिक्विड (मैडिकल इथिक्सि) 1-2 चम्मच दवा 1 गिलास पानी के साथ दिन में 2-3 बार भोजनोपरान्त दें।

आशार टेबलेट (चरक) 1-1 टिकिया दिन में 3 बार दें। तीव्रावस्था में मात्रा बढ़ाई जा सकती है।

नैड टेबलेट (चरक) वयस्कों को 2-2 टिकिया दिन में 3-4 बार तथा बच्चों को 1-2 टिकिया जल से दें।

एफ. एम. सीरप (अतुल फार्मेसी) 2-2 चम्मच जल मिलाकर दिन में 2 बार भोजनोपरान्त दें। साथ में इसी निर्माता का श्वेत प्रदरान्तक 1-1 कैपसूल सुबह-शाम प्रयोग करायें। खियों के गुप्त संस्थानों को रोग रहित बनाकर बल प्रदान करता है। हिस्टीरिया में गुणकारी है।

शक्ति संचय सीरप (अतुल फार्मेसी) सभी (स्वी पुरुष व बच्चों) आयु वर्ग के लिए शक्ति बर्धक टानिक है। पानी या दूध से सुबह शाम बच्चों को 1-1 चम्मच तथा वयस्कों को 2-2 चम्मच सुबह दोपहर शाम दिन में 3 बार प्रयोग करायें।

नीबू के रस में थोड़ी हींग मिलाकर दिन में 3 बार देने से हिस्टीरिया में आश्चर्यजनक लाभ होता है।

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