वृक्कशूल, गुर्दा का दर्द (रेनल कालिक)
रोग परिचय- इसे अंग्रेजी में 'रीनल कॉलिक' (Renal Calic) के नाम से जाना जाता है ! इस रोग में जब पथरी वृक्क में होती है तो रोगी की कमर में धीमा-धीमा दर्द प्रतीत होता है किन्तु जब यह पथरी गुर्दे से निकल कर मूत्र प्रणाली (गवीनी) (Ureter) में पहुँचकर फँस जाती है तो रोगी को तड़पा देने वाला दर्द होने लग जाता है। यह दर्द वृक्कों के स्थान से प्रारम्भ होकर पुरुषों में खसियों (वृषणों या अन्डकोषों) तक और स्वियों में गुप्तांगों और जाँघों तक पहुँचता है। इस रोग में मूत्र बार-बार आता है तथा मूत्र में रक्त भी आ सकता है तथा यह दर्द तब तक होता रहता है जब तक कि पथरी गवीनी से चलकर मूत्राशय में नहीं पहुँच जाती है। रोगी को मितली और के भी आती है। यह दर्द कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक रह सकता है। एक्स-रे लेने पर पथरी का प्रमाण मिल जाता है तथा पथरी खश-खश के दाने से लेकर नारंगी जितने आकार तक की हो सकती है। बड़ी पथरी में शल्य क्रिया आवश्यक है। छोटी पथरी को खाने की औषधियों से निकाला तथा पुनः पुनः (बार-बार) बनने से रोका जा सकता है।
उपचार
• गुर्दे का दर्द होने पर रोगी को गरम पानी के टब में इतना पानी भरकर बिठायें कि. उसका गुप्तांग पानी में डूबा रहे तथा छाती व अन्य शरीर पानी से बाहर रहे। मूत्र आने पर रोगी मूत्र को रोके रखकर थोड़ी देर बार जोर लगाकर (पानी में ही) मूत्र निकालें ताकि कंकड़, रेत या पथरी (जोर लगाकर) मूत्र त्याग के साथ ही निकल जाये। कई बार बिस्तर में लेटे-लेटे ही इधर-उधर करवट बदलने से भी पथरी वृक्क में वापस अथवा मूत्राशय में सरलतापूर्वक (आसानी से) पहुँच जाती है।
• कैस्टर आयल 30 मि.ली. गरम दूध में मिलाकर पिलायें तथा एक लीटरगरम पानी में 12 ग्राम सनलाइट साबुन या लाइफबाय साबुन घोलकर 30 मि.ली. कैस्टर आयल में मिलाकर एनिमा करें ।
• लाल मिर्च पानी में पीसकर पीठ पर गुर्दों के स्थान पर लेप करने तथा मात्र एक ही मिनट के बाद पानी से धोकर घी मल देने से वृक्कशूल में लाभ हो जाता है। यह योग 80% सफल रहता है।
• मुर्गी के अन्डों की जर्दी 6 ग्राम तथा थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी और थोड़ा गरम पानी मिलाकर लेप बनाकर गुर्दों के स्थान पर लगाना भी वृक्क शूल में अत्यन्त लाभकारी है।
• गरम पानी की बोतल पीठ व पेट पर वृक्कशूल के समय सेंक (टकोर) करें अथवा उबलते पानी में फलालिन डालकर और निचोड़कर उस पर तारपीन का तैल छिड़ककर गुर्दों के स्थान पर व पेट पर बार-बार गरम-गरम टकोर करने से तथा बाद में उस पर कम्बल ढक देने से भी वृक्क शूल में लाभ होता है।
• दाना-ए-फरंग (रत्न) की अंगूठी पहनना वृक्कशूल में लाभकारी है।
• जवाखार (यवक्षार), लोटा सज्जी, कच्चा सुहागा, कच्चा नौशादर, काली मिर्च, सेंधा नमक, खाने वाला नमक, हौरा हींग, कलंगी, शोरा प्रत्येक औषधि पीस व छानकर (सम मात्रा में मिलाकर) उसमें तेज विलायती सिरका चटनी बनाकर 15-15 मिनट के अन्तराल से 3 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार सेवन कराना वृक्कशूल में अत्यन्त लाभप्रद है।
वृक्कशूल नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग
ओरुक्लीन टेबलेट (चरक)-2-2 टिकियाँ दिन में 3-4 बार अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करायें। बच्चों को आधी मात्रा दें।
कैलक्यूरी टेबलेट (चरक)-2-2 टिकिया दिन में 3 बार तथा तीव्रावस्था में 3-3 टिकिया जल से प्रयोग करायें ।
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