पैत्तिक शूल, पीते की पथरी (पित्ताशय की शोथ)

       (पैत्तिक शूल पीते की पथरी (पित्ताशय की शोथ)

रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में ऐक्यूट कोलो सिस्टाइटिस (Acute Cholecystitis) तथा बिलियरी कालिक (Biliary colic) आदि के नामों से जाना जाता है। पित्ताशय का तीव्र प्रदाह (इन्फ्लेमेशन) पित्ताशय (Gall Bladder) या पित्त वाहिनी (Bileduct) में रुकावट आ जाने से हो जाता है। जब पथरी पित्ताशय से निकल कर पित्त वाहिनी में पहुँचती है, तब रोगी को दर्द होने लगता है तथा शोथ और पान्डु रोग भी हो जाता है। यह दर्द कई घन्टे से कई दिनों तक रह सकता है। पित्ताशय में पथरी रहने पर रोगी को दर्द नहीं होता है। समीप में अर्बुद या गिल्टी पैदा हो जाने से और उस पर दबाब पड़ने से पित्त वाहिनी में रुकावट उत्पन्न हो जाती है।

दाँयी छाती की पसलियों के नीचे यकृत स्थान या इसके ऊपर आमाशय के दांई ओर इस रोग में यकायक तड़पा देने वाला तीव्र दर्द प्रारम्भ हो जाता है जिसकी टीसें पीठ और दांये कन्धे तक जाती है। मितली और के भी आती है। कई बार कम्पन्न और ज्वर भी हो जाता है। पित्ताशय का स्थान दबाकर देखने पर वह उभरा हुआ होता है और वहाँ दर्द होता है। रक्त के श्वेत कण (W.B.C.) बढ़ जाने से पान्डु रोग भी हो जाता है। यह रोग भी पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को (30 से 60 वर्ष की आयु वर्ग में) होता है- विशेषकर मोटी स्त्रियों को ।

उपचार

• दर्द के स्थान पर गरम सेंक (टकोर) करना चाहिए ।

• कब्ज दूर करने के लिए संतरे के रस में 30 मि. ली. कैस्टर आयल (एरन्ड का तैल) और 4 मि. ली. ग्लीसरीन मिलाकर पिलाना लाभप्रद है।

• पोस्त के डोड़ों को पानी में उबालकर दर्द के स्थान पर टकोर करना अधिक लाभप्रद है। रोगी को आराम से बिस्तर पर लिटाये रखना चाहिए ।

• दर्द शुरू होते ही 30 मि.ली. आलिव आयल (जैतून का तैल) 1-1 घंटे बाद पिलाते जाये अथवा सुबह के समय 90 से 120 मि.ली. एक ही बार में पिला दें। दर्द दूर होने पर पथरी को तोड़ने और निकालने वाली औषधियाँ दें।• यहूद भस्म 120 मि.ग्रा., कलमी शोरा 960 मि.ग्रा. तथा यवक्षार 960 मि.ग्रा.। एक-एक मात्रा मुँह में डालकर मूली के हरे पत्तों का निथरा रस 48 मि.ग्रा. पिलायें लाभप्रद है।

• बिच्छू को तैल में जलाकर पित्ताशय पर मलने से भी यह दर्द दूर हो जाता है।

(वृक्कशूल, गुर्दा का दर्द (रेनल कालिक)

रोग परिचय- इसे अंग्रेजी में 'रीनल कॉलिक' (Renal Calic) के नाम से जाना जाता है ! इस रोग में जब पथरी वृक्क में होती है तो रोगी की कमर में धीमा-धीमा दर्द प्रतीत होता है किन्तु जब यह पथरी गुर्दे से निकल कर मूत्र प्रणाली (गवीनी) (Ureter) में पहुँचकर फँस जाती है तो रोगी को तड़पा देने वाला दर्द होने लग जाता है। यह दर्द वृक्कों के स्थान से प्रारम्भ होकर पुरुषों में खसियों (वृषणों या अन्डकोषों) तक और स्वियों में गुप्तांगों और जाँघों तक पहुँचता है। इस रोग में मूत्र बार-बार आता है तथा मूत्र में रक्त भी आ सकता है तथा यह दर्द तब तक होता रहता है जब तक कि पथरी गवीनी से चलकर मूत्राशय में नहीं पहुँच जाती है। रोगी को मितली और के भी आती है। यह दर्द कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक रह सकता है। एक्स-रे लेने पर पथरी का प्रमाण मिल जाता है तथा पथरी खश-खश के दाने से लेकर नारंगी जितने आकार तक की हो सकती है। बड़ी पथरी में शल्य क्रिया आवश्यक है। छोटी पथरी को खाने की औषधियों से निकाला तथा पुनः पुनः (बार-बार) बनने से रोका जा सकता है।

उपचार

• गुर्दे का दर्द होने पर रोगी को गरम पानी के टब में इतना पानी भरकर बिठायें कि. उसका गुप्तांग पानी में डूबा रहे तथा छाती व अन्य शरीर पानी से बाहर रहे। मूत्र आने पर रोगी मूत्र को रोके रखकर थोड़ी देर बार जोर लगाकर (पानी में ही) मूत्र निकालें ताकि कंकड़, रेत या पथरी (जोर लगाकर) मूत्र त्याग के साथ ही निकल जाये। कई बार बिस्तर में लेटे-लेटे ही इधर-उधर करवट बदलने से भी पथरी वृक्क में वापस अथवा मूत्राशय में सरलतापूर्वक (आसानी से) पहुँच जाती है।

• कैस्टर आयल 30 मि.ली. गरम दूध में मिलाकर पिलायें तथा एक लीटरगरम पानी में 12 ग्राम सनलाइट साबुन या लाइफबाय साबुन घोलकर 30 मि.ली. कैस्टर आयल में मिलाकर एनिमा करें ।

• लाल मिर्च पानी में पीसकर पीठ पर गुर्दों के स्थान पर लेप करने तथा मात्र एक ही मिनट के बाद पानी से धोकर घी मल देने से वृक्कशूल में लाभ हो जाता है। यह योग 80% सफल रहता है।

• मुर्गी के अन्डों की जर्दी 6 ग्राम तथा थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी और थोड़ा गरम पानी मिलाकर लेप बनाकर गुर्दों के स्थान पर लगाना भी वृक्क शूल में अत्यन्त लाभकारी है।

• गरम पानी की बोतल पीठ व पेट पर वृक्कशूल के समय सेंक (टकोर) करें अथवा उबलते पानी में फलालिन डालकर और निचोड़कर उस पर तारपीन का तैल छिड़ककर गुर्दों के स्थान पर व पेट पर बार-बार गरम-गरम टकोर करने से तथा बाद में उस पर कम्बल ढक देने से भी वृक्क शूल में लाभ होता है।

• दाना-ए-फरंग (रत्न) की अंगूठी पहनना वृक्कशूल में लाभकारी है।

• जवाखार (यवक्षार), लोटा सज्जी, कच्चा सुहागा, कच्चा नौशादर, काली मिर्च, सेंधा नमक, खाने वाला नमक, हौरा हींग, कलंगी, शोरा प्रत्येक औषधि पीस व छानकर (सम मात्रा में मिलाकर) उसमें तेज विलायती सिरका चटनी बनाकर 15-15 मिनट के अन्तराल से 3 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार सेवन कराना वृक्कशूल में अत्यन्त लाभप्रद है।

वृक्कशूल नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

ओरुक्लीन टेबलेट (चरक)-2-2 टिकियाँ दिन में 3-4 बार अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करायें। बच्चों को आधी मात्रा दें।

कैलक्यूरी टेबलेट (चरक)-2-2 टिकिया दिन में 3 बार तथा तीव्रावस्था में 3-3 टिकिया जल से प्रयोग करायें ।

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