कृमि,पेट में कीड़े (उदर कृमि

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रोग परिचय कृमि रोग सभी वर्ग व अवस्था (स्वी पुरुष, वृद्ध व युवा और बच्चों को) में होता है। यह कीड़े (कुमि) आमतौर पर आँतों में निवास करते है। इसलिए इन्हें अन्व-कृमि भी कहा जाता है।

                        (उपचार)

• अजवायन चूर्ण 4 रत्ती में समभाग काला नमक मिलाकर रात्रि के समय प्रतिदिन गरम जल से देने से बालकों के कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• प्रात:काल 5 या 10 ग्राम गुड़ खाकर थोड़े समय बाद खुरासानी अजवायन का चूर्ण 1 से 4 रत्ती की मात्रा में बासी पानी से सेवन करने से आन्वगत विभिन प्रकार के कृमि शीघ्र बाहर निकल जाते हैं।

• अजवायन किरमानी के बीजों का चूर्ण लगभग 10 ग्राम तथा सौठ का चूर्ण 3 ग्राम दोनों को एकत्र कर चाय के साथ खाने और ऊपर से एरन्ड का तेल पिलाने से उदर के कृमि मरकर बाहर निकल जाते हैं।

• उदर-कृमियों के कारण ज्वर, पाण्डु, खाँसी तथा वमन हो तो अतीस और वायविडंग का समान भाग चूर्ण 1-2 रत्ती की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने पर कृमि मरकर बाहर निकल जाते है तथा उनके लक्षण दूर हो जाते हैं।

• कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 2-4 रत्ती की मात्रा में दही या जल के के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सूत जैसे कृमि निकल जाते है।• छोटे-छोटे बच्चों को 1-2 रत्ती की मात्रा में कपूर गुड़ में मिलाकर खिलाने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• आडू के पत्तों का रस 50 ग्राम लें। उसमें थोड़ी सी हींग मिलाकर पिलाने तथा आडू के पत्तों को पीसकर लेप करने से उदर कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• कबीला 3 से 6 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ खिलाने से (बच्चों को 1 से 4 रत्ती की मात्रा में माँ के दूध के साथ दें) कृमि मल के साथ निकल जाते हैं।

• गोरखमुन्डी के चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन कराने से सभी प्रकार के कृमि नष्ट हो जाते हैं। बाहरी कृमियों के नाशार्थ इसकी धूनी दी जाती है।

• नीम रस 50 ग्राम में 2 रत्ती भुनी हींग मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से सूक्ष्म कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• बालकों को उदर में गोल कृमि होने पर पान का रसं शक्कर मिलाकर पिलाने से कृमि मरकर बाहर निकल आते हैं।

• प्याज का रस बालकों को पिलाने से अनेक कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• लहसुन तथा गुड़ को सममात्रा में मिलाकर गोली बनालें। बच्चों को 3

ग्राम व युवाओं को 10 ग्राम की गोली सुबह खाली पेट 3 दिन खिलाने से उदर- कृमि नष्ट होकर निकल जाते हैं।

• पलाश के बोज, सोमराजी बीज, छोटी हरड़, बायविडंग, कुटकी, बहादन्डी (प्रत्येक 10-10 ग्राम) कवीला, शुद्ध कुचला 6-6 ग्राम तथा सनाय 20 ग्राम लें। सभी को कूट-पीसकर कपड़छन कर सुरक्षित रख लें। इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में गरम जल के साथ सेवन कराने से सभी प्रकार के उदर-कृमि नष्ट हो जाते हैं।

• नारंगी के सूखे छिलके और वायविडंग दोनों समभाग लेकर कूटपीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में गरम जल से सेवन करने से उदर कृमि मर जाते है।

नोट:- पहले 2-3 दिन उक्त चूर्ण सेवन करायें। तदुपरान्त एन्ड तेल पिलायें ताकि मरे हुए कीड़े दस्तों द्वारा बाहर निकल जायें।

उदर कृमि नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

वोर्मनिल कैपसूल (अतुल फार्मेसी) - वयस्को को 2-2 कैपसूल तथा बच्चों को 1-1 कैपसूल जल से दें। सभी प्रकार के कृमि नाशक उत्तम औषधि है।कृमिघ्न कैपसूल (गर्ग बनौषधि) वयस्कों को 2-2 कैपसूल तथा बच्चों को 1 से 132 कैपसूल पानी में घोलकर दें। सभी प्रकार के उदर कृमि नाशक कैपसूल है।

कृमि धातिनी कैपसूल (ज्वाला आयुर्वेद)- मात्रा व लाभ उपर्युक्त ।

कृमिनल सीरप (चरकफार्मेस्यूटिकल्स) - स्वादिस्ट सीरप है जो व्यापक असरकारक तथा कृमिनाशक है। यह आँतों में पाये जाने वाले कृमियों को निकालकर कृमियों से होने वाले रोगों को दूर करता है। ज्वर, वायुविकार, दस्त, ऐंठन, पित्ती एवं दमा आदि में अत्यन्त गुणकारी है। मात्रा 2-3 चम्मच (10-15) मिली० वयस्कों तथा बच्चों को इसकी आधी मात्रा सेवन करायें।

पिपराजीन सीरप (डाबर) कृमिहर सीरप (वैद्यनाथ) कृमिहन टेबलेट (डाबर) उदर कृमि टेबलेट मेहता (सायनसाला) आदि में से किसी एक का पत्रक को देखकर रोगी की आयु व बल के अनुसार औषधि सेवन करायें।

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