गृध्रसी,साइटिका का दर्द

        .                    (गृध्रसी,साइटिका का दर्द )

रोग परिचय-कमर से लेकर पैर तक बाहर और पीछे की ओर चलने

फिरने या झुकने में दर्द होता है। यह दर्द प्रायः एक ही ओर होता है किन्तु कभी- कभी दोनों ओर भी हो सकता है। दर्द के कारण रोगी गधे की भांति पैर घसीटकर (बेचैन होकर) चलता है, इसी कारण इस रोग का नाम गृधसी पड़ा है। अंग्रेजी में इसे (Sciatica) कहते हैं। रोग के अधिक बढ़ जाने पर बैठने और आराम करने की स्थिति में भी दर्द होता है।

उपचार

• अकरकरा के महीन चूर्ण को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृधसी के दर्द में लाभ होता है।

• अडूसा, जमालगोटे की जड़, अमलताश का गूदा, (प्रत्येक 10-10 ग्राम)

को आधा किलो जल में औटावें। जब पानी 125 ग्राम शेष बचे, तब इसे उतार छानकर 10 ग्राम अण्डी का तेल (कैस्टर आयल) मिलाकर 15 दिनों तक निरन्तर सेवन करने से गृध्रसी में अवश्य लाभ हो जाता है।

• लहसुन 10 ग्राम, शुद्ध गूगल 50 ग्राम दोनों को खूब पीस लें। फिर जंगली बेर के आकार की गोलियाँ बना लें। इन गोलियों को प्रतिदिन सुबह शाम 1-1 गोली सेवन कराने से गृधसी में लाभ हो जाता है।

• सुरन्जान मीठा, मुसब्बर तथा बड़ी हरड़ का छिलका 1-1 ग्राम लेकर पानी में मिलाकर मटर के आकार की गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली सुबहशाम अथवा रात्रि को 4 गोली गरम जल से सेवन करने से गृधसी में लाभ हो जाता है।

शैफालिका (हार सिंगार) के 1 किलो पत्ते लेकर 1 किलो पानी में औटावें। जब पानी 1 तिहाई जल जाये तब उतारकर रस निचोड़कर बोतल में सुरक्षित रख लें। इस क्वाथ को 20-20 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार रोगी को पिलायें। जब काढ़ा समाप्त हो जाये तब दुबारा बना लें। इसके नित्यप्रति कुछ दिनों के सेवन से गृधसी (सायटिका) का दर्द ठीक हो जाता है।

• अर्कमूल ताजी, अदरक, कालीमिर्च, (प्रत्येक सममात्रा में) लेकर गुलाब जल व केवड़ा जल के समान मिश्रण के साथ सेवन करायें। इस प्रयोग से गृधसी के दर्द के कारण उठने बैठने में लाचार रोगी भी 2 दिन के सेवन से ठीक हो जाता है। अनेकों बार का परीक्षित योग है।

• कनक (धतूरा) के ताजा पने ढ़ाई किलो, खाने वाली तम्बाकू 250 ग्राम लें। कनक पत्र (धतूरा पत्र) को कूटकर उसका 2 किलो स्वरस निकाल लें तथा खाने वाली (तीव्र) तेज असर तम्बाकू को 2 किलो पानी में भिगो दें। 1 रात भीगने के बाद मसलकर छान लें। फिर तिल का तेल 1 किलो डालकर इसको मन्द- मन्द आग पर पाक करें। जब पानी सब जल जाये और तेल मात्र शेष रह जाये, तब छानकर किसी साफ स्वच्छ बोतल में सुरक्षित रख लें। इस तेल का गृधसी नाड़ी के स्थान पर मालिश करने से गृधसी का दर्द शान्त हो जाता है।

• सुरंजान मीठी, नागौरी असगन्ध तथा सौंफ प्रत्येक 30-30 ग्राम, काला

जीरा, सौठ, सनाय, शुष्क पोदीना प्रत्येक 10-10 ग्राम, काली मिर्च 6 ग्राम तथा रूमी मस्तंगी असली 10 ग्राम लें। पहले रूमी मस्तंगी को कूटकर अलग रख लें फिर शेष औषधियों को कूटकर मिलाकर कपड़छन कर (चूर्ण बनाकर) सुरक्षित रख लें। इसे 6-6 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार दूध से सेवन करायें। गृधसी को निर्मूल करने हेतु अद्वितीय योग है। निरन्तर 40 दिन प्रयोग करायें। यह योग शत प्रतिशत सफल सिद्ध हुआ है।

• पुराना गुड़ (2-3 वर्ष पुराना) 20 ग्राम, सूखे आँवले का यवकुट चूर्ण 20 ग्राम आधा किलो पानी में मन्दाग्नि पर क्वाथ करें। जब पानी चौथाई (125) ग्राम) शेष रह जाये तब प्रातःकाल तथा इसी प्रकार बनाकर सायंकाल को पिलावें। 6 से 11 दिनों के सेवन से गृधसी में लाभ हो जाता है। मूंग, चनेदाल, तोरई आदि को बिना नमक (नमक रहित) सेवन कराये।• दशमूल क्वाथ 10 ग्राम, पीपरामूल तथा अजवायन 3-3 ग्राम, आधा किलो पानी में विधिवत् क्वाथ (काड़ा) करें। चौथाई जल रह जाने पर गरम-गरम क्वाथ में 10 ग्राम गौघृत डालें और प्रातः 6 बजे तथा इसी प्रकार बनाकर रात्रि को सोते समय सेवन करायें। यह क्वाथ सूतिका रोग, प्रसूति अवस्था के समय उत्पन्न हुई गृधसी में विशेष लाभ करता है। परीक्षित योग है।

• आंवा हल्दी, मैदा लकड़ी दोनों 6-6 ग्राम, उत्तम गौघृत 12 ग्राम (उपलब्ध न होने पर भैस का घी ले लें तथा मिश्री 12 ग्राम, सभी वस्तुओं को 250 ग्राम जल में डालकर उबालें। जब पानी जल जाये और दूध की मात्रा शेष रह जाये तब उतार कर छानकर गुनगुना-गुनगुना ही रोगी को पिला दें। तदुपरान्त रोगी को कपड़ा उढ़ाकर सुला दें। पसीना आयेगा, उसे कपड़े के भीतर ही भीतर पौछते रहें। (हवा न लगने दें) दिन में 3 बार सेवन कराये। खाने को कुछ भी न दें। (यही औषध पर्याप्त है) 3 दिन में पूर्ण आराम आ जायेगा ।

• अरण्डी की मिंगी को दूध में पीसकर पिलाने से गृधसी और कटिशूल नष्ट हो जाता है।

गृधसी नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग

आर कम्पाउन्ड टेबलेट (अलारसिन) - पुराने रोगियों को 2-2 गोली दिन में 3-4 बार दें तथा आवश्यक सुधार आ जाने पर 1-2 गोली दिन में 2 बार जल या दूध से दें। परिणा‌मों की स्थिति हेतु 1 से 6 मांस तक 2-2 टिकिया दिन में 2 बार सेवन करायें ।

रीमानील टिकिया तथा लिनीमेन्ट (चरक)- यह टिकिया वात रोग तथा सूजन की प्रभावकारी औषधि है। गठिया, वात रोग, नाड़ी शोथ, तन्विका शूल, कटिशूल, जोड़ों की हड्डी में सूजन, सूत्रण रोग, कमर में सूल, मोच व टखने में दर्द आदि में अत्यन्त प्रभावकारी है। वयस्कों को 2 टिकिया दिन में 3 बार बच्चों को 1 टिकिया दिन में 3 बार रीमानील टिकिया की ही रीमानिल लिनिमेन्ट भी उपयोगी है। गोली व लिनीमेन्ट का प्रयोग साथ-साथ करायें ।

रूमालिया टेबलेट (हिमालय)-1-2 गोली दिन में 2-3 बार दें। औषधि

का प्रयोग तब तक निरन्तर जारी रखें, जब तक कि शोध का पूर्ण रूपेण निराकरण नहीं हो जाये । सामान्यतः 2 सप्ताह में लाभ हो जाता है। फिर भी कुछ रोगियों को 4-6 सप्ताह लग जाते हैं। अन्य वात रोगों में भी लाभकारी है। इसी नामसे बाह्य प्रयोग (मालिश) हेतु इसका मलहम भी आता है। टेबलेट तथा महलम का साथ-साथ प्रयोग अधिक प्रभावकारी होता है।

अन्य योग-रूमालिन टेबलेट (मोहता रसायन), रैमीटान (गैम्बर्स लैबोरेट्रीज), वातान्तक कैप्सूल (गर्ग बनौषधि), वात रोग हर कैप्सूल (ज्वाला आयुर्वेद), भामोस्ट्राइल कैप्सूल (धूत पापेश्वर), वातारि कैप्सूल (पंकज फार्मा), वात कन्टक कैप्सूल (जी० ए० मिश्रा) वातरोगादि कैप्सूल (निर्मल आयुर्वेद), रास्नाधन सत्ववटी (गर्ग बनौषधि), वातनौल मलहम (गर्ग बनौषधि), वातौना मलहम (ज्वाला आयुर्वेद भवन), वातकिल कैप्सूल (अतुल फार्मेसी), वातकिल मलहम (अतुल फार्मेसी) रास्ना घनसत्व (अतुल फार्मेसी) इत्यादि में से किसी प्राप्त औषधि का चुनाव कर पत्रक के दिशानुसार वल व अनुसार एवं विवेक से प्रयोग करें ।

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