गर्भस्राव एवं गर्भपात,बच्चा गिरना
(गर्भस्राव एवं गर्भपात,बच्चा गिरना)
रोग परिचय-नियत समय से पहले यदि गर्भाशय से बच्चा निकल जाये तो इसे गर्भपात कहते हैं। इसको साधारण बोलचाल में हमल गिरजाना, गर्भ गिरना, कच्चा पड़ना कहा जाता है। इसी को गर्भस्राव भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे (Abortion) एर्बोशन कहते हैं।
उपचार- महर्षि चरक जिन्हें आयुर्वेद का संस्थापक कहा जाता है। एक योग 'कल्याण घृत' की चरक संहिता में बहुत ही प्रशंसा की है। सर्व प्रथम हम अपने प्रिय पाठकों के लिए वही योग यहाँ लिख रहे हैं। यह योग विशेषकर उन गर्भवती स्त्रियों के लिए रामबाण साबित हुआ है, जिनको बार-बार गर्भपात हो जाता है। इसके अतिरिक्त यह औषधि रुग्णा के शरीर में नवीन शक्ति उत्पन्न करती है। मष्तिष्क की कमजोरी में भी विशेष लाभकर है। मिर्गी, पागलपन, हिस्टीरिया के कारण आवाज बैठ जाना (Aphonia) शरीर व मष्तिष्क का पोषण कर वृद्धा को जवान बनाती है।
• हरड़, बहेडा, आँवला, इन्द्रवारूणी, रेनुका, शालपर्णी, सारिबा, दारबी, तगर, उत्पला, इलायची, मजीठ, दन्ती, नागकेशर, अनार, तालीसपत्र, बायविडंग, कूठ, पृष्ठपर्णी, चन्दन, पदमाख, सभी औषधियों को समभाग लेकर कूट पीसकर 1 सेर लुग्दी बना लें। शुद्ध घी 4 सेर, पानी 8 सेर, दवाओं को घी तथा पानीमें मिलाकर बहुत ही धीमी आग पर पकायें। जब सिर्फ घी रह जाये तो छानकर सुरक्षित रख लें। इस "कल्याण घृत" को 1 छोटे चम्मच से लेकर 4 चम्मच तक दिन में 2 बार दूध के साथ पिलायें। खटाई, लाल मिर्च एवं चटपटे तथा मसालेदार भोजनों एवं पदार्थों से पूर्णतः परहेज रखें।
• यदि स्वी को गर्भ स्थिति होते ही उसके गिर जाने की व्याधि लग जाये तो इसे हर माह केले के रस में शहद मिलाकर पिलाते रहने से गर्भस्राव नहीं होने पाता है।
• केले के कान्ड के भीतर के श्वेत गूदे का स्वरस 40 से 50 ग्राम में उत्तम शहद 20 ग्राम मिलाकर दिन भर में ऐसी 2-3 मात्रायें रोगिणी को पिलायें तथा उक्त स्वरस में 10 ग्राम फिटकरी महीन पीसकर घोल दें, फिर शीशे या मिट्टी के किसी साफ स्वच्छ पात्र में रख लें। इस घोल में स्वच्छ रुई डुबोकर जिस प्रकार वियाँ माहवारी के समय कपड़ा लेती है, उसी तरह योनि में दिन भर में 2-3 बार रखें। दूध भात का प्रयोग काल में सेवन करायें, तो बार-बार होने वाले गर्भपात का भय नहीं रहता है।
• जब गर्भवती को रक्तस्राव होने लगे तो हरी श्वेत दूब का 5 ग्राम स्वरस में स्वर्णमाक्षिक भस्म तथा मुक्ताशुक्ति भस्म 1-1 रत्ती मिलाकर 2-3 बार देने से गर्भपात नहीं होने पाता है।
• गर्भाधान होने के पश्चात् खरैटी या बबूल के पत्ते 25 ग्राम लेकर उनका क्वाथ (काढा) कर लें और उसमें मिश्री मिलाकर नित्य प्रातःकाल सात दिन तक सेवन करने से गर्भस्राव व गर्भपात का भय नहीं रहता है।
• कुम्हार बरतन बनाता हुआ जो हाथ पोंछता जाता है, उस मिट्टी को शहद या बकरी के दूध के साथ मिलाकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ निश्चित ही रुक जाता है।
योनि के मुख में बर्फ का टुकड़ा रखने से भी गर्भाशय संकुचित होकर गर्भपात में लाभ होता है।
• समुद्र सोख को कूटपीसकर कपड़छन कर सुरक्षित रख लें। इसे 6 ग्राम की मात्रा में शीतल जल से सेवन कराने से गर्भपात में लाभ हो जाता है। अनेक अंग्रेजी औषधियों के निष्फल होने पर भी यह परम लाभकारी योग है।
मुलहठी का बारीक चूर्ण कर सुरक्षित रख लें। इसे निरोगी स्वस्थ गाय जिसका बछड़ा जीवित हो, के 250 दुग्ध में इतना ही जल मिलाकर 3 ग्राम मुलहटीचूर्ण मिलाकर मन्दाग्नि पर गरम करें और जब दुग्ध मात्र शेष रह जाये तब शीतल होने पर बिना मिश्री मिलाये रोगिणी को (ऐसी खुराक नित्य) सुबह शाम निरन्तर गर्भ स्थिति से 9 वे मास तक सेवन कराने से गर्भपात का भय नहीं रहता है तथा प्रसव सुखपूर्वक सम्पत्र हो जाता है।
• नाग केशर 50 ग्राम, असली बंसलोचन 50 ग्राम, छोटी इलाइची के दाने 25 ग्राम, असली केशर 6 ग्राम, मिश्री कुंजा 150 ग्राम लें। मिश्री को छोड़कर सभी औषधियों को गुलाब जल में सुरमे की भाँति खरल करें। सूख जाने पर मिश्री मिलाकर शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में गौ दुग्ध के साथ (ऐसी गाय-जिसका बछड़ा न मरा हो तो अधिक उत्तम है) सेवन करायें। गर्भस्राव (गर्भपात) अकाल गर्भपात का भय समाप्त हो जायेगा।
• गर्भपाल रस (शास्वीय आयुर्वेद औषधि) 1 रत्ती से 2 रत्ती तक मधु 125 से 250 मि०ग्रा० से चटाकर ऊपर से दूध पिलाने से (गर्भावस्था के प्रारम्भ से ही) गर्भपात रोकने हेतु अचूक योग है।
• गूलर की छाल 12 ग्राम को 250 मि.ली. जल में मिलाकर काढ़ा बनायें। जब जल 30 मि०ली० शेष बचे तब छानकर गर्भिणी को प्रातःकाल पिलाने से गर्भपात रुक जाता है।
• जवासा सारिवा, पदमाख, रास्ना, मुलहठी, कमल के फूल प्रत्येक 2- 2 ग्राम लेकर एक साथ गाय के दूध में पीसकर सुबह शाम पिलाने से गर्भपात के समस्त लक्षण नष्ट होकर गर्भ गिरने से रुक जाता है।
• गर्भावस्था के तीसरे मास में शर्करा और नाग केशर प्रत्येक 3-3 ग्राम को दूध के साथ पीसकर पिलाने से अत्यधिक अन्तःस्वावी ग्रन्थियों का स्राव होकर हारमोन की पूर्ति हो जाती है।
• पीपल वृक्ष की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम तक ठण्डे जल से पिलाने से रक्तस्राव बन्द हो जाता है।
• सफेद राल का चूर्ण और सोना गेरू सममात्रा में लेकर मिश्री मिलाकर कच्चे दूध के साथ पिलाने से रक्तस्राव बन्द होकर गर्भपात होना रुक जाता है तथा गर्भ पुष्ट हो जाता है।
सहस्र अथवा सौ बार का धोये हुए गाय के घी को गर्भवती के पेडू पर मालिश करने से गर्भपात होना रुक जाता है। किन्तु गर्भवती को पूर्ण विश्राम दें। चारपाई का पायताना (पैर की ओर के पायें) के नीचे 1-1 ईंट रखकर पैर ऊँचे और सिर नीचा करके आराम से लिटायें ।• शिवलिंगी के बीज 5 या 7 अथवा 11 दाने लेकर गर्भवती को प्रतिदिनं गो-दुग्ध से निगलवा दें। गर्भस्राव रुक जायेगा।
नोट:- यदि गर्भवती का खून अत्यधिक बहुत अधिक बहने लग गया हो और दर्द भी बहुत बढ़ जाये एवं गर्भाशय का मुख भी अधिक खुल चुका हो और यह डर हो कि अब गर्भ रहना सम्भव नहीं है अथवा गर्भ का कुछ भाग लोथड़ों के रूप में निकल चुका हो तो ऐसी परिस्थिति में गर्भ निकालने की दवायें प्रयोग की जाती हैं और यही प्रयत्न किया जाता है कि गर्भ शीघ्र से शीघ्र और आसानी से निकल जाये ताकि स्त्री को कम से कम कष्ट हो। गर्भ निकल चुकने के बाद आँवल और झिल्ली का निकालने के लिए 2-4 दिन तक मासिक धर्म लाने वाली निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करायें, ताकि गर्भाशय को पूर्णरूपेण सफाई हो जाये।
• योग-कपास की जड़ 12 ग्राम, गाजर के बीज, खरबूजे के बीज 6- 6 ग्राम, पुराना गुड़ 24 ग्राम, सभी को 120 मि०ली० पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तब मल छानकर पिलायें। यह क्वाथ कई बार पिलाते रहने से गर्भ-आँवल और अन्य तमाम दूषित पदार्थ निकल जाते हैं और गर्भाशय की पूर्ण रूपेण सफाई हो जाती है।
नोट:- (यदि दूषित पदार्थ रोगिणी के गर्भाशय में रुक जाये तो संक्रामक (इन्फैन्सन) होकर, कई प्रकार के रोग हो सकते हैं और मृत्यु तक हो सकती है ।)
• काले तिल 25 ग्राम, पुराना गुड़ 9 ग्राम, शुद्ध होग 4 ग्राम, तिलों को कूटकर आधा किलो पानी में औटायें जब चौथाई रह जाये तब उतारकर कर छान लें। इसमें गुड़ और हींग मिलाकर मासिकधर्म (माहवारी) के पहले और दूसरे दिन भी दे सकते हैं किन्तु चौथे दिन न दें। इसके प्रयोग से गर्भाशय की शुद्धि हो जाती है।
गर्भस्राव एवं गर्भपात नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग
बाबली घास घनसत्व (अतुल फार्मेसी) - 1-1 ग्राम दिन में 3 बार ताजा पानी से दें। कैपसूलों के रूप में प्राप्य है। रक्त बन्द करने की अद्भुत औषधि है। रक्त चाहे शरीर में कहीं से (बबासीर, नक्सीर तथा रक्त प्रदर इत्यादि) गिरता है। अवश्य लाभ होता है।
लेप्टाडिन टेबलेट (अलारसिन) 6 दिनों तक प्रतिदिन 3 बार 2-2 टिकिया तदुपरान्त 2-3 सप्ताह तक 2-2 टिकिया दिन में 2 बार दें। बार-बार होने वाले गर्भपातों तथा तत्सम्बन्धित विकृतियों में अत्यन्त लाभकारी है। यह गर्भधारण हेतु भी अनुकूल परिस्थितियों को स्वाभाविक अवस्था में लाती है। गर्भावस्था को स्थिररखती हुई निरापद प्रसव काल तक पहुँचाती है तथा इसके सेवन से पूर्ण मासिक (पूर्ण समय में) एवं जीवित तो उत्पन्न होता ही है।
ल्यूकोरिन टेबलेट (मार्तन्ड) - 1-2 टिकिया गर्भश्स्राव के लक्षण प्रारम्भ होते ही प्रत्येक 4-4 घन्टे पर सेवन करायें ।
कामिनी कार्डियल (मार्तम्ड)- 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार दें। बार-
बार होने वाली गर्भस्राव में उपयोगी है।
अमृत रसायन (त्रिमूर्ति फार्मेसी) - 2 से 5 ग्राम तक दिन में 2 बार दूध
से दें। यह अवलेह रूप में प्राप्य है। गर्भावस्था में प्रारम्भ से ही प्रयोग कराने
से बालक पूर्ण दिनों (270 से 280 दिनों) में स्वस्थ उत्पन्न होता है।
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