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(कारवंकल, राजफोड़ा,boils,aditya foda,madhumeh peedika,sakraburd,pusthaburd,code,mavadifode)

रोग परिचय-इस फोड़े को अदीठ फोड़ा, मधुमेह पीड़िका, शर्करार्बुद

पृष्ठार्बुद आदि नामों से भी जाना जाता है। यह फोड़ा अधिकतर गर्दन, पीठ और चूतड़ की चर्म और उसके गहरे मांस में निकला करता है। यह फोड़ा खतरनाक होता है। प्रायः यह फोड़ा मधुमेह के रोगियों को निकलना है। इस फोड़े की चर्म अत्यधिक लाल हो जाती है और इसमें सख्न दर्द और शोथ होती है। व्रण निरन्तर बढ़ता और फैलता जाता है और काला सा हो जता है। उसके बाद उस पर एक छाला सा पैदा होकर जब यह फूटता है तो इसमें कई छेद दिखाई देते हैं। घाव प्रतिदिन बढ़ता जाता है अन्ततः पूरे फोड़े की चर्म छलनी की भांति छिद्रयुक्त हो जाती है। कई बार बहुत से छोटे-छोट छेद मिलकर एक बड़ा सा छेद बन जाता है जिसमें से काले रंग के छिछड़े से निकलते हैं।

इस फोड़े में हर समय पतली सी पीप बहती रहती है और यदि पीड़ित स्थान को दबाया जाए तो गाढ़ी पीप की कीलें निकलती हैं। रोगी को इस फोड़े के कारण बहुत अधिक कष्ट होता है। यदि इस फोड़े का उचित उपचार न किया जाए तो यह घातक सिद्ध हो सकता है। इस फोड़े के निकलने का सबसे बड़ा कारण मधुमेह (पेशाब में शक्कर आना) रोग तथा रक्तदोष होता है। इसके अतिरिक्त छोटे जोड़ों का दर्द (गठिया रोग) तथा शारीरिक दुर्बलता होती है।

उपचार-रोगी के रक्त और मूत्र की जाँच करायें। यदि रोगी के रक्त और मूत्र में शक्कर की मात्रा सामान्य से अधिक हो तो किसी सुयोग्य चिकित्सक से उसकी. चिकित्सा करायें। क्योंकि यह घाव यदि समय पर ठीक न हुआ तो फिर यह असहाय, कमजोर, कृषकाय, मधुमेह के रोगी को मृत्यु के द्वार पर पहुँचा देता है। मधुमेह के रोगी अपने शरीर की सफाई की ओर विशेष ध्यान देते रहें वह किसी भी छोटी से छोटी फुन्सी को भी बेकार और बेजान न समझें क्योंकि मधुमेही को छोटी फुन्सी भी मृत्यु की अन्धी गहरी खाई में ढकेल सकती है।

• फोड़े की सिंकाई से भी लाभ की उम्मीद रहती है, क्योंकि प्रायः फोड़े की सिंकाई करने से फूट जाते हैं। आटा, हल्दी, गुड़, अलसी की सेंक करें और इन्हीं में से किसी एक की पुल्टिस बांधं ताकि फोड़ा फूट जाए। त्वचा को साफ रखें। यदि रोगी को कब्ज, हो तो हल्का जुलाब या एनिमा लगाकर पेट साफ करें। खड्डे, मीठे, चटपटे, मिर्च-मसालेयुक्त खाद्य पदार्थ, गरिष्ठ भोजन, मिठाई, मीठे फल, गन्ना अथवा अन्य कोई भी मीठी वस्तु चाय, काफी आदि बन्द कर दें।यदि मधुमेह हो तो सतर्कतापूर्वक उसका भी उपचार आवश्यक है। इस फोड़े में सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से भी लाभ पहुँचता है। यदि यह फोड़ा नाक और आंठ पर हो गया हो तो वहाँ भयंकर उपद्रव उत्पन्न कर सकता है। क्योंकि इसका संक्रमण सीधा मस्तिष्क में जा पहुँचता है जो भयानक स्थिति पैदा कर सकता है।

• शाम को शुद्ध गन्धक 250 से 500 मि. ग्रा. दूध के साथ खिलायें।,

• कारबंकल के घावों को नीम की पत्तियों और मेंहदी की पत्नियों के क्वाथ से भली प्रकार साफ करें और कीलों को निकालकर निम्नलिखित प्रयोग करें-

• अनार का छिलका, मसूर बिना छिलका और गेरू प्रत्येक 12 ग्राम लें।

सभी को पीसकर 3 वर्ष पुराने गुड़ में घोटकर लेप तैयार कर लगायें। यह लेप कारबंकल, कैन्सर और प्रत्येक प्रकार के जटिल घावों के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। जब तक घाव पूर्णरूप से ठीक न हो जाए, तब तक इसका प्रयोग करते रहें।

• कछुए की हड्डी का राख घाव पर छिड़कें या बेर की पत्नियों को पीसकर घाव पर लगायें ।

• दही को मोटे कपड़े में डालकर बाँधकर लटका दें- जब सारा पानी निक जाए तो इस सख्त दही की टिकिया बनालें। इसको कारबंकल के फोड़े पर फैलाकर पट्टी बांधे। दिन भर में 3-4 नई दहीं की यह किया बदल-बदल कर बांधे । इस प्रयोग से कारबंकल का समस्त गन्दा विषैला पदार्थ, रक्त, पीप इन टिकियों में आ जाएगा तथा जलन नष्ट होकर ठण्डक पड़ जायेगी।

कारवंकल नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग

केपाइनाप्लेन टेबलेट (हिमालय) - वयस्कों को 2-3 टिकिया दिन में 3 बार दें तथा बच्चों को आयु व अवस्थानुसार बिना किसी हानि के प्रयोग करवा सकते हैं।

ब्लडप्यूरी फाइर सीरप (झन्डू) - 4 से 8 मि.ली. पानी मिलाकर दिन में 3 बार लें।

भद्र मलहम (पंकज) - दुर्गन्धयुक्त घावों को सर्वप्रथम नीम के पानी से धो- पोंछकर मलहम का प्रयोग करें तथा साथ ही इसी कम्पनी का कैपसूल रक्त विकार सेवन करें।

करामाती मलहम (राजवैद्य शीतल प्रसाद एण्ड संस)- का घावों में प्रयोग अत्यन्त ही लाभकारी है इसी कम्पनी की करामाती टेबलेट 1-2 गोली दिन में 3-4 बार लें ।घाव मलहम (वैद्यनाथ) आवश्यकतानुसार गन्दे घावों पर प्रतिदिन 2- 3 बार घाव को साफ करके प्रयोग करें।

कारबंकल घाव के शोथ की जलन शान्त करने हेतु तथा उसको जल्द ही पकाने के आशय से टमाटर को चन्दन के साथ पीसलें। यह पेस्ट जैसा बन जाएगा। इसको शोथ पर 3-4 बार लगाने से घाव में पीप जल्द बनकर घाव फट जायेगा।

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