रजोनिवृत्ति,menopause, 45 age ke baad period ka rukne se hone wali bimari
(रजोनिवृत्ति,menopause, 45 age ke baad period ka rukne se hone wali bimari )
रोग परिचय-यदि हकीकत में कहा जाए तो यह कोई रोग नहीं है। स्वी की आयु जब 45 से 48 वर्ष की हो जाती है तब उसको रजः आना धीरे-धीरे बन्द हो जाता है। तब स्त्री को विभिन्न प्रकार के रोग और कष्ट हो जाते हैं। कईस्वियों को मासिक समाप्त होने के पूर्व ही विभिन्न प्रकार के रोग और कष्ट हो जाते हैं और यह आवश्यक भी नहीं है कि प्रत्येक स्वी को तमाम लक्षण और कष्ट हों अर्थात् किसी स्त्री को इनमें से कोई रोग व कष्ट और दूसरी अन्य किसी स्वी को अन्य कष्ट हुआ करता है। स्वी के मुख, सिर, गर्दन और गले के ऊपरी भाग में लाली और गर्मी उत्पन्न हो जाती है, पसीना अधिक आता है। प्रायः समस्त शरीर पर लाली-सी दिखाई देती है, सिरदर्द और सिर में चक्कर, मितली, बेचैनी, नींद न आना, भूख हट जाना, अजीर्ण, विड़चिड़ापन, क्रोध, भय, घबराहट इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। बहुत-सी स्वियों को हाईब्लड प्रेशर, वहम और पागलपन का रोग हो जाता है।
मासिक बन्द होने के समय कई स्त्रियों का गर्भाशय बड़ा हो जाता है जिससे उनको बहुत अधिक मात्रा में रक्त आने लगता है। प्रायः इस तरह का कष्ट मासिक बंद होने से पूर्व हो जाता है और इसके बाद रजोदर्शन हमेशा के लिए बन्द हो जाता है। प्रायः गठिया (जोड़ों का दर्द), मोटापा, मूत्र में शक्कर आना, कमर दर्द, आधे सिर का दर्द आदि कष्ट हो जाते हैं। स्वी हर समय दुखी रहती है. उसका दिल अधिक धड़कता है, शरीर में गर्मी की लहरें प्रतीत होती है। कभी कभी कम्पन और रक्त में विकार आने से कई चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
उपचार इस हेतु शास्त्रीय (आयुर्वेदिक) औषधि चन्द्रोदय रस अत्यन्त सफल सिद्ध हुआ है। इसे आधी से 1 रत्ती मात्रा में मधु में मिलाकर चाटें। तदुपरान्त गाय का 1 पाव भर दूध मधु मिलाकर पियें ।
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