बाँझपन (Sterility)पुरुषों मैं बांझपन, वीर्य की कमी,virya ki kami

(बाँझपन (Sterility)पुरुषों  मैं बांझपन, वीर्य की कमी)

रोग परिचय इस रोग का अत्यन्त ही सीधा सादा सा अर्थ है बच्चे न होना । स्वी गर्भधारण करने में असमर्थ रहती हैं। यह रोग पुरुषों को भी होता है। पुरुष भी स्वी को गर्भ स्थापित करने में असमर्थ हो सकता है।

यदि पति में दोष न होने पर विवाहोपरान्त भी 5 बर्ष तक गर्भ न ठहरे तो स्वी को बाँझ रोग से ग्रसित माना जाता है। इस रोग के मुख्यतः दो कारण हैं।

1. जन्मजात-जैसे खी का जन्म से ही गर्भाशय न होना अथवा गर्भाशय बहुत ही छोटा होना, कुमारी पर्दा बहुत मोटा और बिल्कुल बन्द होना, योनि की नाली बिल्कुल बन्द होना या उसका अन्तिम भाग बन्द या बहुत तंग होना अथवा फैलोफियन ट्यूबों का न होना अथवा बन्द होना, डिम्बाशय का न होना या बन्द होना, गर्भाशय का मुख बिल्कुल ही बन्द हो जाना इत्यादि ।

2. भगद्वार के ओष्ठों का आपस में जुड़ जाना-गर्भाशय शोथ, गर्भाशय का उलट जाना, गर्भाशय में बहुत अधिक चर्बी एकत्र हो जाना, गर्भाशयकठोर हो जाना, डिम्बाशय पर आप्राकृतिक झिल्ली उत्पन हो जाना और उसकी रचना खराब हो जाना, फेलोपियन ट्यूब के झालर वाले किनारे खराब हो जाना, उपदंश श्वेत प्रदर आदि होना है।

गर्भाशय के अन्दर दूषित तरल का एकत्र हो जाना, मासिकधर्म सम्बन्धी विकार, गर्भाशय के घाव और कैन्सर, गर्भाशय में सर्दी, गर्मी, खुश्की और तरल की अधिकता, गर्भाशय में वायु एकत्र हो जाना या पानी पड़ जाना, गर्भाशय की बबासीर, हारमोन्स के दोष, मोटापा, रक्त अल्पता, गर्भाशय के तरल में अधिक अम्लता उत्पन्न हो जाना तत्रा गर्भाशय के अन्य अनेक रोग बाँझपन का कारण हो सकते हैं।

बाँझ पुरुष (Male infertelity) हालांकि बच्चा उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र

नारी मानी गई है किन्तु सन्तानोत्पादन में दोषी केवल स्वी को मानना चिकित्सकीय दृष्टिकोण से कतई न्यायोचित नही है, क्योंकि चिकित्सा जगत में यह सप्रमाण सिद्ध हो गया है कि सन्तानोत्पादन न होने में पुरुष भी 30 प्रतिशत दोषी है। अतः जो पुरुष शुक्राणु जनन के अभाव में स्त्री को गर्भवती न कर सके तो वह बाँझ पुरुष कहलाता है। यदि खियों की जननेन्द्रियों में कोई खराबी सुयोग्य चिकित्सक के परामर्शानुसार न हो तो उसके पति का परीक्षण अति आवश्यक है।

बाँझ पुरुष में मैथुन शक्ति तो होती है किन्तु सन्तानोत्पादन क्षमता नहीं होती है। इसका प्रमुख कारण उसका वीर्य है। सम्भोग के समय पुरुष जननेन्द्रिय से लगभग 4 मि.ली.. वीर्य निकालता है। इसकी प्रत्येक सी.सी. (C.C.) में 10 से 40 करोड़ के लगभग शुक्राणु होते हैं। जिनमें 80 से 90 प्रतिशत तक सक्रिय होते हैं। इसी 1 शक्राणु और स्वी के 1 डिम्बाणु से मिलकर सन्तान की उत्पत्ति होती है। किन्तु जिनके 6 करोड़ से कम शुक्राणु होते हैं वे सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। शुक्राणुओं की जाँच (वीर्य परीक्षा) लेबोरेट्रीज में की जाती है।

कई बार पुरुष स्वी से यथाविधि मैथुन नहीं करते। अतः शुक्रकीट (शुक्राणु) गभीशय में नहीं जा पाते हैं। इस हेतु सम्भोग के पश्चात् स्वी को कई घन्टे तक लेटे रहना चाहिए। ताकि शुक्रकीट रेंगकर गर्भाशय में प्रवेश कर सकें क्योंकि वीर्य निकलने के 4 घन्टे बाद तक शुक्राणुओं में दुम हिलाकर हिलने-डुलने की शक्ति होती है। कई बार तो सम्भोग करने के 3 दिन (72 घन्टे) बाद गर्भाशय के तरल की परीक्षा करने के बाद उसमें शुक्रकीट गति करते हुए मिलते हैं। अब अनुसन्धानों के पश्चात् यह परिणाम निकाले गये हैं कि शुक्रकीट को गर्भाशयमें पहुँचने और गर्भ ठहराने के लिए कम से कम 24 घन्टे मिलना जरूरी है। सम्भोग के समय जिन पुरुषों का वीर्य गर्भाशय मुख के पास उछलकर गिरने के बजाय योनि के आरम्भ में ही गिर जाता है। ऐसे पुरुष में भी स्त्री को गर्भ ठहराने की कम सम्भावना होती है। वीर्य में रक्त या पीव होने पर भी गर्भ ठहरने की शक्ति घट जाती है। पुरुष का सुजाक रोग भी गर्भ न ठहरा सकने का कारण हो सकता है।

यदि बाँझपन का कारण स्वी को जन्म से हो तो इसका निरीक्षण से पता चल जाता है। कुमारी पर्दा और योनि के बन्द होने की अवस्था में सम्भोग नहीं किया जा सकता है। डिम्बाशय न होने पर या उसकी रचना खराब होने पर स्वी को संभोग का आनंद प्रतीत न होने के कारण, उसको सम्भोग की इच्छा ही उत्पन्न नहीं हुआ करती है।

डिम्बाशय पर अप्राकृतिक झिल्ली उत्पन्न हो जाने पर या फैलोपियन प्रणालियों के बन्द हो जाने पर या उनके न होने पर सम्भोग का मजा तो आता है किन्तु तरल- पात नहीं होता है। चूंक्कों के ऊपर की ग्रन्थियों और डिम्बाशय में रसूली हो जाये तो स्वियों में मर्दाना गुण उत्पन्न हो जाता है और उनकी दाढ़ी मूछों के बाल निकल आते हैं। छाती पेट हाथ तथा पैरों पर बहुत अधिक बाल निकल आते हैं। स्तन छोटे और कड़े हो जाते हैं। मासिक बन्द हो जाता है। कामकेन्द्र बड़ा हो जाता है और स्वर पुरुषों की भाँति भारी हो जाता है। यदि गर्भाशय के किसी दूसरे रोग के कारण बाँझपन हो तो स्वी को उस रोग का स्वयं ज्ञान होता है।

उपचार - सर्वप्रथम बाँझपन के वास्तविक कारण को जान कर उसको दूर करने का प्रयत्न करें। यदि स्वी में जन्म से कोई दोष हो तो उसकी चिकित्सा नहीं हो सकती है। यदि अन्य गर्भाशय रोगों के कारण बाँझपन हो या पति में कोई वीर्य सम्बन्धी विकार है तो उसकी चिकित्सा पूर्णतः सम्भव है। मात्र धैर्य की आवश्यकता है।

• कस्तूरी 2 रत्ती, अफीम, केसर, जायफल, प्रत्येक 1-1 मांशा, भाँग के पत्ते 2 मांशा 2 रत्ती, पुराना गुड़, सफेद कत्था प्रत्येक 5 माशा 2 रत्ती, सुपारी 3 नग़, लौग 4 नग, सभी को कूटपीस छानकर जंगली बेर के समान गोलियाँ बनाकर मासिक धर्म समाप्त होने के बाद 1-1 गोली सुबह-शाम 5 दिन तक खिलायें। इस औषधि से जिन स्वियों की आयु 40 वर्ष से भी अधिक हो गई और गर्भ नहीं ठहर पाया हो, उनकी भी मनोकामना पूर्ण हो गई। यदि प्रथम मास गर्भ न ठहरे, तो यही प्रयोग पुनः दूसरे तीसरे मांस कर सकते हैं।• मोरपंख के अन्दर सुन्दर गोल (चाँद) 9 लेकर गर्म तवे पर भून लें। और बारीक पीसकर पुराने गुड़ में गूंथकर 9 गोलियां बना लें। मासिक धर्म आने के दिनों में 1-1 गोली बहुत सबेरे गाय के दूध के साथ 9 दिन तक खिलायें। इसके बाद पति पत्नी सम्भोग करें। इस प्रयोग से भी यदि प्रथम मास में सफल न हो तो दूसरे तीसरे मांस पुन; किया जा सकता है।

• पीपल की दाड़ी छाया में सुखाई हुई और नागकेशर प्रत्येक 6-6 माशा, हाथी दाँत, बहुत बारीक कटा हुआ हो 1 तोला, असगन्ध, कायफल प्रत्येक 3 माशा लें। सभी औषधियों को अलग-अलग कूटपीसकर 2 तोला खांड में मिलाकर रख लें। मासिक धर्म आ चुकने के बाद रात को सोते समय 6 से 9 माशा की मात्रा में यह औषधि खिलायें और तीसरे चौथे दिन पति-पत्नी सम्भोग करें। इस 5 दिन तक यह दवा खिलाते रहें। 3 मास के अन्दर गर्भ ठहर जाता है।

• शास्त्रीय औषधि सुपारी पाक के निरन्तर सेवन से भी श्वेत प्रदर और, गर्भाशय के रोग और कमजोरी दूर होकर गर्भ ठहर जाता है।

• भुनी हुई फिटकरी, जायफल, बड़ी माई, अनार का छिलका सभी सममात्रा में बारीक पीसकर पानी मिलाकर बत्तियां बनालें। मासिकधर्म आ चुकने के बाद 1 बत्ती गर्भाशय के पास रखें तथा रात्रि को बत्ती निकाल कर सम्भोग करें।

सम्भोग के बाद रखी चूतड़ों के नीचे तकिया रखकर काफी समय तक लेटी रहे। शीघ्रपाती तथा शक्ति वर्धक भोजन खाये। अनार, सेव, सन्तरा, गेहूँ का दलिया, लाभप्रद है। ख‌ट्टी वायुकारक और भारी देर से हज्म होने वाली वस्तुएँ न खाऐं। यह अपथ्य है।

• गोरोचन 3 ग्राम, गजपीपल 10 ग्राम, असगन्ध 10 ग्राम लें। सभी को बारीक कूट पीसकर चूर्ण कर लें। ऋतु स्नान के पश्चात् चौथे दिन से 5 दिन तक यह चूर्ण 4-4 ग्राम की मात्रा में गौदुग्ध के साथ प्रयोग करें। तत्पश्चात् गर्भाधान (संभोग) करें। अवश्य गर्भधारण एवं पुत्र उत्पन्न होगा ।

• असगन्ध नागौरी को कूट पीसकर चूर्ण बना लें। तदुपरान्त गौघृत से चिकना कर लें। मासिक धर्म के पश्चात् 1 मास तक निरन्तर 6 ग्राम चूर्ण गौघृत के साथ सेवन करायें। अवश्य गर्भ धारण होगा ।

• शिवलिंग के बीज 9 अदद मासिकधर्म के बाद (स्नान के बाद) 4 दिन तक निरन्तर सेवन करें, तत्पश्चात् संभोग करें तो अवश्य गर्भ धारण होगा। यदि 1 बार में प्रयोग सफल न हो तो निराश न हों। 3-4 बार के प्रयोग में निराशा आशा में बदल जायेगी ।• माजूफल 10 ग्राम, दक्षिणी सुपारी 10 ग्राम, हाथी दाँत का बुरादा 50 ग्राम लें। तीनों को कूटपीसकर गुड़ में मिलाकर रख लें। ऋतुकाल के पश्चात् स्नानकर शुद्ध होकर चौथे दिन से 6 ग्राम औषधि बछड़े वाली गाय के दूध के साथ सेवन करने से बन्ध्या (बाँझ) स्वी अवश्य गर्भवती हो जाती है।

• अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 30 ग्राम, काली मिर्च 30 नग दोनों को बारीक पीस लें। मासिक धर्म के 1 सप्ताह पूर्व से प्रयोग करें। तीन मास तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। गर्भाशय के समस्त रोग दूर हो जाते हैं, मासिक धर्म नियमित हो जाता है। प्रदर एवं बांझपन को दूर करने वाला अमृत समान योग है।

• भली प्रकार साफ की हुई अजवायन 4 ग्राम, सेंधानमक 2 ग्राम लें।

दोनों को बारीक पीसकर एक साफ कपड़े में रखकर पोटली बनालें। इसे सावधानी से योनि में गर्भाशय के समीप रखें। कुछ ही मिनटों में तेजी से पानी जैसा प्रवाह चालू होगा और थोड़ी देर बाद स्वयं ही बन्द हो जायेगा। जब पानी बन्द हो जाये तब पोटली बाहर निकाल लें। इससे गर्भाशय के समस्त विकार बाहर निकल जायेगें। यह प्रयोग शाम को 4-5 बजे करें। उस दिन सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन खीर अथवा गर्म हलुवा का सेवन करें तथा रात्रि के द्वितीय पहर में पति के संग सम्भोग करें। इस प्रयोग से अवश्य ही बाँझ स्वी पुत्रवती हो जाती है।

• मासिकधर्म के बाद अजवायन और मिश्री 25-25 ग्राम को 25 ग्राम पानी में रात्रि में मिट्टी के बर्तन में भिगोदें। प्रातः काल ठन्डाई की तरह खूब पीसकर पी जायें। पथ्य में मूंग की दाल और रोटी (बिना नमक की) खायें। औषधि सेवन मासिकधर्म के बाद आठ दिन तक निरन्तर करें। अवश्य गर्भ धारण होगा ।

• बंगला पान 1 नग, लौंग 1 नग, बढ़िया अफीम 1 रत्ती लें। तीनों को बिना पानी मिलाये घोटकर गोलियां बनालें। मासिक धर्म स्नान के पश्चात् 1 गोली ताजा जल से प्रतिदिन 3 दिन तक निगलें और रात्रि में सम्भोग करें। प्रथम मास में ही उम्मीद सुफल हो जायेगी। यदि कामयाबी हासिल न हो तो धैर्य पूर्वक पुनः यहीं किया दूसरे मांस करें ।

• सौंठ, काली मिर्च, पीपल, नागकेशर, सभी 20-20 ग्राम लें। कूटपीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में गाय दूध में मिलाकर ऋतु स्नान के पीछे सेवन कराये। बाँझपन को नाश कर गर्भित करने वाला योग है।

• तुलसी के बीज आधा तोला पानी में पीसकर मासिक धर्म के समय 3 दिन तक देने से अवश्य गर्भ ठहर जाता है।• सुपारी और नागकेशर को सम मात्रा में लें। पीसकर कपड़छन कर लें। इस चूर्ण को 2-3 माशे की मात्रा में ऋतु काल के 16 दिन तक जल के साथ खी के सेवन करने से अवश्य ही गर्भ ठहर जाता है।

नोटः- पुरुष बाँझपन की चिकित्सा में आयुर्वेदीय मतानुसार बाजीकारण योगों का रोग के लक्षणों के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। इस ग्रन्थ में इस प्रकार के कई अति महत्त्वपूर्ण योग अध्ययन करने पर आपको मिल जायेंगे ।

पुरुष बाँझपन नाशक कुछ वाजीकरण योग

नोटः- संखिया से निर्मित औषधियाँ 40 वर्ष की आयु से पूर्व न खायें। योग सेवन करने से पूर्व अपनी आयु का सदैव ब्यान रखें। विषैले योगों की औषधियाँ कुचला, संखिया, भिलावा, धतूरा, कनेर, खुरासानी अजवायन, इत्यादि) कभी भी उचित मात्रा से अधिक न खायें। यकृत व बुक्करोगी को संखिया फास्फोरसयुक्त तथा ऐसे ही अन्य मर्दाना शक्ति के योगों का सेवन नहीं करना चाहिए। युवावस्था में विषैली औषधियां का अत्यधिक सेवन उन्माद क्षयरोग तथा नपुंसकता आदि रोग उत्पन्न कर सकते हैं। 40 वर्ष की अवस्था से पूर्व स्तम्भन की औषधियों का भूलकर भी प्रयोग न करना चाहिए। अफीम, गाँजा इत्यादि मादक पदार्थ कुछ समय के लिए स्तम्भन शक्ति बढ़ाते हैं, किन्तु अन्त में इनका पुरुष के स्वास्थ पर बुरा ही प्रभाव पड़‌ता है। संखिया मिश्रित योग कभी भी खाली पेट तथा मल से अधिक नहीं खाना चाहिए। इन योगों के प्रयोग काल में थी दूध, मक्खन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस ग्रन्थ में ऐसे योगों का समावेश न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है।

• प्याज की 30 गाँठों को एक बर्तन में रखकर उसके ऊपर इतना ताजा दूध डालें कि वह प्याज के ऊपर तक 4 अंगुल भर जाये, फिर उसको पकायें, जब गल जाये तब नीचे उतार लें। फिर प्याज के बराबर गाय का घी और शहद डालकर पुनः थोड़ी देर पकायें। फिर शकाकुल और कुलंजन 60-60 ग्राम उसमें मिलाकर सुरक्षित रख लें। इसे 10-10 ग्राम की मात्रा में खायें। यह योग अत्यन्त ही कामशक्ति बर्धक है।

• प्याज को किसी बर्तन में भरकर उसके मुँह को सावधानीपूर्वक बन्द कर दें जिससे उसमें वायु प्रवेश न कर सके। फिर उस बर्तन को गाय बाँधने की जगह पर 4 माह के लिए गाढ़ दें। तत्पश्चात् उसको निकालकर प्रतिदिन 1 प्याज खाने से मनुष्य की काम-शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।

• कोक शास्व के रचियता विद्धान पन्डित कोक के मतानुसार सर्वोत्तम बाजीकरण का प्रयोग यह है कि गुप्तांग के बाल सदैव साफ रखें तथा प्याज का प्रतिदिन सेवन करें। प्याज मन में हलचल उत्पन्न कर कामवासना को जागृत करता है तथा मैथुन करने की शक्ति प्रदान करता है। प्याज के रस के साथ शहद मिलाकर सेवन करना भी अत्यधिक लाभप्रद है। प्याज के सेवन करने वाला व्यक्ति जीवनमें कभी निर्बल नहीं होता है। सफेद प्याज का रस 6 ग्राम देशी घी 6 ग्राम तथा शहद 3 ग्राम की 1 मात्रा बनाकर सुबह शाम प्रयोग करने से लिंग दौबर्त्य, हस्तमैथुन-जन्य विकार मिटते हैं।

• प्याज के रस को गाय के दूध के साथ सेवन करने से तथा साथ में प्याज का रस घी, शहद तीनों को असमान मात्रा में प्रयोग करने से दुर्बलता गायब हो जाती है।

• काले उड़द की दाल धुली हुई 1 किलोग्राम को प्याज के रस में भिगोकर बर्तन को धूप में रख दें। जब रस सूख जाये तो फिर प्याज का 1 कि.ग्रा. रस डाल दें। इस प्रकार दाल में प्याज का 40 कि.ग्रा. रस शोषित करा दें। अब इसमें से 20 ग्राम दाल लेकर आधा कि. मा. गाय के दूध में पकाये तथा 10 ग्राम की मात्रा में गाय का घी भी डाल दें। फिर इस में स्वेच्छानुसार शक्कर डालकर पियें । इसके सेवन से बल तथा मुख की कान्ति बढ़ेगी, समस्त शरीर को बल प्राप्त होगा। वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जायेंगे ।

• प्याज का रस 3 से 10 ग्राम तक मधु में मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से प्रमेह और वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार दूर हो जाते हैं।

• प्याज और गुड़ मिलाकर खाने से अत्यन्त बाजीकरण योग बन जाता है। इससे वीर्य वृद्धि होती है तथा कामशक्ति बढ़ती है।

• प्रातःकाल लहसुन की 4 कलियाँ छीलकर उन्हें दाँतों से देर तक चबाकर ऊपर से दूध या घी पी जायें। इससे बल और काम-शक्ति में अपार वृद्धि होगी। नामर्दी तक नष्ट हो जायेगी तथा स्वियों का बांझपन भी दूर हो जाता है। नियम से उसका प्रयोग सारे शीतकाल में करें। नागा बिल्कुल न करें ।

• चाय के साथ लहसुन के रस की 10 बूँदें दिन में 2-3 बार लेते रहने से शुक्राशय सबल होता है और उत्तेजना भी बढ़ती है। यदि फिर भी अशक्ति महसूस करें तो सुबह शाम लहसुन की बर्फी (एक पोतिया लहसुन साफ कर 1 कि. की मात्रा में धो पीसकर 5 कि. गाय के गुनगुने दूध में मिलाकर हल्की आग पर पकायें और उसका मावा (खोबा) बना लें। फिर इस मावा को देशी घी में भूनकर (हल्की आग में) खूब बादामी रंग का कर लें। फिर चाशनी के साथ बर्फी बना लें।) 25-30 ग्राम की मात्रा में खाकर ऊपर से मिश्रीयुक्त दूध पी लें। इसके सेवन से सभी प्रकार के वीर्य दोष, मूत्र-विकार दूर होकर रतिक्रिया में अरुचि नष्ट हो जायेगी। यह बर्फी पुष्टिकर उल्लासप्रद, ज्ञान तन्तुओं को चैतन्यता प्रदान करने वाली, मधुर एवं स्वादिष्ट बाजीकरण उपयोगी औषधि है• देशी घी में लहसुन की कुछ कलियां भूनकर नियमित रूप से खाने से स्तम्भन-शक्ति में अपार वृद्धि हो आती है। यहाँ तक कि यदि नपुंसकता जन्मजात न हो तो वह भी आखिरी नमस्कार कर जाती है।

• कबाबचीनी, इलायची, वंशलोचन, मिश्री- सभी सममात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से वीर्य सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं।

• दालचीनी बारीक पीसकर रख लें। इसे 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह व रात को सोते समय गर्म दूध से लें। इससे वीर्य में वृद्धि होती है तथा दूध भी पच जाता है। बलप्रद योग है।

• इमली के बीजों को रात्रि में पानी में भिगोकर सबेरे उन्हें छील पीसलें। फिर बराबर वजनका गुड़ मिलाकर 6-6 ग्राम की गोलियाँ बना लें। एक-एक गोली सुबह शाम सेवन करने से वीर्य की कमजोरी नष्ट होती है।

• इमली के बीजों को भाड़ में भुनवाकर उसका छिलका उतार कर फेंक दें तथा गूदे को पीसकर चूर्ण बना लें। चूर्ण के बजन के बराबर खान्ड मिलाकर सुरक्षित रख लें। इसे नित्यप्रति प्रातःकाल 6 ग्राम की मात्रा में गोदुग्ध से सेवन

करने से धातु पुष्ट हो जाती है। स्वियों के प्रदर रोग में भी अत्यन्त उपयोगी है।

• शतावर 10 तोला खूब बारीक पीसकर सुरक्षित रख लें। इसे 6 माशा

से 1 तोला तक की मात्रा में आधा सेर दूध में जोश देकर 5 तोला खान्ड मिलाकर गाढ़ा होने पर ठन्डा करके रात को सोते समय खायें। मूल्यवान बलवर्धक योग' भी इसका मुकावला नहीं कर सकता है। जिगर, गुर्दे को शक्ति देने के साथ ही यह योग वीर्य को गाढ़ा करता है।

• भूसी ईसब गोल 5 तोला तथा मूसली सफेद ढाई तोला लें। दोनों को कूट पीस छानकर मिला लें। 6 माशा की मात्रा में लेकर डेढ पाव दूध में पकायें। जब खीर सी बन जाये तब चीनी डालकर हल्का गुनगुना ही पी जायें। बल वीर्य बर्द्धक योग है।

• असगन्ध नागौरी और विधारा दोनों को कूटपीसकर कपड़े से छानकर बराबर वजन में चीनी मिलाकर रख लें। इसे 3 से 6 ग्राम की मात्रा में ताजा दूध या पानी से दिन में 3 बार सेवन करें। देखने में यह योग अत्यन्त मामूली तथा अल्प मूल्य का है, किन्तु इसके सेवन करने से वीर्य का पतला होना, वीर्य में शुक्रकीट उत्पन्न न होना, स्वप्नदोष, वीर्य प्रमेह, अत्यन्त वीर्य नाश से उत्पन्न कमजोरी, वजनगिर जाना, चेहरा पिचका हुआ, आँखें अन्दर धँसी हुई, शरीर मात्र हड्‌डी का पिन्जर हो जाना, स्वी के नाम से ही भय खाने वाला रोगी तक जवान, और मोटा-ताजा हो जाता है। यही चूर्ण अश्वगन्धादि के नाम से जाना जाता है।

बाँझपन नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

हेमपुष्या सीरप (राजवैद्य शीतल प्रसाद) साथ में प्राप्त हेम टेब नामक 1 टिकिया ताजे पानी से निगलकर 2 चम्मच दवा दो गुना जल मिलाकर दिन में 2 बार पिलायें । स्वियों के समस्त विकार नष्ट करके बाँझपन दूर कर देती है।

माइरोन टेबलेट (अलारसिन) आवश्यकतानुसार 1-2 टिकिया प्रयोग करायें। बाँझपन में अतिशय उपयोगी है।

कामिनी कम्पाउन्ड (प्रताप फार्मा) स्वी के जननेन्द्रियों के विकारों को नष्ट करके गर्भाशय को गर्भधारण के योग्य बनाती है।

ल्यूकोल टेबलेट (हिमालय) बाँझपन में इसकी 1-2 गोली प्रयोग करें अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करें ।

अराटिनम टेबलेट (डिशेन) 1-2 टिकिया दिन में 3 बार भोजन से आधा घण्टा पूर्व दें।

कामिनी कार्डियल (मार्तन्ड फार्मेस्युटिकल्स) 1-2 चम्मच दिन में 2 बार अथवा आवश्यकतानुसार दें।

लिकोप्लेक्स टेवलेट (योगी) 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें।

ल्यूको गायनोल पेय (ऐसेटिक) 2-2 चम्मच पानी के साथ दिन में 2 बार भोजन से पूर्व सेवन करें ।

सेमोना कैपसूल-1-2 कैपसूल दिन में 2-3 बार सेवन करायें।

स्त्री सुधा (धन्वन्तरि) अलबारी या अशोकारिष्ट (डाबर) का प्रयोग करें।

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