अंगुलबेल, अंगुलीपाक (Whitlow)nakhoono ke rog,angulipak,ungliyon ke ghav

(अंगुलबेल, अंगुलीपाक (Whitlow)nakhoono ke rog,angulipak,ungliyon ke ghav)

रोग परिचय-अंगुली के नख के किनारे की त्वचा में कभी एक ओर कभी 1 से अधिक कील की तरह गढ़ती हुई कठोर, पतली और नुकीली चर्म की लघुसंरचना प्रकट होती है जिसके कारण आक्रान्त अंगुली में पीप, प्रदाह, शोथ, दर्द, जलन की अधिकता, ज्वर, बेचैनी ये लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। यह रोग केवल अंगुली के नाखून के अग्रभाग अथवा बीच में हुआ करता है। अंगुली के नाखूनों के किनारे के नुकीले कील समान त्वचा को खोटने, नाखून काटते समय असावधानी के कारण नख माँस (Nail Matrix) के कट जाने, नाखून पर चोट लगने, जल जाने, अंगुली या नख मांस में कील, काँटा, पिन, शलाका इत्यादि के चुभ जाने के कारण अंगुली में पीप उत्पन्न होकर यह रोग हो जाता है।

उपचार

48-02-08

• सुहागा को जल में घिसकर आक्रान्त अँगुली पर लेप करें। लेप के सूख जाने पर कपूर मिले हुए नारियल के तैल को दिन में 2-3 बार लगायें । लाभप्रद योग है।

• पीली कटैय्या (करेली) की जड़ की छाल, पीपल की जड़ की छाल, नीम के पत्ते, सहजना की जड़ की छाल, शंखपुष्पी के पत्ते, छोटी हरड़ का बक्कल आंवला के बक्कल, मेंहदी के पत्ते और सिन्दुआ के पत्ते सभी सममात्रा में लेक कपड़छन बारीक चूर्ण बना लें। इसे 5 से 10 ग्राम तक ताजा जल से सुबह-शाम खाने से अंगुली पाक दूर होकर दर्द जलन, प्रदाह नष्ट हो जाती है। परीक्षित एवं अनुभूत योग है।

• सफेद संखिया, सुहागा का लावा और नीला थोथे का फूला प्रत्येक 12 ग्राम को बारीक पीसकर इसमे 72 ग्राम गन्धा बिरोजा मिला लें। यदि अधिक कठोर हो तो इसमें थोड़ा-सा नीम का तैल मिला लें। इसका अंगुलीपाक पर निरन्तर लेप करने से कील पककर निकल घाव ठीक हो जाता है।

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