गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj

गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj 

रोग परिचय-इस रोग में रोगी को तीव्र ज्वर हो जाता है। शरीर के किसी एक कई जोड़ों में शोध हो जाती है और उनमें बहुत ही तीव्र दर्द होता है। यह रोग कई प्रकार का हुआ करता है जैसे- बच्चों और युवाओं में गठिया का ज्वर, बूढ़ों में आर्थराइटिस, फाईब्रोसाइटिस, चूतड़ का दर्द, घुटने के जोड़ का दर्द इत्यादि। यह रोग चिकित्सीय दृष्टिकोण से 2 प्रकार का माना जाता है। 1- नया (एक्यूट), 2. पुराना (क्रोनिक) ।नये रोग में रोगी को ज्वर होकर जोड़ सूज जाते हैं और उनमें सख्न दर्द होता है। यह दर्द कभी एक जोड़ में होता है और कभी किसी दूसरे जोड़ में होता • है। दर्द और शोथ के स्थान बदलते रहते हैं। पुराने रोग में जो जोड़ बहुत अधिक सूजकर मोटे हो जाते है और प्रायः जुड़ जाते हैं, उन्हें हिलाना भी कठिन हो जाता है। यह रोग वर्षों तक रहता है और हर जोड़ में रोग हो जाता है। यह रोग एक विशेष प्रकार के कीटाणु (स्ट्रप्टो कोक्स और हेमालाइटित्स) से होता है। ये कीटाणु गले और टान्सिल द्वारा रोगी के शरीर में चले जाते हैं। यह रोग 4 वर्ष से 15 वर्ष के बच्चों को भी हो सकता है। पुरुषों की अपेक्षा स्वियों को अधिक होता है। गठिया ज्वर का कोई विशेष परीक्षण नहीं खोजा जा सका है। आधुनिक (ऐलोपेथी) चिकित्सकों के मतानुसार यदि रोगी को सोडा सैलीसिलास नामक औषधि 2-3 दिन खिलाने पर ज्वर, शोथ और दर्द कम न हो तो गठिया (छोटे जोड़ों का दर्द) विसर्प, डेंगु फीवर, आरिटा आमाइलाईटिस आदि का सन्देह करना चाहिए। इस रोग का उपचार रोग उत्पन्न होते ही अर्थात् शीघ्र कर लेना चाहिए क्योंकि चिकित्सा (उपचार) न करने से हृदय और मस्तिष्क तक रोगग्रस्त हो जाते हैं। उस अवस्था में यह रोग खतरनाक समझा जाता है।

उपचार

• 20 माम गिलोय को जौ कूटकर 250 ग्राम पानी में औटायें। जब पानी चौथाई रह जाए तब इस काढ़े के साथ एरन्ड की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करें। गठिया नाशक अति उत्तम प्रयोग है।

• कपूर 10 ग्राम, तिल का तैल 40 ग्राम, दोनों को शीशी में भरकर मजबूत कार्क लगा दें तथा शीशी को धूप में रख दें जब कपूर और तैल मिलकर एक-जान हो जायें, तब इसे गठिया तथा अन्य वात विकारों में मालिश हेतु काम में लें। अल्प समय में इसके प्रयोग से लाभ हो जाता है.।

• बकरी का मूत्र 6 कि. ग्रा., लाल मिर्च 250 ग्राम दोनों को एक मिट्टी के बर्तन में पकायें। जब पकते पकते मूत्र मात्र 1 किलो रह जाये तो उतरकर छान लें। इसकी नियमित मालिश करने से लाभ हो जाता है।

• असगन्ध की जड़ और खांड दोनों को सममात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें। इसे 5 से 10 ग्राम तक की मात्रा में गरम दूध से खायें। गठिया का रोगी भी इस प्रयोग से स्वस्थ हो जाता है।

• अजवायन, शुद्ध गुग्गुल, माल कंगनी, काला दाना-सभी औषधियाँसममात्रा में लेकर कूट-पीसकर जल के साथ चने के आकार की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। यह 3 से 5 गोलियाँ दुग्ध से खायें। गठिया नाशक सर्वोत्तम घरेलू इलाज है।

• लौग 1 ग्राम, सम्भालू के पत्ते (कोपलें) 20 ग्राम लें। दोनों को बारीक पीसकर बेर के आकार की गोलियां बनाकर सुरक्षित रखें। ये 2-3 गोली सुबह-शाम बासी पानी से खायें।

सम्भालू, कलौंजी, मैथी और अजवायन चारों को समभाग लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें। 3 ग्राम चूर्ण को पानी के साथ नित्य फांकें। गठिया तथा कमरदर्द में अत्यधिक लाभप्रद है।

• इन्द्रजौ (आवश्यकतानुसार) लेकर बारीक पीसकर रखलें । फिर इसमें दुगुनी मात्रा में खान्ड मिलाकर प्रतिदिन 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें । महीनों का जुड़ा रोगी कुछ ही दिनों में खुलकर ठीक हो जाएगा ।

• एरन्ड का तैल, लहसुन तथा रत्नजोत का रस प्रत्येक 6-6 ग्राम लें । तीनों को मिलाकर पीने से 3-4 दिन में ही गठिया का दर्द नष्ट हो जाता है।

• भेड़ का दूध 125 ग्राम, काला जीरा 6 ग्राम एवं अफीम आधा ग्राम लें। तीनों को घोट पीसकर मिलाकर मालिश करने से गठिया का दर्द नष्ट हो जाता है। इसकी सम्पूर्ण शरीर पर भी मालिश की जा सकती है।

• नमक 20 ग्राम, अजमोद 30 ग्राम, सौंठ 50 ग्राम, हरड़ 120 ग्राम लें। सभी को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें। प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण जल के साथ खायें । गठिया नाशक उत्तम योग है।

• शतावर और विधारा 10-10 ग्राम का काढ़ा बनाकर पीना गठिया रोग में परम लाभप्रद है।

मिट्टी का तैल 40 ग्राम, कपूर पिसा हुआ 10 ग्राम लेकर दोनों को शीशी में डालकर मजबूत कार्क लगाकर आधा घन्टा तक शीशी में धूप में रखें। फिर शीशी हिलाकर सुरक्षित रखलें। शरीर में चाहें कहीं भी दर्द हो वहाँ पर इसकी धीरे-धीरे मालिश करने के बाद सिकाई करें। दर्द ठीक हो जाएगा। यह वातनाशक तैल वात रोगियों के लिए अमृत समान लाभप्रद है।

तारपीन का तैल 30 ग्राम, अरन्डी का तैल 30 ग्राम, सैंधानमक बारीक पिसा हुआ 10 ग्राम, कपूर 6 ग्राम, पिपरमैन्ट का तैल 20 बूंद लें। सभी को एक शीशी में मिलाकर सुरक्षित रखलें। शीशी को हिलाकर पीड़ायुक्त शरीर केभाग पर दिन में 2-3 बार मलें। इसके प्रयोग से भयंकर से भयंकर वायु-पीड़ा मिटती है।

• चीते की जड़, इन्द्र जी, पाढ़ की जड़, कुटकी, अतीस और हरड़ सभी समभाग लेकर कूट पीसकर कपड़ छनकर शीशी में सुरक्षित रखलें । इसे 2 से 4 ग्राम तक की मात्रा में गरम पानी से खायें। इसके सेवन से समस्त वात रोग निश्चित रूप से नष्ट हो जाते हैं। कम से कम एक माह सेवन करें।

अरन्डी का तैल 20 ग्राम तथा अदरक का रस 20 ग्राम लें। दोनों को मिलाकर धीरे-धीरे पीवें । ऊपर से 2-4 गरम पानी पी लेने से भयकर से भयंकर वायु-शूल नष्ट हो जाता है।

(गठिया (वात रोग) नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग

रूमालिया टेबलेट (हिमालय) - 1-1 टिकिया दिन में 3 तथा तीव्रावस्था में 2-2 टिक्रिया 3 बार दें। 1-2 सप्ताह में आराम होने लगता है। चिकित्सा 4-6 माह जारी रखनी पड़ सकती है।

नोट-इसी नाम से इसी कम्पनी के मलहम (क्रीम) की पीड़ित अंग पर मालिश करें तथा यह टिकिया गर्भवती स्त्रियों का कदापि न दें।

मायोस्टाल कैपसूल (धूतपापेश्वर) - 1-2 कैपसूल दिन में 2-3 बार अथवा आवश्यकतानुसार सेवन करायें। खाली पेट सेवन न करें।

लिक्विड एक्सट्रेक्ट आफ सरिवा (झन्डू)-4 से 8 मि.ली. दिन में 3 बार जल से प्रयाग करें।

शुण्ठियादि टेबलेट (झन्डू) - 1 से 4 गोली दिन में 3 बार खायें ।

पिप्पली चूर्ण (झन्डू) आधा से 2 ग्राम तक दिन में 3 बार जल से खायें।

पीड़ाहर टेबलेट (राजवैद्य शीतल प्रसाद) 2-2 टिकिया दिन में 2-3 बार या जरूरत के मुताबिक सेवन करें। इसी गोली को खाते ही पीड़ा शान्त हो जाती है।

शूलान्तक कैपसूल (गर्ग)-1-2 कैपसूल दर्द में गरम जल से खायें।

बातारि टेबलेट (धन्वन्तरि) - 1-2 टेबलेट सुबह शाम लें। ऊपर से अरन्ड का तैल गरम दूध में मिलाकर पिलायें। यदि अरन्ड का तैल न पी सकें तो मिश्री मिलाकर दूध पियें। सिकाई करें। कब्ज हो तो कोई कब्जनाशक योग लें ।

अर्थाजोलडीन टेबलेट (मार्तन्ड) - 1-2 गोली दिन में 3-4 बार भोजनोपरान्त सेवन करें।आयडोप्रिन मरहम (मार्तन्ड) वेदना, शोथ एवं जीवाणु नाशक उत्तम मलहम । पीड़ित अंग पर मालिश करें।

रूमेटी कोल टेबलेट (मार्तन्ड)-2-2 गोली दिन में 3-4 बार गरम दूध या चाय से सेवन करें। जब तक सन्धियों की शोथ और वेदना शान्त न हो जाए, सेवन जारी रखें। यदि दर्द अधिक हो तो इसी कम्पनी की अर्धापाइरिन या पेनाल्जिन या इबूफेनक 1-1 गोली भी दिन में 3-4 बार दें।

नोट-गर्भावस्था में टेबलेट अर्थापाइरीन का सेवन न करें।

कोलिकगन टेबलेट (मार्तन्ड)- शूलनाशक, ज्वरहीन, शोधहर एवं वेदनानाशक है। यह 1-2 टेबलेट दिन में 3-4 बार सेवन करें ।

वातकिल कैपसूल (अतुल फार्मेसी) - 1-1 कैपसूल सुबह-शाम दूध या चाय से सेवन करें। दही, चावल, मिठाई, तैल, शीतल तथा गरिष्ठ भोज्य पदार्थ न खायें। रोग की तीव्रता अधिक हो तो मात्र दुग्धपान करें। दर्द और सूजन की तीव्रता में इसी फार्मेसी के 'वातकिल मलहम' की मालिश करें। कब्ज न रहने दें। सप्ताह में 1-2 बार दूध में कैस्टर आयल मिलाकर पियें, ताकि कोष्ठ शुद्ध रहे।

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