तिल, माष (Male)til,massa ka ilaj
रक्त की विकृति के कारण त्वचा में विजातीय द्रव्यों का संचय होकर तिल जैसे- दाग चेहरा, गर्दन, छाती, पीठ आदि स्थानों में कहीं भी पड़ जाया करते हैं।
उपचार
• पान के डन्ठल का एक सिरा तोड़कर उस पर चूना लगाकर तिल पर दिन में 2-4 बार लगायें और आँवला-जल (सूखे आँवला को 12 घंटे तक जल में भिगोकर तत्पश्चात् छानकर निकाला हुआ) से हर बार धो दें।
• सोमराजी तैल (भै. रत्नावली) को सलाई से तिल पर दिन में 2-3 बार लगाना गुणकारी है।
• शल्य कर्म करके तिल को काटकर निकाल दें तथा व्रण पर, 'जात्यादि तैल' दिन में 3-4 बार रुई के फाहे से लगायें ।
• कुटकी का कपड़छन चूर्ण 125 मि.ग्रा. और गन्धक रसायन (सि. यो. स.) 500 मि.ग्रां. दोनों को इकट्ठा मिलाकर मधु से सुबह-शाम चाटें ।
• ताम्बे के बिजली वाले मोटे तार को आँवला जल में घिसकर तिल पर सलाई से दिन में 3-4 बार लगाना गुणकारी है।
• केशर 1 ग्राम, सूखे आँवला का कपड़छन चूर्ण 10 ग्राम, हल्दी का कपड़छन चूर्ण 5 ग्राम, नीम पत्र का कपड़छन चूर्ण 5 ग्राम तथा पीली सरसों 5 ग्राम लें। इन्हें इकट्ठा जल के साथ पीसकर कल्क बनालें। फिर इसे सलाई से तिल पर दिन में 4 बार लगायें और 1 घंटे बाद 'आँवला जल' से धो डालें।
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