वंक्षण दद्रु -Tinea Crusis-daad ka ilaj


वंक्षण दद्रु -Tinea Crusis-daad ka ilaj 

यह भी एक प्रकार का दद्रु (दाद) रोग ही है। इसके लक्षण दाद के समान होते है, अतः दाद के अन्तर्गत पढ़ें ।

उपचार

टिंचर आयोडीन को आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगायें ।

• चक्रमर्द (चकबड़) के बीजों को घिसकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगाना लाभकारी है।

• गन्धक, तूतिया, सुहागा, फिटकरी सभी को सममात्रा में लेकर एक कटोरे में आग पर पिघला कर भली भाँति मिला लें। तदुपरान्त इसकी पिघली हुई दशा में ही बड़ी-बड़ी गोलियाँ बना लें। ठण्डी होकर ये गोलियां कठोर हो जायेंगी।फिर इन्हें सरसों के तैल में घिसकर लेप तैयार कर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाया करें। लाभप्रद योग है।

तृतिया का कपड़छन चूर्ण 120 मि.ग्रा. माजूफल का कपड़छन चूर्ण 360 मि.ग्रा. और मोम तथा मधु (18-18 ग्राम तथा मि.ली.) को खरल में खूब घोटकर मरहम (लेप) बनालें। इसको चाहे किसी भी शरीर के स्थान पर दाद हों, वहाँ दिन में 2-3 बार लगाने से शर्तिया लाभ हो जाता है।

• गन्धक, सुहागा, मुर्दासंग, नौशादर, माजूफल, मिर्च सफेद, खैर, अफीम और चीनियां गोंद प्रत्येक 12 ग्राम लेकर जल के साथ पीसकर गोलियां बनाकर रख लें। आवश्यकता के समय 1 गोली को नीबू के रस में घिसकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगायें। लाभकारी है।

सुहागा, लोबिया, गन्धक, चकबड़ के बीज प्रत्येक 15 ग्राम लेकर कपड़छन (चूर्ण करके रस में खरल करें। जब सभी एकजान (सम सर्वत्र) हो जायें तो इसकी 250 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रखलें। इन गोलियाँ को नीबू के रस में घिसकर प्रत्येक दूसरे दिन आक्रान्त त्वचा पर लगाना भी लाभकारी है।

• भुना सुहागा, फिटकरी, गन्धक राल प्रत्येक 10 ग्राम लेकर कपड़छन चूर्ण कर रख लें । इसको थी में मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगावे

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