हड्डी-तोड़ ज्वर (Dengue Fever)

हड्डी-तोड़ ज्वर (Dengue Fever)


यह एक विशेष प्रकार के कीटाणु से पैदा होने वाला एक संक्रामक औरमहामारी के रूप में फैलने वाला ज्वर है, जो दक्षिण एशिया के समस्त देशों में पाया जाता है। वर्ष 1996 के अन्त में अपने देश की राजधानी दिल्ली में यह ज्वर फैल गया था। मच्छर के काटने से इस ज्वर का कौटाणु मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होता है। ज्वर के आरम्भ में सिर, आँखों के ढेले, हड्डियों के जोड़ों और कमर में सख्त दर्द होता है। रोगी बेचैन और बहुत कमजोर हो जाता है। ज्वर के तीसरे से पांचवें दिन रोगी के शरीर पर पित्नी के लक्षण पैदा होकर लाल दानें हाथ-पैर पर निकल आते हैं ज्वर भी बहुत तेज हो जाता है। यह अवस्था 2-4 दिन रहकर रोगी स्वस्थ हो जाता है। किन्तु इसी प्रकार ज्वर और लाल दानें इत्यादि लक्षण उभर कर पुनः ज्वर चढ़ जाता है। इस प्रकार के 2-3 बार रोगी को ज्वर के दौरे ठहर ठहर कर पड़ते हैं। इस ज्वर के समय रोगी को दस्त, पेचिश और यकृत शोथ भी हो जाता है।

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उपचार

• मच्छरों के काटने से बचाव हेतु दिन रात में मच्छरदानी का प्रयोग करें।

दिन में मच्छदानी अवश्य लगायें क्योंकि यह मच्छर दिन में ही काटते हैं। मच्छरों को दूर करने के लिए गन्धक की धूनी लगायें। इस रोग में तेज जुलाब कदापि न लें। यदि कब्ज हो तो एनिमा प्रयोग में लावें ।

• महासुदर्शन चूर्ण (शारंगधर संहिता) 2 से 4 ग्राम तक जल से प्रतिदिन 3 बार सेवन करायें । हड्‌डी तोड़ ज्वर के दर्द में अत्यन्त ही लाभकारी है।

• हिंगुलेश्वर रस (भैषज्य रत्नावली) आधी से 1 गोली (60 से 120 मि.ग्रा. तक) सुबह-शाम अदरक के रस एवं मधु के साथ चाटने से तेज ज्वर हड्‌डी तोड़ ज्वर की विकृति के कारण शरीर में भयंकर दर्द तथा सन्धि स्थानों में तीव्र पीड़ा होने में परम लाभकारी है।

नोट-बच्चों को सावधानीपूर्वक अथवा अपने चिकित्सक के परामर्श से सेवन करायें ।

• किरातादि अंर्क-चिरायता, कुटकी, नीम की अन्तर छाल, सौठ, हरीतकी बड़ी परवल पत्र लाल चंदन, नागरमोथा और खसखस सभी को सममात्रा में लेकर जौ कूट कर चूर्ण करें। तदुपरान्त 8 गुना जल में रात्रि को भिगोकर प्रातःकाल नलिका यन्त्र (भबके) से अर्क खींच लें। इस अर्क को 30 मि.ली. की मात्रा में प्रत्येक 3-3 घंटे पर दिन में 3 बार पिलायें। यह अर्क प्रत्येक प्रकार के ज्वर व समस्त शरीर में दर्द को दूर कर देता है।

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