नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav)
(नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav)
रोग परिचय नासूर को नालवण, विवर तथा अंग्रेजी में फिस्यूला (Fistula) और साइनस (Sinus) के नामों से भी जाना जाता है। पुराना और गहरा घाव जिसके फटने के बाद कम से कम 40 दिन बीत चुके हों, नासूर कहलाता है। यह अंदर से गहरा ट्यूब की भांति तंग टेढ़ा और लम्बा होता है। किन्तु इसका मुँह छोटा होता है और उसके अन्दर चारों ओर कठोर और सफेद मांस बढ़ जाता है। इस सफेद मांस को दूषित मांस भी कहा जाता है। नासूर से सदा पीली गाढ़ी या पतली पीव बहती रहती है। कभी पीव बहनी बन्द हो जाती है और घाव का स्थान शोधयुक्त हो जाता है। किन्तु दोबारा बहने पर शोथ दूर हो जाता है। नासूर का गड्ढा (नलिका) कभी सीधा कभी टेढ़ा-मेड़ा होता है। तथा यह कभी-कभी पेशी या सिरा अथवा धमनी, (बन्धनी) या किसी अंग तक पहुँच जाता है।
कभी-कभी एक नासूर के कई मुँह भी होते हैं। नासूरों के भी विभिन्न नाम होते हैं। जैसे गुदा के पास होने वाले नासूर को भगन्दर (फिस्यूला इन एनो) कहते है। यदि नासूर का मुँह केवल एक ओर होता है। तो उसको अंग्रेजी में साइनस 'कहते हैं, एवं जिस नासूर की नलिका के 2 मुँह होते हैं। (एक बाहरी, दूसरा भीतरी) जो किसी अंग के गड्डे के अन्दर खुलता है। वह फिस्यूला कहलाता है। यह एक अत्यन्त कष्टदायक और हठीला रोग है। यह जिस अंग में होता है, उसको नष्ट कर देता है। हड्डी में उत्पन्न होने वाले नासूर का प्रमुख कारण क्षय रोग और कण्ठमाला होता है। और इस प्रकार का नासूर घुटने या टखने या कुहनी या हाथ के पहुँचे (हथेली और कलाई) के जोड़ समीप । जो अत्यन्त ही कठिनाई से ठीक हुआ करता है।
फोड़े, फुन्सियाँ, पिड़िका, लोमपाक, बालतोड़ आदि कई नामों से उच्चरित होने वाले रोगों से प्रायः सभी परिचित हैं। यों ही बाल उखड़ जाने से उस स्थान पर छोटी-छोटी फुन्सियां निकल आती हैं। इसमें सदैव नोंक निकलती है। बालों की जड़ों में स्टेफ्लोकोकस नामक कीटाणुओं के संक्रमण से, रक्त विकृत हो जानेसे, वर्षा ऋतु में कच्चे या पके आमों के अत्यधिक सेवन से अथवा दुर्बलता के कारण से, फुन्सियाँ निकल आया करती हैं। पहले इसमें सूजन और दर्द होता है और इसके बाद इसमें पीव उत्पन्न हो जाता है। अनेक फुन्सियाँ बिना पके ही बैठ जाती हैं और अनेक पककर कड़ी हो जाती हैं। इन सबमें कोर रहती है। कोर के पीव के साथ निकल जाने पर दर्द, सूजन, जलन, एवं कष्ट प्रायः कम हो जाता है।
एक और विशिष्ट प्रकार की फुन्सी होती है जो कई संख्या में एक साथ समीप-समीप या दूर-दूर पर उत्पन्न होती है और सही त्वचा के जिस-जिस स्थान पर इन विशिष्ट फुन्सियों का पूय (पीव) लग जाता है उस स्थान पर भी यह उत्पन्न हो जाती है। यह प्रायः संक्रामक चर्मरोग के अन्तर्गत आती है। शरीर में घाव विविध कारणों से हुआ करते हैं। इसीलिए इनके अनेक प्रकार भी है। घाव में विशेषकर स्टेलेफिलो कोक्कस का संक्रमण होता है। आज के युग में लाठी, भाला, तलवार, छुरी, बरछा, तीर, बांस के फटा आदि की मार से घाव बन जाने की तो बात ही क्या, पिस्तौल, राइफल, बन्दूक, मशीनगन और बम इत्यादि अनेक घातक आग्नेय अखों से भी घाव हो जाया करते हैं।
उपचार
• संखिया सफेद, दारचिकना दोनों सम भाग 12 ग्राम लें। इसको ब्रान्डी में 1 दिन तक खरल करके उसका जौहर उड़ा लें। इसे 2 से 4 मिली ग्राम. की मात्रा में मुनक्के या कैपसूल डालकर खिलायें। नासूर, उपदंश, भगंदर आदि के लिए परम लाभप्रद योग है।
• सेलखड़ी 60 ग्राम, फिटकरी सफेद 60 ग्राम, सिन्दूर और नीलाथोथा 3-3 ग्राम लेकर 1 कोरी हांड़ी में फिटकरी और सेलखड़ी के चूर्ण को डालकर आग पर रखें। जब औषधि में जोश (उफान) आने लगे तब नीलाथोथा और सिन्दूर का चूर्ण थोड़ा-थोड़ा करके डालते जायें। जब औषधि फूल करके शुष्क हो जाये तो, ठन्डा करके पीस लें। इसे 500 मि.ग्राम से लेकर 1 ग्राम तक यह औषधि मक्खन में मिलाकर खिलायें। नासूर में अनुभूत है।
• बारूद 24 ग्राम को तिलों के तेल 60 मि.ग्रा. में मिलाकर पिचकारी द्वारा नासूर के अन्दर डालना लाभप्रद है।
• गाय का घी, राल प्रत्येक 125 ग्राम लें। कत्था सफेद, फिटकरी सफेद, नीलाथोचा प्रत्येक 27 ग्राम लें। पहले राल को पीसकर घी में मिलायें और 100 बार पानी से धोयें। फिर शेष औषधियों को सुरमे की भाँति मिलायें। रुई की बत्तीसे लथपथ करके इसे नासूर जौहर उड़ाने की विधि किसी योग्य वैद्य से ज्ञात कर लें, अथवा लेखक की अन्य दूसरी पुस्तक 'आयुर्वेद प्रकाश' प्रकाशक भाषा भवन, कच्ची सड़क, हालनगंज मथुरा, (उ. प्र.) से प्रकाशित को खरीद कर पढ़ें। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद किसी अन्य पुस्तक के पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहेगी। इस ग्रन्थ के अन्दर बालक, शिशु, वृद्ध, जवान के पैर से सिर तक प्रायः समस्त रोगों का परिचय, कारण, लक्षण, शास्त्रीय उपचार, पेटेन्ट आयुर्वेदीय उपचार, घरेलू उपचार, विष विज्ञान तथा अन्य बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियाँ आपको मिलेंगी। जो आपको 50 अलग-अलग ग्रन्थों पर भी पढ़ने नहीं मिल सकेगीं। मूल्य भी अल्पतम है। कृपया शीघ्र मँगवाकर पढ़ें।
पुराना शहद घाव में भरकर ऊपर से पट्टी बाँधे, कुछ ही समय में नासूर ठीक हो जाता है।
• मरे हुए मनुष्य की जली हुई हड्डी लेकर उसे पीसकर कपड़छन कर लें। इस चूर्ण को नासूर पर बुरककर पट्टी बाँधे। बिगड़े से बिगड़ा और पुराने से पुराना नासूर 5-6 दिनों में ठीक हो जाता है।
नोटः नाक के नासूर पर इस योग का प्रयोग कदापि न करें ।
• खरैटी को गौमूत्र के साथ पीसकर लगाने से नासूर ठीक हो जाता है।
• मनुष्य के कटे हुए नाखूनों का कपड़छन चूर्ण बुरकने से भी नासूर में शीघ्र लाभ पहुँचता है।
• सेलखड़ी 20 ग्राम लेकर उसे अरण्डी के तेल में घिसे। जब घोल गाढ़ा हो जाये तो उस तेल में रुई की बत्ती भिगोकर नासूर में भर दें। लाभप्रद है।
• बथुए के पत्ते तम्बाकू के बीज दोनों को सम मात्रा में लेकर घी में घोटकर नासूर पर लगायें । नासूर शीघ्र ठीक हो जाता है।
• भैंस के सींग को जलाकर राख कर लें। इस राख को घी में मिलाकर नासूर में लगाने से नासूर शीघ्र अच्छा होने लगता है।
• कुटकी और चिरायता प्रत्येक 5-5 ग्राम रात को जल में भिगोकर रखें। प्रातःकाल छानकर 15 से 30 मिली० तक की मात्रा में पिलायें। इसी प्रकार प्रातःकाल भिगोकर शाम को पिलायें। बच्चों को इसकी 1/4 से 1/2 मात्रा दें। इस योग के सेवन से लोमपाक, बालतोड़, फुन्सियां शीघ्र ठीक हो जाती है।
• महामन्जिष्ठारिष्ठ (आयुर्वेद सार, संग्रह) 15 से 30 मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पिलायें। लोमपाक, बालतोड़, फुन्सियों में परम लाभकारी है।• समस्त प्रकार के फोड़े शोथ (सूजन) और व्रण (जख्म) आदि में मधु लगाकर पट्टी बाँधना लाभकारी है।
• तिल का तेल 30 ग्राम लोहे की कढ़ाई में डालकर पकायें। जब पकने लगे । तब उसमें 10 ग्राम सिन्दूर मिलायें और लोहे की सीक से चलाते रहें । जब रंगत स्याह होने लगे और गाढ़ा हो जाये तब उतारकर किसी चौड़े मुँह की शीशी या स्वच्छ डिबिया में सुरक्षित रख लें। आवश्यकता पड़ने पर इसे कपड़े पर लगाकर चिपकायें। यह गले सड़े घावों को बहुत जल्दी अच्छा कर देता है।
• गूगल को पानी में घिसकर फोड़े पर लेप कर दें। इस प्रयोग फोड़ा या तो बैठ जायेगा या पककर फूट जायेगा ।
• पीपल के पत्ते को घी में चिकना करके, अग्नि पर गरम करें। उसे सुहाता- सुहाता बाँधने से फोड़ा बैठ जाता है अथवा पककर फूट जाता है।
• कालीजीरी को पानी में पीसकर लगाने से फोड़े फुन्सियां दूर हो जाती है।
• शंखाहूली (ब्रह्मदन्ती, हुलहुल) 10 ग्राम, काली मिर्च 7 नग, दोनों को पानी में घोट, पीस, छानकर पीने से शरीर में निकलने वाले फोड़े फुन्सियाँ, दाद, खाज, खुजली, इत्यादि की शिकायत नष्ट हो जाती है।
• महातिक्त घृत (सिद्ध योग संग्रह) सुबह शाम 1-2 ग्राम खिलायें।
नीम के पत्तों के काढ़े से आक्रान्त त्वचा को प्रतिदिन सुबह धोकर स्वच्छ करें तथा सारिवाद्यासव और महामन्जिष्ठारिष्ट 15-15 मि. ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पिलायें। यह विशेष प्रकार (संक्रामक चर्म रोग) के फोड़े-फुन्सियों के लिए परम लाभकारी है।
• परवल के पत्ते, नीम के पत्ते 12-12 ग्राम और जल 1 लीटर लेकर उनका विधिवत काढ़ा बनायें। आधा लीटर जल शेष बच जाने पर छान लें। इससे आक्रान्त त्वचा को दिन में 2 बार धोवें, तब नीम और निर्गुन्डी के तैल में कपूर मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 3-4 बार लगायें। हर प्रकार की फोड़े-फुन्सियों में लाभप्रद है।
• 100 ग्राम नीम के पत्ते पीसकर टिकिया सी बनालें और पुल्टिस की तरह सूजन पर रखकर बाँध दें। बालतोड़ की तीन दिन में सूजन उतरने लगेगी और दर्द मिट जाएगा ।
आधा किलो नीमरस और ढाई सौ ग्राम चीनी की हल्की आँच पर ऐसी गाढ़ी चासनी बनायें, कि करछुली चिपकने लगे। फिर चित्रक, हल्दी, त्रिफला, प्रत्येक10-10 ग्राम, नागरमोथा, काली जीरी, अजवायन, निर्गुन्डी के बीज, पीपल, सौंठ, काली मिर्च, दन्तीमूल, नीम और बाबची के बीज, अनन्तमूल, और वायविंडग 25-25 ग्राम पीस छानकर चाशनी में मिलालें और सुरक्षित रखलें। इसे 10- 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम ताजा पानी के साथ निगलें। इस योग से भगन्दर तो नष्ट हो ही जाएगा तथा चर्म के अनेकों दूसरे रोग भी मिट जाऐंगे।
• नीम का रस व भांगरा का रस 50-50 ग्राम, बबूल और मेंहदीं के पत्तों का रस 75-75 ग्राम तथा सेम का रस 50 ग्राम (पांचों का रस मिलाकर) धीमी आग पर पकायें। जब सभी पानी जल जाये, तब 25 ग्राम मोम डाल दें। यह मरहम इतना अधिक प्रभावशाली है कि नासूर (जड़ों वाले फोड़ा) को भी सुखा डालने की क्षमता रखता है तो अन्य मामूली फोड़े-फुन्सियों तो इसके सामने बेचते ही क्या है ? सभी प्रकार के फोड़े-फुन्सियों में लाभकारी है।
• पुराने घावों को नीम के पत्तों के काढ़े से धोएं। फिर नीम की छाल के अन्दरूनी हिस्से को सिल पर रगड़कर लेप करदें। यह क्रिया तब तक जारी रखें जब तक कि घाव पूर्णरूपेण भर न जाए। जिन फोड़े-फुन्सियों और घावों का इलाज बड़े-बड़े चर्म-विशेषज्ञ करने से भी मुंह मोड़ें अथवा हिचकिचाएँ उनका इस घरेलू योग से पीड़ित मानव की सेवा कर यश प्राप्त करें।
• बुझा हुआ चूना को नीम की पत्ती के रस में घोटकर नासूर में भरें। चूने के साथ नीम के सूखे हुए पत्ते भी मिला लें तो और भी उत्तम है।
• नीम की पत्तियों के रस में 2-3 बार चूने की डली भिगोकर सुखालें, और फिर पीसकर नासूर में भरें। परम लाभप्रद योग है।
• 250 ग्राम नीम का तैल, शुद्ध मोम और बिरोजा 50-50 ग्राम लें। पहले बिरोजा दरड़कर बारीक करलें और फिर तैल में पिघलायें और बाद में मोम डाल दें। जब तीनों मिलकर एकजान हो जायें तो यह नासूर नाशक अत्युत्तम मरहम बन जाएगा। इसे सुबह-शाम फोड़ेपर लगायें और रचने दें। प्रत्येक बार नीम के रस में रूई भिगोकर फोड़ा साफ करें और ताजा मरहम लगायें। घाव भरने और घाव को जड़ से उखाड़ फेंकने में यह अत्यन्त ही प्रभावकारी मरहम है।
• घावों पर जात्यादि तैल (शारंगधर संहिता) दिन में 2-3 बार लगायें या 1 बार लगाकर पट्टी बाँधे ।
• रस माणिक्य (भैषज्य रत्नावली) आयु के अनुसार 125 से 250 मि.ग्रा. तथा गन्धक रसायन (ग्रन्थ सिद्धयोग संग्रह) 50,0 मि.गा. से 1 ग्राम तक इकट्ठा मिलाकर मधु से सुबह-शाम चटायें। घावों की रामबाण चिकित्सा है।फोड़े-फुन्सियों, घावों की प्रमुख पेटेन्ट औषधियाँ
हीलर मरहम (वैद्यनाथ) - जल जाना, कट जाना, कीट पतंगों का काट खाना इत्यादि में आवश्यकतानुसार प्रयोग करें ।
करामाती मलहम (राजवैद्य शीतल प्रसाद) गन्दे पीपयुक्त घाव, तथा फोड़ों पर आवश्यकतानुसार प्रयोग करें ।
त्र्यम्बक मलहम (राजवैद्य शीतलप्रसाद) घाव, चोट, मोच, कीड़ों के डंक, विषैले जानवरों के काट खाने पर आवश्यकतानुसार प्रयोग करें ।
शामक तैल (मेहता) आवश्यकतानुसार व्रणों पर लगायें ।
सप्तगुण तैल (वैद्यनाथ) - जल जाना, कट जाना, कान का दर्द, कान का बहना, पसली दर्द, फोड़े-फुन्सियों में परम लाभकारी है।
ब्लड प्यूरी फायर पेय (झन्डू) खतदोष से उत्पन्न घाव, फोड़े-फुन्सियों कारबन्कल (फोड़ा) आदि में उपयोगी है। आवश्यकतानुसार प्रयोग करें।
केपाइना टेवलेट (हिमालय) - 1-2 गोली दिन में 3 बार प्रयोग करें। हर प्रकार के घाव, फोड़े-फुन्सियां, नासूर, कारबन्कल में उपयोगी है।
करामाती टेबलेट (राजवैद्य शीतलप्रसाद) - खाज-खुजली, फोड़े-फुन्सी, छिल जाना, कट जाना, उस्तरे के घावों में 1-2 गोली दिन में 3-4 बार दें।
चर्मक्लीन कैपसूल (अतुल फार्मेसी) - 1-1 कैपसूल सुबह-शाम जल या
सारिवाद्यासव के साथ सेवन करें। रक्तशोधक है।
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