उपदंश आतशाक (Syphilis)


           (उपदंश आतशाक (Syphilis)

रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में 'सिफलिस' के नाम से जाना जाता है। यह दुष्टा (दुश्चरित्रा) स्त्री से सम्भोग करने से एक-दूसरे को होता है। पहले लिंग पर एक हल्के रंग का पीड़ा रहित घाव होता है। वह 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है। फिर डेढ़-दो महीनों के बाद त्वचा पर बड़े-बड़े भूरे रंग के उद्‌भेद निकल आते हैं। यह रोग वंशानुगत (माता-पिता से) भी उनकी सन्तानों में पहुँच जाता है। यह एक महा भयंकर संक्रामक रोग है, जो एक रोगी से दूसरे को हो जाता है। जब किसी स्त्री या पुरुष को इसका संक्रमण लग जाता है तब उसके द्वारा किसी स्वस्थ स्वी या पुरुष के साथ यौन सम्बन्ध (संभोग, मैथुन) करने से उसे भी हो जाता है। उचित चिकित्सा व्यवस्था से यह रोग पूर्णरूपेण निर्मूल (नष्ट) हो जाता है। अतः यह रोग पूर्णतः साध्य है, असाध्य नहीं है।তু

उपचार

• नीम की पत्तियों का 10 ग्राम रस प्रतिदिन पिलायें तथा नीम के बीजों का तैल यौनांगों पर मालिश करें। नीम का तैल कृमि और दूषित गर्मी का संहार करता है। नीम का तैल 5 ग्राम की मात्रा में पीना भी अतीव गुणकारी है। अथवा नीम को कोमल शाखाओं की छाल 10 ग्राम, भांगरा 10 मान तथा काली मिर्च 10 दानें लें और 100 ग्राम पानी में पीसकर प्रतिदिन पिलायें। नीम का तैल यौनांगों पर मलें। यह आतशक को अन्दर-बाहर से समूल नष्ट करने हेतु शर्तिया घरेलू इलाज है। कोई एक योग नीम का अवश्य प्रयोग में लायें।

नोट-उपदेश में सर्वप्रथम रोगी के बलाबल के अनुसार जुलाब देकर दोषों को निकालें । फिर उपदंश नाशक औषधियों (योगों) का प्रयोग करें। रोगी को शीतल औषधियों शीतल खाद्य पदार्थों तथा शीत से भी बचाना चाहिए अन्यथा उसे गठिया का रोग हो जाएगा ।

• मुन्डी और गिलोय सममात्रा में लेकर कूट पीसकर छानकर रख लें। इस चूर्ण को 4-4 माशा की मात्रा में शहद में मिलाकर सुबह-शाम शीतल जल के साथ नियमपूर्वक सेवन करने से उपदंश, वातरक्त, कोढ़ तथा पारे (पारा) के विकार

नष्ट हो जाते हैं। परीक्षित है।

• हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीम की छाल, अर्जुन की छाल, पीपल की छाल, खैर की लकड़ी, विजय और अडूसे को पत्ते सभी को बारीक पीस छानकर चूर्ण तैयार कर लें । जितना चूर्ण हो उतनी ही शुद्ध गुग्गुल मिला लें।6-6 माशे की गोलियां बनाकर सुरक्षित रख लें। इन के सेवन करने से सभी तरह के उपदंश, रक्त विकार एवं दूसरे फोड़े एवं घाव नष्ट हो जाते हैं।

(नोट-एक कलईदार पतीला में अन्दाजन पानी और त्रिफला भर दें, ऊपर से कपड़ा बांधकर उसी पर गुग्गुल का चूर्ण रखकर पतीला को ढक्कन से बन्द करके आग पर चढ़ाकर पकायें इस प्रयोग से गुग्गुल शुद्ध हो जाती है।)

• अनन्तमूल 50 ग्राम को जौकुट करके आधा किलो खौलते हुए पानी में 2 घंटे तक भिगोवें, तदुषरान्त निचोड़ कर छान लें। इसे 50-50 ग्राम की मात्रा में दिन में 4-5 बार पिलाने से उपदेश में लाभ होता है।

• आम के पेड़ की ताजा छाल का रस 20 से 40 ग्राम तक प्रतिदिन प्रातःकाल ही, बकरी के दूध के साथ 6 दिन तक सेवन करने से उपदेश में लाभ होता है।

• अकरकरा और आक की जड़ को समभाग लें। उसमें 2 भाग काली मिर्च तथा 4 भाग मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। इसे 2 से 4 ग्राम तक की मात्रा में सेवन कराने से उपदंश में लाभ होता है।

• उपदंश द्वारा रक्त विकृत होने पर जब सम्पूर्ण शरीर में विस्फोट सन्धियों की जकड़न तथा धब्बे इत्यादि हो गये हों तो चोबचीनी का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार दूध के साथ देने से विशेष लाभ होता है।ধর

• धतूरे की जड़ को छाया-शुष्क कर महीन चूर्ण कर सुरक्षित रख लें । आवश्यकता के समय इसमें से 2 चावल भर (आधी रत्ती) की मात्रा में पान में रखकर खिलाने से उपदंश समूल नष्ट हो जाता है।

• नीम की छाल 200 ग्राम को जौकुट करके शाम को 1 किलो खौलते पानी में डालकर आग से नीचे उतारकर रात भर इसी पानी में पड़ी रहने दें तथा प्रातः छानकर इसमें से 50 ग्राम उपदंश रोगी को पिला दें। शेष जल से उपदंश के व्रणों को प्रक्षालन करवायें। इस प्रयोग से शीघ्र ही उपदंश के व्रण सूख कर उपदंश नष्ट हो जाता है।

• मेंहदी के पत्तों का रस 40 ग्राम में 20 ग्राम मिश्री मिलाकर 10-12 दिनों तक पिलाने से उपदंश की गर्मी शान्त होकर लाभ हो जाता है।

• तम्बाकू के फूल 6 ग्राम, गेहूँ 200 ग्राम, सुहागा 1 ग्राम, आँवला 10 ग्राम सभी को पीसकर लेप बनाकर लगाने से उपदंश के व्रणों में शीघ्र लाभ होता है।

• सफेद कत्था 20 ग्राम, कर्पूर 10 ग्राम, सिन्दूर 5 ग्राम लें। तीनों कोपीस छानकर 100 बार धुले हुए 125 ग्राम मक्खन में मिलाकर मलहम बनालें। इस मलहम के लगाने से भयंकर उपदंश के घावों में भी लाभ हो जाता है।

पीली हरड़, सुहागा, आंवला इन सबको जलालें और पीस कर पाउडर बनालें । उसे घावों पर छिड़कने से उपदंशजन्य व्रण भरने लगते हैं।

• सुपारी को घिसकर लेप करने से उपदंश के व्रणों में लाभ होता है।

• उपदंश के कारण जब हलक में व्रण हो जावे तो उन पर तृतिया का प्रयोग अतीव गुणकारी है। कमजोर व्रणों पर इसका लोशन लगायें । एक औस पानी में 1 ग्रेन तूतिया डालने से 'तूतिया लोशन' बन जाता है।

• चन्दन के तैल की 4-5 बूँदें बताशे में डालकर 1 सप्ताह तक खाते रहने से उपदंश का रोग नष्ट हो जाता है।

• भैंस की चर्बी गरम करके पाँवों की पिन्डलियों पर मलने से 7 दिन में उपदंश का नामोनिशान मिट जाता है।

नोट-किसी स्वी अथवा पुरुष को उपदंश है अथवा नहीं इसकी पहचान (परीक्षा) हेतु उसके शरीर पर किसी भी भाग पर नीबू का रस लगाकर देखें, यदि यह असहनीय प्रतीत हो तो समझ लें कि उपदंश का रोग है।

अधभुने जीरे में काला नमक मिलाकर उसका शरबत बनाकर पीने से शरीर पर के गर्मी के चकत्ते गायब हो जाते हैं तथा खून साफ होकर उपदंश रोग ठीक हो जाता है।

(उपदंश नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

सन्दल पिल्स (झन्डू) 2-3 गोली दिन में 3 बार। उपदंश, पूयमेह की अवस्था में लाभकारी है।

उपदंशादि कैपसूल (जी. ए. मिश्रा) 1-2 कैपसूल सुबह-शाम । उपदंश की प्रत्येक अवस्था में लाभप्रद है।

गोनारि कैपसूल (ज्वाला आयु.) मात्रा उपर्युक्त। उपदंश तथा फिरंग दोनों में लाभप्रद है।

उपदंशहर बटी (मुल्तानी) 1-2 टिकिया दिन में 2 बार जल से दें तथा 1 टिकिया हल्के गरम जल में घोलकर उपदंश व्रणों पर लेप करें ।

उपदंशारि मलहम (धन्वन्तरि कार्या.) बाह्य प्रयोगार्थ । उपदंश तथा फिरंग दोनों में लाभकारी है।

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