संदेश

जून, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गर्भ गिराने की न्यायसंगत स्थितियाँ,garabh girane ki satithiyan

गर्भ गिराने की न्यायसंगत स्थितियाँ,garabh girane ki satithiyan अत्यधिक वमन, हृदय रोग, रक्ताल्पता, अत्यधिक सन्तान होना, क्षय रोग, पेशाब में एल्ब्यूमिन (सफेदी अर्थात् मुर्गी के अण्डे की सफेदी की भाँति) आना, गर्भ का मर जाना, उपदंश रोग, शारीरिक आघात, वृक्क रोग, मानसिक आघात, गर्भाशय का कैन्सर, मधुमेह, वातकम्प रोग, विषैले अर्बुदे, उन्माद रोग, अर्द्ध-विक्षिप्त गर्भिणी, छोटा दूध पीता बच्चा होना और उसकी माँ का कमजोर होना, घातक उदर रोग, बलात्कार के कारण गर्भ स्थित हो जाना, परिवार कल्याण के साधन अपनाये जाने पर भी गर्भ ठहर जाना, अवयस्क कन्या के गर्भ ठहर जाना आदि । नोट-इस ग्रन्थ में गम्भीर किस्म के रोगों का उपचार अथवा गर्भपातं आदि के लिए किन्हीं भी योगों का प्रयोग अपने पारिवारिक रजिस्टर्ड चिकित्सक के परामर्शानुसार एवं उसकी देखरेखमें ही करें। किसी प्रकार की हानि हेतु लेखक अथवा प्रकाशक कतई जिम्मेदार नहीं हैं। इन रोगों का वृतान्त मात्र जानकारी एवं रजिस्टर्ड चिकित्सकों के ज्ञानार्थ ही लिखा गया है। 25-25 ग्राम की मात्रा में मैथी का विधिवत काढ़ा बनाकर (मैथी को तब तक मन्दाग्नि पर उबालें । जब तक कि वह कोका...

गर्भपात के कुछ अचूक योग

गर्भपात के कुछ अचूक योग पूर्ण गर्भ 280 दिनों का होता है। यदि 28 सप्ताह से पूर्व गर्भाशय को त्यागकर गर्भ बाहर निकल आता है तब इस स्थिति को गर्भपात कहा जाता है। गर्भावस्था के प्रारम्भिक महीनों में यदि गर्भवती स्वी की योनि से रक्तस्त्राव होता है तब यह भी गर्भपात की ही स्थिति कहताती है। हमारे देश में 10 से 20 प्रतिशत गर्भवती स्वियों को किसी न किसी कारण से गर्भपात हो जाता है। आमतौर पर 12 सप्ताह तक के गर्भ को आसानी से गिराया जा सकता है। जूनसंख्या विस्फोट को देखते हुए भारत सरकार ने अपने देश में गर्भ गिराने का कानून मेडीकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेन्सी एक्ट (M.T.P.) सन् 1972 से वैधानिक रूप से लागू किया है जबकि यह कानून सन् 1971 में ही पास हो गया था। इस धारा के अन्तर्गत (भारतीय अपराध संहिता) के अनुसार कोई मान्यता प्राप्त रजिटर्ड चिकित्सक तभी गर्भपात कर सकता है जब चिकित्सीय दृष्टि से गर्भपात करना आवश्यक हो। इसके अतिरिक्त यदि कोई चिकित्सक जो गर्भपात के लिए मान्यता प्राप्त नहीं हो और वह अवैधानिक रूप से गर्भपात करता है अथवा कोई अन्य पुरुष जो चिकित्सक नहीं है और गर्भपात की कुचेष्ट करता है, यहाँ तक कि स्व...

अन्य गर्भ निरोधक योग,bacha girane ke kuch upay

अन्य गर्भ निरोधक योग,bacha girane ke kuch upay मासिकधर्म के दिनों में लगातार 15 दिनों तक प्रातः सायं पुराना गुड़ औटाकर पीने से गर्भ नहीं ठहरता है। सुहागा 2 ग्राम, काली मिर्च 2 ग्राम, हल्दी 1 ग्राम, चित्रक-मूल का चूर्ण 12 ग्राम सभी को ले कूटपीस व छानकर 16-16 मात्राऐं बनाकर सुरक्षित रखलें। जिस दिन से मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाए ठीक उसी दिन से 1-1 मात्रा प्रातः तथा (8-10 दिन) लगातार सेवन करने से गर्भ नहीं ठहरता है। सम्भोग से पूर्व गरम जल में फिटकरी घोलकर योनि धोने तथा सम्भोग के पश्चात् पुन इसी घोल से योनि धो देने से गर्भ धारण नहीं होता है। नीम के पत्तों के बने काढ़े से सम्भोग से पूर्व तथा बाद में योनि को धो देने से गर्भ धारण नहीं होता है। निबौली के काढ़े का फाहा मासिकधर्म के दौरान योनि में लगातार 5 दिनों तक रखने से गर्भ स्थापित नहीं होता है। सम्भोग के पूर्व स्वी अपनी योनि में स्पंज को 'हाइड्रोजन परआक्साइड' (झाग उत्पन्न कर जख्म धोने या साफ करने वाली अंग्रेजी दवा) से. तर करके रख ले तो वीर्य के शुक्राणु मर जाते हैं और गर्भ नहीं ठहरता है। हल्दी 1 ग्राम पुराने गुड़ में घोटकर सुबह-शाम 10...

स्त्री को सदा के लिए बाँझ बनाने वाले कुछ योग,patni ke kabhi pregnent na ho

स्त्री को सदा के लिए बाँझ बनाने वाले कुछ योग,patni ke kabhi pregnent  na ho ऋतुस्नाता स्वी को ढाक के बीजों की राख और हींग दूध में मिलाकर 3 दिन पिलाने से कदापि गर्भ नहीं ठहरता है। ढांक के बीज पानी में पीसकर ऋतुमती स्त्री 3 दिन पी लें तो निश्चय ही सदैव के लिए बाँझ हो जाती है। यदि स्वी मासिकधर्म के स्नानोपरान्त असगन्ध की 7 डोडियाँ निगल ले तो वह कभी गर्भवती नहीं होती है। मैथी, गाजर, सोयाबीन के बीज सममात्रा में लेकर पीसकर रखलें। इसको ठण्डे पानी से प्रयोग करने से गर्भधारण की शक्ति सदा के लिए मिट जाती है। गुड़हल के फूलों को ठण्डे पानी की सहायता से पीसकर लेप बनाकर नाभि पर मलने से स्वी को कभी गर्भ नहीं ठहरता है। पुराना गुड़ 4-4 ग्राम की मात्रा में निरन्तर कम से कम 15 दिनों तक खाने से स्वी सदा के लिए बाँझ हो जाती है। खीरा, ककड़ी व पलाश के बीज सम मात्रा में लेकर कूट पीसकर रखें लें। मासिक धर्म में 3 दिन 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से गर्भ नहीं रहता है। कपूर, कलौंजी, काला जीरा, हरड़, कायफल और नागकेशर सभी सम मात्रा में लेकर कूटपीस कर पानी की सहायता से बेर के समान गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रखलें...

गर्भ निरोधक योग,garabh bandhan,kokh bandhan yog

चित्र
गर्भ निरोधक योग,garabh bandhan,kokh bandhan yog मासिकं धर्म के पश्चात् जब स्वी स्नान कर चुके, तब एरन्ड के बीज को छीलकर 1 गिरी निगलने से 1 वर्ष तक 2 गिरी निगलने से 2 वर्ष तक तथा 3 गिरी निगलने से 3 वर्ष तक गर्भ नहीं ठहरता है। तीन गिरियों से अधिक सेवन न करें। जब सन्तान की इच्छा हो तो एरन्ड बीज की गिरी न खायें। 1 वर्ष के बाद स्वतः गर्भ धारण करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। संभोग के समय अरन्ड के तैल में साफ रुई भिगोकर योनि में कुछ देर पहले रखकर फिर निकाल कर फेंक दें। इस तैल के गाढ़ेपन के कारण शुक्रकीटगर्भाशय तक न पहुँचकर बाहर ही रह जाते हैं। तदुपरान्त संभोग क्रिया सम्पन्न कराने से गर्भ धारण नहीं होता है। इस प्रयोग से योनि को कोई हानि भी नहीं पहुँचती है और इसका काफी समय तक प्रयोग किया जा सकता है। मासिकधर्म से फारिंग होकर यदि स्वी चमेली के फूल की 1 कली निगल लें तो 1 वर्ष तक गर्भ नहीं ठहरेगा और इस प्रयोग के साथ यदि पुरुष भी लिंग पर चमेली या अलसी तैल मलकर संभोग करे तो सोने पर सुहागा है। नीम के तैल में स्पंज भिगोकर गर्भाशय के मुख के'पास रख लेने से गर्भ नहीं ठहरता है। नीम का तैल ...

स्त्री अथवा पुरुष के बांझपन की पहचान,infertility bhanjhpan ki pechan

चित्र
स्त्री अथवा पुरुष के बांझपन की पहचान,infertility bhanjhpan ki pechan सन्तान उत्पन्न होने के लिए वास्तविक दोषी स्वी अथवा पुरुष में कौन है ? इस हेतु कृपया निम्न जाँचों को अपनाकर निर्णय करें- एक साफ स्वच्छ शीशे के पानी-भरे गिलास में पुरुष अपना वीर्य गिराये। यदि वीर्य गिलास की तली पर बैठ जाए तो बाँझपन हेतु पुरुष उत्तरदायी नहीं है। लौकी की जड़ों पर (अलग-अलग) स्त्री-पुरुष दोनों (1-1 जड़ पर) मूत्र त्याग करें जिसके मूत्र से जड़ सूख जाए, बाँझपन हेतु वही उत्तरदायी है। वही अपनी सुयोग्य चिकित्सक से चिकित्सा कराये । भूख की अवस्था में गाय के दुग्ध में तर कपड़े को अपनी योनि में रखें। यदि कुछ समय के बाद दूध की गन्ध उसके मुख में आने लगे तो वह कदापि दोषी नहीं है। दो स्थानों पर गेहूँ अथवा जौ के दाने बो दें और 1-1 जगह पर स्वी-पुरुष वहाँ दानों पर मूत्र त्याग करते रहें, जिसके मूत्र से दानें अंकुरित न हों वही दोषी है और जिसके मूत्र त्याग करते रहने से पर भी दानें उग आवें, वह दोषी नहीं है। यह घरेलू जाँच है।