स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna
(स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna)
रोग परिचय- इस रोग में स्त्री के स्तनों में दूध इतनी अधिकता से आने
लगता है कि शिशु के दुग्धपानीपरान्त स्वयं बहने लगता है जिसके कारण स्वी के स्तनों में बहुत अधिक तनाव उत्पन्न होकर पीड़ा और कष्ट होने लगता है। प्रायः ऐसा भी देखने में आया है कि बिना गर्भ हुए स्तनों में दूध उत्पन्न होने लग जाता है। किन्तु ऐसा उसी समय हो सकता है जबकि मासिक धर्म काफी समय से बन्द हो। इस रोग का कारण रक्त और दूध उत्पन्न करने वाले भोजनों का अत्यधिक सेवन, शिशु का दुग्धपान छुड़वा देना और रक्त का पतला हो जाना, स्तनों को रोकने वाली शक्ति का कमजोर हो जाना इत्यादि है। प्रायः नर्वस स्वभाव की स्त्रियाँ जो अपने बच्चों को अत्यधिक प्रेम करती हैं उनको भी उनके स्तनों में भी बहुत अधिक मात्रा में दूध आने लगता है।
उपचार- रोगिणी कब्ज न रहने दें और यदि आवश्यक हो तो हल्का-जुलाब लेकर पेट साफ करें ।
• चम्पा के फूल स्तनों पर बाँधते रहने से अधिक दूध उत्पन्न होना, कम हो जाता है।
• तुलसी के बीज, सम्भालू के बीज 1-1 तोला, भांग के बीज 6 माशा तथा इतनी ही मात्रा में मसूर बिना छिलका व काहू के बीज पीसकर 6 माशा की मात्रा में सुबह-शाम ताजा जल से खायें ।
• मुर्दासंग, चपड़ा लाख प्रत्येक 6 माशा को 2 तोला गुलरोगन में मिलाकर स्तनों पर 1 सप्ताह तक लेप लगायें ।
स्तनों में दूध अधिक हो जाने पर 'बेस्ट पम्प' (दवा की दुकानों से खरीदकर) द्वारा दूध निकाल दें। रोगिणी को चने के आटे की नमकीन रोटी, मसूर, मूंग या अरहर की दाल बिना घी के खिलायें ।
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