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गर्भाशय और योनि का बाहर निकल आना,prolapse of the uterus and vagina,garbhaasya aur yoni ka bhahar nikal ana

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(गर्भाशय और योनि का बाहर निकल आना,prolapse of the uterus and vagina,garbhaasya aur yoni ka bhahar nikal ana) रोग परिचय-इस रोग को अंग्रेजी में प्रोलेप्सस ऑफ बेजाइना कहते है। इस रोग में योनि की भीतरी श्लैष्मिक कला ढीली होकर अपने स्थान से अलग हो जाती है और योनि की छेद का कुछ भाग बाहर निकल आता है। योनि का बाहर निकला भाग नर्म और गोल होता है। योनि में अंगुली डालकर देखने से गर्भाशय का मुँह अपने स्थान पर होता है, इसके विपरीत गर्भाशय बाहर आ जाने पर किसी दुर्घटना के फलस्वरूप योनि की सम्पूर्ण रचना बाहर आ जाती है। जब योनि की म्यूकस मेम्बरीन अपने स्थान से बाहर आ जाती है तब स्वी की योनि के अन्दर खिंचाव जैसा दर्द महसूस होता है और योनि में डांट की भांति नरमसी गोल वस्तु फैली हुई दिखाई देती है जिसका रंग गुलाबी या गहरा लाल हो जाता है। रोगिणी को चलने-फिरने तथा मल-मूत्र त्यागने में कष्ट होता है किन्तु कुछ दिनों के पश्चात् इन कष्टों में कमी आ जाती है। इसके अतिरिक्त इस रोग के फलस्वरूप रोगिणी के चूतड़ों, जाँघों और पिन्डलियों में भी सख्त दर्द होता है। उपचार-शक्तिवर्धक योगों तथा दैनिक जीवन में शक्ति...

योनि का ढीला हो जाना (Paralysis of Vagina)yoni ka dheela hona

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(योनि का ढीला हो जाना (Paralysis of Vagina)yoni ka dheela hona) रोग परिचय-योनि की मांसपेशियों के तन्तु ढीले हो जाने पर उसके फैलने और सिकुड़ने की शक्ति कम अथवा बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है। जिसके फलस्वरूप योनि की नाली फैल जाती है और सम्भोग क्रिया करते समय पति- पत्नी को प्राकृतिक आनन्द की प्राप्ति नहीं होती है। रोग अधिक बढ़ जाने पर योनि बाहर निकल आने का रोग हो जाता है। यह रोग अधिक सम्भोग, सन्तान की अधिकता, शारीरिक कमजोरी, बुढ़ापा, जल्दी-जल्दी गर्भ ठहर जाना तथा योनि से अत्यधिक मात्रा में स्त्राव आते रहने के कारण हो जाता है।उपचार- शारीरिक दुर्बलता के कारण यदि रोग उत्पन्न हुआ हो तो शक्तिवर्धक योग व खान-पान से यह रोग ठीक हो जाता है। यदि अत्यधिक सम्भोग के कारण रोग हो तो सम्भोग कुछ काल तक बिल्कुल ही बन्द कर दें। • सुपारी पाक 6 से 9 माशा सुबह शाम दूध के साथ खिलायें तथा सायंकाल को बंगभस्म 1 रत्ती की मात्रा में मोचरस (सेम्बल वृक्ष की गोद) एक माशा मधु में खिलाकर खिलायें तथा हरे माजू का फल, धाय के फूल, फिटकरी खील की हुई) एवं गुलाब के फूल- बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर किसी पतले ...

योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना (Atresia of Vagina or Vaginismus)yoni ka tang hona,yoni ka band hona

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(योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना (Atresia of Vagina or Vaginismus)yoni ka tang hona,yoni ka band hona) रोग परिचय-यदि योनि बिल्कुल ही बन्द हो अथवा इतनी अधिक संकुचित हो कि सम्भोग (मैथुन) क्रिया न हो सके तो इसी रोग को-एटेरसेया ऑफ वैजाइना(योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना) कहा जाता है। यदि मैथुन-क्रिया में कष्ट और कठिनाई हो तो उसे 'वैजाइनिसमस' कहा जाता है। इसके निम्न दो कारण होते हैं- 1. जन्म से योनि का बन्द होना, 2. योनि संकोच होना। योनि संकोन किसी रोग के बाद हो जाया करती है। ऐसी अवस्था में पहले स्वी विल्कुल स्वस्थ रहती है। प्रायः योनि पर लगी श्लैष्मिक कला शोधयुक्त होकर आपस में चिपक जाती है जिसके फलस्वरूप योनि का मार्ग बन्द हो जाता है। कभी-कभी योनि का बाहरी छेद तंग या बंद हो जाता है। योनि की मांसपेशियों के तन्तुओं का ऐंठ जाना, योनि की भीतरी श्लैष्मिक कला में शोथ, योनि में तरलता की अत्यधिक कमी, कुमारी पर्दा की कठोरता, योनि के किसी बड़े घाव का इस प्रकार भर जाना कि उसकी रचना सिकुड़ जाये अथवा घाव भरने के बाद वहाँ फालतू मांस पैदा हो जाये अथवा योनि में खुश्की उत्पन्न क...

योनि के घाव,yoni ke ghav

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(योनि के घाव,yoni ke ghav) रोग परिचय-योनि के अन्दर प्रायः घाव हो जाया करते हैं जिनमें सख्त जलन और दर्द होता है। महिला चिकित्सक 'वेजाइना स्पेक्युलम' (एक विशेष प्रकार का यन्व) से योनि को फैला कर इन घावों को भली प्रकार निरीक्षण कर लिया करती हैं। नये शोच में पीप पड़ जाने और फुन्सियों के फूट जाने के कारण योनि में घात हो जाया करते हैं। योनि में अत्यधिक खट्टास हो जाने या सुजाक रोग होने से भी योनि में घाव हो जाया करते हैं। चूंकि योनि में प्रदर का गन्दा और अम्लता वाला तरल आता रहता है और यह स्थान तंग और गहरा होता है। इसलिए सावधानी न रखने से ये घाव नासूर बन सकते हैं जो बड़ी कठिनाई से ठीक होते हैं। उपचार- मामूली घाव नीम के पत्तों के क्वाथ से डूश करते रहने से ठीक हो जाते हैं। डेटाल-एन्टीसेप्टिक क्रीम या डेटोल ओब्सटेरिक क्रीम को दिन में 2 बार योनि के घावों में लगाना अत्यधिक लाभप्रद है। तिलों के 5 तोला तैल में नीम और मेंहदी के सूखे पत्ते 1-1 तोला, डालकर जलालें । तैल को छानकर इसमें विशुद्ध मोम 1 तोला डालकर पिघला लें। फिर इसमें कमीला सवा तोला मुर्दासंग और सफेदा काश्गरी 4-4 माशा खरल ...

योनि की खुजली,yoni ki khujli

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(योनि की खुजली,yoni ki khujli) रोग परिचय-इस रोग के कारण स्वी को बहुत कष्ट होता है, वह अंगुली डालकर योनि को खुजलाती रहती है, खुजली के कारण रोगिणी को सम्भोग की इच्छा बहुत बढ़ जाती है। यह रोग योनि में शोथ, योनि स्राव में अधिक अम्लता हो जाना, रक्त विकार, पेट में चुरनों का हो जाना, शरीर में रक्त, विटामिन मिनरल्ज की कमी तथा थायराइड ग्लैन्ड की खराबी आदि के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाया करता है।उपचार जैसा कि इससे पूर्व में "योनि कपाट" रोग में उपचार लिखा जा चुका है, उसी के अनुसार इस रोग का भी उपचार करें। • सूखी मेंहदी, गाचनी, लाल चन्दन, प्रत्येक 3-3 माशा बारीक पीसकर बहीदाना के गाढ़े लेस वाले पानी में मिलाकर ठण्डा लेप लगाने से योनि की खुजली, जलन और शोध में लाभ हो जाता है।

धातु दौर्बल्य, नपुंसकता, मरदाना कमजोरी, सामान्य दुर्बलता (Impotancy And General Weakness

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(  धातु दुर्बलता, नपुंसकता, सामान्य दुर्बलता (Impotancy And General Weakness) नपुंसकता- इसमें रोगी आशिंक या पूर्ण रूपेण स्वी (पत्नी) को यौन सुख (सम्भोग क्रिया) दे पाने में असमर्थ हो जाता है। पुरुष का शिश्न (लिंग) इतनादुर्बल हो जाता है कि उसमें उत्थान नहीं हो पाता है। इस रोग में यदि शारीरिक या मानसिक दुर्बलता हो तो उसको निर्मूल किया जा सकता है। यदि यह दोष पैतृक है तब उसको ठीक नहीं किया जा सकता। वैसे प्रायः 99 प्रतिशत यह रोग मानसिक अथवा शारीरिक कमजोरी (दुर्बलता) के परिणाम स्वरूप प्रकट होता है। उपचार • अमलतास की छाल का महीन चूर्ण 1-2 ग्राम की मात्रा में दो गुनी शक्कर मिलाकर 250 ग्राम नेगुनगुना गौ दुग्ध के साथ नित्य सुबह शाम सेवन करने से अपार बल व वीर्य की वृद्धि होती है। • अश्वगन्धा का चूर्ण कपड़छन कर (खूब मैदे की भाँति कर लें) इसमें चौथाई भाग उत्तम गौघृत मिलाकर आपस में खूब खरल कर एक स्वच्छ पात्र में रख लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के वीर्य विकारों में लाभ होकर बल व वीर्य की वृद्धि होती है। • अश्वगन्धा में (कब्ज न करते हुए) पतली धा...