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चावल-chawal ke upyog gun or fayede

चावल-chawal ke upyog gun or fayede हाँलाकि यह दो सौ से अधिक किस्मों के रूप में मिलता है किन्तु रासायनिक विश्लेषणानुसार इसमें 10 प्रतिशत जल, 80 प्रतिशत कार्बोज, 6 प्रतिशत प्रोटीन और 3 प्रतिशत अन्य चीजें और इसके अतिरिक्त इसमें कैल्शियम और फास्फोरस भी अल्प मात्रा में पाया जाता है। नये चावलों की अपेक्षा पुराना चावल अधिक स्वादिष्ट तथा सुपाच्य होता है, क्योंकि इसमें जल का अंश कम होता है। यही कारण है कि पुराना चावल नये चावलों की अपेक्षा पकाते समय अधिक पानी ग्रहण करता है फलस्वरूप अधिक फूलता है और फूलकर आकार में बड़ा हो जाता है। यह हल्का, सुपाच्य किन्तु कब्ज करने वाला होता है। इसको अधिक मात्रा में सेवन करने वाले लोग दुबले-पतले रहते हैं, क्योंकि इसमें मांस बनाने वाले प्रोटीन की मात्रा कम होती है, इसीलिए चावलों के साथ अधिक मात्रा में दालों का सेवन करना अत्यन्त आवश्यक होता है। चावल को बिना मांड निकाले ही पकाना चाहिए क्योंकि मांड निकालने पर कार्बोज निकाल जाता है।

गेहूँ के फायदे

गेहूँ के फायदे गेहूं -यह पौष्टिक खाद्य पदार्थ है जिसमें कैल्शियम और फास्फोरस अधिक मात्रा में होती है। गेहूँ 50 ग्राम में 1 ग्राम चर्बी, 6 ग्राम प्रोटीन और 40 ग्राम कार्बोज होता है। इसमें अन्य किसी विटामिन का कोई अंश नहीं पाया जाता है। गेहूं के आटे में मकई, जौ, बाजरा आदि खाद्यात्रों से अधिक मात्रा में प्रोटीन तथा कार्बोज पाया जाता है। यह हमारे शरीर के मांस, रक्त आदि को बढ़ाने तथा उसमें उष्णता कर शारीरिक शक्ति उत्पन्न करता है। इसके साथ अत्यधिक दालों का प्रयोग हानिकारक होता है। गेहूँ की रोटी के साथ लगभग डेढ़ छटांक दाल प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। चावल की अपेक्षा गेहूं के आटे की रोटी खाने पर मल (पाखाना) अधिक होता है किन्तु चावल खाने वाले लोगों से गेहूँ खाने वाले लोग अपेक्षाकृत अधिक बलवान एवं हष्ट-पुष्ट होते हैं। गेहूँ के अंकुरों में विटामिन 'ई' अधिक मात्रा में होता है जो सन्तान उत्पन्न करने हेतु आवश्यक है।

नवजात शिशु के उत्तम स्वास्थ्य का परीक्षण

नवजात शिशु के उत्तम स्वास्थ्य का परीक्षण शिशु के जन्मते सिर का व्यास 35 सेमी. होता है तथा शिशु नाक से श्वास लेता है। श्वसन गति सामान्य स्थिति में 20 से 100 तक हो सकती है। (सांस प्रायः 40 से 44 तक प्रति मिनट होती है।) दिल की गति 120 से 140 तक प्रति मिनट, रक्तचाप सिस्टोलिक 75 से 100 तथा डायास्टोलिक 70 मि.मि. आफ मरमरी तथा तापक्रम 100 फा. पैदा होने पर रहता है तथा बाद में 1 से 2 डिग्री फारेनहाइट कम हो जाता है। देखने की शक्ति विकसित नहीं रहती है। सर का गूमड़ जो एक दिन में समाप्त हो जाता है। नवजात शिशु की त्वचा उप-उत्त्वक (Vernix Caseosa) तथा शरीर पर उस समय के रहने वाले बाल विशेष (Lanugo hairs) रंग गुलाबी तथा हाथ-पैर नीले (लाल त्वचा कपड़े के रगड़ वाले स्थान पर) कभी-कभी बाह्य जननांगों में शोथ (सूजन) होती है जो धीरे-धीरे स्वयं ही खत्म हो जाती है और इस शोथ से कोई किसी प्रकार की हानि नहीं है। कभी-कभी नवजात शिशुओं की त्वचा में हल्का पीलापन दीखता है जो 2-3 दिन में स्वतः ही समाप्त हो जाता है।नोट-यदि ऐसा न हो तो तुरन्त किसी अच्छे चिकित्सालय में जाकर चिकित्सक के परामर्शानुसार चिकित्सा करायें । नवजात श...

माता की व्याधि का गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव

माता की व्याधि का गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव लम्बे समय तक अथवा तीव्र रूप में होने वाली किसी भी व्याधि के फलस्वरूप गर्भपात या गर्भस्त्राव (एर्वोशन) या मृत सन्तान (Still Birth) का अपरिपक्व प्रसव हो सकता है। भ्रूण विकास के प्रथम 3-4 मास के गर्भ के दौरान यदि छोटी माता, हरपीज या मलेरिया का रोग गर्भिणी को हो जाए तो गर्भपात, अपरिपक्व प्रसव, गलसुआ के कारण दिल की व्याधि, पोलियो के कारण जन्म से ही पक्षाघात, खसरे के साथ ही बच्चे का पैदा होना एवं Vibriofetus से मस्तिष्क ज्वर हो जाता है। गर्भिणी यदि मधुमेह की रोगिणी हो तो जन्म लेने वाले शिशु का वजन अधिक होता है, सिर बड़ा होता है (Hydrocephalas) और Hypertrophy एवं Hyperplasia of I selet call का होना, Phenyl Ketonuria के कारण जन्मजात अंग-विकृति होती है । गर्भिणी द्वारा अंग्रेजी औषधि कारटीजोन्स के योग खाने से शिशु के होंठ कटे होना (Cleft Palate)कैफीन के योग खाने से गर्भस्त्राव, मृत सन्तान या अपरिपक्व प्रसव होना। . एमफेटामीन के योग खाने से हृदय शिशु में विकृति आ जाती है। एसीडरेक्स के कारण शिशु में रक्त विकृति हो जाती है। गर्भिणी द्वारा धूम्रपान करने से जन्...

गर्भस्थ शिशु की रचना सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी

गर्भस्थ शिशु की रचना सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी (गर्भस्थ शिशु की रचना सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी)                प्रथम तीन मास की अवस्था आठ सप्ताह तक के गर्भ को Embryo तथा इसके बाद के गर्भ को (भ्रूण- शिशु या गर्भस्थ शिशु कहा जाता है। छठे से 12वें सप्ताह (Place) अपरा का निर्माण हो जाता है। गर्भस्थ भ्रूण में दिल का स्पन्दन 4 सप्ताह के बाद प्रारम्भ हो जाता है। नाड़ी तन्त्र का विकास 8वें सप्ताह से प्रारम्भ होता है तथा अस्थियों का बनना भी प्रारम्भ हो जाता है और इस समय गर्भस्थ शिशु में मनुष्य के समान सिर, नेत्र, कान, हाथ, पैर दिखाई देना प्रारम्भ हो जाते हैं। द्वितीय तीन मास की अवस्था बाह्य जननांगों का स्पष्ट होना । गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन माँ के उदर में सुनाई देने लगती है। अस्थि निर्माण गति में वृद्धि हो जाती है। श्वसन संस्थान निर्माण कार्य पूर्ण हो जाता है।निगलने की प्रक्रिया भी प्रारम्भ करने की शक्ति हो जाती है। बालों का निर्माण होने लगता है। samo mhe s अन्तिम तीन मास की अवस्था 27-वें सप्ताह में श्वसन संस्थान का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाता ...

शिशुओं के लालन-पालन से सम्बन्धित मुख्य बातें,navjaat bachcho ke liye kuch khaas baatein

शिशुओं के लालन-पालन से सम्बन्धित मुख्य बातें,navjaat bachcho ke liye kuch khaas baatein  नन्हा शिशु 24 घंटे में यदि 20-22 घंटे सुख की नीद सोये तो उसकी पूर्ण स्वस्थ समझना चाहिए । शिशु के जन्मते ही आहार आदि देने की हड़बड़ी न करें। जन्म के 24 घंटे के बाद शिशु को माता का स्तनपान करवायें। यदि घर-परिवार का कोई सदस्य किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो तो उससे नन्हें शिशु को अवश्य ही दूर रखें । नन्हें शिशुओं को अत्यधिक हँसाना अथवा डराना हानिकारक है। शिशुओं को तीव्र धूप, तेज वायु तथा तीव्र शीतलता से बचाये रखें । शिशु के निकट चूल्हा, गैस चूल्हा, स्टोव, लालटेन अथवा कांच की वस्तुऐं, जहरीले पदार्थ, बिजली के तार (रेडियो, टी. वी. पंखे आदि) कदापि नहीं होने चाहिए । बच्चों को प्रायः सूती कपड़े तथा सर्दियों में ऊनी कपड़े ही पहिनायें। स्वस्थ शिशु को वमन नहीं होता है बल्कि उसके मुख में भरा हुआ (दुग्धपानोपरान्त) दूध बाहर निकल आता है तथा स्वस्थ शिशु के माथे पर पसीनानहीं आता है तथा उसके मल का रंग पीला और हल्का गरम रहता है। स्वस्थ शिशु की नाड़ी तीव्र चलती है और वह दिन भर में 3-4 बार तक मल त्याग करता है। शिशु क...

खसरा (Measles)सर्दी, जुकाम और नजला

खसरा (Measles)सर्दी, जुकाम और नजला रोग परिचय-इस संक्रामक रोग का प्रारम्भ सर्दी, जुकाम और नजला से होता है फिर ज्वर हो जाता है। बुखार चढ़ने के चौथे दिन सारे शरीर और चेहरे पर बहुत छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं जिसके कारण समस्त शरीर लाल रंग का दिखाई देने लगता है। नाक से पानी बहना, सर्दी, खाँसी, बार-बार छींकें आना, आँखें लाल हो जाना, आँसू आना, सिर में दर्द, आवाज बैठ जाना, पीठ और हाथ-पैरों में दर्द आदि के साथ 101 से 104 तक ज्वर हो जाना, मुँह के अन्दर गालों और होठों के अन्दर हर ओर छोटे-छोटे लाल दाने पैदा हो जाना आदि लक्षण होते हैं। खसरा के दाने खशखश के दानों से भी छोटे होते हैं। बच्चों को इस रोग के उपद्रव स्वरूप उचित उपचार के अभाव में प्लूरिसी, गले की शोथ और क्षय रोग आदि भी हो सकते हैं। इस रोग का कारण भी एक वाइरसहै जो रोगी की नाक के तरल, दानों, खुरन्ड, साँस, छींकों और थूक द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैलाता है। अधिकतर यह रोग बच्चों को ही होता है।কনসন इस रोग में रोगी को एकाएक 101 से 102 तक ज्वर हो जाता है। आँखों और नाक से पानी बहने लगता है। गले में दर्द और खाँसी, सर्दी और कम्पन...

छोटी माता, शीतला,choti mata,seetla

छोटी माता, शीतला,choti mata,seetla रोग परिचय - यह एक संक्रामक ज्वर बच्चों को महामारी के रूप में होने वाला रोग है। इसे मसूरिका, लघु मसूरिका, काकड़ा-लाकड़ा और वैरियोला (Vaiola) इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। चार वर्ष और इससे कम आयु के बच्चे इस रोग से भी अधिक ग्रसित होते हैं। एक बार यह रोग हो जाने के बाद फिर दुबारा नहीं होता है। इस रोग का वायरस श्वासांगों-नाक और मुँह के मार्ग से शरीर में प्रवेश कर जाता है। शिशुओं में यह रोग अधिक तीव्र नहीं होता है। यदि वयस्क रोगी को यह रोग हो जाए तो अत्यन्त तीव्र रूप धारण कर लेता है। उनको इस रोग से न्यूमोनिया होकर त्वचा पर दाने निकल आते हैं जिनसेरक्त आने लगता है। कीटाणु शरीर में चले जाने के 15-16 दिन के बाद इस रोग के निम्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं गुलाबी रंग के दानें व धब्बे गुच्छों के रूप में बारी-बारी से शरीर पर कभी एक अंग पर तो कभी दूसरे अंग पर निकलते हैं। ज्यों-ज्यों दाने और धब्बे निकलने है त्यों-त्यों रक्त में उत्तेजना से बच्चे को 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट तक ज्वर हो जाता है। ये दाने 25 घंटों में फूलकर छाले बन जाते हैं। इनमें पानी जैसा तरल उत्प...

पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग,bavaseer,भंगदर के लिए

कैपाइना टेबलेट (हिमालय) की आवश्यकतानुसार 2-3 टिकिया दिन में 2-3 बार अथवा करामाती टेबलेट (निर्माता राजवैद्य शीतलप्रसाद एण्ड संस) 1-2 टिकिया दिन में 3-4 बार खाकर चोबचीनी (मिश्रा बुन्देलखण्ड) अथवा स्वर्णक्षीरी (मिश्रा, बुन्देलखण्ड, सिद्धी फार्मेसी) का सूचीवेध 1-2 मि.ली. की मात्रा में (चिकित्सक के परामर्शानुसार) लगवायें। अत्यन्त लाभप्रद योग बन जाता है।

चेचक,chechak ki bimari ka ilaj

चेचक,chechak ki bimari ka ilaj रोग परिचय-यह एक प्रकार का तीव्र संक्रामक रोग है। जिसमें तीसरे दिन शरीर पर विशेष प्रकार के दाने निकल आते हैं। यह रोग अधिकतर बच्चों को होता है। इस रोग के उत्पन्न होने का कारण एक विशेष प्रकार का कीटाणु होता है। इस रोग में एकाएक सर्दी लगकर बुखार चढ़ता है, हाथ-पैर टेढ़े होजाते हैं। कमर, सिर और आमाशय के ऊपरी मुँह के स्थान पर दर्द होता है। कै, मितली, उबकाइयाँ आती है तथा भूख कम लगती है। चेहरा गरम, प्यास की अधिकता, जीभ मैली रहती है, ज्वर के उतरते ही दाने निकल आते हैं। ये दाने 3-4 दिन में पानीयुक्त छाले बन जाते हैं, जो पांचवे या छठे दिन पककर फट जाते हैं। अथवा उनमें पीप पड़ जाती है और छालों के चारों ओर लाल रंग का घेरा सा बन जाता है। रोगी के मुख से दुर्गन्ध आने लगती है, 10-12 दिन के बाद दाने पक जाने पर रोगी को तीव्र ज्वर (104 से 105 डिग्री) तक हो जाता है चेचक के दाने हाथ-पैर और मुँह पर अधिक तथा पहले निकलते है इसके बाद शरीर के अन्य भाग पर निकल आते हैं। दाने अलग-अलग अथवा आपस में मिले हुए होते हैं। दाने 10-12 दिन में ये मुरझाने लगते हैं और इन पर कालिमा युक्त अथवा भूरे र...

भगन्दर (Fistula in Ano) bavaseer

भगन्दर (Fistula in Ano) bavaseer रोग परिचय-यह एक अत्यन्त कष्टप्रद रोग है। इस रोग में रोगी की गुदा से 1-2 अंगुल छोड़कर फुन्सियाँ सी हो जाती है, जिनसे मवाद रक्त बहता रहता है। इन फुन्सियों में तीव्र पीड़ा होती है और रोगी को उठने-बैठने, चलने-फिरने में अत्यन्त कष्ट होता है। यह फुन्सियाँ आसानी से सूख नहीं पाती हैं और रोगी के नाड़ीव्रण अथवा नासूर जैसे घातक घाव उचित उपचार के अभाव में हो जाते हैं। हांलाकि यह रोग असाध्य नहीं है किन्तु कष्टसाध्य अवश्य है। इसका उपचार भी कठिन है। यह रोग शिशुओं को भी हो जाता है। इसके लक्षण निम्न प्रकार हैं। गुदमार्ग के बगल में दरार होकर उसमें पीप, दूषित रक्तवारि का स्राव होना तथा यदा-कदा पीड़ा होना और पीड़ित स्थान पर घाव बन जाना। उपचार- इस रोग का ऐलोपैथिक चिकित्सक आप्रेशन द्वारा और आयुर्वेदिक चिकित्सा 1. विरेचन, 2. अग्नि कर्म, 3. शस्त्रकर्म एवं 4. क्षारकर्म के उपचारों से पीड़ित रोगी की चिकित्सा करते हैं। बच्चों एवं शिशुओं में क्षारसूत्र का प्रयोग मृदु कर्म होने के कारण घरेलू उपचार ही लिखे जा रहे हैं- उत्तम क्वालिटी की राल को बारीक पीसकर भगन्दर पर लगाने से भगन्दर नष्...