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सूखा रोग(MARASMUS)सुखन्डी,सूखिया मसान,बालशोष,अस्थिक्षीणता,अस्थिदुर्बलता

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(सूखा रोग (MARASMUS)सुखन्डी, सूखिया मसान, बालशोष, अस्थिक्षीणता, अस्थिदुर्बलता, कैल्सियम की कमी अथवा रिकेट्स) रोग परिचय- इस रोग से ग्रसित हो जाने पर बच्चा धीरे-धीरे सूखता चला जाता है। खाया पीया अंग नहीं लगता है। इस रोग को सुखन्डी, सूखिया मसान, बालशोष, अस्थिक्षीणता, अस्थिदुर्बलता, कैल्सियम की कमी अथवा रिकेट्स इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। यह रोग आँतों की क्षय से होता है। इसके अतिरिक्त माँ बाप के गुप्त रोग,तीव्र ज्वर, आँतों के कीड़े इत्यादि के कारण भी सूखा रोग हो जाता है। सूखा रोग से ग्रस्त बच्चे का चेहरा डरावना हो जाता है। उसकी आँखें भैंस कर निस्तेज हो जाती है। उसको बदबूदार हरे पीले दस्त आने लगते हैं। शरीर पर झुर्रियाँ सी दिखाई देती हैं। बच्चा अस्वस्थ, सुस्त, बेजान रहता है, उसको गहरी नींद नहीं आती है तथा खाया-पीया ठीक से नहीं पचता है। कान की लौर (Earlobe) जिसमें छिद्र करवाकर स्त्रियां बालियों पहनती है, को दबाने पर यदि बच्चा नहीं रोये, तो निश्चत समझलें कि बच्चा सूखा रोग से ग्रस्त हो चुका है। सूखा-ग्रस्त बच्चे के शरीर की स्वभाविक गर्मी नहीं होती बल्कि उसके शरीर का तापमान गि...

कर्णरोग (Ear disease),कान के रोग,कान का दर्द

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(कर्णरोग (Ear disease),कान के रोग,कान का दर्द) उपचार • आक के सुपक्व पीले पत्तों पर घृत चुपड़कर आग पर रख दें। जब वे झुलसने लगें, तभी झटपट उठाकर निचोड़ लें और इस रस को थोड़ा गरम करके कानों में डालें । तुरन्त ही तीव्र वेदनायुक्त कर्णशूल नष्ट हो जायेगा । • कपास के बोन्डा को कूट पीसकर तिल या सरसों के तेल में पकाकर तेल सिद्ध करें, तत्पश्चात छानकर सुरक्षित रख लें। इस तेल की 4-5 बूँदें दिन में 2 बार कान में डालते रहने से कर्णपूय (कानभेपीव) कर्णखाव (कान बहना) दोनों रोगों में में अवश्य लाभ हो जाता है। • अफीम 1 ग्राम, मुसब्बर 6 ग्राम, मसूर की दाल 10 ग्राम सभी को एकत्र कर धतूरे के रस में कुछ गरम करके कान के चारों ओर लेप करने से कर्णमूल- शोथ में लाभ होता है। • अहिफेनासव और गिलेसरीन समभाग एकत्र मिलाकर 5-5 बूँदें कान में टपकाने या अफीम और सज्जी खार को शराब में मिलाकर कुछ बूँदें कान में डालने से तथा रात्रि के समय सेक कर ऊपर गरम कपड़ा लपेट कर (शीतल जल तथा शीतल वायु न लगने पाये) सो जाने से शीघ्र ही कर्णशूल (कान दर्द) नष्ट हो जाता है।• अनार के ताजे पत्तों को कुचलकर निकाला हुआ रस 100 ग्राम, गौ...

(त्वचा विकार,चमड़ी के रोग,खुजली,दाद,कृष्ठ रोग,)

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(त्वचा विकार,चमड़ी के रोग,खुजली,दाद,कृष्ठ रोग,) रोग परिचय-परिचय की विशेष आवश्यकता नहीं, क्योंकि इन विकारों से प्रायः सभी परिचित हैं। खुजली दो प्रकार की होती है- सूखी खुजली तथा तर खुजली । सूखी खुजली-खुजली के रोगी का कपड़ा पहनने या उसके साथ रहने से 'सार कौटिप्स स्केबी' नामक कीटाणु स्वस्थ मनुष्य के बाहरी चर्म में छेद कर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इन कीटाणुओं के विष से रक्त के श्वेत एवं लाल रक्त-कणों के नष्ट हो जाने से न पकने वाली छोटी-छोटी फुन्सियाँ निकलती हैं तथा चर्म में प्रदाह होकर उस स्थान का रंग खराब हो जाता है। सूखी खुजली प्रारम्भ में विशेषतः हाथ-पैर, मलद्वार, अन्डकोषों तथा योनि पर होती है जो बार बार खुजलाने से शरीर के अन्य स्थानों पर भी हो जाती है। उस रोग के होने का एक कारण रोगी का गन्दा रहना भी है। तर खुजली-खुजली को उत्पन्न करने वाले कीटाणु प्रायः कोमल त्वचा में रहते हैं। अँगुलियों के बीच वाले भाग, कलाई, जाँघ और बगल में फुन्सियाँ निकल आती हैं, जिनमें से तरल निकलता है। यही आर्द्र या तर खुजली कहलाती है। खुजलाने से यह तरल शरीर में जहाँ कहीं भी लग जाता है, उस स्था...

कण्ठमाला या अपची,गले के रोग, (Scrofula, Lymphadenitis

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         (कण्ठमाला या अपची,गले के रोग, (Scrofula, Lymphadenitis) रोग परिचय-गले की ग्रन्थियाँ बड़ी होती है और पक जाती हैं तथा फटने पर महीनों बहती रहती हैं। एक ठीक होने पर दूसरी हो जाती है। प्रायः एक साथ अनेक ग्रन्थियाँ बढ़ी हुई हुआ करती हैं।(उपचार) • कचनार की छाल 40 ग्राम को जौकुट कर कलईदार वर्तन में 40 ग्राम जल में पकायें। जब 50 ग्राम. जल शेष रहे तो उतार कर सुखोष्ण ही छानलें। उसमें 3 से 5 ग्राम सौठ का चूर्ण तथा 10 ग्राम मधु मिलाकर प्रतिदिन 1 बार 40 दिनों तक पिलाने से गन्डमाला में पूर्ण लाभ होता है। • चोबचीनी का चूर्ण 4 से 10 ग्राम तक नित्य 2 बार शहद के साथ चटाने से कन्ठमाला में पूर्ण लाभ होता है। • काली जीरी के साथ धतूरे के बीज तथा अफीम घोट पीसकर जल में गरम कर गाढा-गाढ़ा लेप करने से पीड़ा शान्त हो कर गाँठें बैठ जाती है। • नीम की छाल के साथ नीम के पत्तों को मिलाकर जौकुट कर क्वाथ बनाकर पिलाने से गंडमाला में लाभ होता है। • बबूल की छाया शुष्क अन्तर छाल के महीन चूर्ण को कन्ठमाला के घाव पर बुरकने से लाभ होता है। • बाकला को जौ के आटे और फिटकरी के साथ पीसकर ...

स्त्रियों का उपदंश (सिफलिस)

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(स्त्रियों का उपदंश (सिफलिस) रोग परिचय-स्खियों को इस रोग में भग के ओष्ठों पर घाव बन जाता है, जो 3-4 सप्ताह तक रहता है। यह भी सुजाक की ही भाँति एक संक्रामक रोग है। इस रोग के दो प्रकार होते हैं- 1. हार्डशेन्कर 2. साफ्टसेंकर । इसका कारण भी एक विशेष प्रकार का कीटाणु है। यदि यह रोग माता-पिता के कारण वंशानुगत क्रम से संतान को हो जाये तो इसको 'प्राइमरी सिफलिस' कहते हैं तथा यह रोग स्वी से पुरुष को या पुरुष से स्वी को सम्भोग द्वारा हो जाय तो उसको 'सेकेन्ड्री सिफलिस' कहते हैं। यदि माता पिता दोनों या किसी एक को यह रोग हो तो अनेक वीर्य द्वारा गर्भस्थ बच्चे को यह रोग हो जाता है। माता पिता के रक्त से इस रोग के' कीटाणु आँवल द्वारा भ्रूण (बच्चे) में चले जाते हैं। यदि यह रोग पति या पत्नी को हो तो सम्भोग द्वारा एक से दूसरे को लग जाता है। ऐसी परिस्थिति में घाव सबसे पहले स्त्री या पुरुष जननेन्द्रिय पर होता है। यदि बच्चे को पैत्रिक उपदंश हो तो दूध पिलाने स्त्री को भी यह रोग अपनी चपेट में ले लेता है। उपदंश के रोगी से बहुत अधिक मिलने-जुलने, उसको चूमने-चाटने, उसके कपड़े पहनने, ...

उष्णवात, सूजाक (Gonorrhoea)

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       (उष्णवात, सूजाक (Gonorrhoea) रोग परिचय-यह एक औपसर्गिक (Venereal) रोग है, जो गोनोकोक्स (Gonococus) नामक बैक्टीरिया (कीटाणु) द्वारा उत्पन्न होता है। यह कीटाणु काफी के बीज के सदृश अथवा मनुष्य के वृक्क के आकार के अत्यन्त ही छोटे- छोटे होते है जो नंगी आँखों से दिखलाई नहीं पड़ते है। इन्हें अनुवीक्ष्ण यन्त्र से सरलता से देखा जा सकता है। यह रोग सूजाक से ग्रसित स्वी (विशेष कर वेश्या) के साथ संभोग करने से हो जाता है। सम्भोग के तीसरे-पांचवे दिन (किसी-किसी रोगी को 2-3 सप्ताह के बाद) इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं। मूत्र का छेद लाल होकर सूज जाता है। मूत्र जलन और दर्द के साथ आता है। उसके 3-4 दिनों के बाद रोगी के कष्ट बढ़ जाते हैं। मूत्र रुक जाता है अथवा जलन व दर्द के साथ मूत्र रक्त-मिश्रित आता है रोगी के लिंग में असहनीय दर्द होता है यहाँ तक कि लिंग में जरा-सा कपड़ा छू जाने पर भी रोगी तड़प उठता है। जाँघों के जोड़ की ग्रन्थियाँ सूज जाती है तथा ज्वर भी हो जाता है। रोग के प्रारम्भ में मामूली सी खराश और खुजली मूत्र के छेद में होती है और पूय (पीप) सी निकलती है फिर धीर...

उपदंश आतशाक (Syphilis)

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           (उपदंश आतशाक (Syphilis) रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में 'सिफलिस' के नाम से जाना जाता है। यह दुष्टा (दुश्चरित्रा) स्त्री से सम्भोग करने से एक-दूसरे को होता है। पहले लिंग पर एक हल्के रंग का पीड़ा रहित घाव होता है। वह 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है। फिर डेढ़-दो महीनों के बाद त्वचा पर बड़े-बड़े भूरे रंग के उद्‌भेद निकल आते हैं। यह रोग वंशानुगत (माता-पिता से) भी उनकी सन्तानों में पहुँच जाता है। यह एक महा भयंकर संक्रामक रोग है, जो एक रोगी से दूसरे को हो जाता है। जब किसी स्त्री या पुरुष को इसका संक्रमण लग जाता है तब उसके द्वारा किसी स्वस्थ स्वी या पुरुष के साथ यौन सम्बन्ध (संभोग, मैथुन) करने से उसे भी हो जाता है। उचित चिकित्सा व्यवस्था से यह रोग पूर्णरूपेण निर्मूल (नष्ट) हो जाता है। अतः यह रोग पूर्णतः साध्य है, असाध्य नहीं है।তু उपचार • नीम की पत्तियों का 10 ग्राम रस प्रतिदिन पिलायें तथा नीम के बीजों का तैल यौनांगों पर मालिश करें। नीम का तैल कृमि और दूषित गर्मी का संहार करता है। नीम का तैल 5 ग्राम की मात्रा में पीना भी अतीव गुणकारी है। अथवा नीम को कोमल शाखाओं क...

अनिद्रा (नींद न आना),बेचैनी)

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(अनिद्रा (नींद न आना),बेचैनी) रोग परिचय-यह स्वयं में कोई रोग नहीं है, बल्कि शरीर में उत्पन्न हो रहे अथवा उत्पन्न हो चुके अन्य दूसरे रोगों का एक विकार (लक्षण) मोत्र है। उपचार • भांग को बकरी के दूध में पीसकर पैर के तलुओं पर मालिश करने से अथवा पलकों पर लेप करने से उत्तम निद्रा आती है। • स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी) के तैल की 1 बूंद बताशे में डालकर खिलाने तथा ऊपर से दूध पिलाने से अनिद्रा दूर हो जाती है। • बैंगन के पत्तों का रस 20 ग्राम, इतना ही सफेद प्याज का रस और शहद 15 ग्राम एकत्र मिलाकर रात्रि के समय सोने से 1 घंटा पूर्व देकर ऊपर से थोड़ा दूध पिला देने से गहरी नींद आती है तथा स्नायु मण्डल का तनाव कम हो जाता है। • सर्पगन्धा का चूर्ण अथवा खुरासानी अजवायन 1-1 ग्राम रात्रि-शयन के पहले दूध से ले लेने से निद्रा भली प्रकार आती है। • सौंफ 6 ग्राम, पानी 40 ग्राम लेकर क्वाथ करें। जब पानी 10 ग्राम शेष रह जाये तो उसमें 1 पाव गाय का दूध और 10 ग्राम गाय का घी मिलाकर पिलाने से अनिद्रा में लाभ होता है। • सर्पगन्धा तथा काली मिर्च दोनों सम मात्रा में लेकर अलग-अलग कूटपीसकर सुरक्षित रखें। इसे 250 म...

बाबलापन ,madness, उन्माद, पागलपन (Insanity)

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 ( बाबलापन ,madness, उन्माद, पागलपन (Insanity) रोग परिचय-इस रोग से रोगी अस्वाभाविक हरकतें करने लगता है। इसका कारण होता है मस्तिष्क की स्वाभाविक स्थिति में गड़बड़ी अथवा विकृति उत्पन्न हो जाना। इसमें रोगी की स्मरण शक्ति-लोप हो जाता है। रोगी अजीबो गरीब हरकतें करने लगता है। कभी रोता है, कभी गाता है, कभी हँसता है। रोगी का अपने मास्तष्क पर सही नियन्त्रण नहीं रह पाता है। इसी को उन्माद रोग अथवा पागलपन कहा जाता है। उपचार • बच और कुलिंजन का चूर्ण सम भाग एकत्र कर 4 से 12 रत्ती की मात्रा में दिन में 2 बार शहद से चटाने से उन्माद में लाभ होता है। • शंखपुष्पी-स्वरस को मृधु के साथ 20 दिन तक नित्य देने से सभी प्रकार के उन्माद में लाभ होता है। • सर्पगन्धा और जटामांसी का चूर्ण 4-4 ग्राम तथा शक्कर 2 ग्राम मिलाकर जल के साथ दिन में 3 बार कुछ दिन सेवन करने से उन्माद में लाभ होता है। • इमली 20 ग्राम को पानी के साथ सिल पर पीसकर रोगी को पिला देने से उन्माद में लाभ होता है। • नीबू के छाया-शुष्क छिलकों का चूर्ण 6 ग्राम रात्रि भर 400 ग्राम पानी में भिगोकर प्रातःकाल इसमें मिश्री मिलाकर पिलाने से उन्...

आमवात (सन्धिवात) (Rheumatism)जोड़ो का दर्द)

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(आमवात (सन्धिवात) (Rheumatism)जोड़ो का दर्द) रोग परिचय-इस रोग में एक बड़ी सन्धि में पीड़ा और सूजन होती है। कुछ दिन में वह तो ठीक हो जाती है परन्तु दूसरी सन्धि में पीड़ा हो जाती है। उपचार धतूरे के पत्तों पर एरन्ड तैल चुपड़कर जोड़ों की सूजन पर बाँधकर ऊपर से नमक की गरम पोटली से सेंक करने से विशेष लाभ होता है। • असगन्ध चूर्ण 3 ग्राम में समभाग घृत और 1 भाग शक्कर मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से सन्धिवात में लाभ होता है। करेला के छिलके को निगलकर शेष भाग को आग पर 10 मिनट रखकर भुर्ता बनालें और फिर उसमें थोड़ी शक्कर मिलाकर रोगी को सुहाता-सुहाता गरम सुबह-शाम प्रतिदिन 10 दिनों तक लगभग 100 ग्राम की मात्रा में खिलाने से आमवात में लाभ होता है। मैथी को पीसकर बनाया गया चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में पानी या तक्र के साथ सेवन करने से आमवात में शीघ्र लाभ होता है। अथवा मैथी और सौंठ का चूर्ण 4-4 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करने से आमवात नष्ट हो जाता है। • एरन्ड तैल प्रातःकाल कुछ दिनों तक खाली पेट लेने से आमवात समूल नष्ट हो जाता है। लहसुन का रस 6 ग्राम गोदुग्ध 50 ग्राम में...

आन्त्रिक ज्वर (मोतीझरा, या, टायफाइड)

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(आन्त्रिक ज्वर (मोतीझरा, या, टायफाइड) रोग परिचय - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे टायफाइड के नाम से जाना जाता है। इसमें पहले दिन साधारण ज्वर आता है। दूसरे दिन तीव्र ज्वर हो जाता है। गले, पीठ और छाती पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं। प्रायः 24 घंटों के अन्दर इन दानों में जल भर जाता है जिसके फलस्वरूप यह दाने मोती की भांति चमकने लगते हैं। इसीलिए इसे मोतीझरा के नाम से भी जाना जाता है। धीरे-धीरे यह दाने सूख जाते हैं जिससे ज्वर भी मन्द पड़ जाता है तथा दानों की पपड़ी उतर जाती है। उपचार बच्चों को मोती भस्म 15 से 30 मि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से चटाना अत्यन्त ही लाभप्रद है।• महासुदर्शन चूर्ण (भै. र.) बच्चों को 1 से 2 ग्राम तक गरम जल से प्रत्येक 4-6 घंटे पर देना लाभकारी है। • गिलोय का काढ़ा 1 तोला को आधा तोला शहद में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाना लाभकारी है। • अजमोद का चूर्ण 2 से 4 ग्राम तक शहद के साथ सुबह शाम चाटने से लाभ होता है। • मोथा, पित्त पापड़ा, मुलहठी, मुनक्का चारों को समभाग लेकर अष्टावशेष क्वाथ करें। इसे शहद डालकर पिलाने से ज्वर, दाह, भ्रम व वमन आदि नष्ट होते हैं। • अनबिंधे मोत...

मासिक धर्म,ब्लड पीरियड रक्त प्रदर (Menorrhoea)

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      मासिक धर्म,ब्लड पीरियड रक्त प्रदर (Menorrhoea) ( मासिक धर्म,ब्लड पीरियड   रक्त प्रदर (Menorrhoea) रोग परिचय-रक्तप्रदर मासिकधर्म (माहवारी) में आने वाले रक्त की अधिकता को कहा जाता है। इसमें रोगी स्वी की दुर्बलता, हीनता आदि विकार रहते हैं। इसे अति आर्तव (मासिकधर्म की अधिकता) के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में मासिकधर्म बहुत अधिक मात्रा में तथा कभी-कभी नियत दिनों से बहुत अधिक दिन तक आता रहता है।इस रोग का कारण गर्भाशय-शोध, गर्भाशय का झुक और टल जाना, गर्भाशय के घाव और अर्श, डिम्ब-ग्रन्थियों और डिम्ब प्रणालियों की शोथ, गर्भाशय की कमजोरी, प्रसव के बाद गर्भाशय का पूरी तरह से सिकुड़ कर अपनी वास्तविक दशा पर वापस न आना, गर्भाशय का कैन्सर, अत्यधिक मैथुन, गर्भपात, अधिक सन्तान उत्पन्न करने के बाद गर्भाशय का ढीला पड़ जाना, रसौली, चोट लग जाना या बच्चा कठिनाई से उत्पन्न होने के कारण गर्भाशय की शिराओं का फट जाना, रक्त संचार में गड़बड़ी करने वाले रोग (हाई ब्लड प्रेशर, हृदय गति का कम हो जाना, हृदय कपाटों के रोग, यकृत रोग इत्यादि), ग्लैन्डज और डिम्व ग्रन्थियों ...

गुर्दे की पथरी,पथरी अश्मरी (Stone)

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           (गुर्दे की पथरी,पथरी अश्मरी (Stone) रोग परिचय-इसे वृक्काश्मरी के नाम से भी जाना जाता है। गुर्दे की पथरी अत्यन्त कष्टदायक होती है। इसमें रोगी को भयंकर पीड़ा होती है। कभी- कभी तो रोगी को इतना तीन्न (अधिक) दर्द होता है कि रोगी की स्थिति बदहवास (पागलों की भांति) हो जाती है। यह चपटी, गोल, चिकनी, खुरदरी आदि सभी प्रकार की होती है। मैग्नेशियम फास्फेट से बनी पथरी का रंग सफेद अथवा पीलापन युक्त होता है। यह पथरी मुलायम और अण्डाकार होती है और मूत्राशय में बनाकरती है। इस पथरी में मूत्र का स्वभाव क्षारीय होता है, इसलिए इस पथरी के रोगी क्षारीय औषधि में न देकर अम्लीय (खट्टी) औषधि में देते हैं। पथरी का रोग कोई नया रोग नहीं है। प्राचीन चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थों में इस रोग के लक्षण विस्तारपूर्वक लिखे हुए मिलते है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में यह रोग अधिक पाया जाता है। शरीर में विकारों के कारण मूत्र में ठोस पदार्थ निकलने लग जाते हैं। यदि यह पदार्थ वृक्कों के गह्वर (मूत्र प्रणाली) अथवा मूत्राशय में रह जायें तो वह एकत्रित होकर एक दूसरे के साथ चिपक कर ...