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योनि-कपाट की खुजली (Valvari Praritis)yoni kapaat ki khujli

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(योनि-कपाट की खुजली (Valvari Praritis)yoni kapaat ki khujli) रोग परिचय-इस रोग में योनि के बाहर तीव्र खुजली होती है। खुजलाते- खुजलाते रोगिणी तंग आ जाती है और खुजलाने के बाद अत्यधिक जलन होती है तथा वहाँ की चर्म लाल हो जाती है। यह रोग रक्त विकार और अधिक गर्मी, रजोनिवृत्ति, गरम भोजन तथा उत्तेजक वस्तुओं का खानपान, योनि स्थान पर अत्यधिक खुश्की, प्रदर बन्द हो जाना, योनि द्वार शोथ, योनि की गन्दगी, श्वेत प्रदर, योनि के बालों (केशों में) जुऐं (लीखें) हो जाना, आमाशय और यकृत दोष आदि के कारण से हो जाता है। उपचार-कोई अच्छी कोल्ड क्रीम का इस्तेमाल करें। बालों को साफ रखें तथा बालों को साफ करके डी. डी. टी. पाउडर (यदि जुऐं हों तो) पानी में घोलकर लगायें । ओलिव आयल 30 ग्राम में 3 ग्राम कैम्फर मिलाकर खुजली वाले स्थान पर दिन में 2-3 बार लगायें । • सोप स्टोन (सैलखड़ी), मेहन्दी के पत्ते, लाल चन्दन प्रत्येक 5 ग्राम, काफूर ढाई ग्राम को पीसकर नारियल तैल 65 ग्राम में घोटकर खुजली के स्थान पर लगायें। रक्त को शुद्ध करने हेतु सारिवाद्यासव 2 तोला की मात्रा में बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त सेवन करें। शीघ्रपा...

(योनि-कपाट-शोथ,yoni kapaat shodh)

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(योनि-कपाट-शोथ,yoni kapaat shodh) रोग परिचय-योनिद्वार और उसके दोनों ओष्ठों में शोथ (सूजन) हो जाना ही योनि कपाट शोथ कहलाता है। यह रोग मैला-कुचैला रहने, हाजमा की खराबी, मधुमेह, योनि की बाहरी खुजली, श्वेत प्रदर या सुजाक, खून का पतला हो जाना, प्रसूत पीड़ा तथा प्रथम बार सम्भोग के कारण हो जाता है। इस रोग में दोनों ओर के ओष्ठों में सूजन आ. जाने के कारण दर्द होता है तथा रोगिणी को तीव्र ज्वर हो जाता है। आस-पास का चर्म लाल हो जाता है। चलने फिरने में कष्ट होता है। पीप की भाँति गाढ़ा स्राव भी आने लगता है तथा कई बार शोथ में पीप पड़कर फोड़ा भी बन जाता है।उपचार- कब्ज हो तो उसे दूर करें तथा योनि को नीम की उबाली हुई पत्तियों के पानी से धोकर स्वच्छ रखें। योनि में गन्दे हाथों तथा कपड़ों आदि का स्पर्श न होने दें। • सूखी मकोय, खशखश का डोडा, नीम के पत्ते प्रत्येक 1 तोला तथा फिटकरी 6 माशा सभी को 1 लीटर जल में उबालकर छानकर पीड़ित स्थल पर टकोर करें और इसी क्वाथ से उस स्थान को धोवें। कब्ज दूर करने हेतु त्रिफला चूर्ण या पंच सकार चूर्ण को रात्रि के समय गुनगुने जल से सेवन करें और यदि अजीर्ण रहता हो तो ...

प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj

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(प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj) रोग परिचय- प्रसवोपरान्त होने वाले ज्वर को प्रसूत ज्वर कहा जाता है। प्रसव की असावधानियों, से जब योनि, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा आदि में संक्रमण लग जाता है अथवा बच्चा पैदा होने के बाद प्रसूता स्वी को जब आँवल (पिलसेन्टा) का विषैला पदार्थ रक्त में पहुँच जाता है तभी यह ज्वर हो जाता है। बच्चा पैदा होने के 3 दिन बाद प्रसूता स्त्री को सर्दी लगकर कम्पन के साथ यह ज्वर चढ़ जाता है जिसका तापमान 102 से 105 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। नाड़ी अत्यधिक तेज (तीव्र), गर्भाशय के स्थान पर दर्द, जी मिचलाना, दस्त लगना, कै (उल्टी वमन) होना, पेट फूल जाना, स्तनों में दूध न उतरना, गर्भाशय से दूषित तरल निकलना बन्द हो जाना इत्यादि लक्षण प्रकट हो जाते हैं। रोग की अधिकता में रोगिणी बेहोशी में बड़बड़ाती रहती है। पेट अधिक फूल जाने,समय पर उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव से रोगिणी की मृत्यु हो सकती है। इस रोग का मुख्य कारण कीटाणुओं का संक्रमण है। अक्सर देखने में आया है कि दाई (नर्स) के गन्दे हाथों अथवा प्रसूता की गुदा से कीटाणु गर्भाशय में चले जाते हैं अथ...

(हाईपरएसथेजिया)पेनिस सेंसविटी,लिंग में उत्तेजना की अधिकता,apoorn kaam ichha

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(अपूर्ण कामेच्छा (हाईपरएसथेजिया)पेनिस सेंसविटी,लिंग में उत्तेजना की अधिकता,वीर्य का जल्दी निकलना) रोग परिचय-पुरुष के लिंग के चर्म में संज्ञावाही नाड़ियों (सेन्सरी नर्वज) और स्नायु तन्तुओं में एक असाधारण संज्ञा पैदा हो जाती है। जिसके फलस्वरूप लिंग में बहुत अधिक मात्रा में रक्तसंचार होने लग जाता है। इसी का परिणाम यह होता है कि शिश्न में बार-बार उत्तेजना और हर्षण (एरेक्शन) होने लगता है। फलस्वरूप मैथुन इच्छा बढ़ जाती है। कभी-कभी किसी-किसी रोगी के लिंग में इतनी संज्ञा बढ़ जाती है कि कपड़े की मामूली रगड़ अथवा हाथ से छुअन होने पर भी उत्तेजना पैदा हो जाती है और रोगी मैथुन का आनन्द प्राप्त करने लग जाता है। इस रोग से ग्रसित रोगी अपनी नासमझी के कारण इस रोग को अपनी काम शक्ति (Sex Power) और मर्दाना ताकत समझकर खुश होता रहता है और उसे होश तब आता है, जब चिड़िया पूरा खेत ही चुग जाती हैं। इस रोग का प्रधान कारण हर समय कामवासना सम्बन्धी विचारों में खोये रहना, सुन्दर स्त्रियों को निहारना, उनके नग्न चित्र अथवा ब्लू फिल्म देखना, अश्लील कहानियां, शेरो शायरी, उपन्यास आदि पढ़ना, कुसंगित, हस्तमैथुन क...

नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav)

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(नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav) रोग परिचय नासूर को नालवण, विवर तथा अंग्रेजी में फिस्यूला (Fistula) और साइनस (Sinus) के नामों से भी जाना जाता है। पुराना और गहरा घाव जिसके फटने के बाद कम से कम 40 दिन बीत चुके हों, नासूर कहलाता है। यह अंदर से गहरा ट्यूब की भांति तंग टेढ़ा और लम्बा होता है। किन्तु इसका मुँह छोटा होता है और उसके अन्दर चारों ओर कठोर और सफेद मांस बढ़ जाता है। इस सफेद मांस को दूषित मांस भी कहा जाता है। नासूर से सदा पीली गाढ़ी या पतली पीव बहती रहती है। कभी पीव बहनी बन्द हो जाती है और घाव का स्थान शोधयुक्त हो जाता है। किन्तु दोबारा बहने पर शोथ दूर हो जाता है। नासूर का गड्‌ढा (नलिका) कभी सीधा कभी टेढ़ा-मेड़ा होता है। तथा यह कभी-कभी पेशी या सिरा अथवा धमनी, (बन्धनी) या किसी अंग तक पहुँच जाता है। कभी-कभी एक नासूर के कई मुँह भी होते हैं। नासूरों के भी विभिन्न नाम होते हैं। जैसे गुदा के पास होने वाले नासूर को भगन्दर (फिस्यूला इन एनो) कहते है। यदि नासूर का मुँह केवल एक ओर होता है। तो उसको अंग्रेजी में साइनस 'कहते हैं, एवं जिस नासूर की नलिका के 2 मुँह...

धनुर्वात, धनुष्टंकार (Tetanus),टेटैनस

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(धनुर्वात, धनुष्टंकार (Tetanus),टेटैनस) रोग परिचय-इस रोग को धनुस्तम्भ, धनुर्वात, धनुष्टंकार, धनुपतानक, हनुस्तम्भ तथा आंग्ल भाषा में टेटैनस के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग का प्रधान कारण शलाकार कीटाणु होते हैं। जिसे आंग्ल भाषा में 'वैसिलस टिटेनैस' कहते हैं। इन कीटाणुओं का निवास स्थान गौ, अश्व इत्यादि पशुओं की अन्तडियां हैं। ये कीटाणु पशुओं की अंन्तडियों में रहते हुए भी उन्हें कुछ हानि नहीं पहुँचाते उनके मल द्वारा बाहर निकलते हैं। इसलिए ये अश्व-शालाओं (जहाँ पर लीद पड़ी रहती है) में विशेष रूप से होते हैं। मार्ग या खेत इत्यादि में भी जहाँ लीद पड़ी हो, वहाँ पर किसी मनुष्य को चोट लग जावे और उसमें किसी प्रकार से लीद में संसर्ग हो जावे तो उस क्षत में कीटाणु प्रविष्ट होकर रोग उत्पन्न कर देते हैं। इन कीटाणुओं की वृद्धि होने में 1 से 20 दिन तक का समय लग जाता है। नवजात शिशु को जंग लगे शस्व से नाल को काटने से भी यह रोग हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में इसे 'जमोगा' रोग के नाम से भी पुकारते हैं। यह एक संक्रामक रोग है। जो कीटाणुओं के प्रकोप से शरीर को धनुष की भाँति टेढ़ा कर ...

दमा, श्वांसरोग (ASTHAMA)

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              (दमा, श्वांसरोग (ASTHAMA) रोग परिचय-फेंफड़ों में वायु का संचार करने वाली अनेक नलिकाओं का जाल सा बिछा है, जो छोटी-छोटी माँसपेशियों से ढंकी रहती हैं। इन्हीं मांसपेशियों में जब आक्षेप, अकड़न, तनाव, सिकुड़ाव उत्पन्न होता है, तब रोगी को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। बस, यही श्वांस रोग है जो दमा, श्वांस की बीमारी, आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है। अपने देश में ग्रामीणांचलों में यह रोग बहुतायत में पाया जाता है। उपचार • धतूरे का 1 बीज 8 दिनों तक प्रातः काल पानी से निगल लें। दूसरे सप्ताह 2-2 बीज निगलें। इसी प्रकार प्रत्येक सप्ताह 1-1 बीज बढ़ाते हुए पाँचवे सप्ताह में 5-5 बीज प्रतिदिन निगलें। पुराने से पुराना दमा इस प्रयोग से नष्ट हो जायेगा। • करील की लकड़ी की भस्म 1 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन पान के साथ खाने से 15-20 दिन के प्रयोग से ही दमा रोग दूर हो जाता है। • सिन्धी भाषानुसार पटपेरू या काला नमक घास का शाक मात्र 3 दिन खाने से ही श्वास-कष्ट दूर हो जाता है। • आक के 250 ग्राम बन्द फूल लेकर आधा किलो गौदुग्ध में उबालें और छाया में ...

पार्श्वशूल कमर दर्द (Lumbago),कमर दर्द का इलाज

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(पार्श्वशूल कमर दर्द (Lumbago),कमर दर्द का इलाज) रोग परिचय प्रायः स्वी और पुरुष दोनों को यह दर्द होता है। वैसे अधिकांशतः यह वेदना स्त्रियों को ही होती है। कमर में एकाएक सख्त दर्द होने लग जाता है, जिसके कारण रोगी कमर को मोड़ने झुकाने या उठने-बैठने के अयोग्य हो जाता है। छींकने या थोड़ा सा हिलने पर ही रोगी को तड़पा देने वाला दर्द होने लगता है। अत्यधिक परिश्रम करने, झुककर भारी बोझ उठाने सर्दी लग जाने, सम्भोग की अधिकता एवं प्रदर विकार के कारण यह रोग हो जाता है। उपचार • शास्त्रीय औषधि योगराज गुग्गुल 2-2 गोलियाँ सुबह शाम महारास्नादि क्वाथ 15 से 30 मि.ली. समभाग जल में मिलाकर पिलायें तथा भोजन के साथ दिन व रात में 1 से 2 ग्राम की मात्रा में हिंग्वाष्टक चूर्ण गाय या भैंस के घी के साथ मिलाकर खिलायें । • सौंठ का चूर्ण 1 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 2 ग्राम, छिला हुआ लहसुन 500मि. ग्राम, मीठा सोड़ा 250 मि. ग्रा. असगन्ध चूर्ण 2 ग्राम, इन्हें मिलाकर 2 मात्रा बनाकर हल्के नाश्ते के उपरान्त सुबह शाम खिलायें । • असगन्ध चूर्ण 3 ग्राम, गर्म पानी या गर्म अर्क सीफ से दिन में 2-3 बार दें। वात, कफ और सम्भोग ...

नारी नपुंसकता (Inpotency of Females)सेक्स की इच्छा ना होना,सेक्स इच्छा की कमी

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(नारी नपुंसकता (Inpotency of Females)सेक्स की इच्छा ना होना,सेक्स इच्छा की कमी) रोग परिचय-पुरुषों की भाँति नारियाँ भी नपुंसक होती हैं। इस रोग का बन्धत्व (बाँझपन) से कोई भी सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि नपुंसकता का अर्थ होता है- 'सम्भोग क्षमता का अभाव' तथा इस रोग का सीधा अर्थ हुआ वी में काम वासना का न होना। जब कि बाँझपन का अर्थ होता है, 'सन्तानोत्पादक क्षमता का अभाव' इस रोग से ग्रसित वी को ठण्डी औरत भी कहा जाता है। क्योंकियह कामेच्छा का अनुभव ही नहीं करती है और नहीं उसे कामोत्तेजना आती है। आलिंगन, चुम्बन आदि कामुक प्रवृत्तियों तथा सम्भोग में उसे कोई आनन्द नहीं आता है। ऐसी वी के अंग सूख जाते हैं तथा मस्ती एवं जोश उत्पन्न ही नहीं होता है। इस रोग के कारण शारीरिक अथवा मानसिक दोनों ही हो सकते हैं। शारीरिक कारणों में नारी गुप्तांग की बनावट में विविध प्रकार की असंगतियाँ हो सकती हैं। उसके गुप्तांग के कपाटों के दोनों सिरे आपस में अड़े रहें तो योनिपथ के संकीर्ण व अवरुद्ध होने से शिश्न प्रवेश में बाधा होना, जरायु में अर्बुद होना तथा बस्ति की अस्थि विकृत रहने की अवस्था में भी...

मधुमेह (Diabetes)सुगर

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              (मधुमेह (Diabetes)सुगर  रोग परिचय-इस रोग की आजकल बहुतायत हो गई है। इस रोग में शर्करा (Sugar) बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के मूत्र के साथ बाहर निकलती रहती है। इस रोग में शक्कर पच नहीं पाती है तथा रोगी को मूत्र अधिक आता है। बार-बार मूत्र त्याग के कारण प्यास भी अधिक लगती है, मुख सूखता रहता है, रोगी कमजोर व कृषकाय हो जाता है। उपचार • जामुन की गुठली का चूर्ण सौंठ, 50-50 ग्राम तथा गुड़मार बूटी 100 ग्राम लें। सभी को कूटपीसकर कपड़छन कर लें। फिर ग्वारपाठे के रस में घोटकर झड़बेर (जंगली बेर) के समान गोलियाँ बना लें। ये 1-1 गोली दिन में 3 बार शहद के साथ प्रयोग करायें। एक माह तक प्रयोग जारी रखें । मोटः- इस योग के प्रारम्भ करने से पूर्व 3 दिन का उपवास करें। इस रोग में शक्कर अथवा शक्कर से बनी मिठाइयों, पकवान व पेय निषेध है। रोगी कम खाये। हरी साग-सब्जियों का प्रयोग अधिक करें। अल्प मात्रा में फल ले सकते हैं। दिन में सोयें, स्वच्छ पानी में तैरनालाभप्रद है, कम बोलें, ब्यायाम (शारीरिक शक्तिनुसार) अवश्य करें, यदि कर सकें तो नित्य 30 ग्रा...

वायुगोला, योषापस्मार (Hysteria)हिस्टीरिया और मिर्गी के दोरों का अन्तर)

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(वायुगोला, योषापस्मार (Hysteria)हिस्टीरिया और मिर्गी के दोरों का अन्तर) रोग परिचय-यह स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है। बल्कि यह शरीर में जड़ जमाये हुए अनेक दूसरे रोगों का एक लक्षण मात्र है। यह मृगी रोग भी नहीं है। किन्तु फिर भी मृगी (अपस्मार) की ही भाँति इसके दौरे पड़ा करते हैं। यह रोग प्रायः स्वियों को ही हुआ करता है, वैसे पुरुष भी इस रोग के शिकार हो सकते हैं। स्वियों को यह रोग गर्भाशय की किसी विकृति के कारण हुआ करता है। यौन विकृति भी इस रोग का कारण हो सकती है। अन्य कारणों में प्रदर विकार, बिलासी जीवन, अत्यधिक काम-वासना, पुरानी कब्ज, अधिक आयु तक विवाह का न होना, चिन्ता, असफलता, भय, क्रोध, अजीर्ण, पेट, फूलना, अश्लील उपन्यास कहानियाँ पढ़ना या चलचित्र देखना भी है। वास्तव में यह एक नर्वस रोग है, जो नर्वस सिस्टम (स्नायु संस्थान) के दोषों से होता है। यह प्रायः 12 से 50 वर्ष आयु की स्वियों को हुआ करता है। इस रोग में स्त्री का गला घुटता प्रतीत होता है और ऐसा आभास होता है कि गोला उदर से उठकर गले में फँस गया हो इसके बाद स्वो को दौरा पड़ जाता है। हाथ पैर ऐंठने लग जाते हैं और स्वी ब...

सफेद दाग,शरीर पर सफ़ेद घबे(Leucoderma)

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    (सफेद दाग,शरीर पर सफ़ेद घबे(Leucoderma) रोग. परिचय-इस रोग को फुल बहरी, श्वेत कुष्ठ, श्वित्र इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। शरीर के विभिन्न भागों चेहरा, होंठ, टाँग, हाथों पर पहले छोटे-छोटे सफेद दाग पड़ जाते हैं फिर धीरे-धीरे वे फैल जाते हैं। यह छूत (संक्रामक) का रोग नहीं होता है। इस रोग से ग्रस्त रोगी की औलाद इस रोग से ग्रसित नहीं होती है। इस सचाई से अनभिज्ञ लोग रोगी से घृणा करने लगते हैं। उपचार- सफेद दागों वाले चर्म (खाल) को चुटकी से ऊपर उठाकर (माँस से प्रथक करके) उसमें सुई चुभोकर देखें। यदि उसमें रक्त निकल आये तब चिकित्सायोग्य समझें और यदि पानी जैसा तरल निकले तो "असाध्य" समझें यदि दाग छोटे और कम हो तो वह चिकित्सा से शर्तिया ठीक हो जाते हैं • बाबची के बीज 200 ग्राम, हरताल 48 ग्राम, मैनसिल व चीता का जड़ 6-6 ग्राम लें। इन्हें गौमूत्र में पीसकर सफेद दागों पर दिन में 3 बार लेप करें। • ब्राह्मी पंचाग, लहसुन, सेंन्धानमक और चीता की जड़ प्रत्येक 12-12 ग्राम लें। इनको गौमूत्र के साथ पीसकर सफेद दागों पर लेप करें।re • अपामार्ग भस्म 12 ग्राम तथा मैनसिल 12 ग्राम मिलाकर ज...

सूखा रोग(MARASMUS)सुखन्डी,सूखिया मसान,बालशोष,अस्थिक्षीणता,अस्थिदुर्बलता

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(सूखा रोग (MARASMUS)सुखन्डी, सूखिया मसान, बालशोष, अस्थिक्षीणता, अस्थिदुर्बलता, कैल्सियम की कमी अथवा रिकेट्स) रोग परिचय- इस रोग से ग्रसित हो जाने पर बच्चा धीरे-धीरे सूखता चला जाता है। खाया पीया अंग नहीं लगता है। इस रोग को सुखन्डी, सूखिया मसान, बालशोष, अस्थिक्षीणता, अस्थिदुर्बलता, कैल्सियम की कमी अथवा रिकेट्स इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। यह रोग आँतों की क्षय से होता है। इसके अतिरिक्त माँ बाप के गुप्त रोग,तीव्र ज्वर, आँतों के कीड़े इत्यादि के कारण भी सूखा रोग हो जाता है। सूखा रोग से ग्रस्त बच्चे का चेहरा डरावना हो जाता है। उसकी आँखें भैंस कर निस्तेज हो जाती है। उसको बदबूदार हरे पीले दस्त आने लगते हैं। शरीर पर झुर्रियाँ सी दिखाई देती हैं। बच्चा अस्वस्थ, सुस्त, बेजान रहता है, उसको गहरी नींद नहीं आती है तथा खाया-पीया ठीक से नहीं पचता है। कान की लौर (Earlobe) जिसमें छिद्र करवाकर स्त्रियां बालियों पहनती है, को दबाने पर यदि बच्चा नहीं रोये, तो निश्चत समझलें कि बच्चा सूखा रोग से ग्रस्त हो चुका है। सूखा-ग्रस्त बच्चे के शरीर की स्वभाविक गर्मी नहीं होती बल्कि उसके शरीर का तापमान गि...

कर्णरोग (Ear disease),कान के रोग,कान का दर्द

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(कर्णरोग (Ear disease),कान के रोग,कान का दर्द) उपचार • आक के सुपक्व पीले पत्तों पर घृत चुपड़कर आग पर रख दें। जब वे झुलसने लगें, तभी झटपट उठाकर निचोड़ लें और इस रस को थोड़ा गरम करके कानों में डालें । तुरन्त ही तीव्र वेदनायुक्त कर्णशूल नष्ट हो जायेगा । • कपास के बोन्डा को कूट पीसकर तिल या सरसों के तेल में पकाकर तेल सिद्ध करें, तत्पश्चात छानकर सुरक्षित रख लें। इस तेल की 4-5 बूँदें दिन में 2 बार कान में डालते रहने से कर्णपूय (कानभेपीव) कर्णखाव (कान बहना) दोनों रोगों में में अवश्य लाभ हो जाता है। • अफीम 1 ग्राम, मुसब्बर 6 ग्राम, मसूर की दाल 10 ग्राम सभी को एकत्र कर धतूरे के रस में कुछ गरम करके कान के चारों ओर लेप करने से कर्णमूल- शोथ में लाभ होता है। • अहिफेनासव और गिलेसरीन समभाग एकत्र मिलाकर 5-5 बूँदें कान में टपकाने या अफीम और सज्जी खार को शराब में मिलाकर कुछ बूँदें कान में डालने से तथा रात्रि के समय सेक कर ऊपर गरम कपड़ा लपेट कर (शीतल जल तथा शीतल वायु न लगने पाये) सो जाने से शीघ्र ही कर्णशूल (कान दर्द) नष्ट हो जाता है।• अनार के ताजे पत्तों को कुचलकर निकाला हुआ रस 100 ग्राम, गौ...