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गर्भाशय का फूल जाना,garbh ka foolna

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(गर्भाशय का फूल जाना,garbh ka foolna) रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर गैस (वायु, हवा) भर जात है अथवा गैस उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण गर्भाशय फूल जाता है। पेडू के स्थान पर उभार और तनाव प्रतीत होता है। इस उभार पर हाथ की थपकी मारने से ढोल जैसी आवाज आती है। रोगिणी के स्तनों में दर्द होता है। वायु के फिरने से पेडू, जाँघ के जोड़ और उदर में खिंचाव के साथ तीव्र वेदना होती है। सम्भोग के समय गर्भाशय से वायु निकलने की आवाज आती है। सामने की ओर झुकने पर तथा पाखाना के समय जोर लगाने पर अथवा खाँसने पर गर्भाशय से बायु निकला करती है। वायु की अधिकता के कारण मूत्र कम मात्रा में तथा बार-बार आया करता है। मल त्याग, कठिनाई और मरोड़ के साथ होता है। जब वायु से सारा पेट फूल जाता है, तब यह जलोदर के समान दिखलाई देने लगता है। याद रखें कि जलोदर रोग होने पर पहले पेट फूलता है जो धीरे-धीरे पेडू तक पहुँचता है और इस स्थिति के ठीक विपरीत गर्भाशय फूल जाने पर अफारा पहले पेडू से प्रारम्भ होकर पेट की ओर बढ़ता है। गर्भ होने पर पेट को ठोकने पर ठोस आवाज आती है और गर्भाशय के अफारा (फूल जाने में) ढोल जैसी आवाज...

गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna

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(गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna) रोग परिचय-यह रोग स्त्रियों को अति दुःखदायी होता है। यदि एकाएक गर्भाशय पलट या फिसल जाये तो अत्यधिक मात्रा में रक्तस्त्राव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप रोगिणी के हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं, शरीर का रंग पीला पड़ जाता है तथा बेहोशी हो जाती है। माथे पर ठण्डा पसीना आता है, पेडू से कोई बीज निकलती हुई महसूस होती है और कई बार तीव्र ऐंठन भी होती है। पेडू, गुदा, कमर, जाँघों और पिन्डलियों में तीव्र दर्द होता है। अक्सर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है। कभी-कभी मल-मूत्र रुक जाता है। यदि अंगुली प्रवेश करने पर गर्भाशय के मुख के खुले भाग से गर्भाशय फँसा हुआ हो तो यह समझ लेना चाहिए कि गर्भाशय पूर्णरूपेण उलट चुका है। यदि गर्भाशय की गर्दन बाहर आ जाए तो उसका छेद भी दिखलाई देता है। गर्भाशय बाहर आ जाने पर आंवल बाहर आ जाने का भी सन्देह हो सकता है। इसलिए यदि निकली हुई वस्तु छोटी प्रतीत हो और रक्त वाहिनियाँ दिखलायी दें तो पक्के तौर पर आंवल (कमल) ही समझें। यदि इसके विपरीत दशा हो तो उसको गर्भाशय समझें। गर्भाशय उलट जाने के मुख्यतः 4 प्रकार होते हैं। (अ) प...

गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna

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(गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna) रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर पतला स्राव एकत्रित हो जाता है। आरम्भ में पेडू के ऊपर उभार प्रतीत होता है और अन्त में जब तरल काफी अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है तब रोगिणी का पेट जलोदर रोग की भाँति हो जाता है। पेट के अन्दर पानी की लहरें प्रतीत होती है। पीड़ित स्वी कमजोर हो जाती है, उसकी सांस रुकने लगती है तथा हाजमा खराब हो जाता है। पेट में वायु (गैस) चलने लगती है। मासिक बन्द हो जाता है और गर्भ ठहर जाने जैसा सन्देह होने लगता है। जलोदर रोग में पेट, यकृत् और नाभि के आस-पास का भाग बढ़ता है जबकि इस रोग में पेट पेडू के स्थान से बढ़ना प्रारम्भ होता है। जलोदर रोग के विपरीत इस रोग में मूत्र भी अधिक मात्रा में आता है। यह रोग मासिक बन्द हो जाने, शरीर में कफ की अधिकता, यकृत् विकार तथा गर्भाशय और वृक्कों की कमजोरी इत्यादि के कारण हुआ करता है। उपचार डाक्टर 'ट्रोकार यन्त्र' द्वारा गर्भाशय का पानी निकाल लेते हैं। पुनर्नवारिष्ट का सेवन लाभप्रद है। इस बूटी का रस प्रयोग करना भी लाभप्रद है। • अजमोद, सोये के बीज, बायविडंग, ख...

गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli

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(गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli) रोग परिचय-वैसे शरीर के प्रत्येक भाग में रसूली हो सकती है अ रसूलियाँ भी विभिन्न प्रकार की होती हैं। गर्भाशय की रसूलियां तन्तुओं (रेशों) युक्त हुआ करती हैं। कई में चर्बी जैसा पदार्थ और कई में अण्डे की सफेदी जैसा लेसदार स्राव होता है। कई रसूलियों में पीले रंग का गाढ़ा स्त्राव होता है। कई रसूलियाँ लाल रंग की होती है जिसमें पेशाब जैसा खट्टा पदार्थ होता है। जिनकी संरचना स्पंज जैसी होती है और बहुत छोटी होती है, उनको डाक्टरी में पोलीवी (Polypi) कहा जाता है। इनसे रक्त भी आ सकता है। यह रोग रक्त के गाढ़ा हो जाने, उपदंश-दोष, कफ-विकार आदि कारणों से हो जाया करता है। इसके कारण बांझपन और गर्भपात का रोग भी हो जाता है। इस रोग का साधारण लक्षण मासिक बन्द हो जांना या अनियमित रूप से आना है। इस रोग के कारण स्वी को रक्त अल्पता और श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) का रोग हो जाता है। ल्यूकोरिया स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि विभिन्न रोगों के फलस्वरूप हो जाया करता है। अतः ल्यूकोरिया की उचित चिकित्सा भी यही है कि रोग के मूल कारण को ही दूर किया जाये। जो. वैद्य ल्यूको...

गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh

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(गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh) रोग परिचय इस रोग में गर्भाशय के मुख पर छोटे-छोटे गोल मस्से हो जाते हैं। ये मस्से बढ़कर शहतूत की भाँति लटक जाते हैं। यह दशा 'पोलीपस ऑफ यूट्स' कहलाती है। इसमें गर्भाशय के मुख में जलन, खुजली, दबाव और दर्द होता है तथा रक्त आने लगता है। रक्त आने के पश्चात सफेद, लाल या काला सा पानी आने लगता है। उसके बाद कष्ट कम हो जाते हैं किन्तु मासिक धर्म के समय से कष्ट बढ़ जाते है। यह रोग गर्भाशय के मुँह की भीतरी झिल्ली में खराश रहने से वहाँ के रक्त वाहिनियों में रक्त एकत्रित हो जाने से होता है जिसके फलस्वरूप वह फूल जाता है। इस खराश का कारण मासिक बन्द हो जाना अथवा रुक आना होता है। गर्भाशय की शोथ और डिम्बाशय की शोथ तथा कफ के दोषों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है। ऐलोपैथी के चिकित्सक आप्रेशन करके इन मस्सों को काट देते हैं। उपचार- शुद्ध गूगल, नीम के बीज की गिरी, बकायन (महानिम्ब) के बीजोंकी गिरी, रसौत, चाकसू (बिना छिलका) काली मिर्च और शुद्ध गन्धक सभी औषधियों को सममात्रा में लें। उन्हें कूट-पीसकर कुकरोंदा के रस में जंगली बेर के ...

गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh

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(गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh) रोग परिचय-यह रोग मासिकधर्म बन्द हो जाने अथवा कम आने, अत्यधिक सम्भोग करने, चोट लग जाने, प्रदर काल में सर्दी लग जाने या उण्डे पानी से नहाने-धोने अथवा ठण्डी वस्तुओं का सेवन करने, गर्भाशय में तेज औषधियों के स्थानीय प्रयोग, सूजाक, उपदंश तथा प्रसवकाल में असावधानियों के कारण हो जाता है। आधुनिक चिकित्साशास्खी इस रोग का कारण शोथ उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं को मानते हैं। इस रोग में (नई शोथ में) पेडू में बहुत तेज दर्द और जलन होती है, सर्दी लगकर ज्वर हो जाता है। बार-बार मल-मूत्र का त्याग होता है। प्यास लगती है, जी मिचलाता है, कमर और सीवन में दर्द होता है। यदि गर्भाशय के पिछले भाग में शोथ अधिक हो तो पाखाना करते समय कष्ट होता है। दो-चार दिनों के बाद पीले रंग का लेसयुक्त पानी आना आरम्भ हो जाता है। फिर 8-10 दिन के बाद लक्षणों में कमी आ जाती है और उचित उपचार से रोगिणी ठीक हो जाती है। किन्तु उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में यह रोग पुराना हो जाता है। गर्भाशय की पुरानी शोथ में ज्वर नहीं होता है, किन्तु पेडू पर बोझ प्रतीत होता है, हल्का-हल्का सिर दर्द ...

स्तनों में दूध रुक जाना या जम जाना,Retention or Freezing of Milk,satno mein doodh ka jamna

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(स्तनों में दूध रुक जाना या जम जाना,Retention or Freezing of Milk,satno mein doodh ka jamna) रोग परिचय-यह रोग स्वी के स्तनों की दूध की नलियों या रक्त वाहिनियों के सुकड़ जाने या उनमें रसूलियां हो जाने, दूध की नलियों में गाढ़ी चिपकने वाली कफ रुक जाने सुद्दा उत्पन्न हो जाने, दूध के बहुत अधिक गाढ़ा हो जाने, स्तनों में बहुत अधिक मांस उत्पन्न होकर स्तनों के अन्दर रक्त वाहिनियों के दब जाने, दूध अधिक मात्रा में उत्पन्न होने और अधिकता के फलस्वरूप नलियों में फैसकर रुक जाने, शिशु के दुग्धपान न करने के कारण स्तनों में अधिक मात्रा में दुग्ध के एकत्र हो जाने तथा अत्यधिक गर्मी के कारण दूध का पानी सूख जाने अथवा अत्यधिक सर्दी के कारण दूध के जम जाने के कारण हो जाया करती है। इस रोग में दूध आवश्यकता से अधिक गाढ़ा होकर स्तनों में रुक जाता है और बाहर नहीं निकलता है। यदि काफी समय तक स्वी के स्तनों में दूध रुका रहे तो वह गन्दा और दूषित होकर संक्रमण उत्पन्न करके ज्वर उत्पन्न कर देता है, स्त्री के स्तन अकड़ जाते हैं तथा अत्यधिक दर्द होता है। कई बार तो पीड़ित स्वी को इन कष्टों के कारण सन्निपात (सरसाम...

स्तनों में दूध घट जाना,satno mein doodh ka kam hona

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(स्तनों में दूध घट जाना,satno mein doodh ka kam hona) रोग परिचय-इस रोग में स्वी के स्तनों में इतना कम दूध उत्पन्न होताहै कि उसके शिशु का पेट भी नहीं भरता है, शिशु भूख से बेहाल होकर रोता रहता है तथा रोगिणी के स्तन मुरझा जाते हैं। इस रोग का कारण रक्त कम उत्पन्न होना, रक्त विकार, मासिक धर्म की अधिकता, शरीर से किसी भी रूप से रक्त का अधिक निकल जाना, क्रोध, भय, चिन्ता, शिशु से स्वी का प्यार न करना तथा स्तनों में रक्त संचार की कमी इत्यादि से स्वी के स्तनों में दूध घट जाता है। उपचार-स्तनों पर कैस्टर ऑयल (Castor Oil) की मालिश करें। एलारसिन कम्पनी की टेबलेट लेप्टाडीन (Leptaden) 3 से 4 टिकिया प्रतिदिन गाय या बकरी के दूध से खायें । शक्ति-वर्धक योगों व खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करें। दूध, घी, मक्खन, मलाई, गेहूँ का दलिया, मूंगफली, बिनौले की खीर इत्यादि अधिक खायें। शतावरी ताजा अधिक मात्रा में खायें तथा शिशु को रात्रि में दूग्धपान की आदत न डालें।

स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna

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(स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna) रोग परिचय- इस रोग में स्त्री के स्तनों में दूध इतनी अधिकता से आने लगता है कि शिशु के दुग्धपानीपरान्त स्वयं बहने लगता है जिसके कारण स्वी के स्तनों में बहुत अधिक तनाव उत्पन्न होकर पीड़ा और कष्ट होने लगता है। प्रायः ऐसा भी देखने में आया है कि बिना गर्भ हुए स्तनों में दूध उत्पन्न होने लग जाता है। किन्तु ऐसा उसी समय हो सकता है जबकि मासिक धर्म काफी समय से बन्द हो। इस रोग का कारण रक्त और दूध उत्पन्न करने वाले भोजनों का अत्यधिक सेवन, शिशु का दुग्धपान छुड़वा देना और रक्त का पतला हो जाना, स्तनों को रोकने वाली शक्ति का कमजोर हो जाना इत्यादि है। प्रायः नर्वस स्वभाव की स्त्रियाँ जो अपने बच्चों को अत्यधिक प्रेम करती हैं उनको भी उनके स्तनों में भी बहुत अधिक मात्रा में दूध आने लगता है। उपचार- रोगिणी कब्ज न रहने दें और यदि आवश्यक हो तो हल्का-जुलाब लेकर पेट साफ करें । • चम्पा के फूल स्तनों पर बाँधते रहने से अधिक दूध उत्पन्न होना, कम हो जाता है। • तुलसी के बीज, सम्भालू के बीज 1-1 तोला, भांग के बीज 6 माशा तथा इतनी ही मात्रा ...

स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav

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(स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav) रोग परिचय-यह रोग चूंचियों को साफ न करने, दुग्धपान में असावधानी, शिशु द्वारा दुग्धपान करते समय दाँत से काट लेना, रक्तदोष तथा दुग्धपान करने वाले शिशु के मुख पाक हो जाने के कारण स्त्री की चूंची में घाव हो जाते हैं। जिनमें प्रायः जलन होती है, शिशु को दुग्धपान कराने में कष्ट होता है, घाव में अधिक दर्द और कष्ट होने पर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है।उपचार- घाव को नीम के पत्तों के क्वाथ से धोकर साफ करें और सेलखड़ी, मेंहदी के सूखे पत्ते समभाग पीसकर नारियल के तैल में मिलाकर लगायें। रोग अधिक होने पर रक्तशोधक योगों का सेवन करें। जिंक आक्साइड को नारियल के तैल में मिलाकर लगायें या बोरो गिलेसरीन लगायें। शीघ्रपाची व सात्विक भोजन खायें ।

स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona

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(स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona) रोग परिचय-यह रोग शरीर में कफ की अधिकता, स्तनों का बहुत अधिक हिलना-डुलना, स्तनों को बार-बार और अधिक खींचना, अत्यधिक सन्तान होना, स्वी का बॉडी न पीहनना, शिशु को अधिक समय तक दूध पिलाना इत्यादि कारणों से स्वी के स्तन युवावस्था में ही ढीले होकर लटक जाते हैं। उपचार सफेद रत्तियां, कसीस, चुनिया गोंद 1-1 तोला मिलाकर स्तनों पर लेप करके उपलों की आग से सेंक करें। मात्र 8-10 दिन के इस प्रयोग से स्तन कठोर हो जाते हैं। फिटकरी, काफूर 1-1 तोला अनार का छिलका 3 तोला को पीस-छानकर आवश्यकतानुसार स्तनों पर पतला-पतला लेप करना भी लाभप्रद है। • कच्चे आम (जो चने के आकार के हों) बबूल की बिल्कुल कच्ची फलियाँ, इमली के बीजों की गिरी, अनार का छिलका लें। सभी को छाया में सुखाकर बारीक पीसलें। फिर इसमें डेढ़ तोला घी तथा 5 तोला खांड मिलाकर हलवा बना लें और 40 दिनों तक प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इसके सेवन से ढीले स्तन कठोर हो जाते हैं तथा गर्भाशय से पानी आना भी बन्द हो जाता है। गर्भाशय और स्तन जवान स्त्रियों की भांति हो जाते हैं। रोगिणी हर समय बाड़ी पहने तथा ...

स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna)

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(स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna) रोग परिचय- इस रोग में स्वी के स्तन साधारणावस्था से भी छोटे हो जाते हैं उनका उभार ही नहीं रहता है। दूध भी बहुत ही कम मात्रा में उत्पन्न होता है। स्वी का सौन्दर्य तो नष्ट होता ही है साथ ही ऐसी स्त्री से उसक्ना पति तथा अन्य स्वियों भी घृणा सी करती रहती है। इस रोग का कारण- शारीरिक कमजोरी, दुबलापन, रक्त विकार, स्तनों के पालन-पोषण हेतु रक्त पूर्ण मात्रा में न पहुँचना, रक्तवाहिका रगों (नसों) में सुट्टे पड़ जाना, हारमोन्स के विकार तथा स्वी की भीतरी जननेन्द्रिय में जन्म से खराबी होना इत्यादि है उपचार- जैतून का तैल विशुद्ध तैल हल्के हाथों से धीरे-धीरे मालिश करने से स्तन की मांसपेशियां पुष्ट हो जाती है तथा वहाँ का रक्त संचार सुचारू रूप से होकर स्नायु बल होकर स्तन बढ़ जाते हैं तथा सुदृढ़ होते हैं। हमदर्द कम्पनी की यूनानी दवा "जमादे शबाब" की मालिश भी अत्यन्त लाभप्रद है। • केंचुए साफ किए हुए 1 तोला, सूखी जोंक 6 माशा दोनों को पीसकरसरसों के तैल में मिलाकर मालिश कर सेंक करना भी लाभकारी है। असगन्ध नागैरी, काली मिर्च,...

स्त्री में कामवासना की अधिकता,औरत की सेक्स संतुस्टी ना होना,aurat mein kamvasna kaathik hona

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(स्त्री में कामवासना की अधिकता,औरत की सेक्स संतुस्टी ना होना) रोग परिचय- इस रोग से ग्रसित स्वियों को संभोग (प्रसंग) करने की इच्छाबहुत अधिक हुआ करती है। यदि वे बार बार सम्भोग सम्पन्न नहीं कर पाती है तो इतनी अधिक कामातुर हो जाती हैं कि सामाजिक मान मर्यादा का विचार त्याग करके अपने समीप के पुरुषों को ही यहाँ तक कि किसी सगे सम्बन्धियों को सम्भोग करने हेतु उकसाती रहती है। ऐसी कामातुर स्वी पागलों की तरह गप्पें मारती है। अपने यौवन को एवं शरीर को विचित्र तरीकों से प्रदर्शित करती हुई ऐंठन और अंगड़ाई के साथ अकड़ती हुई मुद्राएं करती रहती हैं। वह हर किसी के सामने अपना प्रयण-निवेदन प्रस्तुत कर देती है। उसे बार- बार सम्भोग करने के बाद भी कभी सन्तुष्टि नही होती है। इस रोग का प्रधान कारण बचपन की कुसंगतियां, वासनामयी गुन्दी गन्दी बातें सुनना, यौवन के प्रारम्भ में ही हस्तमैथुन, पशुमैथुन इत्यादि लतों का शिकार हो जाना, गन्दे उपन्यास, नंगे अथवा अश्लील चित्र देखना इत्यादि होते हैं। ऐसी रोगिणी जब किसी से सम्भोग हेतु प्रयण निवेदन करती है और उसकी पुरुष द्वारा स्वीकृति नहीं मिलती है तब वह झुंझला कर, ...

गर्भाशय और योनि का बाहर निकल आना,prolapse of the uterus and vagina,garbhaasya aur yoni ka bhahar nikal ana

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(गर्भाशय और योनि का बाहर निकल आना,prolapse of the uterus and vagina,garbhaasya aur yoni ka bhahar nikal ana) रोग परिचय-इस रोग को अंग्रेजी में प्रोलेप्सस ऑफ बेजाइना कहते है। इस रोग में योनि की भीतरी श्लैष्मिक कला ढीली होकर अपने स्थान से अलग हो जाती है और योनि की छेद का कुछ भाग बाहर निकल आता है। योनि का बाहर निकला भाग नर्म और गोल होता है। योनि में अंगुली डालकर देखने से गर्भाशय का मुँह अपने स्थान पर होता है, इसके विपरीत गर्भाशय बाहर आ जाने पर किसी दुर्घटना के फलस्वरूप योनि की सम्पूर्ण रचना बाहर आ जाती है। जब योनि की म्यूकस मेम्बरीन अपने स्थान से बाहर आ जाती है तब स्वी की योनि के अन्दर खिंचाव जैसा दर्द महसूस होता है और योनि में डांट की भांति नरमसी गोल वस्तु फैली हुई दिखाई देती है जिसका रंग गुलाबी या गहरा लाल हो जाता है। रोगिणी को चलने-फिरने तथा मल-मूत्र त्यागने में कष्ट होता है किन्तु कुछ दिनों के पश्चात् इन कष्टों में कमी आ जाती है। इसके अतिरिक्त इस रोग के फलस्वरूप रोगिणी के चूतड़ों, जाँघों और पिन्डलियों में भी सख्त दर्द होता है। उपचार-शक्तिवर्धक योगों तथा दैनिक जीवन में शक्ति...

योनि का ढीला हो जाना (Paralysis of Vagina)yoni ka dheela hona

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(योनि का ढीला हो जाना (Paralysis of Vagina)yoni ka dheela hona) रोग परिचय-योनि की मांसपेशियों के तन्तु ढीले हो जाने पर उसके फैलने और सिकुड़ने की शक्ति कम अथवा बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है। जिसके फलस्वरूप योनि की नाली फैल जाती है और सम्भोग क्रिया करते समय पति- पत्नी को प्राकृतिक आनन्द की प्राप्ति नहीं होती है। रोग अधिक बढ़ जाने पर योनि बाहर निकल आने का रोग हो जाता है। यह रोग अधिक सम्भोग, सन्तान की अधिकता, शारीरिक कमजोरी, बुढ़ापा, जल्दी-जल्दी गर्भ ठहर जाना तथा योनि से अत्यधिक मात्रा में स्त्राव आते रहने के कारण हो जाता है।उपचार- शारीरिक दुर्बलता के कारण यदि रोग उत्पन्न हुआ हो तो शक्तिवर्धक योग व खान-पान से यह रोग ठीक हो जाता है। यदि अत्यधिक सम्भोग के कारण रोग हो तो सम्भोग कुछ काल तक बिल्कुल ही बन्द कर दें। • सुपारी पाक 6 से 9 माशा सुबह शाम दूध के साथ खिलायें तथा सायंकाल को बंगभस्म 1 रत्ती की मात्रा में मोचरस (सेम्बल वृक्ष की गोद) एक माशा मधु में खिलाकर खिलायें तथा हरे माजू का फल, धाय के फूल, फिटकरी खील की हुई) एवं गुलाब के फूल- बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर किसी पतले ...

योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना (Atresia of Vagina or Vaginismus)yoni ka tang hona,yoni ka band hona

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(योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना (Atresia of Vagina or Vaginismus)yoni ka tang hona,yoni ka band hona) रोग परिचय-यदि योनि बिल्कुल ही बन्द हो अथवा इतनी अधिक संकुचित हो कि सम्भोग (मैथुन) क्रिया न हो सके तो इसी रोग को-एटेरसेया ऑफ वैजाइना(योनि का तंग या बिल्कुल बन्द हो जाना) कहा जाता है। यदि मैथुन-क्रिया में कष्ट और कठिनाई हो तो उसे 'वैजाइनिसमस' कहा जाता है। इसके निम्न दो कारण होते हैं- 1. जन्म से योनि का बन्द होना, 2. योनि संकोच होना। योनि संकोन किसी रोग के बाद हो जाया करती है। ऐसी अवस्था में पहले स्वी विल्कुल स्वस्थ रहती है। प्रायः योनि पर लगी श्लैष्मिक कला शोधयुक्त होकर आपस में चिपक जाती है जिसके फलस्वरूप योनि का मार्ग बन्द हो जाता है। कभी-कभी योनि का बाहरी छेद तंग या बंद हो जाता है। योनि की मांसपेशियों के तन्तुओं का ऐंठ जाना, योनि की भीतरी श्लैष्मिक कला में शोथ, योनि में तरलता की अत्यधिक कमी, कुमारी पर्दा की कठोरता, योनि के किसी बड़े घाव का इस प्रकार भर जाना कि उसकी रचना सिकुड़ जाये अथवा घाव भरने के बाद वहाँ फालतू मांस पैदा हो जाये अथवा योनि में खुश्की उत्पन्न क...

योनि के घाव,yoni ke ghav

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(योनि के घाव,yoni ke ghav) रोग परिचय-योनि के अन्दर प्रायः घाव हो जाया करते हैं जिनमें सख्त जलन और दर्द होता है। महिला चिकित्सक 'वेजाइना स्पेक्युलम' (एक विशेष प्रकार का यन्व) से योनि को फैला कर इन घावों को भली प्रकार निरीक्षण कर लिया करती हैं। नये शोच में पीप पड़ जाने और फुन्सियों के फूट जाने के कारण योनि में घात हो जाया करते हैं। योनि में अत्यधिक खट्टास हो जाने या सुजाक रोग होने से भी योनि में घाव हो जाया करते हैं। चूंकि योनि में प्रदर का गन्दा और अम्लता वाला तरल आता रहता है और यह स्थान तंग और गहरा होता है। इसलिए सावधानी न रखने से ये घाव नासूर बन सकते हैं जो बड़ी कठिनाई से ठीक होते हैं। उपचार- मामूली घाव नीम के पत्तों के क्वाथ से डूश करते रहने से ठीक हो जाते हैं। डेटाल-एन्टीसेप्टिक क्रीम या डेटोल ओब्सटेरिक क्रीम को दिन में 2 बार योनि के घावों में लगाना अत्यधिक लाभप्रद है। तिलों के 5 तोला तैल में नीम और मेंहदी के सूखे पत्ते 1-1 तोला, डालकर जलालें । तैल को छानकर इसमें विशुद्ध मोम 1 तोला डालकर पिघला लें। फिर इसमें कमीला सवा तोला मुर्दासंग और सफेदा काश्गरी 4-4 माशा खरल ...

योनि की खुजली,yoni ki khujli

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(योनि की खुजली,yoni ki khujli) रोग परिचय-इस रोग के कारण स्वी को बहुत कष्ट होता है, वह अंगुली डालकर योनि को खुजलाती रहती है, खुजली के कारण रोगिणी को सम्भोग की इच्छा बहुत बढ़ जाती है। यह रोग योनि में शोथ, योनि स्राव में अधिक अम्लता हो जाना, रक्त विकार, पेट में चुरनों का हो जाना, शरीर में रक्त, विटामिन मिनरल्ज की कमी तथा थायराइड ग्लैन्ड की खराबी आदि के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाया करता है।उपचार जैसा कि इससे पूर्व में "योनि कपाट" रोग में उपचार लिखा जा चुका है, उसी के अनुसार इस रोग का भी उपचार करें। • सूखी मेंहदी, गाचनी, लाल चन्दन, प्रत्येक 3-3 माशा बारीक पीसकर बहीदाना के गाढ़े लेस वाले पानी में मिलाकर ठण्डा लेप लगाने से योनि की खुजली, जलन और शोध में लाभ हो जाता है।

धातु दौर्बल्य, नपुंसकता, मरदाना कमजोरी, सामान्य दुर्बलता (Impotancy And General Weakness

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(  धातु दुर्बलता, नपुंसकता, सामान्य दुर्बलता (Impotancy And General Weakness) नपुंसकता- इसमें रोगी आशिंक या पूर्ण रूपेण स्वी (पत्नी) को यौन सुख (सम्भोग क्रिया) दे पाने में असमर्थ हो जाता है। पुरुष का शिश्न (लिंग) इतनादुर्बल हो जाता है कि उसमें उत्थान नहीं हो पाता है। इस रोग में यदि शारीरिक या मानसिक दुर्बलता हो तो उसको निर्मूल किया जा सकता है। यदि यह दोष पैतृक है तब उसको ठीक नहीं किया जा सकता। वैसे प्रायः 99 प्रतिशत यह रोग मानसिक अथवा शारीरिक कमजोरी (दुर्बलता) के परिणाम स्वरूप प्रकट होता है। उपचार • अमलतास की छाल का महीन चूर्ण 1-2 ग्राम की मात्रा में दो गुनी शक्कर मिलाकर 250 ग्राम नेगुनगुना गौ दुग्ध के साथ नित्य सुबह शाम सेवन करने से अपार बल व वीर्य की वृद्धि होती है। • अश्वगन्धा का चूर्ण कपड़छन कर (खूब मैदे की भाँति कर लें) इसमें चौथाई भाग उत्तम गौघृत मिलाकर आपस में खूब खरल कर एक स्वच्छ पात्र में रख लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के वीर्य विकारों में लाभ होकर बल व वीर्य की वृद्धि होती है। • अश्वगन्धा में (कब्ज न करते हुए) पतली धा...