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एक्जिमा, छाजन, पामा,eczema,chhoti chhoti foonsiyan,chamdi rog,khujli,khujli se hone wale ghhav

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(एक्जिमा, छाजन, पामा,eczema,chhoti chhoti foonsiyan,chamdi rog,khujli,khujli se hone wale ghhav) रोग परिचय-इसे अकौता, चम्बल, छाजन, पामा, पानीवात आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इसका प्रकोप चर्म पर खाज-खुजली, जलन तथा दर्द युक्त छोटी-छोटी बारीक फुन्सियों से प्रारम्भ होता है। यही छोटी-छोटी फुन्सियाँ या दानें खुजलाते-खुजलाते घाव का रूप धारण कर बड़ा आकार ग्रहण कर लेते हैं। रोग नया हो या पुराना, बड़ी कठिनाई से ठीक होता है। इस रोग का कारण पाचन विकार, शारीरिक कमजोरी, वंशज प्रभाव, वृक्क शोथ, मधुमेह, गाऊट (छोटे जोड़ों का दर्द) अन्य जोड़ों का दर्द, स्थानीय खराश, साबुन का अधिक प्रयोग, बच्चों का दाँत निकलना या पेट में कीड़े होना, पसीने की अधिकता, चर्म से भूसी उतरना इत्यादि हैं। (उपचार • पुनर्नवा (साठी) की जड़ 125 ग्राम को सरसों के तैल में मिलाकर पीसें। फिर 50 ग्राम सिन्दूर मिलाकर मरहम तैयार करलें। इस मरहम को कुछ दिन लगाने से चम्बल जड़मूल से नष्ट हो जाता है। शर्तिया दवा है। • सरसों के तैल 50 ग्राम में थूहर (सेंहुड़) का डन्डा रखकर खूब गरम करें। जब थूहर जेल जाए तब जले हुए डन्डे को बाहर फें...

रजोनिवृत्ति,menopause, 45 age ke baad period ka rukne se hone wali bimari

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(रजोनिवृत्ति,menopause, 45 age ke baad period  ka rukne se hone wali bimari ) रोग परिचय-यदि हकीकत में कहा जाए तो यह कोई रोग नहीं है। स्वी की आयु जब 45 से 48 वर्ष की हो जाती है तब उसको रजः आना धीरे-धीरे बन्द हो जाता है। तब स्त्री को विभिन्न प्रकार के रोग और कष्ट हो जाते हैं। कईस्वियों को मासिक समाप्त होने के पूर्व ही विभिन्न प्रकार के रोग और कष्ट हो जाते हैं और यह आवश्यक भी नहीं है कि प्रत्येक स्वी को तमाम लक्षण और कष्ट हों अर्थात् किसी स्त्री को इनमें से कोई रोग व कष्ट और दूसरी अन्य किसी स्वी को अन्य कष्ट हुआ करता है। स्वी के मुख, सिर, गर्दन और गले के ऊपरी भाग में लाली और गर्मी उत्पन्न हो जाती है, पसीना अधिक आता है। प्रायः समस्त शरीर पर लाली-सी दिखाई देती है, सिरदर्द और सिर में चक्कर, मितली, बेचैनी, नींद न आना, भूख हट जाना, अजीर्ण, विड़चिड़ापन, क्रोध, भय, घबराहट इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। बहुत-सी स्वियों को हाईब्लड प्रेशर, वहम और पागलपन का रोग हो जाता है। मासिक बन्द होने के समय कई स्त्रियों का गर्भाशय बड़ा हो जाता है जिससे उनको बहुत अधिक मात्रा में रक्त आने लगता है। प्रा...

स्नायु दुर्बलता,sareer ki kamjori, har tareh ki kamjori, bimari ke baad ki kamjori

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(स्नायु दुर्बलता,sareer ki kamjori, har tareh ki kamjori, bimari ke baad ki kamjori ) इस रोग से ग्रसित रोगी भी अत्यन्त कमजोर हो जाता है। उसकी सहन शक्ति नष्ट हो जाती है। थोड़ा-सा शारीरिक अथवा मानसिक श्रम करने से ही रोगी थक जाता है। थोड़ी-सी उत्तेजना से ही उत्तेजित हो जाता है तथा हीनता- भाव से बौखलाकर भाव-विह्वल हो अँसू बहाने लगता है। ऐसी दशा में निम्नलिखित पेटेन्ट आयुर्वेदिक योगों का सेवन करें। नारड्रिल टेबलेट (हिमालय) - 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार या आवश्यकतानुसार लें । कब्ज न रहने दे तथा गैस का विकार भी न होने दे। गैन्डिको (डिशेन)- हृदय की शक्ति हेतु अत्युत्तम। दिल की धड़कन बढ़ने व सांस फूलने में उपयोगी है। गुर्दे की सूजन तथा पेशाब कम उतरने व जलोदर में भी उपयोगी है। यह औषधि नशीली अथवा उत्तेजक भी नहीं है। ये 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें। बायोसाल ग्राइपवाटर (डिशेन) बच्चों व शिशुओं के दाँत निकलने व पाचन सम्बन्धी विकारों हेतु अति उपयोगी। नवजात शिशुओं को चौथाई चम्मच दिन में 2 बार इसे तथा 1 से 6 माह के बच्चों के लिए आधी चम्मच दिन में 2 बार। 6 माह से 1 वर्ष आयु के बच्चों के लिए ...

रोग के बाद की दुर्बलता,rogon ke baad ki durbalta

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(रोग के बाद की दुर्बलता,rogon ke baad ki durbalta) रोग से उठने के उपरान्त प्रायः हर रोगी काफी कमजोर, कृषकाय, दीनहीन कमजोर और दुर्बल हो जाता है। ऐसी अवस्था में निम्नलिखित पेटेन्ट आयुर्वेदिक योगों का सेवन करें, लाभप्रद है। रसायन वटी (राजवैद्य शीतल प्रसाद)- प्रत्येक प्रकार की दुर्बलता नाशक है। 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार अथवा 2-2 सुबह-शाम दूध से लें। ओजस लिक्विड (चरक) - 1-2 छोटे चम्मच दिन में 2 बार भोजन से पूर्व समान जल मिलाकर । or पंचारिष्ट पेय (झन्ड)- 10 से 30 मि.ली. दिन में 2 बार भोजनोपरान्त । सोमपान सीरप (राजवैद्य शीतल प्रसाद)-2-4 चम्मच दिन में 2 बार व्यस्कों को दें। बच्चों को आधी मात्रा सेवन करायें । आरोग्य मिश्रण (धूतपापेश्वर) - 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार दें। स्टेनेक्स टेबलेट (झन्ड्) - युवा और वृद्धों हेतु उपयोगी है। 2-4 टिकिया दिन में 3 बार सेवन करें ।मेनोलटेबलेट (चरक)-2-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें। शतावरक्ष सीरप (झन्दू) - 1 से 4 चम्मच शर्बत को सुबह-शाम दूध में डालकर लें । अंगूरासब (झन्डू) -2 से 4 चम्मच दिन में 2 बार भोजनोपरान्त लें ।

स्मरण-शक्ति की क्षीणता,dimaag kamjor hona,yadast kamjor hona,bhoolne ki bimari,bhoolna

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(स्मरण-शक्ति की क्षीणता,dimaag kamjor hona,yadast kamjor hona,bhoolne ki bimari,bhoolna)) रोगी की याददाश्त कमजोर हो जाती है। वह अपनी ही वस्तुओं को यहाँ तक कि रिश्तेदारों और मित्रों के नाम तक को भूल जाता है निम्न दवा दें- स्वप्नहरी टेबलेट (डाबर) 1-2 टिकिया दिन में 2 बार । अथवा आवश्यकतानुसार दें। पेट साफ रखें। कब्ज न रहने दें। दिमागीन (मु. तिब्बिया यूनिवर्सटी अलीगढ़) (यूनानी योग) 5-5 ग्राम बिस्कुट पर लगाकर सुबह-शाम खायें ।गावजवां अम्बरी जवाहर बालाखास (हमदर्द) (यूनानी योग) 5-5 ग्राम सुबह-शाम दूध से लें । शंखपुष्पी सीरप (ऊंझा) 1-2 ड्राम दिन में 2-3 बार दें। शर्वत ब्राह्मी (गर्ग) 10-20 मि.ली. दिन में 2 बार लें। ब्राह्मी शंखपुष्पी कैपसूल (गर्ग) आवश्यकतानुसार 1-2 कैपसूल लें। ब्राह्मी तैल (झन्डू) आवश्यकतानुसार सिर में मालिश करें। बाजार में अन्य (नवरत्न तैल, हिमताज तैल, जयगंग तैल इत्यादि भी आते हैं) यह समस्त तैल भी लाभप्रद है। लीवर एक्सट्रेक्ट ऑफ ब्राह्मी (झन्ड्) 4 से 8 मि.ली. अथवा आवश्यकतानुसार दिन में 3 बार जल के साथ लें । ब्राह्मी शंखपुष्पी घनसत्व (गर्ग) 1-1 ग्राम सुबह-शाम जल से ...

अत्यार्त्तव, अति रजः,masik dharam na rukna,period na rukna

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(अत्यार्त्तव, अति रजः,masik dharam na rukna,period  na rukna) रोग परिचय- इस रोग में मासिकधर्म अत्यधिक मात्रा में और नियत काल से अधिक दिनों तक आता रहता है। इस रोग के कारणों में निम्नलिखित 6 कारण प्रमुख रूप है। स्वी को भीतरी जननेन्द्रियों के रोग जैसे- (1) गर्भाशय शोथ, गर्भाशय झुक जाना, गर्भाशय की बबासीर और घाव, फैलोपियन ट्यूबों और डिम्बाशय की शोथ, प्रसवोपरान्त गर्भाशय का सिकुड़कर अपनी प्राकृतिक अवस्था में न आना, गर्भाशय का कैन्सर और रसूलियां तथा रजोनिवृत्ति इत्यादि । (2) रक्त संचार सम्बन्धी रोग, जैसे- यकृत् का सख्त हो जाना, हाई ब्लड प्रेशर एवं हृदय सम्बन्धी कई रोग (3) हारमोन्स ग्रन्थियों के दोष, जैसे-थायरायड ग्लैन्ड का बढ़ जाना इत्यादि (4) रक्त विकार सम्बन्धी रोग जैसे- स्कर्वी, दाँतों और मसूढ़ों से खून आना) परप्यूरा आदि। (5) तीव्र ज्वर जैसे- टायफाइड, मलेरिया, इन्फ्लूएन्जा इत्यादि । (6) स्नायु उत्तेजना, नाड़ी संस्थान की कमजोरी, चिन्ता, क्रोध, बहम (संदेह) अत्यधिक सम्भोग एवं अत्यधिक प्रसन्नता इत्यादि ।नोट-यदि मासिक नियत समय के अतिरिक्त आने लग जाए तो इसको अंग्रेजी में मेट्रोर...

कष्टार्तव, मासिकधर्म का कष्ट के साथ आना,period pain,masik dharam mein dard hona

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(कष्टार्तव, मासिकधर्म का कष्ट के साथ आना,period pain,masik dharam mein dard hona) रोग परिचय- इस रोग (डिसमेनोरिया) में स्त्रियों को मासिकधर्म आने से 1-2 दिन पूर्व और आने के समय गर्भाशय पेडू और कमर में दर्द हुआ करता है। इसी स्थिति में रोगिणी को मासिक कम या अधिक मात्रा में भी आ सकता है। अनिद्रा, सिरदर्द और बेचैनी इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं। नोट-जब जवान लड़कियों को प्रथम बार मासिक धर्म आता है तो भीतरी जननेन्द्रियों की ओर रक्त संचार तेज होकर वहाँ की रक्तवाहिनियां रक्त की अधिकता के कारण उधर और तन जाती हैं। इसी कारण पेडू, कमर, गर्भाशय, जांघों और पिन्डलियों में थोड़ा या बहुत दर्द होने लगता है किन्तु 2-3 बार आ चुकने पर यह कष्ट स्वयं दूर हो जाते हैं। इस के भी दो कारण होते हैं- (अ) जन्मजात दोष यथा- गर्भाशय की रचना में भी विकार, गर्भाशय की गर्दन का लम्बा होना, गर्भाशय के मुख का छोटा होना, गर्भाशय की मांसपेशियों की कमजोरी, डिम्बाशय के तरल में कमी, स्नायविक संस्थान की दुर्बलता आदि। (आ) गर्भाशय में असाधारण रूप से रक्त एकत्रितहो जाना जैसे-गर्भाशय का पीछे की ओर झुक जाना, गर्भाशय या उसकी झि...

नष्टार्तव, मासिकधर्म बन्द हो जाना,masik dharam band hona,period,period band hona

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(नष्टार्तव, मासिकधर्म बन्द हो जाना,masik dharam band hona,period,period band hona) रोग परिचय- इस रोग में मासिकधर्म बिल्कुल ही बन्द हो जाता है अथवानियत समय से बहुत देर बाद अल्प मात्रा में दर्द और कष्ट से आता है। यदि रजोधर्म आरम्भ से ही बन्द हो तो 'आरम्भिक कष्टार्तव' (प्राइमरी ऐमेनोरिया) और यदि मासिक धर्म पहले नियमित रूप से आता रहा हो और बाद में किसी विकार के कारण बन्द हो गया हो तो 'गौण आर्त्तव' (सेकेन्डी ऐमेनोरिया कहलाता है। इस रोग के 3 प्रकार हुआ करते है- (अ) आरम्भ से ही स्राव बन्द होना, (ब) 1 या 2 बार प्रदर आकर बन्द हो जाना, (स) मासिकधर्म का उत्पन्न तो होना किन्तु रास्ता बन्द होने के कारण उसका जारी न हो सकना । इस रोग का प्रथम कारण जन्म से गर्भाशय या डिम्बाशय का न होना अथवा. बहुत छोटा होना होता है। डिम्बाशय का सम्बन्ध पिच्यूट्री ग्लैन्ड से होता है, इसलिए यदि इस ग्लैन्ड में कोई विकार हो तो भी डिम्बाशय का पूरा पालन पोषण नहीं हो सकता है। दूसरा कारण रक्त अल्पता अथवा रक्त का अत्यधिक गाढ़ा हो जाना अथवा कोई पुराने रोग जैसे- मधुमेह, क्षय, कैन्सर, वृक्कों सम्बन्धी रो...

फेलोपियन ट्यूबों का गल जाना,fallopian tube ka gaal jana

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(फेलोपियन ट्यूबों का गल जाना,fallopian tube ka gaal jana) रोग परिचय-कई बार स्त्रियों के फैलोपियन ट्यूबों में घाव हो जाया करते है और कई बार उसका कुछ भाग गल-सड़कर नष्ट हो जाया करता है। घाव होने पर उस स्थान से पीप और पीला बदबूदार तरल गर्भाशय में आकर योनि से निकलता रहता है। साथ ही स्वी के पेडू और कमर में सख्त दर्द होता रहता है और मासिक के समय यह दर्द अधिक होने लगता है तथा मासिक अनियमित आने लगता है। नाली का गल-सड़कर कुछ भाग (हिस्सा) भी नष्ट हो जाता है। इस कारण स्वी का अण्डा (ओवम) डिम्बाशय से गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाता है। फलस्वरूप रुग्णा को गर्भ नहीं ठहरता है और वह जीवन भर के लिए बाँझ हो जाती है। यह रोग फैलोपियन ट्यूबों के फट जाने उपदंश और सूजाक आदि रोगों और अन्दर फोड़ा बन जाने के कारण हो जाता है। उपचार-किसी हल्के ऐन्टीसैप्टिक लोशन जैसे- डेटोल, सैवलान, बोरिक एसिड पाउडर अथवा मरक्यूरोक्रोम (चोट, घाव में लगाने वाला लाल टिंक्बर की दवा) अथवा नीम की पत्तियों के क्वाथ आदि से गर्भाशय में डूश करते रहना चाहिए। रक्त को शुद्ध करने वाली औषधियों जैसे-मन्जिष्ठादि क्वाथ, सारिवाद्यारिष्ट, खदिरार...

फैलोपियन प्रणालियों का फट जाना,fallopian tube ka fast jana)

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(फैलोपियन प्रणालियों का फट जाना,fallopian tube ka fast jana) रोग परिचय- फैलोपियन ट्यूब स्वी की योनि के भीतरी अंग के अन्तर्गत होती है। यह गाय की दुम की भाँति दो पतली नलियाँ हैं, जो गर्भाशय के दोनों ओर ऊपरी भाग. में डिम्बाशय और गर्भाशय के मध्य में स्थित होती है। इसकी प्रत्येक नली की सामान्यतः लम्बाई 11 या 12 सेन्टीमीटर तक होती है और गर्भाशय के ऊपरी किनारे से प्रारम्भ होकर गर्भाशय के चौड़े बन्धन पेडू में मूत्राशय और मलाशय के मध्य में होती है, इसकी औसत लम्बाई अधिक सन्तानें वाली स्वियों में (10 सेमी. लम्बाई, 6 सेमी. चौड़ाई तथा 4 सेमी. मोटाई और वजन लगभग 30 से 40 ग्राम होता है। यह आठ बन्धनों द्वारा अपने स्थान पर स्थित रहती है। यह बन्धन 1. गोल बन्धन (राउन्ड लिगमेन्टस, 2. चौड़े बन्धन (ब्राड लिगमेन्टस, 3. अगले बन्धन (एन्टेिरियर लिगेमेन्ट्स तथा 4. पिछले बन्धन(पोस्टेरियर लिगमेन्ट्स) प्रत्येक बन्धन 2-2 अर्थात् कुल निलाकर 8 बन्धन है। चौड़े बन्धन भी अन्य तीनों बन्धनों की भांति 2 होते है और यह गर्भाशय के दोनों ओर दांये व बांये पहले से पेडू की ओर दीवारों तक जाते हैं। प्रत्येक बन्धन की 2 तह ...

डिम्बाशय का अपने स्थान से हट जाना,bachedani ka apne sthaan se hat jana

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(डिम्बाशय का अपने स्थान से हट जाना,bachedani  ka apne sthaan se hat  jana ) रोग परिचय गर्भाशय, योनि की रचना अथवा डिम्बाशय के बन्धनों के ढीला हो जाने पर उस स्थान पर झटका लगने अथवा जोर पड़ने पर डिम्बाशय अपने स्थान से खिसककर गर्भाशय के सामने अथवा पीछे या किनारों के नीचे आ जाते हैं। यदि गर्भाशय के उलट जाने के कारण यह रोग हो तो डिम्बाशय उलटे गर्भाशय की गहराई में लटक जाता है। यदि डिम्बाशय गर्भाशय के अन्दर हुए गोल बन्धन (Round Ligament) के साथ (Inguinal Canal) में या उसके बाहर जाँघ या भगद्वार की नर्म रचना में चर्म के नीचे आ जाये तो इसको पयोडन्डल हार्नियां कहा जाता है। यदि यह रोग, चोट लगने आदि के कारण हो तो पीड़ितवी के पेडू में सख्त दर्द होता है और जी मिचलाने तथा वमन की अधिकता हो जाती है। यदि गर्भाशय झुक जाने के कारण डिम्बाशय दबकर गर्भाशय के पीछे अपने स्थान से नीचे लटक गया हो तो गुदा में अंगुली प्रवेश करके उसका निरीक्षण महिला चिकित्सक द्वारा भली भाँति किया जा सकता है। यदि सामने या उसके दोनों ओर उठे हुए गर्भाशय की गहराई में खिसक गया हो तो उसको भी योनि में अँगुली डालकर देखा ...

डिम्बाशय पर अस्थायी झिल्ली आ जाना(False membrane of ovary)bachedani ke mooh par jhili ka ana

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(डिम्बाशय पर अस्थायी झिल्ली आ जाना(False membrane of ovary)bachedani ke mooh par jhili ka ana) रोग परिचय-खियों के इस रोग में डिम्बाशय के बाहरी स्थान पर एक कठोर झिल्ली उत्पन्न हो जाती है। इस रोग के उत्पन्न होने का मुख्य कारण डिम्बाशय का पुराना शोथ होता है। क्योकि डिम्बाशय से निकला गाढ़ा तरल झिल्ली का रूप धारण कर लेता है, तब उस झिल्ली के अन्दर पतला द्रव धीरे-धीरे एकत्रित होकर (Ovarian dropsy) (डिम्बाशय में पानी पड़ जाना) का रूप धारण कर लेता है। झिल्ली कठोर और मोटी होकर डिम्बाशय की (रचना पर हर समय दबाब डालती रहती है जिसके कारण वह धीरे-धीरे दबकर छोटी होती चली जाती है जिसको 'डिम्बाशय क्षय' कहते है । नोट-यदि दोनों डिम्बाशय इस रोग से बेकार हो जाये तो स्त्री के बांझ हो जाने के अतिरिक्त, उसको मासिक आना भी बिल्कुल बन्द हो जाता है। कई बार तो इस रोग से पीड़ित स्त्री के डिम्बाशय का आकार इतना अधिक छोटा हो जाता है कि वह मात्र छोटी सी गुठली के बराबर रह जाता है। रोग पुराना हो जाने पर इसके स्वीत्त्व गुण बिल्कुल घट जाते हैं। उपचार-पेडू पर (झिल्ली) को घुला देने वाले गरम तैलों की मालिश ...

डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan

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(डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan) रोग परिचय- इस रोग में प्रायः स्वी के एक ही डिम्बाशय में शोथ आती है और दूसरा बचा रहता है। दायां डिम्बाशय बांये डिम्बाशय की अपेक्षा अधिक रोग-ग्रस्त हुआ करता है। यह रोग चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का होता है- 1. एक्यूट (नया), 2. क्रोनिक (पुराना) । नयें डिम्बाशय शोथ में थोड़ी-थोड़ी देर बाद तीव्र दर्द होता है और हल्का दर्द हर समय बना रहता है। कई बार तो दर्द की अधिकता के कारण रुग्णा बेहोश हो जाती है। कभी-कभी हिस्टीरिया के दौरे भी पड़ने लगते हैं। सम्भोग के समय तीव्र दर्द होता है। ज्वर रहता है। पेडू, कमर व जंघा में दर्द रहता है। पीड़ित डिम्बाशय की ओर की जांघ को दबाने से दर्द बढ़ जाता है। खड़ा होने पर पैर काँपने लगते हैं और दर्द बढ़ जाता है। रोगिणी को प्रायः कब्ज रहती है और पाखाना के समय बहुत अधिक जोर लगाना पड़ता है। कई बार पेचिश भी होजाती है। मितली, कै, हाजमा की खराबी तथा भूख की कमी हो जाती है। मूत्र लाल रंग का अल्प मात्रा में कष्ट से आता है। पेडू को टटोलने से डिम्बाशय की शोथ प्रतीत होती है। यदि शोथ में पी...

गर्भाशय-आवरण-शोथ,bachedani ki elarji

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(गर्भाशय-आवरण-शोथ,गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना,garbhasya ki sodh,bachedani ki soojan) रोग परिचय- उदरस्थ झिल्ली के उस भाग में सूजन आ जाती है जिसका सम्बन्ध गर्भाशय से होता है। इस रोग का कारण गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना, अस्पताल में आप्रेशन करते समय और यन्त्र प्रवेश कराते समय चिकित्सक द्वारा असावधानी हो जाना, गर्भाशय, डिम्बाशय और फेलोपियन ट्युबों में शोथ आ जाने और उनमें रसूलियाँ हो जाने तथा मासिक धर्म के समय में सर्दी लग जाना इत्यादि हैं। इस रोग में शोथ - तीव्र, एवं साधारण- दो प्रकार की होती है। तीव्र शोथ में पीड़ित स्त्री को कम्पन के साथ ज्वर हो जाता है। प्यास, मिचली और वमन का कष्ट होता है। मुँह का स्वाद कड़वा रहता है तथा पेडू में तीव्र दर्द होता है जो थोड़ा सा भी हिलने-डुलने अथवा दबाने से बढ़ जाता है। इसी कारण रोगिणी हर समय अपने पैर पेट की ओर सिकोड़े हुए पड़ी रहती है, क्योंकि पैर फैलाने से दर्द बहुत अधिक बढ़ जाया...

दूषित गर्भ,bar-bar bacha girna,bacha girna,garbhpaat

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(दूषित गर्भ,bar-bar bacha girna,bacha girna,garbhpaat) रोग परिचय-इस रोग से ग्रसित स्वियों को बार-बार गर्भपात हो जाया करता है। मृत शिशु उत्पन्न होता है। प्रत्येक बार कुरूप अथवा विभिन्न पशुओं की आकृति का बच्चा उत्पन्न हुआ करता है अथवा बच्चा उत्पन्न हो चुकने पर किसी रोग से बच्चा मर जाता है। इस रोग के कारण हैं-पति या पत्नी को सुजाक अथवा उपदंश होना, गर्भाशय में खराबी होना, पुरुष (पति) के शुक्र कीटों की कमजोरी अथवा खराबी, स्वी में रक्त विकार होना, मासिक धर्म के दिनों में गर्भ रह जाना, स्वी का दिमाग खराब होना, मासिक आ चुकने अथवा सम्भोग के समय बुरी आकृतियों, भयानक जीवों और पशुओं का विचार करना और कई बार अकारण (बगैर किसी कारण का पता चले) यह रोग हो जाया करता है। यदि किसी विशेष समय में गर्भपात होता है तो गर्भपात के तमाम लक्षण स्पष्ट प्रतीत होते हैं। अद्भुत आकृति या पशु समान गर्भ होने पर गर्भाशय मेंउसकी गतियाँ बच्चे से भिन्न हुआ करती हैं। यदि भ्रूण अत्यधिक कमजोर हो तो कमजोरी के कारण गर्भाशय में उसकी गति प्रतीत नहीं होती या उसकी गति बहुत कमजोर होती है। इस रोग में पीड़ित प्रायः स्वी सुस्त...

झूठा गर्भ,Fake pregnancy,nakli garbh ka ilaj

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(झूठा गर्भ,Fake pregnancy,nakli garbh ka ilaj) रोग परिचय-इस रोग में स्वी का पेट गर्भवती स्त्रियों की भाँति दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जाता है, जिसके कारण गर्भ का सन्देह हो जाता है। मासिक धर्म बिल्कुल बन्द हो जाता है अथवा अल्प मात्रा में अनियमित रूप से आता रहता है। गर्भाशय का मुख बन्द हो जाता है। रोगिणी का चेहरा निस्तेज तथा स्तनों की चूंचियों का चारों ओर का घेरा काला सा हो जाता है। अजीर्ण, अंग टूटना, सुस्ती होकर पेट में गैस (वायु) चलने लगती है। प्रायः चौथे मास से गर्भाशय में वायु के कारण गति (हरकत) प्रतीत होने लगती है। संक्षेप में गर्भ होने के लगभगसमस्त लक्षण दिखलायी पड़ते हैं। यह रोग गर्भाशय के अन्दर दूषित पदार्थ और तरल के एकत्रित हो जाने, गर्भाशय की पूरी रचना या उसके भाग में बहुत अधिक शोध हो जाने अथवा रक्त जमकर लोधड़ा बन जाने और निरन्तर रक्त लगकर जमते रहने से लोथड़े का बड़ा होते चले जाना, हिस्टीरिया रोग होना आदि कारणों से यह रोग उन युवा (जवान) खियों को हो जाता है- जिन्हें सन्तानोत्पत्ति की तीव्र लालसा होती है। असली और नकली गर्भ की पहचान यदि गर्भाशय में जमे हुए रक्त का गाढ़ा लो...

बाँझपन (Sterility)पुरुषों मैं बांझपन, वीर्य की कमी,virya ki kami

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(बाँझपन (Sterility)पुरुषों  मैं बांझपन, वीर्य की कमी) रोग परिचय इस रोग का अत्यन्त ही सीधा सादा सा अर्थ है बच्चे न होना । स्वी गर्भधारण करने में असमर्थ रहती हैं। यह रोग पुरुषों को भी होता है। पुरुष भी स्वी को गर्भ स्थापित करने में असमर्थ हो सकता है। यदि पति में दोष न होने पर विवाहोपरान्त भी 5 बर्ष तक गर्भ न ठहरे तो स्वी को बाँझ रोग से ग्रसित माना जाता है। इस रोग के मुख्यतः दो कारण हैं। 1. जन्मजात-जैसे खी का जन्म से ही गर्भाशय न होना अथवा गर्भाशय बहुत ही छोटा होना, कुमारी पर्दा बहुत मोटा और बिल्कुल बन्द होना, योनि की नाली बिल्कुल बन्द होना या उसका अन्तिम भाग बन्द या बहुत तंग होना अथवा फैलोफियन ट्यूबों का न होना अथवा बन्द होना, डिम्बाशय का न होना या बन्द होना, गर्भाशय का मुख बिल्कुल ही बन्द हो जाना इत्यादि । 2. भगद्वार के ओष्ठों का आपस में जुड़ जाना-गर्भाशय शोथ, गर्भाशय का उलट जाना, गर्भाशय में बहुत अधिक चर्बी एकत्र हो जाना, गर्भाशयकठोर हो जाना, डिम्बाशय पर आप्राकृतिक झिल्ली उत्पन हो जाना और उसकी रचना खराब हो जाना, फेलोपियन ट्यूब के झालर वाले किनारे खराब हो जाना, उपदंश श्व...

गर्भाशय में दर्द,bachedani mein dard,garbh mein dard

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(गर्भाशय में दर्द,bachedani mein dard,garbh mein dard) रोग परिचय गर्भाशय में अत्यधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाने, गर्भाशय शोध, गर्भाशय के घाव, कैन्सर, गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना, झुक जाना, गर्भाशय की बबासीर, अफारा, बच्चा जनने में अधिक कष्ट, मासिक धर्म का कम अथवा अधिक मात्रा में आना, आँवल रुक जाना, गर्भाशय में तरल इक‌ट्ठा हो जाना, गर्भाशय में रसूली हो जाना तथा एलर्जी इत्यादि कारणों से स्वियों के गर्भाशय में तीव्र कष्ट व दर्द हो जाया करता है। उपचार • खशखश 2 तोला और खुरासानी अजवायन 2 माशा को सवासेर पानी में उबालकर छानकर मामूली गरम पानी से डूश करें। लाभप्रद है। नीम के पत्ते कूटकर लुगदी बनाकर गरम-गरच पेडू पर टकोर करना भी अत्यधिक लाभप्रद है। • सौंफ 6 माशा, धनिया 6 माशा, अरन्ड की छाल 6 माशा, सौंठ 3 माशा आधा सेर पानी में उबाल लें। चौथाई पानी शेष रह जाने पर मल-छानकर पिलाना बच्चा होने के समय में लाभकारी है।

गर्भाशय का बढ़ जाना अथवा छोटा हो जाना,garbh ka badh jana ya chotta ho jana

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(गर्भाशय का बढ़ जाना अथवा छोटा हो जाना,garbh ka badh jana ya chotta ho jana) रोग परिचय गर्भाशय बढ़ना, कई प्रकार का होता है:- गैस भर जाने के कारण गर्भाशय की दीवार में चर्बी जमा हो जाने के कारण, गर्भाशय की सूजन के कारण, गर्भाशय में घाव हो जाने के कारण, बार-बार (अत्यधिक) बच्चों को जन्म देने के कारण, गर्भाशय प्राकृतिक आकार से बड़ा हो जाता है जिसके कारण पीड़ित स्वी को अन्दर से भारीपन प्रतीत होता है। आघात लग जाने तथा उसके पुनः प्राकृतिक स्थिति में नहीं आने, दुर्बलता आदि कारणों से भी गर्भाशय बढ़ जाया करता है। यदि किसी स्त्री का बचपन से ही गर्भाशय छोटा हो तो आरम्भ से ही मासिक कम मात्रा में आता है अथवा बिल्कुल ही नहीं आता है और विवाह के पश्चात् भी यही स्थिति बनी रहती है। स्वी को गर्भ नहीं ठहरता। यदि ठहर भी जाए तो गर्भपात हो जाता है। इस रोग का मुख्य कारण जन्मजात दोष, गर्भाशय का पूर्ण रूप से पोषण न होना, गर्भाशय की रचना किसी कारण से नष्ट हो जाना,स्वी का सम्भोग क्रिया से विरत रहना, गर्भाशय घाव से भर जाना, मैथुन किया की अधिकता, ग्रन्थि दोष तथा गर्भाशय का सिकुड़ जाना इत्यादि है। उपचार गर...

गर्भाशय की दुर्बलता,garbhasya ki kamjori,bachedani ki kamjori

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(गर्भाशय की दुर्बलता,garbhasya ki kamjori,bachedani ki kamjori) रोग परिचय-पोषण के अभाव में गर्भाशय से दुर्बल हो जाता है और इसकी कार्य क्षमता घट जाती है, जिसके फलस्वरूप मासिक भी कम आता हैतथा गर्भ ठहरने को सम्भावनाएं भी कम हो जाती हैं। इस रोग का कारण जन्म से ही गर्भाशय में विकृति, पोषण का पूर्ण अभाव, हर समय उदासीनता और मनोमालिन्य के कारण शरीर सूखकर काँटा हो जाने, बहुत अधिक समय तक सम्भोग क्रिया से वंचित रहने के कारण गर्भाशय में उत्तेजना का अभाव होने, अत्यधिक चिन्ता तथा बाल्यावस्था में विवाह होने से गर्भाशय कमजोर हो जाता है। उपचार-रोगिणी को हर प्रकार से खुश रखें। पौष्टिक और सुमधुर स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ खिलायें। दुख चिन्ता, क्रोध से बचायें। सुख प्रदान करने वाले खेल, मनोरंजन तथा विभिन्न प्रकार के आमोद-प्रमोद में व्यस्त रखें । • मूसली पाक 1 तोला और अश्वगन्धादि चूर्ण 2 माशा एक साथ गाय के गरम दूध से सुबह-शाम सेवन कराना अत्यधिक लाभप्रद है। अतिबला, मुलहठी, बरगद की जटा, खिरैटी, मिश्री तथा नागकेशर प्रत्येक को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें फिर इसे 3 माशा की मात्रा में 6 माशा मधु और...