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अत्यार्त्तव, अति रजः,masik dharam na rukna,period na rukna

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(अत्यार्त्तव, अति रजः,masik dharam na rukna,period  na rukna) रोग परिचय- इस रोग में मासिकधर्म अत्यधिक मात्रा में और नियत काल से अधिक दिनों तक आता रहता है। इस रोग के कारणों में निम्नलिखित 6 कारण प्रमुख रूप है। स्वी को भीतरी जननेन्द्रियों के रोग जैसे- (1) गर्भाशय शोथ, गर्भाशय झुक जाना, गर्भाशय की बबासीर और घाव, फैलोपियन ट्यूबों और डिम्बाशय की शोथ, प्रसवोपरान्त गर्भाशय का सिकुड़कर अपनी प्राकृतिक अवस्था में न आना, गर्भाशय का कैन्सर और रसूलियां तथा रजोनिवृत्ति इत्यादि । (2) रक्त संचार सम्बन्धी रोग, जैसे- यकृत् का सख्त हो जाना, हाई ब्लड प्रेशर एवं हृदय सम्बन्धी कई रोग (3) हारमोन्स ग्रन्थियों के दोष, जैसे-थायरायड ग्लैन्ड का बढ़ जाना इत्यादि (4) रक्त विकार सम्बन्धी रोग जैसे- स्कर्वी, दाँतों और मसूढ़ों से खून आना) परप्यूरा आदि। (5) तीव्र ज्वर जैसे- टायफाइड, मलेरिया, इन्फ्लूएन्जा इत्यादि । (6) स्नायु उत्तेजना, नाड़ी संस्थान की कमजोरी, चिन्ता, क्रोध, बहम (संदेह) अत्यधिक सम्भोग एवं अत्यधिक प्रसन्नता इत्यादि ।नोट-यदि मासिक नियत समय के अतिरिक्त आने लग जाए तो इसको अंग्रेजी में मेट्रोर...

कष्टार्तव, मासिकधर्म का कष्ट के साथ आना,period pain,masik dharam mein dard hona

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(कष्टार्तव, मासिकधर्म का कष्ट के साथ आना,period pain,masik dharam mein dard hona) रोग परिचय- इस रोग (डिसमेनोरिया) में स्त्रियों को मासिकधर्म आने से 1-2 दिन पूर्व और आने के समय गर्भाशय पेडू और कमर में दर्द हुआ करता है। इसी स्थिति में रोगिणी को मासिक कम या अधिक मात्रा में भी आ सकता है। अनिद्रा, सिरदर्द और बेचैनी इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं। नोट-जब जवान लड़कियों को प्रथम बार मासिक धर्म आता है तो भीतरी जननेन्द्रियों की ओर रक्त संचार तेज होकर वहाँ की रक्तवाहिनियां रक्त की अधिकता के कारण उधर और तन जाती हैं। इसी कारण पेडू, कमर, गर्भाशय, जांघों और पिन्डलियों में थोड़ा या बहुत दर्द होने लगता है किन्तु 2-3 बार आ चुकने पर यह कष्ट स्वयं दूर हो जाते हैं। इस के भी दो कारण होते हैं- (अ) जन्मजात दोष यथा- गर्भाशय की रचना में भी विकार, गर्भाशय की गर्दन का लम्बा होना, गर्भाशय के मुख का छोटा होना, गर्भाशय की मांसपेशियों की कमजोरी, डिम्बाशय के तरल में कमी, स्नायविक संस्थान की दुर्बलता आदि। (आ) गर्भाशय में असाधारण रूप से रक्त एकत्रितहो जाना जैसे-गर्भाशय का पीछे की ओर झुक जाना, गर्भाशय या उसकी झि...

नष्टार्तव, मासिकधर्म बन्द हो जाना,masik dharam band hona,period,period band hona

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(नष्टार्तव, मासिकधर्म बन्द हो जाना,masik dharam band hona,period,period band hona) रोग परिचय- इस रोग में मासिकधर्म बिल्कुल ही बन्द हो जाता है अथवानियत समय से बहुत देर बाद अल्प मात्रा में दर्द और कष्ट से आता है। यदि रजोधर्म आरम्भ से ही बन्द हो तो 'आरम्भिक कष्टार्तव' (प्राइमरी ऐमेनोरिया) और यदि मासिक धर्म पहले नियमित रूप से आता रहा हो और बाद में किसी विकार के कारण बन्द हो गया हो तो 'गौण आर्त्तव' (सेकेन्डी ऐमेनोरिया कहलाता है। इस रोग के 3 प्रकार हुआ करते है- (अ) आरम्भ से ही स्राव बन्द होना, (ब) 1 या 2 बार प्रदर आकर बन्द हो जाना, (स) मासिकधर्म का उत्पन्न तो होना किन्तु रास्ता बन्द होने के कारण उसका जारी न हो सकना । इस रोग का प्रथम कारण जन्म से गर्भाशय या डिम्बाशय का न होना अथवा. बहुत छोटा होना होता है। डिम्बाशय का सम्बन्ध पिच्यूट्री ग्लैन्ड से होता है, इसलिए यदि इस ग्लैन्ड में कोई विकार हो तो भी डिम्बाशय का पूरा पालन पोषण नहीं हो सकता है। दूसरा कारण रक्त अल्पता अथवा रक्त का अत्यधिक गाढ़ा हो जाना अथवा कोई पुराने रोग जैसे- मधुमेह, क्षय, कैन्सर, वृक्कों सम्बन्धी रो...

फेलोपियन ट्यूबों का गल जाना,fallopian tube ka gaal jana

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(फेलोपियन ट्यूबों का गल जाना,fallopian tube ka gaal jana) रोग परिचय-कई बार स्त्रियों के फैलोपियन ट्यूबों में घाव हो जाया करते है और कई बार उसका कुछ भाग गल-सड़कर नष्ट हो जाया करता है। घाव होने पर उस स्थान से पीप और पीला बदबूदार तरल गर्भाशय में आकर योनि से निकलता रहता है। साथ ही स्वी के पेडू और कमर में सख्त दर्द होता रहता है और मासिक के समय यह दर्द अधिक होने लगता है तथा मासिक अनियमित आने लगता है। नाली का गल-सड़कर कुछ भाग (हिस्सा) भी नष्ट हो जाता है। इस कारण स्वी का अण्डा (ओवम) डिम्बाशय से गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाता है। फलस्वरूप रुग्णा को गर्भ नहीं ठहरता है और वह जीवन भर के लिए बाँझ हो जाती है। यह रोग फैलोपियन ट्यूबों के फट जाने उपदंश और सूजाक आदि रोगों और अन्दर फोड़ा बन जाने के कारण हो जाता है। उपचार-किसी हल्के ऐन्टीसैप्टिक लोशन जैसे- डेटोल, सैवलान, बोरिक एसिड पाउडर अथवा मरक्यूरोक्रोम (चोट, घाव में लगाने वाला लाल टिंक्बर की दवा) अथवा नीम की पत्तियों के क्वाथ आदि से गर्भाशय में डूश करते रहना चाहिए। रक्त को शुद्ध करने वाली औषधियों जैसे-मन्जिष्ठादि क्वाथ, सारिवाद्यारिष्ट, खदिरार...

फैलोपियन प्रणालियों का फट जाना,fallopian tube ka fast jana)

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(फैलोपियन प्रणालियों का फट जाना,fallopian tube ka fast jana) रोग परिचय- फैलोपियन ट्यूब स्वी की योनि के भीतरी अंग के अन्तर्गत होती है। यह गाय की दुम की भाँति दो पतली नलियाँ हैं, जो गर्भाशय के दोनों ओर ऊपरी भाग. में डिम्बाशय और गर्भाशय के मध्य में स्थित होती है। इसकी प्रत्येक नली की सामान्यतः लम्बाई 11 या 12 सेन्टीमीटर तक होती है और गर्भाशय के ऊपरी किनारे से प्रारम्भ होकर गर्भाशय के चौड़े बन्धन पेडू में मूत्राशय और मलाशय के मध्य में होती है, इसकी औसत लम्बाई अधिक सन्तानें वाली स्वियों में (10 सेमी. लम्बाई, 6 सेमी. चौड़ाई तथा 4 सेमी. मोटाई और वजन लगभग 30 से 40 ग्राम होता है। यह आठ बन्धनों द्वारा अपने स्थान पर स्थित रहती है। यह बन्धन 1. गोल बन्धन (राउन्ड लिगमेन्टस, 2. चौड़े बन्धन (ब्राड लिगमेन्टस, 3. अगले बन्धन (एन्टेिरियर लिगेमेन्ट्स तथा 4. पिछले बन्धन(पोस्टेरियर लिगमेन्ट्स) प्रत्येक बन्धन 2-2 अर्थात् कुल निलाकर 8 बन्धन है। चौड़े बन्धन भी अन्य तीनों बन्धनों की भांति 2 होते है और यह गर्भाशय के दोनों ओर दांये व बांये पहले से पेडू की ओर दीवारों तक जाते हैं। प्रत्येक बन्धन की 2 तह ...

डिम्बाशय का अपने स्थान से हट जाना,bachedani ka apne sthaan se hat jana

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(डिम्बाशय का अपने स्थान से हट जाना,bachedani  ka apne sthaan se hat  jana ) रोग परिचय गर्भाशय, योनि की रचना अथवा डिम्बाशय के बन्धनों के ढीला हो जाने पर उस स्थान पर झटका लगने अथवा जोर पड़ने पर डिम्बाशय अपने स्थान से खिसककर गर्भाशय के सामने अथवा पीछे या किनारों के नीचे आ जाते हैं। यदि गर्भाशय के उलट जाने के कारण यह रोग हो तो डिम्बाशय उलटे गर्भाशय की गहराई में लटक जाता है। यदि डिम्बाशय गर्भाशय के अन्दर हुए गोल बन्धन (Round Ligament) के साथ (Inguinal Canal) में या उसके बाहर जाँघ या भगद्वार की नर्म रचना में चर्म के नीचे आ जाये तो इसको पयोडन्डल हार्नियां कहा जाता है। यदि यह रोग, चोट लगने आदि के कारण हो तो पीड़ितवी के पेडू में सख्त दर्द होता है और जी मिचलाने तथा वमन की अधिकता हो जाती है। यदि गर्भाशय झुक जाने के कारण डिम्बाशय दबकर गर्भाशय के पीछे अपने स्थान से नीचे लटक गया हो तो गुदा में अंगुली प्रवेश करके उसका निरीक्षण महिला चिकित्सक द्वारा भली भाँति किया जा सकता है। यदि सामने या उसके दोनों ओर उठे हुए गर्भाशय की गहराई में खिसक गया हो तो उसको भी योनि में अँगुली डालकर देखा ...

डिम्बाशय पर अस्थायी झिल्ली आ जाना(False membrane of ovary)bachedani ke mooh par jhili ka ana

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(डिम्बाशय पर अस्थायी झिल्ली आ जाना(False membrane of ovary)bachedani ke mooh par jhili ka ana) रोग परिचय-खियों के इस रोग में डिम्बाशय के बाहरी स्थान पर एक कठोर झिल्ली उत्पन्न हो जाती है। इस रोग के उत्पन्न होने का मुख्य कारण डिम्बाशय का पुराना शोथ होता है। क्योकि डिम्बाशय से निकला गाढ़ा तरल झिल्ली का रूप धारण कर लेता है, तब उस झिल्ली के अन्दर पतला द्रव धीरे-धीरे एकत्रित होकर (Ovarian dropsy) (डिम्बाशय में पानी पड़ जाना) का रूप धारण कर लेता है। झिल्ली कठोर और मोटी होकर डिम्बाशय की (रचना पर हर समय दबाब डालती रहती है जिसके कारण वह धीरे-धीरे दबकर छोटी होती चली जाती है जिसको 'डिम्बाशय क्षय' कहते है । नोट-यदि दोनों डिम्बाशय इस रोग से बेकार हो जाये तो स्त्री के बांझ हो जाने के अतिरिक्त, उसको मासिक आना भी बिल्कुल बन्द हो जाता है। कई बार तो इस रोग से पीड़ित स्त्री के डिम्बाशय का आकार इतना अधिक छोटा हो जाता है कि वह मात्र छोटी सी गुठली के बराबर रह जाता है। रोग पुराना हो जाने पर इसके स्वीत्त्व गुण बिल्कुल घट जाते हैं। उपचार-पेडू पर (झिल्ली) को घुला देने वाले गरम तैलों की मालिश ...

डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan

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(डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan) रोग परिचय- इस रोग में प्रायः स्वी के एक ही डिम्बाशय में शोथ आती है और दूसरा बचा रहता है। दायां डिम्बाशय बांये डिम्बाशय की अपेक्षा अधिक रोग-ग्रस्त हुआ करता है। यह रोग चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का होता है- 1. एक्यूट (नया), 2. क्रोनिक (पुराना) । नयें डिम्बाशय शोथ में थोड़ी-थोड़ी देर बाद तीव्र दर्द होता है और हल्का दर्द हर समय बना रहता है। कई बार तो दर्द की अधिकता के कारण रुग्णा बेहोश हो जाती है। कभी-कभी हिस्टीरिया के दौरे भी पड़ने लगते हैं। सम्भोग के समय तीव्र दर्द होता है। ज्वर रहता है। पेडू, कमर व जंघा में दर्द रहता है। पीड़ित डिम्बाशय की ओर की जांघ को दबाने से दर्द बढ़ जाता है। खड़ा होने पर पैर काँपने लगते हैं और दर्द बढ़ जाता है। रोगिणी को प्रायः कब्ज रहती है और पाखाना के समय बहुत अधिक जोर लगाना पड़ता है। कई बार पेचिश भी होजाती है। मितली, कै, हाजमा की खराबी तथा भूख की कमी हो जाती है। मूत्र लाल रंग का अल्प मात्रा में कष्ट से आता है। पेडू को टटोलने से डिम्बाशय की शोथ प्रतीत होती है। यदि शोथ में पी...

गर्भाशय-आवरण-शोथ,bachedani ki elarji

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(गर्भाशय-आवरण-शोथ,गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना,garbhasya ki sodh,bachedani ki soojan) रोग परिचय- उदरस्थ झिल्ली के उस भाग में सूजन आ जाती है जिसका सम्बन्ध गर्भाशय से होता है। इस रोग का कारण गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना, अस्पताल में आप्रेशन करते समय और यन्त्र प्रवेश कराते समय चिकित्सक द्वारा असावधानी हो जाना, गर्भाशय, डिम्बाशय और फेलोपियन ट्युबों में शोथ आ जाने और उनमें रसूलियाँ हो जाने तथा मासिक धर्म के समय में सर्दी लग जाना इत्यादि हैं। इस रोग में शोथ - तीव्र, एवं साधारण- दो प्रकार की होती है। तीव्र शोथ में पीड़ित स्त्री को कम्पन के साथ ज्वर हो जाता है। प्यास, मिचली और वमन का कष्ट होता है। मुँह का स्वाद कड़वा रहता है तथा पेडू में तीव्र दर्द होता है जो थोड़ा सा भी हिलने-डुलने अथवा दबाने से बढ़ जाता है। इसी कारण रोगिणी हर समय अपने पैर पेट की ओर सिकोड़े हुए पड़ी रहती है, क्योंकि पैर फैलाने से दर्द बहुत अधिक बढ़ जाया...

दूषित गर्भ,bar-bar bacha girna,bacha girna,garbhpaat

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(दूषित गर्भ,bar-bar bacha girna,bacha girna,garbhpaat) रोग परिचय-इस रोग से ग्रसित स्वियों को बार-बार गर्भपात हो जाया करता है। मृत शिशु उत्पन्न होता है। प्रत्येक बार कुरूप अथवा विभिन्न पशुओं की आकृति का बच्चा उत्पन्न हुआ करता है अथवा बच्चा उत्पन्न हो चुकने पर किसी रोग से बच्चा मर जाता है। इस रोग के कारण हैं-पति या पत्नी को सुजाक अथवा उपदंश होना, गर्भाशय में खराबी होना, पुरुष (पति) के शुक्र कीटों की कमजोरी अथवा खराबी, स्वी में रक्त विकार होना, मासिक धर्म के दिनों में गर्भ रह जाना, स्वी का दिमाग खराब होना, मासिक आ चुकने अथवा सम्भोग के समय बुरी आकृतियों, भयानक जीवों और पशुओं का विचार करना और कई बार अकारण (बगैर किसी कारण का पता चले) यह रोग हो जाया करता है। यदि किसी विशेष समय में गर्भपात होता है तो गर्भपात के तमाम लक्षण स्पष्ट प्रतीत होते हैं। अद्भुत आकृति या पशु समान गर्भ होने पर गर्भाशय मेंउसकी गतियाँ बच्चे से भिन्न हुआ करती हैं। यदि भ्रूण अत्यधिक कमजोर हो तो कमजोरी के कारण गर्भाशय में उसकी गति प्रतीत नहीं होती या उसकी गति बहुत कमजोर होती है। इस रोग में पीड़ित प्रायः स्वी सुस्त...

झूठा गर्भ,Fake pregnancy,nakli garbh ka ilaj

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(झूठा गर्भ,Fake pregnancy,nakli garbh ka ilaj) रोग परिचय-इस रोग में स्वी का पेट गर्भवती स्त्रियों की भाँति दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जाता है, जिसके कारण गर्भ का सन्देह हो जाता है। मासिक धर्म बिल्कुल बन्द हो जाता है अथवा अल्प मात्रा में अनियमित रूप से आता रहता है। गर्भाशय का मुख बन्द हो जाता है। रोगिणी का चेहरा निस्तेज तथा स्तनों की चूंचियों का चारों ओर का घेरा काला सा हो जाता है। अजीर्ण, अंग टूटना, सुस्ती होकर पेट में गैस (वायु) चलने लगती है। प्रायः चौथे मास से गर्भाशय में वायु के कारण गति (हरकत) प्रतीत होने लगती है। संक्षेप में गर्भ होने के लगभगसमस्त लक्षण दिखलायी पड़ते हैं। यह रोग गर्भाशय के अन्दर दूषित पदार्थ और तरल के एकत्रित हो जाने, गर्भाशय की पूरी रचना या उसके भाग में बहुत अधिक शोध हो जाने अथवा रक्त जमकर लोधड़ा बन जाने और निरन्तर रक्त लगकर जमते रहने से लोथड़े का बड़ा होते चले जाना, हिस्टीरिया रोग होना आदि कारणों से यह रोग उन युवा (जवान) खियों को हो जाता है- जिन्हें सन्तानोत्पत्ति की तीव्र लालसा होती है। असली और नकली गर्भ की पहचान यदि गर्भाशय में जमे हुए रक्त का गाढ़ा लो...

बाँझपन (Sterility)पुरुषों मैं बांझपन, वीर्य की कमी,virya ki kami

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(बाँझपन (Sterility)पुरुषों  मैं बांझपन, वीर्य की कमी) रोग परिचय इस रोग का अत्यन्त ही सीधा सादा सा अर्थ है बच्चे न होना । स्वी गर्भधारण करने में असमर्थ रहती हैं। यह रोग पुरुषों को भी होता है। पुरुष भी स्वी को गर्भ स्थापित करने में असमर्थ हो सकता है। यदि पति में दोष न होने पर विवाहोपरान्त भी 5 बर्ष तक गर्भ न ठहरे तो स्वी को बाँझ रोग से ग्रसित माना जाता है। इस रोग के मुख्यतः दो कारण हैं। 1. जन्मजात-जैसे खी का जन्म से ही गर्भाशय न होना अथवा गर्भाशय बहुत ही छोटा होना, कुमारी पर्दा बहुत मोटा और बिल्कुल बन्द होना, योनि की नाली बिल्कुल बन्द होना या उसका अन्तिम भाग बन्द या बहुत तंग होना अथवा फैलोफियन ट्यूबों का न होना अथवा बन्द होना, डिम्बाशय का न होना या बन्द होना, गर्भाशय का मुख बिल्कुल ही बन्द हो जाना इत्यादि । 2. भगद्वार के ओष्ठों का आपस में जुड़ जाना-गर्भाशय शोथ, गर्भाशय का उलट जाना, गर्भाशय में बहुत अधिक चर्बी एकत्र हो जाना, गर्भाशयकठोर हो जाना, डिम्बाशय पर आप्राकृतिक झिल्ली उत्पन हो जाना और उसकी रचना खराब हो जाना, फेलोपियन ट्यूब के झालर वाले किनारे खराब हो जाना, उपदंश श्व...

गर्भाशय में दर्द,bachedani mein dard,garbh mein dard

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(गर्भाशय में दर्द,bachedani mein dard,garbh mein dard) रोग परिचय गर्भाशय में अत्यधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाने, गर्भाशय शोध, गर्भाशय के घाव, कैन्सर, गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना, झुक जाना, गर्भाशय की बबासीर, अफारा, बच्चा जनने में अधिक कष्ट, मासिक धर्म का कम अथवा अधिक मात्रा में आना, आँवल रुक जाना, गर्भाशय में तरल इक‌ट्ठा हो जाना, गर्भाशय में रसूली हो जाना तथा एलर्जी इत्यादि कारणों से स्वियों के गर्भाशय में तीव्र कष्ट व दर्द हो जाया करता है। उपचार • खशखश 2 तोला और खुरासानी अजवायन 2 माशा को सवासेर पानी में उबालकर छानकर मामूली गरम पानी से डूश करें। लाभप्रद है। नीम के पत्ते कूटकर लुगदी बनाकर गरम-गरच पेडू पर टकोर करना भी अत्यधिक लाभप्रद है। • सौंफ 6 माशा, धनिया 6 माशा, अरन्ड की छाल 6 माशा, सौंठ 3 माशा आधा सेर पानी में उबाल लें। चौथाई पानी शेष रह जाने पर मल-छानकर पिलाना बच्चा होने के समय में लाभकारी है।

गर्भाशय का बढ़ जाना अथवा छोटा हो जाना,garbh ka badh jana ya chotta ho jana

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(गर्भाशय का बढ़ जाना अथवा छोटा हो जाना,garbh ka badh jana ya chotta ho jana) रोग परिचय गर्भाशय बढ़ना, कई प्रकार का होता है:- गैस भर जाने के कारण गर्भाशय की दीवार में चर्बी जमा हो जाने के कारण, गर्भाशय की सूजन के कारण, गर्भाशय में घाव हो जाने के कारण, बार-बार (अत्यधिक) बच्चों को जन्म देने के कारण, गर्भाशय प्राकृतिक आकार से बड़ा हो जाता है जिसके कारण पीड़ित स्वी को अन्दर से भारीपन प्रतीत होता है। आघात लग जाने तथा उसके पुनः प्राकृतिक स्थिति में नहीं आने, दुर्बलता आदि कारणों से भी गर्भाशय बढ़ जाया करता है। यदि किसी स्त्री का बचपन से ही गर्भाशय छोटा हो तो आरम्भ से ही मासिक कम मात्रा में आता है अथवा बिल्कुल ही नहीं आता है और विवाह के पश्चात् भी यही स्थिति बनी रहती है। स्वी को गर्भ नहीं ठहरता। यदि ठहर भी जाए तो गर्भपात हो जाता है। इस रोग का मुख्य कारण जन्मजात दोष, गर्भाशय का पूर्ण रूप से पोषण न होना, गर्भाशय की रचना किसी कारण से नष्ट हो जाना,स्वी का सम्भोग क्रिया से विरत रहना, गर्भाशय घाव से भर जाना, मैथुन किया की अधिकता, ग्रन्थि दोष तथा गर्भाशय का सिकुड़ जाना इत्यादि है। उपचार गर...

गर्भाशय की दुर्बलता,garbhasya ki kamjori,bachedani ki kamjori

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(गर्भाशय की दुर्बलता,garbhasya ki kamjori,bachedani ki kamjori) रोग परिचय-पोषण के अभाव में गर्भाशय से दुर्बल हो जाता है और इसकी कार्य क्षमता घट जाती है, जिसके फलस्वरूप मासिक भी कम आता हैतथा गर्भ ठहरने को सम्भावनाएं भी कम हो जाती हैं। इस रोग का कारण जन्म से ही गर्भाशय में विकृति, पोषण का पूर्ण अभाव, हर समय उदासीनता और मनोमालिन्य के कारण शरीर सूखकर काँटा हो जाने, बहुत अधिक समय तक सम्भोग क्रिया से वंचित रहने के कारण गर्भाशय में उत्तेजना का अभाव होने, अत्यधिक चिन्ता तथा बाल्यावस्था में विवाह होने से गर्भाशय कमजोर हो जाता है। उपचार-रोगिणी को हर प्रकार से खुश रखें। पौष्टिक और सुमधुर स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ खिलायें। दुख चिन्ता, क्रोध से बचायें। सुख प्रदान करने वाले खेल, मनोरंजन तथा विभिन्न प्रकार के आमोद-प्रमोद में व्यस्त रखें । • मूसली पाक 1 तोला और अश्वगन्धादि चूर्ण 2 माशा एक साथ गाय के गरम दूध से सुबह-शाम सेवन कराना अत्यधिक लाभप्रद है। अतिबला, मुलहठी, बरगद की जटा, खिरैटी, मिश्री तथा नागकेशर प्रत्येक को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें फिर इसे 3 माशा की मात्रा में 6 माशा मधु और...

गर्भाशय का फूल जाना,garbh ka foolna

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(गर्भाशय का फूल जाना,garbh ka foolna) रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर गैस (वायु, हवा) भर जात है अथवा गैस उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण गर्भाशय फूल जाता है। पेडू के स्थान पर उभार और तनाव प्रतीत होता है। इस उभार पर हाथ की थपकी मारने से ढोल जैसी आवाज आती है। रोगिणी के स्तनों में दर्द होता है। वायु के फिरने से पेडू, जाँघ के जोड़ और उदर में खिंचाव के साथ तीव्र वेदना होती है। सम्भोग के समय गर्भाशय से वायु निकलने की आवाज आती है। सामने की ओर झुकने पर तथा पाखाना के समय जोर लगाने पर अथवा खाँसने पर गर्भाशय से बायु निकला करती है। वायु की अधिकता के कारण मूत्र कम मात्रा में तथा बार-बार आया करता है। मल त्याग, कठिनाई और मरोड़ के साथ होता है। जब वायु से सारा पेट फूल जाता है, तब यह जलोदर के समान दिखलाई देने लगता है। याद रखें कि जलोदर रोग होने पर पहले पेट फूलता है जो धीरे-धीरे पेडू तक पहुँचता है और इस स्थिति के ठीक विपरीत गर्भाशय फूल जाने पर अफारा पहले पेडू से प्रारम्भ होकर पेट की ओर बढ़ता है। गर्भ होने पर पेट को ठोकने पर ठोस आवाज आती है और गर्भाशय के अफारा (फूल जाने में) ढोल जैसी आवाज...

गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna

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(गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna) रोग परिचय-यह रोग स्त्रियों को अति दुःखदायी होता है। यदि एकाएक गर्भाशय पलट या फिसल जाये तो अत्यधिक मात्रा में रक्तस्त्राव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप रोगिणी के हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं, शरीर का रंग पीला पड़ जाता है तथा बेहोशी हो जाती है। माथे पर ठण्डा पसीना आता है, पेडू से कोई बीज निकलती हुई महसूस होती है और कई बार तीव्र ऐंठन भी होती है। पेडू, गुदा, कमर, जाँघों और पिन्डलियों में तीव्र दर्द होता है। अक्सर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है। कभी-कभी मल-मूत्र रुक जाता है। यदि अंगुली प्रवेश करने पर गर्भाशय के मुख के खुले भाग से गर्भाशय फँसा हुआ हो तो यह समझ लेना चाहिए कि गर्भाशय पूर्णरूपेण उलट चुका है। यदि गर्भाशय की गर्दन बाहर आ जाए तो उसका छेद भी दिखलाई देता है। गर्भाशय बाहर आ जाने पर आंवल बाहर आ जाने का भी सन्देह हो सकता है। इसलिए यदि निकली हुई वस्तु छोटी प्रतीत हो और रक्त वाहिनियाँ दिखलायी दें तो पक्के तौर पर आंवल (कमल) ही समझें। यदि इसके विपरीत दशा हो तो उसको गर्भाशय समझें। गर्भाशय उलट जाने के मुख्यतः 4 प्रकार होते हैं। (अ) प...

गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna

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(गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna) रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर पतला स्राव एकत्रित हो जाता है। आरम्भ में पेडू के ऊपर उभार प्रतीत होता है और अन्त में जब तरल काफी अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है तब रोगिणी का पेट जलोदर रोग की भाँति हो जाता है। पेट के अन्दर पानी की लहरें प्रतीत होती है। पीड़ित स्वी कमजोर हो जाती है, उसकी सांस रुकने लगती है तथा हाजमा खराब हो जाता है। पेट में वायु (गैस) चलने लगती है। मासिक बन्द हो जाता है और गर्भ ठहर जाने जैसा सन्देह होने लगता है। जलोदर रोग में पेट, यकृत् और नाभि के आस-पास का भाग बढ़ता है जबकि इस रोग में पेट पेडू के स्थान से बढ़ना प्रारम्भ होता है। जलोदर रोग के विपरीत इस रोग में मूत्र भी अधिक मात्रा में आता है। यह रोग मासिक बन्द हो जाने, शरीर में कफ की अधिकता, यकृत् विकार तथा गर्भाशय और वृक्कों की कमजोरी इत्यादि के कारण हुआ करता है। उपचार डाक्टर 'ट्रोकार यन्त्र' द्वारा गर्भाशय का पानी निकाल लेते हैं। पुनर्नवारिष्ट का सेवन लाभप्रद है। इस बूटी का रस प्रयोग करना भी लाभप्रद है। • अजमोद, सोये के बीज, बायविडंग, ख...

गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli

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(गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli) रोग परिचय-वैसे शरीर के प्रत्येक भाग में रसूली हो सकती है अ रसूलियाँ भी विभिन्न प्रकार की होती हैं। गर्भाशय की रसूलियां तन्तुओं (रेशों) युक्त हुआ करती हैं। कई में चर्बी जैसा पदार्थ और कई में अण्डे की सफेदी जैसा लेसदार स्राव होता है। कई रसूलियों में पीले रंग का गाढ़ा स्त्राव होता है। कई रसूलियाँ लाल रंग की होती है जिसमें पेशाब जैसा खट्टा पदार्थ होता है। जिनकी संरचना स्पंज जैसी होती है और बहुत छोटी होती है, उनको डाक्टरी में पोलीवी (Polypi) कहा जाता है। इनसे रक्त भी आ सकता है। यह रोग रक्त के गाढ़ा हो जाने, उपदंश-दोष, कफ-विकार आदि कारणों से हो जाया करता है। इसके कारण बांझपन और गर्भपात का रोग भी हो जाता है। इस रोग का साधारण लक्षण मासिक बन्द हो जांना या अनियमित रूप से आना है। इस रोग के कारण स्वी को रक्त अल्पता और श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) का रोग हो जाता है। ल्यूकोरिया स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि विभिन्न रोगों के फलस्वरूप हो जाया करता है। अतः ल्यूकोरिया की उचित चिकित्सा भी यही है कि रोग के मूल कारण को ही दूर किया जाये। जो. वैद्य ल्यूको...

गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh

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(गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh) रोग परिचय इस रोग में गर्भाशय के मुख पर छोटे-छोटे गोल मस्से हो जाते हैं। ये मस्से बढ़कर शहतूत की भाँति लटक जाते हैं। यह दशा 'पोलीपस ऑफ यूट्स' कहलाती है। इसमें गर्भाशय के मुख में जलन, खुजली, दबाव और दर्द होता है तथा रक्त आने लगता है। रक्त आने के पश्चात सफेद, लाल या काला सा पानी आने लगता है। उसके बाद कष्ट कम हो जाते हैं किन्तु मासिक धर्म के समय से कष्ट बढ़ जाते है। यह रोग गर्भाशय के मुँह की भीतरी झिल्ली में खराश रहने से वहाँ के रक्त वाहिनियों में रक्त एकत्रित हो जाने से होता है जिसके फलस्वरूप वह फूल जाता है। इस खराश का कारण मासिक बन्द हो जाना अथवा रुक आना होता है। गर्भाशय की शोथ और डिम्बाशय की शोथ तथा कफ के दोषों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है। ऐलोपैथी के चिकित्सक आप्रेशन करके इन मस्सों को काट देते हैं। उपचार- शुद्ध गूगल, नीम के बीज की गिरी, बकायन (महानिम्ब) के बीजोंकी गिरी, रसौत, चाकसू (बिना छिलका) काली मिर्च और शुद्ध गन्धक सभी औषधियों को सममात्रा में लें। उन्हें कूट-पीसकर कुकरोंदा के रस में जंगली बेर के ...

गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh

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(गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh) रोग परिचय-यह रोग मासिकधर्म बन्द हो जाने अथवा कम आने, अत्यधिक सम्भोग करने, चोट लग जाने, प्रदर काल में सर्दी लग जाने या उण्डे पानी से नहाने-धोने अथवा ठण्डी वस्तुओं का सेवन करने, गर्भाशय में तेज औषधियों के स्थानीय प्रयोग, सूजाक, उपदंश तथा प्रसवकाल में असावधानियों के कारण हो जाता है। आधुनिक चिकित्साशास्खी इस रोग का कारण शोथ उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं को मानते हैं। इस रोग में (नई शोथ में) पेडू में बहुत तेज दर्द और जलन होती है, सर्दी लगकर ज्वर हो जाता है। बार-बार मल-मूत्र का त्याग होता है। प्यास लगती है, जी मिचलाता है, कमर और सीवन में दर्द होता है। यदि गर्भाशय के पिछले भाग में शोथ अधिक हो तो पाखाना करते समय कष्ट होता है। दो-चार दिनों के बाद पीले रंग का लेसयुक्त पानी आना आरम्भ हो जाता है। फिर 8-10 दिन के बाद लक्षणों में कमी आ जाती है और उचित उपचार से रोगिणी ठीक हो जाती है। किन्तु उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में यह रोग पुराना हो जाता है। गर्भाशय की पुरानी शोथ में ज्वर नहीं होता है, किन्तु पेडू पर बोझ प्रतीत होता है, हल्का-हल्का सिर दर्द ...

स्तनों में दूध रुक जाना या जम जाना,Retention or Freezing of Milk,satno mein doodh ka jamna

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(स्तनों में दूध रुक जाना या जम जाना,Retention or Freezing of Milk,satno mein doodh ka jamna) रोग परिचय-यह रोग स्वी के स्तनों की दूध की नलियों या रक्त वाहिनियों के सुकड़ जाने या उनमें रसूलियां हो जाने, दूध की नलियों में गाढ़ी चिपकने वाली कफ रुक जाने सुद्दा उत्पन्न हो जाने, दूध के बहुत अधिक गाढ़ा हो जाने, स्तनों में बहुत अधिक मांस उत्पन्न होकर स्तनों के अन्दर रक्त वाहिनियों के दब जाने, दूध अधिक मात्रा में उत्पन्न होने और अधिकता के फलस्वरूप नलियों में फैसकर रुक जाने, शिशु के दुग्धपान न करने के कारण स्तनों में अधिक मात्रा में दुग्ध के एकत्र हो जाने तथा अत्यधिक गर्मी के कारण दूध का पानी सूख जाने अथवा अत्यधिक सर्दी के कारण दूध के जम जाने के कारण हो जाया करती है। इस रोग में दूध आवश्यकता से अधिक गाढ़ा होकर स्तनों में रुक जाता है और बाहर नहीं निकलता है। यदि काफी समय तक स्वी के स्तनों में दूध रुका रहे तो वह गन्दा और दूषित होकर संक्रमण उत्पन्न करके ज्वर उत्पन्न कर देता है, स्त्री के स्तन अकड़ जाते हैं तथा अत्यधिक दर्द होता है। कई बार तो पीड़ित स्वी को इन कष्टों के कारण सन्निपात (सरसाम...

स्तनों में दूध घट जाना,satno mein doodh ka kam hona

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(स्तनों में दूध घट जाना,satno mein doodh ka kam hona) रोग परिचय-इस रोग में स्वी के स्तनों में इतना कम दूध उत्पन्न होताहै कि उसके शिशु का पेट भी नहीं भरता है, शिशु भूख से बेहाल होकर रोता रहता है तथा रोगिणी के स्तन मुरझा जाते हैं। इस रोग का कारण रक्त कम उत्पन्न होना, रक्त विकार, मासिक धर्म की अधिकता, शरीर से किसी भी रूप से रक्त का अधिक निकल जाना, क्रोध, भय, चिन्ता, शिशु से स्वी का प्यार न करना तथा स्तनों में रक्त संचार की कमी इत्यादि से स्वी के स्तनों में दूध घट जाता है। उपचार-स्तनों पर कैस्टर ऑयल (Castor Oil) की मालिश करें। एलारसिन कम्पनी की टेबलेट लेप्टाडीन (Leptaden) 3 से 4 टिकिया प्रतिदिन गाय या बकरी के दूध से खायें । शक्ति-वर्धक योगों व खाद्य एवं पेय पदार्थों का सेवन करें। दूध, घी, मक्खन, मलाई, गेहूँ का दलिया, मूंगफली, बिनौले की खीर इत्यादि अधिक खायें। शतावरी ताजा अधिक मात्रा में खायें तथा शिशु को रात्रि में दूग्धपान की आदत न डालें।

स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna

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(स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna) रोग परिचय- इस रोग में स्त्री के स्तनों में दूध इतनी अधिकता से आने लगता है कि शिशु के दुग्धपानीपरान्त स्वयं बहने लगता है जिसके कारण स्वी के स्तनों में बहुत अधिक तनाव उत्पन्न होकर पीड़ा और कष्ट होने लगता है। प्रायः ऐसा भी देखने में आया है कि बिना गर्भ हुए स्तनों में दूध उत्पन्न होने लग जाता है। किन्तु ऐसा उसी समय हो सकता है जबकि मासिक धर्म काफी समय से बन्द हो। इस रोग का कारण रक्त और दूध उत्पन्न करने वाले भोजनों का अत्यधिक सेवन, शिशु का दुग्धपान छुड़वा देना और रक्त का पतला हो जाना, स्तनों को रोकने वाली शक्ति का कमजोर हो जाना इत्यादि है। प्रायः नर्वस स्वभाव की स्त्रियाँ जो अपने बच्चों को अत्यधिक प्रेम करती हैं उनको भी उनके स्तनों में भी बहुत अधिक मात्रा में दूध आने लगता है। उपचार- रोगिणी कब्ज न रहने दें और यदि आवश्यक हो तो हल्का-जुलाब लेकर पेट साफ करें । • चम्पा के फूल स्तनों पर बाँधते रहने से अधिक दूध उत्पन्न होना, कम हो जाता है। • तुलसी के बीज, सम्भालू के बीज 1-1 तोला, भांग के बीज 6 माशा तथा इतनी ही मात्रा ...

स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav

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(स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav) रोग परिचय-यह रोग चूंचियों को साफ न करने, दुग्धपान में असावधानी, शिशु द्वारा दुग्धपान करते समय दाँत से काट लेना, रक्तदोष तथा दुग्धपान करने वाले शिशु के मुख पाक हो जाने के कारण स्त्री की चूंची में घाव हो जाते हैं। जिनमें प्रायः जलन होती है, शिशु को दुग्धपान कराने में कष्ट होता है, घाव में अधिक दर्द और कष्ट होने पर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है।उपचार- घाव को नीम के पत्तों के क्वाथ से धोकर साफ करें और सेलखड़ी, मेंहदी के सूखे पत्ते समभाग पीसकर नारियल के तैल में मिलाकर लगायें। रोग अधिक होने पर रक्तशोधक योगों का सेवन करें। जिंक आक्साइड को नारियल के तैल में मिलाकर लगायें या बोरो गिलेसरीन लगायें। शीघ्रपाची व सात्विक भोजन खायें ।

स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona

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(स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona) रोग परिचय-यह रोग शरीर में कफ की अधिकता, स्तनों का बहुत अधिक हिलना-डुलना, स्तनों को बार-बार और अधिक खींचना, अत्यधिक सन्तान होना, स्वी का बॉडी न पीहनना, शिशु को अधिक समय तक दूध पिलाना इत्यादि कारणों से स्वी के स्तन युवावस्था में ही ढीले होकर लटक जाते हैं। उपचार सफेद रत्तियां, कसीस, चुनिया गोंद 1-1 तोला मिलाकर स्तनों पर लेप करके उपलों की आग से सेंक करें। मात्र 8-10 दिन के इस प्रयोग से स्तन कठोर हो जाते हैं। फिटकरी, काफूर 1-1 तोला अनार का छिलका 3 तोला को पीस-छानकर आवश्यकतानुसार स्तनों पर पतला-पतला लेप करना भी लाभप्रद है। • कच्चे आम (जो चने के आकार के हों) बबूल की बिल्कुल कच्ची फलियाँ, इमली के बीजों की गिरी, अनार का छिलका लें। सभी को छाया में सुखाकर बारीक पीसलें। फिर इसमें डेढ़ तोला घी तथा 5 तोला खांड मिलाकर हलवा बना लें और 40 दिनों तक प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इसके सेवन से ढीले स्तन कठोर हो जाते हैं तथा गर्भाशय से पानी आना भी बन्द हो जाता है। गर्भाशय और स्तन जवान स्त्रियों की भांति हो जाते हैं। रोगिणी हर समय बाड़ी पहने तथा ...

स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna)

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(स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna) रोग परिचय- इस रोग में स्वी के स्तन साधारणावस्था से भी छोटे हो जाते हैं उनका उभार ही नहीं रहता है। दूध भी बहुत ही कम मात्रा में उत्पन्न होता है। स्वी का सौन्दर्य तो नष्ट होता ही है साथ ही ऐसी स्त्री से उसक्ना पति तथा अन्य स्वियों भी घृणा सी करती रहती है। इस रोग का कारण- शारीरिक कमजोरी, दुबलापन, रक्त विकार, स्तनों के पालन-पोषण हेतु रक्त पूर्ण मात्रा में न पहुँचना, रक्तवाहिका रगों (नसों) में सुट्टे पड़ जाना, हारमोन्स के विकार तथा स्वी की भीतरी जननेन्द्रिय में जन्म से खराबी होना इत्यादि है उपचार- जैतून का तैल विशुद्ध तैल हल्के हाथों से धीरे-धीरे मालिश करने से स्तन की मांसपेशियां पुष्ट हो जाती है तथा वहाँ का रक्त संचार सुचारू रूप से होकर स्नायु बल होकर स्तन बढ़ जाते हैं तथा सुदृढ़ होते हैं। हमदर्द कम्पनी की यूनानी दवा "जमादे शबाब" की मालिश भी अत्यन्त लाभप्रद है। • केंचुए साफ किए हुए 1 तोला, सूखी जोंक 6 माशा दोनों को पीसकरसरसों के तैल में मिलाकर मालिश कर सेंक करना भी लाभकारी है। असगन्ध नागैरी, काली मिर्च,...