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यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan

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यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan रोग परिचय- इस रोग में यकृत बढ़ जाता है और उसमें दर्द होने लगता है। इस रोग के उत्पन्न होने के निम्न कारण होते हैं- यकृत में फोड़ा होना, एमीबिक पेचिश के कीटाणु द्वारा यकृत में पहुँचकर शोथ उत्पन्न कर दें, जिसके फलस्वरूप यकृत के दाँए लोथड़े में फोड़ा बनकर यकृत बढ़ जाना। इसमें रोगी को धीमा ज्वर, कभी-कभी पेचिश रोग पुराना हो जाने पर दिन में 2-3 बार पेट में मरोड़ उठना इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। आधुनिक चिकित्सक फोड़े में अधिक पीप पड़ने पर एसपाइरेटर नामक यन्त्र से पीप निकाल लेते हैं। इस फोड़े को किसी यन्त्रको प्रविष्टि करके अथवा औषधि सेवन द्वारा चीरना या फोड़ना अथवा घाव को धोना बेहद हानिकारक सिद्ध होता है। यकृत में रक्त की अधिकता (Congesttion of the liver) के कारण से भी यह रोग हो जाया करता है। इसमें दाई पसलियों के नीचे बोझ और मामूली दर्द होता है। अजीर्ण, पेट फूल जाना, भूख न लगना, पेट में गैस, भोजनोपरान्त पेट में भारीपन, सिरदर्द, अत्यधिक मांस व मदिरा का सेवन, गर्मी की अधिकता, पुरानी कब्ज, फेफड़ों या दिल के रोगों इत्यादि के कारण भी ...

न्यूमोनिया फुफ्फुसावरण प्रदाह,pneumonia ka ilaj

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न्यूमोनिया फुफ्फुसावरण प्रदाह,pneumonia ka ilaj रोग परिचय-यह दर्द छाती के अन्दर फेफड़ों के ऊपरी पर्दो में शोथ आ जाने के कारण हुआ करता है। इन पदों की दो तहें होती है। निचली तहें फेफड़े के ऊपर चिपकी रहती हैं और दूसरी तह छाती का भीतरी दीवार के साथ लगी रहती हैं। इस रोग के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण-सर्दी लग जाना, पानी में भीगना, चोट लग जाना, क्षय रोग होने के कारण उसमें संक्रमण का होना आदि हैं। प्रायः ज्वर के समय अथवा न्यूमोनिया रोग होने से पूर्व अथवा बाद में यह रोग उत्पन्न हो जाया करता है। यदि न्यूमोनिया में छाती में सख्त दर्द हो तो यह पसली के दर्द (प्लूरिसी) का लक्षण है। आमतौर पर न्यूमोनिया रोग में ज्वर, खाँसी रहने के साथ कफ अधिकता के साथ निकला करता है तथा रोगी को सांस लेने में बहुत कष्ट हुआ करता है। यह दर्द छाती में बाँयी या दाई ओर की पसलियों में अत्यधिक तीव्रता के साथ हुआ करता है जो उस ओर के कन्धे तक जाता है। जोर लगाकर खाँगने या रोगग्रस्त छाती की ओर करवट से लेटने पर रोगी को दर्द और कष्ट बढ़ जाया करता है। इस रोग में ज्वर शुरू होकर 101 से 103 डिग्री फोरेनहाइट तक हो जाया करता ...

कट जाने पर होने वाले दर्द व घाव,wound pain

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कट जाने पर होने वाले दर्द व घाव,wound pain नीम के पत्ते, सिन्दुआर के पत्ते, पत्थर चूर (पाषाणभेद) के पत्ते प्रत्येक 100 ग्राम लेकर जल से धोकर सिल पर पीसकर रस निचोड़ कर कपड़े से छान लें। फिर कड़ाही में डालकर 250 मि.ली. नारियल के तैल में पकाकर (मन्दाग्नि पर पकायें) तेल सिद्ध होने पर इसमें विशुद्ध कार्बोलिक एसिड 125 मि.ली. मिलाकर सुरक्षित रखलें। यदि मरहम बनाना चाहते हों तो सफेद मोम को पिघलाकरइसमें मिलालें । मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें। कटे घाव, जख्म पर इस मरहम को दिन में 2-3 बार लगायें। अत्यन्त लाभप्रद है। व्रणरोपण रस (रस योग सागर) 1 गोली को मधु, शुद्ध गूगल या ताजे जल के साथ दिन में 2 बार सेवन करें। यह कटे या आछातीय व्रण, जख्म, समस्त नाड़ी व्रण और मकड़ी के विष से उत्पन्न व्रण में लाभप्रद है। • व्रणान्तक रस (रसयोग सागर) आवश्यकतानुसार 1 से 3 गोलियाँ तक घी के साथ दिन में 2 बार प्रयोग करें। यह प्रत्येक प्रकार के कटे, जले एवं घावों के लिए लाभप्रद है। उपदंश से उत्पन्न व्रणों में भी लाभकारी है। भोजन में गाय, भैस का घी अधिक प्रयोग करें। घर पर बनाना चाहें तो निर्माण विधि यह है-शुद्ध सफेद ...

त्रिधारा नाड़ी का दर्द ,Trgeminal Nuralgia

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त्रिधारा नाड़ी का दर्द ,Trgeminal Nuralgia रोग परिचय-यह दर्द आँखों की भवों, गालों एवं ठोड़ी में प्रायः दोपहर से पूर्व शुरू हो जाता है जो छुरी मारने की भाँति होता है। यह दर्द पुराना हो जाने पर जल्दी-जल्दी होने लग जाता है और कभी 2-4 बार होकर स्वयं ही दूरहो जाता है। वैसे यह रोग हर आयु में हो सकता है किन्तु 50 वर्ष की आयु से पहले बहुत ही कम होते देखा गया है। यह दर्द बड़ी आयु में विशेषकर स्वियों को होता है। इस दर्द में 1 आँख के ऊपर और कभी-कभी चेहरे के आधे भाग में दर्द होता है। यह दर्द सीलन युक्त मकानों में रहने, थकावट, चिन्ता, क्रोध एवं शारीरिक कमजोरी आदि कारणों से उत्पन्न हो जाया करता है। उपचार • त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम और पंचसकार चूर्ण 2 ग्राम एकत्र कर गरम जल से खायें, ताकि 1-2 पतले दस्त आकर पेट साफ हो जाए। इससे दर्द तुरन्त दूर हो जाएगा। • दालचीनी, सौठ, बादाम की गिरी को जल में घिसकर एक चम्मच में डालकर गरम करें तथा इसे दिन में 2-3 बार रोगी के माथे पर लगायें। इस प्रयोग से तत्काल दर्द शान्त हो जाता है। • सफेद फिटकरी 12 ग्राम को आक के दूध में खरल करके सुखाले तथा धतूरे के ताजे पत्तों...

प्रसवोत्तर वेदना (Postpartum Pain)

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प्रसवोत्तर वेदना (Postpartum Pain) पहला बच्चा पैदा होने पर दर्द कम होता है किन्तु अधिक बच्चा जन चुकने वाली स्वियों को यह दर्द अधिक होता है। यह दर्द प्रायः बच्चा पैदा होने के बाद 2-3 दिन अथवा 6 दिन तक रहकर दूर हो जाता है। बच्चा पैदा होने के बाद गर्भाशय में बार-बार सिकुड़ाव पैदा होता है और फैली हुई बच्चेदानी अपने प्राकृतिक साइज पर आने के कारण प्रसूता स्वी को सख्त दर्द होता है जिसके कारण उसे नींद तक नहीं आती है। यह दर्द होना भी जरूरी है। अतः इसमें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि गर्भाशय का मुख फैला हुआ और ढीला रह जाए तो इससे स्वी का पेट बढ़ जाता है और उसको कमर दर्द रहने लग जाता है। उपचार • ईंट गरम करके पेडू पर सेंक करने से यह दर्द दूर हो जाता है तथा गर्भाशय में रुके पड़े गन्दे रक्त के छिछड़े भी निकल जाते हैं और गर्भाशय के प्राकृतिक स्थान पर आने में भी सहायता मिलती है। • प्रसवोपरान्त 2-3 दिन तक पिप्पल्यादि चूर्ण 2 से 4 तक गरम गुड़ के जल के साथ सुबह-शाम अथवा दर्द के समय खाना अत्यन्त लाभप्रद है । • गरम पानी की बोतल से प्रसूता की नाभि पर सेंक करना लाभकारी है। • यवक्षार 2 ग्राम को ...

प्रसव-समय का दर्द (Labour Pains)delivery pain,baccha paida hote samaye dard ka hona

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प्रसव-समय का दर्द (Labour Pains)delivery pain,baccha paida hote samaye dard ka hona कई स्वियों को बच्चा पैदा होने के समय काफी दर्द और कष्ट होता है। शहरी वातावरण में रहने वाली विशेषतः धनवान समाज की स्वियों को प्रसव पीड़ा अधिक होती है। कई बार अनुभवहीन नर्स या दाई झूठे दर्दों को सच्ची प्रसव-पीड़ा समझकर बच्चा पैदा कराने का यत्न करने लग जाती है, जिसके कारण जच्चा और बच्चा दोनों को हानि होती है। कच्ची (झूठी) दर्द पेट के सामने से उठती है और अनियमित होती है। ध्यान रखें कि सच्ची (वास्तविक) प्रसव पीड़ा पीठ की ओर से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे पेडू के चारों ओर फैलती जाती है। इन दर्दो के जोर से गर्भाशय में रुक-रुककर सिकुड़ाव की लहरें गर्भ के अन्तिम समय में उठने लग जाती है जो कैस्टर आयल से पिलाने से दूर हो जाती है। बच्चा कष्ट से पैदा होने के कुछ विशेष कारण हुआ करते हैं-सख्त कब्ज, मूत्राशय का मूत्र से भरा होना, सर्दी लग जाना, गर्भस्थ शिशु का सिर असाधारण रूप से बहुत अधिक बड़ा होना या गर्भाशय में बच्चा का प्राकृतिक दशा में न होना अर्थात् सिर नीचे की ओर होना इत्यादि । सच्ची प्रसव पीड़ा में प्रार...

मासिकधर्म दर्द से आना, कष्टार्तव,period pain,masik daram ka dard

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मासिकधर्म दर्द से आना, कष्टार्तव,period pain,masik daram ka dard • गाजर के बीज, एलुआ, अमरबेल प्रत्येक 10 ग्राम, सौंठ, अतीस और केशर, मोंगरा प्रत्येक 5 ग्राम लें। सबको एकत्र सूक्ष्म पीसकर कपड़छन कर तिलोंके जल से (12 घंटे पूर्व काले तिलों को जल में भिगोय रखें) 125 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम खाकर ऊपर से तिलों का जल 15 मि.ली. पियें। अत्यन्त लाभप्रद योग है। • तिल, सहजन, कपास तथा ब्रह्मदन्डी की जड़ की छाल, मुलहठी, पिप्पली, काली मिर्च, सौठ प्रत्येक 100 ग्राम लें। सभी को एकत्र कर बारीक पीसकर (चूर्ण बनाकर) सुरक्षित रखें। यह चूर्ण दिन में 2 से 3 ग्राम तक की मात्रा में 2 बार गरम चाय के साथ सेवन करने से दर्द तथा रजोरोध दोनों दूर हो जाते हैं। • कलौंजी, काले तिल और सपिस्तां समभाग लेकर जल में काढ़ा बनायें। 30 मि.ली. की मात्रा में यह काढ़ा 3 ग्राम गुड़ के साथ प्रयोग करने से पीड़ा और कुच्छार्तव दूर हो जाता है। • रेशमी कपड़े को जलाकर भस्म बनाकर सुरक्षित रखलें। इसे 2 से 5. ग्राम की मात्रा में मट्ठे के साथ खिलाने से कष्टार्तव तत्काल शान्त हो जाता है।

विरेचन (जुलाब) हेतु कुछ अन्य उपयोगी योग,constipation, kabaz ka ilaaj

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विरेचन (जुलाब) हेतु कुछ अन्य उपयोगी योग,constipation, kabaz ka ilaaj • रूमीमस्तंगी 3 ग्राम, मिश्री 6 ग्राम दोनों को बारीक पीसकर (यह 1 मात्रा है) रात्रि में सोते समय गर्म पानी या गरम दूध से लें। लगातार 3-4 दिन तक सेवन से कोष्ठबद्धता (कब्ज) से सदा-सदा के लिए छुटकारा मिल जाता है। • जुलाफा हरड़ 3 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम दोनों को बारीक पीसकर फाँकने से तथा ऊपर से गरम जल पीने से कब्ज दूर हो जाती है। चाहें कितना ही सख्त मेदा हो, यह योग निष्फल नहीं होता है। • स्वर्णक्षीरी (सत्यानासी) के 10 ग्राम बीज को हाथ में लेकर कई बार जोर-जोर से दबाने से टट्टी की हाजत होकर दस्त आ जाता है। • सोये के बीजों को पानी में पीसकर गुदा पर लेप करने से तुरन्त दस्त आ जाता है। अनुभूत योग है।

गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj

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गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj  रोग परिचय-इस रोग में रोगी को तीव्र ज्वर हो जाता है। शरीर के किसी एक कई जोड़ों में शोध हो जाती है और उनमें बहुत ही तीव्र दर्द होता है। यह रोग कई प्रकार का हुआ करता है जैसे- बच्चों और युवाओं में गठिया का ज्वर, बूढ़ों में आर्थराइटिस, फाईब्रोसाइटिस, चूतड़ का दर्द, घुटने के जोड़ का दर्द इत्यादि। यह रोग चिकित्सीय दृष्टिकोण से 2 प्रकार का माना जाता है। 1- नया (एक्यूट), 2. पुराना (क्रोनिक) ।नये रोग में रोगी को ज्वर होकर जोड़ सूज जाते हैं और उनमें सख्न दर्द होता है। यह दर्द कभी एक जोड़ में होता है और कभी किसी दूसरे जोड़ में होता • है। दर्द और शोथ के स्थान बदलते रहते हैं। पुराने रोग में जो जोड़ बहुत अधिक सूजकर मोटे हो जाते है और प्रायः जुड़ जाते हैं, उन्हें हिलाना भी कठिन हो जाता है। यह रोग वर्षों तक रहता है और हर जोड़ में रोग हो जाता है। यह रोग एक विशेष प्रकार के कीटाणु (स्ट्रप्टो कोक्स और हेमालाइटित्स) से होता है। ये कीटाणु गले और टान्सिल द्वारा रोगी के शरीर में चले जाते हैं। यह रोग 4 वर्ष से 15 वर्ष के बच...

हृदयशूल (दिल का दर्द)=dil ka dard

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हृदयशूल (दिल का दर्द)=dil ka dard रोग परिचय-यह दर्द प्रायः 45 वर्ष की आयु के पश्चात् हुआ करता है। किन्तु आजकल दूषित वातावरण एवं अनियमित खान-पान के कारण कम आयु में भी होने लगा है। यह दर्द थोड़ी देर तक रहता है और जब तक उपचार हेतु किसी चिकित्सक को बुलाया जाता है और चिकित्सक रोगी के घर पर पहुँच जाता है तब तक यह दर्द दूर हो जाता है। यदि यह दर्द आधा घंटे से अधिक देर तक रहे तो दिल में रक्त की गुठली जम जाने से 'हृदय धमनी काठिन्य (Coronary Thromosis)' का सन्देह करना चाहिए । कई बार हृदय का दर्द प्रारम्भ होने से पहले रोगी को हृदय के स्थान पर बोझ और बेचैनी सी प्रतीत हुआ करती है और कई बार यह दर्द बिना कुछ पता चले ही एकाएक प्रारम्भ हो जाता है। यह दर्द हृदय के स्थान और छाती की बाँयी ओर तथा बांये बाजू में जाता है और कभी दाँयी ओर की छाती में होता है। कई बार यह दर्द दिल, छाती, बाँये बाजू के अतिरिक्त गर्दन, निचले जबड़े, दाँतों और . कमर तक जाता है। कई रोगियों को दर्द बिल्कुल नहीं होता है बल्कि सांस आने में कठिनाई होने लगती है। इस दर्द से रोगी की छाती जकड़ी हुई प्रतीत होती है। काम करने,...

दाँत दर्द, दाँत का कीड़ा (Toothache)=dant dard,dant ka keeda ka ilaj

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दाँत दर्द, दाँत का कीड़ा (Toothache)=dant dard,dant ka keeda ka ilaj  • हींग या लौंग पीसकर खोड़ में भर देना या मलना अथवा लहसुन पर नमक छिड़क कर चबाना, कोकीन लोशन, क्रियोजोट या कार्बोलिक एसिड लोशन लगाना, पिसा तम्बाकू मलने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है। काली मिर्च, अकरकरा, लौंग, राई सभी समभाग लें और पीसकर मंजन बनालें। उसे दाँतों पर मलने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है। • नौशादर 60 ग्राम, फिटकरी 120 ग्राम बारीक पीसकर अंगूरी सिरका 240 ग्राम मिलाकर उबालें। जब सिरका खुश्क हो जाये तब कपड़े से छानकर रखलें । यह 250 से 500 मि.ग्रा. तक औषधि मसूढ़ों पर मलकर मुँह का पानी बहनें दें। थोड़ी देर कुछ खाये-पियें नहीं। दाँतों के दर्द में तुरन्त लाभ होगा। कपूर, सत अजवायन, सत पोदीना तीनों को समभाग लेकर शीशी में रखलें। थोड़ी देर यह तरल औषधि बन् जायेगी। इसको अमृतधारा कहा जाता है। रुई के फाहे से 1-2 बूँद यह औषधि पीड़ित दाँतों पर मलें। दाँतदर्द में लाभकारी है। • अमरूद के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों की सूजन और दर्द दूर हो जाता है। • नीम की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का ...

आँख दुखना एवं आँखों के अन्य विभिन्न रोग/eye treatment/ankh ke rogon ka upchar

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आँख दुखना एवं आँखों के अन्य विभिन्न रोग/eye treatment/ankh ke rogon ka upchar  रोग परिचय- इस रोग से प्रायः सभी परिचित हैं। इस रोग में आँखें लाल हो जाती है, सूज जाती हैं, उनमें सख्त दर्द होता है, पानी बहता रहता है जो बाद में गाढ़े स्राव के रूप में बदल जाता है। रोगी धूप या प्रकाश बर्दाश्त नहीं कर पाता है। रात्रि में सोने पर नींद के कारण आँखें चिपककर बन्द हो जाती हैं जिसके कारण सोकर उठने पर प्रातःकाल बहुत कष्ट होता है। पीप पड़ जाने पर आँख का ढेला गलने लग जाता है। उपचार मैला-कुचैला हाथ या कपड़ा आँख पर कदापि न लगायें। आँखों से पानी बहने पर 15 ग्राम पिसी हल्दी 250 मि.ली. पानी में घोलकर उसमें कोई मलमल का साफ सफेद कपड़ा रंगकर उससे बार-बार आँखों को पोंछना तथा दबाते रहना लाभप्रद है। • त्रिफला (हरड़ा, बहेड़ा, आँवला समभाग) का चूर्ण 3 ग्राम को 25 मि.ली. पानी में भिगोकर रातभर पड़ा रहने दें। प्रातः काल इस निथरे हुए पानी से साफ कपड़े की गद्दी तर करके आँखों पर रखने और इस पानी से आँखें धोने से दर्द, पानी बहना, लाली और आँखें चिपक जाने को आराम आ जाता है ।• डाक्टरों वाली रुई का पैड बनाकर दू...

विभिन्न कर्ण रोग /Otalgia, Earrche/ear treatment

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विभिन्न कर्ण रोग /Otalgia, Earrche/ear treatment  • जिस कान में दर्द हो उसमें ताजा हाइड्रोजन परआक्साइड (Hydrogen peroxide) 2-4 बूंद डालकर साफ रूई की फुरैरी से कान को पोंछकर साफ करें, तदुपरान्त कोई दवा डालें । • प्याज का रस गरम करके कान में टपकाना लाभप्रद है। pra • समुद्रझाग पीसकर व कपड़े से छानकर 60 मि.ग्रा. कान में टपका दें। ऊपर से नीबू का रस 2 बूंद डालें । • मूली कूटकर उसका 25 मि.ली. रस निकालकर 62 मि.ली. तिल का तैल मिलाकर (धीमी आग पर इतना पकायें कि तैल मात्र शेष बचे) फिर इसे गुनगुना करके 2-3 बूंद कान में डालें। भयंकर कानदर्द भी मिट जाता है। • लाल मिर्च के बीज को पानी में हाथ से मसलकर उस पानी की 2-4 बूँद कान में डालें। थोड़ा सा लगेगा तो जरूर - किन्तु कान का दर्द अवश्य ठीक हो जाएगा ।• सुखदर्शन के पत्ते पर जरा सा घी लगाकर गरम करलें । उसका रस निकालकर कान में टपकाने से कानदर्द तुरन्त बन्द हो जाता है। • लहसुन की 3-4 कली लें। उन्हें 50 ग्राम सरसों के तैल में जलाकर रखें । आवश्यकता पड़ने पर इस तैल को थोड़ा सा गरम करके कानों में डालने से कानदर्द दूर हो जाता है৫০০ गधे की लीद का ...

नाड़ी शूल, स्नायुशूल /न्यूरेल्जिया/Trigeminal Neuralgia

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  नाड़ी शूल, स्नायुशूल /न्यूरेल्जिया/Trigeminal Neuralgia रोग परिचय-स्नायुशूल उस दर्द को कहा जाता है जो विशेष दोष से पैदा होता है। जैसे माथे की भवों में मलेरिया के कारण दर्द हो जाना दाँतदर्द के प्रभाव से चेहरे में दर्द या मासिकधर्म के दोष के कारण स्वी, के स्तन' या आधे सिर का दर्द होना। वैसे प्रायः दर्द चाहें किसी भी कारण से किसी भी रोगी को हो किन्तु उस दर्द का ज्ञान तन्त्रिका द्वारा प्रतीत होता है। स्नायुशूल दौरों के रूप में हुआ करता है। रोगी को ज्वर या शोध नहीं होता है केवल दर्द होता है। स्नायुशूल (न्यूरेल्जिया) में तन्त्रिका या स्नायु में दर्द प्रतीत होता है किन्तु वात नाड़ी शोथ 'न्यूराइटिस' में तन्त्रिका में शोथ और दर्द भी होता है। एकाएक दर्द शुरू होकर बढ़ता जाता है और फिर तुरन्त ही दूर हो जाता है अर्थात् यह दर्द दौरों के रूप में हुआ करता है जबकि 'वात नाड़ी शूल' हर समय होता रहता है और रोगग्रस्त भाग को हिलाने या दबाने से दर्द बढ़ जाया करता है। नाड़ी में संज्ञाहीनता और पक्षाघात होने जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु सदैव यादरखें कि नाड़ी शूल में नाड...

सिरदर्द /Headache/sir dard ka ilaj

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सिरदर्द /Headache/sir dard ka ilaj सिरदर्द स्वयं में कोई रोग नहीं होता है बल्कि यह किन्हीं दूसरे रोगों के कारण हुआ करता है। • आमाशय और अन्तड़ियाँ कमजोर हो जाने, भोजन न पचने, आमाशय और अन्तड़ियां फूल जाने या पेट के तन्त्रिका तंत्र पर बोझ पड़ने से भोजनोपरान्त सिर भारी हो जाता है और सिर में दर्द होने लगता है। रोग के प्रारम्भ में यह कभी-कभार होता है किन्तु इसकी (पाचन रोगों की) चिकित्सा न करने पर खाने के बाद प्रतिदिन ही सिरदर्द का कष्ट होने लग जाता है। उपचार-इस प्रकार से उत्पन्न सिरदर्द का उचित उपचार पाचन अंगों को शक्तिशाली बनाना ही है। पीड़ित रोगी तले हुए भोज्य पदार्थ-पूरियाँ, परांठें, डबलरोटी तथा मैदे से बने भोज्य पदाथों का सेवन तुरन्त त्यागें। शीघ्र पचने वाले भोजन एवं फल इत्यादि ही खायें । • हिंग्वष्टक चूर्ण या लवण भास्कर चूर्ण 2-3 ग्राम तथा प्रवाल भस्म 60 मि.ग्रा., लौह भस्म 30 मि.ग्रा. ऐसी एक मात्रा प्रतिदिन खाते रहना लाभप्रद है।• नजला, जुकाम से उत्पन्न सिर दर्द- काफी समय तक नजला जुकाम के बने रहने से मस्तिष्क और तन्त्रिका कमजोर हो जाने के कारण सिर दर्द रहने लगता है। इस प्रकार...

वंक्षण दद्रु -Tinea Crusis-daad ka ilaj

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वंक्षण दद्रु -Tinea Crusis-daad ka ilaj  यह भी एक प्रकार का दद्रु (दाद) रोग ही है। इसके लक्षण दाद के समान होते है, अतः दाद के अन्तर्गत पढ़ें । उपचार टिंचर आयोडीन को आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगायें । • चक्रमर्द (चकबड़) के बीजों को घिसकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगाना लाभकारी है। • गन्धक, तूतिया, सुहागा, फिटकरी सभी को सममात्रा में लेकर एक कटोरे में आग पर पिघला कर भली भाँति मिला लें। तदुपरान्त इसकी पिघली हुई दशा में ही बड़ी-बड़ी गोलियाँ बना लें। ठण्डी होकर ये गोलियां कठोर हो जायेंगी।फिर इन्हें सरसों के तैल में घिसकर लेप तैयार कर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाया करें। लाभप्रद योग है। तृतिया का कपड़छन चूर्ण 120 मि.ग्रा. माजूफल का कपड़छन चूर्ण 360 मि.ग्रा. और मोम तथा मधु (18-18 ग्राम तथा मि.ली.) को खरल में खूब घोटकर मरहम (लेप) बनालें। इसको चाहे किसी भी शरीर के स्थान पर दाद हों, वहाँ दिन में 2-3 बार लगाने से शर्तिया लाभ हो जाता है। • गन्धक, सुहागा, मुर्दासंग, नौशादर, माजूफल, मिर्च सफेद, खैर, अफीम और चीनियां गोंद प्रत्येक 12 ग्राम लेकर जल के साथ पीसकर गोलिय...

पदम-कन्टक, शैवालिका -Lichen planus

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पदम-कन्टक, शैवालिका -Lichen planus यह भी एक विशिष्ट प्रकार का चर्म रोग है जिसमें त्वचा पर चपटे उभारयुक्त या गुलाबी आभा वाले चकत्ते प्रथम कलाई, आगे की बाँह एवं घुटनों पर निकलते हैं और फिर उसके बाद समस्त बाहु, पैर, टखने, जाँघ और बगलों, नितम्बों एवं उदर के भाग पर भी चकत्ते निकल आते हैं।उपचार • एसिड कार्बोलिक (फेनाल) 4 मि.ली., कैम्फर 8 ग्राम, गिलेसरीन 16 मि.ली. तथा परिश्रुत (उबाला हुआ) जल 250 मि.ली. को एकत्र मिलाकर समस्त आक्रान्त त्वचा पर लगाकर मालिश करें। • बोरिक एसिड, जिंक आक्साइड और स्टार्च पाउडर (प्रत्येक 30-30 ग्राम को मिलाकर रखलें। स्नान के बाद शरीर को सूखे तौलिया से पोंछकर आकान्त अथवा समस्त शरीर पर लगाकर मालिश करें। • कार्बोलिक एसिड 1.5 मि.ग्रा. तथा जल 6 मि.ली. को भली-भाँति मिलालें इसे आक्रांत चर्म पर 2 मिनट तक लगाकर बाद में स्नान कर लें। • एसिड सैलीसिलिक 4 ग्राम और रैक्टीफाइड स्प्रिट 240 मि.ली. दोनों को भली प्रकार मिलाकर त्वचा पर 2 मिनट तक लगाकर रखें। तदुपरान्त 'मार्गो' या 'टेटमोसाल' अथवा 'नीको' साबुन से स्नान करें। • नीम के पत्तों को सुखाकर कपड़...

घाव का संक्रमण /Wound Infection

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घाव का संक्रमण /Wound Infection रोग परिचय-शरीर पर अनेक कारणोंवश घाव हो जाया करते हैं। घाव में स्टैफिलोकोक्कस नामक कीटाणु का संक्रमण होता है। वर्तमान युग में लाठी, डन्डा, तलवार, भाला, छुरी, चाकू, बरछा, तीर, बांस अथवा अन्य कोई धारदार हथियार के प्रहार से घाव बन जाने की तो बात कौन कहे ? रायफल, बन्दूक, पिस्तौल, मशीनगन, इत्यादि आग्नेय अस्खों से भी घाव हो जाते हैं। चिकित्सीय दृष्टिकोण से यह घाव अनेकों प्रकार के होते हैं। जैसे- मृत्युकारक क्षत या घाव (Martal Wound) या बन्दूक की गोली का घाव या क्षत (Gunshot Wound) या आग्नेयास्व का क्षत या घाव इत्यादि । उपचार • सर्वप्रथम घावों को नीम के ताजे पत्तों के काढ़ा से भली भांति धो-पोंछकरसुखाकर घावों पर 'जात्यादि तैल' दिन में 2-3 बार लगायें अथवा 1 बार लगाकर पट्टी बाँधे। to g • 'रसमाणिक्य' (भै. र.) 125 से 250 मि.ग्रा. तथा 'गन्धक रसायन' (भै. र.) 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक एकत्र मिलाकर मधु से सुबह-शाम चटायें। • 'महातिक्तधृत' (सि. यो. संग्रह) भेद होते हैं। 1 से 4 ग्राम तक गौदुग्ध या जल से खायें। • 'महामन्जिष्ठा...

शिरा-कुटिलताजन्य विचर्चिका (Vicersandeins)

शिरा-कुटिलताजन्य विचर्चिका (Vicersandeins) रोग परिचय-शिरा के कुटिल, टेड़ी-मेढ़ी हो जाने पर उस स्थान की त्वचा पर एक्जिमा उत्पत्र हो जाता है। आक्रान्त स्थान पर जलन उत्पन्न करने वाली लाल-लाल फुन्सियाँ निकल आती हैं। वे खुजलाने पर व्रणों (Ulcers) में परिवर्तित हो जाती हैं। इन व्रणों से स्वच्छ जल के सदृश रस स्खवित होता रहता है जिसके कारण अत्यधिक खाज और दाह होता है। यह रोग शिरा के ऊपर त्वचा पर शिरा को टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए निकलता है। उपचार) • 'पंचतिक्त घृत गुग्गुल' 6 से 12 ग्राम तक गाय के दूध अथवा ताजा जल से दिन में 2-3 बार सेवन करें । • 'सारिवाद्यारिष्ट' एवं 'महामन्जिठारिष्ट' क्रमशः 15 मि.ली. और 10 मि.ली. में जल 25 मि.ली. मिलाकर दिन में 2 बार भोजनोपरान्त सेवन करें । • आक्रान्त त्वचा को धो-पौछ व सुखाकर दिन में 2-3 बार 'महामरिच्यादि तैल' लगायें । तदुपरान्त हाथों को साबुन से धोकर स्वच्छ कर लें। • 'गन्धक रसायन' रोगी की आयु व दशा को दृष्टिगत रखते हुए 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक मधु से सुबह-शाम दिन में 2 बार सेवन करें। • प्रथम कोष्ठ शुद्धि हेतु इच्छाभेदी रस की...

सिध्म, सेंहुआ (Pitriasis)

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सिध्म, सेंहुआ (Pitriasis) रोग परिचय-यह रोग छीप रोग का ही एक अन्य प्रकार है। यह रोग फफूंद के संक्रमण से एक से दूसरे व्यक्ति में प्रसारित होता है। उपचार • महामन्जिष्ठादि काढ़ा 15 से 30 मि.ली. समान जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार सेवन करें। • पंचतिक्त घृत गुग्गुल (आवश्यकता तथा रोगी की आयु के अनुसार) 6 से 12 ग्राम तक दूध या ताजे जल से दिन में 2-3 बार खिलायें । • हल्दी, छोटी पीपर, दारु हल्दी और केशर प्रत्येक 50 ग्राम लें। इन्हें जल के साथ पीसकर लुगदी बना लें। फिर घी 1 किलो, चीतामूल का काढ़ा 4 कि. और उपर्युक्त लुगदी मिलाकर 1 कड़ाही में डालकर घी मात्र शेष बच जाने पर विधिपूर्वक पाक करें। तदुपरान्त छानकर व शीतल कर सुरक्षित रख लें। यह सिद्ध घी 13 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मि.ली. दूध में डालकर पिलायें, इसी का नस्य करें एवं आकान्त त्वचा पर दिन में 2 बार मालिश करें। सिहम (सेंहुआ) नाशक उत्तम प्रयोग है।

वाहिका तन्त्रिका शोथ, कोठ दर्द /Angioneurotic Oedema

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वाहिका तन्त्रिका शोथ, कोठ दर्द /Angioneurotic Oedema त्वचा में तन्त्रिका विकृति के कारण स्थान स्थान पर लाल रंग के चकत्ते एवंत्वचा में शोध उत्पन्न हो जाती है। यही 'वाहिका तन्त्रिका शोथ' कहलाती है। उपचार • नीम के पत्तों का रस 15 मि.ली., पुनर्नवा क्षार 60 मि.ग्रा. के साथ सुबह-शाम प्रयोग करें । • मधु मन्ड्रर भस्म (योग रत्नाकर) आवश्यकता तथा आयु के अनुसार 250 से 500 मि.ग्रा. तक दिन में 1-2 बार प्रयोग करें। • शीत-पित्त भंजन रस (रस योग सागर) आवश्यकतानुसार 125 से 250 मि.ग्रा. तक मधु से दिन में 2-3 बार तक चटायें। • पुनर्नवादि मन्डूर (भै. र.) आयु के अनुसार 1 से 2 गोलियां तक दिन में 2 बार त्रिफला के क्वाथ (काढ़ा) से सेवन करें।

पीली फुन्सियाँ, चर्मदल /Impetigo Contagioser/peeli foonsiyan

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पीली फुन्सियाँ, चर्मदल /Impetigo Contagioser/peeli foonsiyan रोग परिचय-इस रोग में त्वचा पर 0.62 से 125 सेमी. व्यास में पीपयुक्त फुन्सियां हो जाती हैं, जो बाद में पीली या गहरी आभायुक्त पीले खुरन्ड में परिवार्तत हो जाती हैं। सिर पर निकली इस प्रकार की फुन्सियों से बाल परस्पर (आपस में) चिपक कर गुच्छे जैसे हो जाते हैं। यह रोग सामान्यतः मुखमण्डल एवं माथे के पृष्ठ भाग पर होता है। यह संक्रामक चर्म रोग होने के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाता है। उपचार • आक्रान्त भाग (त्वचा) को नीम की पत्तियों के काढ़े से भली-भाँति धो-सुखाकर जात्यादि तैल (शा. सं.) दिन में 3-4 बार लगायें। लाभप्रद है। • आक्रान्त त्वचा को नीम के साबुन से धोकर स्वच्छ करें व सुखाकर व्रण राक्षस तैल (भै. र.) दिन में 2-3 बार लगायें। लाभकारी है। • महामन्जिठाद्यारिष्ट (आयु. सार संग्रह) 15 मि.ली. तथा सारिवाद्यारिष्ट (ग्र. भै. र.) 15 मि.ली. दोनों को मिलाकर तथा औषधि के मात्रा के बराबर जल मिलाकर दिन में 2 बार भोजनोपरान्त सेवन करें । • महातिक्तः घृत (सि. यो. सं.) भोजन के प्रथम ग्रास (कौर) के साथ 2 से 5 ग्राम तक दिन मे...

त्वग्ग्राह /Pellagra/vitmin b1 ki kami ke upchar

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त्वग्ग्राह /Pellagra/vitmin b1 ki kami ke upchar रोग परिचय-यह रोग विटामिन निकोटेनिक एसिड (विटामिन बी काम्पलेक्स का 1 सदस्य अथवा विटामिन बी का 1 अन्य प्रकार) की कमी सेहो जाता है। यह रोग ज्वार (अनाज) तथा हरी शाक-सब्जियों को खाने वालों शाकाहारियों को विशेषकर होता है। अत्यधिक मद्यपान करने वालों, अतिसार, संग्रहणी और यकृत विकार से पीड़ित व्यक्तियों को भी यह रोग हो जाया करता है। अधिक मद्यपान के कारण उत्पन्न हुए रोग को (एल्कोहाली पेलामा) कहा जाता है। इस रोग में चर्म पर चकत्ते प्रकट होते है तथा स्थानीय चर्म स्थूल हो जाता है। कभी-कभी सिर में दर्द, माथे में चक्कर, चाल की अनिमियतता, हाथ और पैरों में दर्द, पाचन क्रिया की गड़बड़ी, मुखपाक, जीभ एवं मसूढ़ों में सूजन तथा पतले दस्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। रोग के शुरू में चकनों में सूजन, लालिमा होती है, छूने से कष्ट होता है, किन्तु आगे चलकर ये चकत्ते भद्दे होकर उनमें खुरन्ड पड़ जाते हैं। निकोटोनिक एसिड (मेडीकल स्टोरों पर प्राप्य) खिलाने से इस रोग के लक्षणों में कमी हो जाती है। यह इसकी पहचान है। उपचार अश्वगन्धारिष्ट तथा अभयारिष्ट दोनों (भै. र...

फाइलेरिया, श्लीपद या फीलपाँव=filaria=sallallah=filpaav

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फाइलेरिया, श्लीपद या फीलपाँव=filaria=sallallah=filpaav रोग परिचय-यह रोग (फाइलेरिया बेन्काफ्टाई) नामक कीटाणु के संक्रमण से उत्पन्न होता है। यह कीटाणु रोगी के रक्त या लसिका प्रवाह में उपथित रहता है। ये कीटाणु सूत के समान पतला तथा लगभग 2 मीटर तक लम्बा और 2.5 मि.मी. मोटा होता है। इस रोग में सर्वप्रथम पैरों की ऊपरी त्वचा में सूजन होकर उसका रंग गम्भीर हो जाता है। धीरे-धीरे आक्रान्त पैर अपनी प्राकृतिक अवस्था से दोगुना, तिगुना मोटा हो जाता है। इसकी सूजन में अंगुली से दबाने पर गड्‌ढेनहीं पड़ा करते हैं। लसिका वाहिनियाँ सूज जाती हैं जिससे कई स्थानों पर उभार बन जाते हैं और उसमें दूधिया जल के समान तरल बहने लगता है। किसी-किसी रोगी में इसका कीटाणु संक्रमण अण्डकोषों में पहुँच जाता है जिसके परिणामस्वरूप अण्डकोष 40 कि. मा. तक भारी हो जाते हैं। उपचार • अँगूठे के ऊपर का रक्त निकाल देने से यह रोग नष्ट हो जाता है। • गुड़ और हल्दी बराबर को गाय के मूत्र के साथ प्रयोग करने से यह रोग नष्ट हो जाता है। • 10 माशा कसौंदी की जड़ को गाय के घी मिलाकर प्रयोग करने से श्लीपद रोग नष्ट हो जाता है। • सहदेवी को त...

तलुवों में जलन होना =Burning hand and feet syndrome=haath pair ke talvo mein jalan

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तलुवों में जलन होना =Burning hand and feet syndrome=haath pair ke talvo mein jalan रोग परिचय-इस रोग के उत्पन होने के विभिन्न कारण है। कभी-कभी किसी-किसी रोगी के हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों में इतनी अधिक दाह या जलन होती है कि रोगी चैन की नींद नहीं सो पाता है। उपचार • हरड़, बहेड़ा, आँवला और अमलतास का गूदा प्रत्येक 5-5 ग्राम लेकर जौकूट कर 375 मि.ली. जल में काढ़ा बनायें। 60 मि.ली. जल शेष रहते ही उतार लें और छानकर ठण्डा करके सुबह-शाम पिलायें । • मेंहदी के पत्ते, शरपुंखा के पत्ते तथा नीम के पत्ते प्रत्येक 10 ग्राम लेकर जल के साथ सूक्ष्म पीसलें। इसे हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों पर दिन में 3-4 बार लगाकर पट्टियाँ बाँध दें। नोट-इस औषधि को बहुत देर तक लगाये रहना चाहिए । • पित्त पापड़ा, लाल चन्दन, खस, पदमाख, नागरमोथा, प्रत्येक 5-5 ग्राम को जौ-कुट करके आधा लिटर पानी में क्वाथ बनायें। जल 300 मि.ली. शेष बचे, तब ठण्डा करके इसमें 12 मि.ली. शुद्ध शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना इस रोग को नष्ट कर देता है। • गिलोय सत्व (योग रत्नाकर) 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक मधु से दिन में 2-3 बार चाटें तथा ...

केशों का असमय पकना -Premature Graying-umar se pehle baal safed hona

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केशों का असमय पकना -Premature Graying-umar se pehle baal safed hona रोग परिचय-असमय अर्थात् कम आयु में विविध कारणों के कारण सिर के बाल पककर सफेद हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप रोगी का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। उपचार रीठा को जल में 12 घंटे तक भिगोकर उसके फेन से सिर के समस्त बालों को धोकर सूखे तौलिया से सुखायें। तदुपरान्त सूखे आँवला 250 ग्राम को 12 घंटे तक जल में भिगोकर इसके निथरे हुए जल को छानकर इससे केशों की जड़ों को भिगोते हुए धोवें। यह क्रिया (प्रयोग) प्रतिदिन 1-2 बार किया करें। अत्यन्त लाभप्रद घरेलू योग है। • शिकाकाई केश तैल (निर्माता मैट्रो) या महाभृंगराज केश तैल (निर्माता वैद्यनाथ) अथवा आंवला केश तैल (निर्माता डाबर) का बालों को धो पोंछ व सुखाकर बालों की जड़ों में प्रतिदिन 1-2 बार लगाना भी अतिशय गुणकारी है।

पनसिका, फुन्सी (Furuncle)

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पनसिका, फुन्सी (Furuncle) रोग परिचय-यह एक विशिष्ट प्रकार की फोड़े-फुन्सियों का संक्रामक रोग है। एक साथ पास-पास या दूर-दूर उत्पन्न होती है। शरीर में जिस पर इन विशिष्ट फुन्सियों का पूय (पीप आदि) लग जाता है। त्वचा के उस स्वस्थ स्थान पर भी ये उत्पन्न हो जाया करती हैं। उपचार • नीम के पत्तों के काढ़े से आक्रान्त त्वचा को प्रतिदिन प्रातः काल धो पौंछकर स्वच्छ करें । • सारिवाद्यारिष्ट तथा महा मन्जिष्ठारिष्ट प्रत्येक 15 मि.ली. समान भाग जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पीना लाभप्रद है। परवल के पत्ते 12 ग्राम, नीम के पत्ते 12 ग्राम और जल 1 लीटर लेकर उनका विधिव् काढ़ा बनायें। आधा लीटर शेष बच जाने पर छानकर इससे आक्रान्त त्वचा को दिन में 2 बार धोवें तदुपरान्त नीम तैल और निर्गुन्डी के तैल में कपूर मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 3-4 बार लगायें। यह लाभकारी है।

नख-शोथ, चिप्य (Onychia)nakhoono ke massage mein soojan or jalan

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नख-शोथ, चिप्य (Onychia)nakhoono ke massage mein soojan or jalan रोग परिचय-इस रोग में नख (नाखून) और इसके मांस में सूजन हो जलन और दर्द होता है। यह रोग रक्त की विकृति आदि गर्मी और सुजाक आदि कारणों से उत्पन्न होता है। उपचार • नीम के ताजे पत्ते जल के साथ पीसकर पीड़ित भाग पर दिन में 3-4 बार मोटा-मोटा लेप करना अत्यधिक लाभप्रद है। वादी भोज्य पदार्थ को कदापि न खायें । • सप्तच्छावादि तैल (मन्थ रस तन्त्र सार) को चिप्प पर दिन में 3-4 बार लगायें और इसो पूर्व नमक मिले उबले जल से सेंक करें। • जात्यादि तैल (शारंगधर संहिता) को दिन में 3-4 बार चिप्प पर लगान अतिशय गुणकारी है। • निर्गुन्डी का तैल दिन में 3-4 बार लगाना तदुपरान्त नीम का तैल लगाना भी अतिशय लाभप्रद है। • महामंजिष्ठारिष्ट तथा सारिवाद्यारिष्ट प्रत्येक 15 मि.ली. एकत्र कर समभाग जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पीना भी लाभप्रद है। • व्याधिहरण रसायन (ग्रन्थ वसवराजीकयम) आयु के अनुसार 125 से 250 मि.ग्रा. तक खरल में बारीक घोटकर मधु मिलाकर सुबह-शाम चाटकर ऊपर से उबला हुआ गोदुग्ध 250 मि.ली. पीना भी गुणकारी है। • कुटकी मूल 5 ग्राम, चिरायता ...

एपिडर्मोफाइटोन (epidermophytosis)sareer mei jalan soojan

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एपिडर्मोफाइटोन (epidermophytosis)sareer mei jalan soojan रोग परिचय इस रोग में त्वचा में विविध कारणों से विकृति आकर वहाँ शोथ (सूजन) उत्पन्न हो जाती है। आक्रान्त (पीड़ित) स्थान में जलन, खुजली और क्षोभ उत्पन्न हो जाता है। उपचार • नीम और शरफोंका के समभाग पत्तों को धोकर स्वच्छ करें। फिर पीसकरआक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-4 बार अथवा आवश्यकतानुसार और अधिक बार लगायें। लाभप्रद योग है। • महामन्जिष्ठारिष्ट 15 से 30 मि.ली. तक समान जल मिलाकर दिन में 2 बार भोजनोपरान्त पीना भी अतीव लाभकारी है।

त्वक शोथ (Dermatitis)dawaiyon ke side effect se ayi soojan ka ilaj

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त्वक शोथ (Dermatitis)dawaiyon ke side effect se ayi soojan ka ilaj  रोग परिचय-रासायनिक पदार्थों के संस्पर्श से योषापस्मार, पैलाग्रा, पादप, स्त्रियों के मासिक धर्म के कष्ट तथा विविध औषधियों की प्रतिक्रिया तथा सर्वांग शोथ, शीतपित्त आदि के कारण त्वचा पर सूजन हो जाना ही त्वक शोथ के नाम से जाना जाता है। इस सूजन में जलन, खुजलाहट और लालिमा प्रतीत होती है तथा रोगी का मन उद्विग्न और बेचैन रहता है। उपचार नीम की अन्तरछाल, चिरायता के पत्ते, परवल के पत्ते, खस, इन्द्रायण, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, अडूसा के पत्ते, मुलहठी और त्रिफला प्रत्येक 2-2 ग्राम कूटकर सभी का क्वाथ बनाकर 30 मि.ली.की मात्रा में छानकर व शीतल कर ऐसी 1-1 मात्रा सुबह-शाम पियें। हर योग प्रत्येक प्रकार की चर्मशोथ को नष्ट कर देता है। • सारिवाद्यारिष्ट (भै. रत्नावली) 15-30 मि.ली. की मात्रा में समान जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पीना लाभप्रद है। • चोपचिन्यादि चूर्ण (आर्य भिषक्) 3 ग्राम खाकर ऊपर से महामन्जिष्ठादि काढ़ा 15 से 30 मि.ली. बराबर जल मिलाकर सुबह-शाम सेवन करना अति उपयोगी है। व्याधि हरण रसायन (वसव राजीयम) 125 मि.ग...