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लिंग को मोटा, लम्बा व कठोर बनाने के कुछ योग,penis treatment, ling mota karna

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लिंग को मोटा, लम्बा व कठोर बनाने के कुछ योग,penis treatment, ling mota karna  लिंग के दो कार्य होते हैं- 1. मूत्र बाहर निकालना, 2. सम्भोग क्रिया में उत्थित होकर वीर्य को एक चरम आनन्दमय अनुभूति के साथ स्वी की योनि की गहराईयों में उड़ेल देना। भित्र-भिन्न पुरुषों के शिश्न की लम्बाई, मोटाई उनके वंश परम्परानुसार कम व अधिक हो सकती है। प्राकृतिक रूप से भी प्रत्येक व्यक्ति का लिंग एक जैसा लम्बा व मोटा नहीं होता है। तने हुए (उत्थितवस्था में) लिंगकी औसत लम्बाई लगभग 6 इंच और लिंग का व्यास (घेरा) सवा चार इंच तक हो सकता है। जहाँ तक स्वी के यौनसुख (तृप्ति) का सवाल है वहाँ लगभग साढ़े चार इंच उत्थित अवस्था में लिंग वाला व्यक्ति भी स्वी को तृप्त कर सकता है क्योंकि कामोत्तेजना की अवस्था में रखी की योनि की लम्बाई 1 से 3 इंच तक बढ़ती है इससे पूर्व वह साढ़े तीन इंच लम्बाई रखती है। योनिमुख से योनि की लम्बाई का पहला तिहाई भाग ही संवेदनशील होता है। (यही चरम सुख की अनुभूति कराने वाला भाग कहा जाता है।) लिंग 33 वर्ष की आयु तक लम्बाई में बढ़ सकता है तथा मोटाई हर आयु में बढ़ायी जा सकती है। जौक खुश्...

अण्डकोषों (फोतों) में पानी पड़ जाना,hydrocele, diagnosis

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अण्डकोषों (फोतों) में पानी पड़ जाना,hydrocele, diagnosis  रोग परिचय-पुरुषों के इस रोग में वृषणों को ढकने वाली श्लैष्मिक कला (Tunica Vaginalis) में रक्त का पानी (Serous of luid) एकत्र हो जाता है। कईबार यह रोग स्वयं दूर हो जाता है किन्तु कभी-कभी यह पुराना हो जाता है, क्योंकि इस रोग के आरम्भ में रोगी को पता ही नहीं चलता है। फोतों में सूजन होने से फोते बड़े हो जाते हैं परन्तु उनमें दर्द नहीं होता है। कई रोगियों को फोते शाम को अधिक सूज जाते हैं। जिस ओर सूजन होती है वह भाग नाशपाती के आकार का अथवा अन्डाकार हो जाता है। निचला भाग अधिक चौड़ाई में और ऊपरी भाग कम, चौड़ाई में सूजा होता है। अन्डकोष के अन्दर का तरल पारदर्शक होता है. इसलिए अन्डकोष के एक ओर टार्च या मोमबत्ती जलाकर रखने और दूसरी ओर देखने पर उसका प्रकाश दिखलायी देता है। (यह निरीक्षण अन्धेरे कमरे में करें, यदि इस तरल में रक्त मिला हो अथवा अन्डकोष का पर्दा बहुत मोटा हो चुका हो तब ऐसी स्थिति में प्रकाश आर-पार दिखलाई नहीं देता है। कई बार अन्डकोषों में मामूली सी चोट लग जाने पर और रोगी को पता न लगने पर भी पानी वाला भीतरी पर्दा ...

वृषण या खसियों का दर्द,hydrocele pain

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वृषण या खसियों का दर्द,hydrocele pain रोग परिचयं अन्डकोषों में यह दर्द हस्तमैथुन, सम्भोग की अधिकता, मूत्र मार्ग की शोथ, वृक्कों में पथरी या रेत होना, अजीर्ण, पुरानी शोध अथवा छोटे जोड़ों के दर्द आदि कारणों से उत्पन हुआ करता है। यह दर्द 1 ओर अथवा दोनों ओर के अन्डकोषों में ठहर-ठहर कर उठता है तथा दर्द के समय खसिया ऊपर चढ़ जाया करता है। हाथ लगाने अथवा छू लेने से दर्द अधिक बढ़ जाया करता है। कभी-कभी इतने अधिक ओर से दर्द उठता है कि रोगी तड़प उठता है। इस रोग में शोथ या जलन नहीं होती है। इस दर्द का सम्बन्ध स्नायु से हुआ करता है। उपचार यदि रोगी को कब्ज हो तो हानिरहित जुलाब देकर अथवा एनिमा लगाकर पेट अवश्य साफ करें। ठण्डे पानी में कपड़ा डुबोकर खसियों पर रखना अथवा बर्फ का टुकड़ा रगड़ना इस दर्द में (खसियों के दर्द में) लाभप्रद है। हरे धनिये का रस व काकमाची (मकोय) के रस में थोड़ी अफीम घिसकर दर्द के स्थान पर लगाना लाभप्रद है। सिरका व अर्क गुलाब में थोड़ा सा कपूर घोलकर कपड़ा गीला करके अन्डकोषों पर लपेटना अतीव गुणकारी है। अफीम, कपूर, केसर, कीकर का गोंद, अजवायन खुरासानी सभी को सम भाग लें और पी...

अन्डकोषों की खुजली, फोतों की खुजली,hydrocele Eczema

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अन्डकोषों की खुजली, फोतों की खुजली,hydrocele Eczema  रोग परिचय-कई बार अन्डकोषों में इतनी खुजली हो जाती है कि रोगी अन्डकोषों को खुजला-खुजला कर घाव पैदा कर डालता है। यह रोग मैल कुबैला रहने, मिर्च-मसाले युक्त गरम-गरम अधिक तथा बार भोजन करने, पुरानी कब्ज, अन्डकोषों के बालों में जुऐं पड़ जाने, कपड़ों की रगड़ तथा भोजनों में लोहा, विटामिन बी काम्पलेक्स और प्रोटीन के अभाव से उत्पन्न होता है। उपचार • गन्धक या कमीला को सरसों के तैल में घिसकर लगाने से अन्डकोषों की खुजली नष्ट हो जाती है। • पीला मुसब्बर गुलाब के तैल में घोलकर फोतों पर खुजली में लगाना लाभप्रद है।मुर्दासंग को हरे धनिया के रस और अर्क गुलाब में घिसकर या गुलाब तैल (गुल रोगन) में मिलाकर अन्डकोषों पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।

अण्डकोष की शिराओं का फूल जाना,hydrocele

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अण्डकोष की शिराओं का फूल जाना,hydrocele रोग परिचय-रोगग्रस्त वृषण के ऊपर उभार सा पैदा हो जाता है जो ऊपर से तंग और नीचे चौड़ा होता है। इसमें चौड़ी गुठलियाँ प्रतीत होती हैं.। जोर सेस्नायु सम्बन्धी दुर्बलता, लैंगिक दुर्बलता, ध्वजभंग, धातुक्षीणता, शिश्न की शिथिलता, वीर्य प्रमेह, शुक्रक्षय, अतृप्त मैथुन-सुख, वीर्य की कमी, वीर्य का पतलापन आदि तमाम वीर्यदोष नष्ट होकर रोगी को अपूर्व शक्ति प्राप्त होगी । पेरेन्ड्रेन क्रीम (सीबा)- पशुओं के वृषणों के एक्सट्रेक्ट के उचित अनुपान से निर्मित आवश्यकतानुसार आहिस्ता आहिस्ता शिश्न पर मलें। समस्त पुरुष गुप्तरोग (लिंग-सम्बन्धी) विकारों को नष्ट करने में आशु गुणकारी है। विगोरीना टेबलेट (मीपो) नामर्दी, वीविकारों व प्रमेह आदि को नष्ट कर मानसिक, शारीरिक व स्नायु शक्ति प्रदाता है। आवश्यकतानुसार 1-2 टिकिया दूध के साथ प्रयोग करें। सुपरटोन कैपसूल (सिंथोकेम)-2-3 कैपसूल गर्मियों में आंवले के मुरब्बे के साथ प्रयोग कर द्राक्षासव या मृत संजीवनी सुरा का उन्नित मात्रा में प्रयोग करें तथा सर्दियों में च्यवनप्राश या अश्वगन्धारिष्ट के साथ प्रयोग करें तथा पर्याप्त ...

नपुन्सकता, नामर्दी,impotence,namardi

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(नपुन्सकता, नामर्दी,impotence,namardi रोग परिचय-इस रोग से ग्रसित रोगी पूर्णरूपेण मैथुन करने के अयोग्य हो जाता है। यदि उसके लिंग में होता भी है तो बहुत कम और थोड़ी देर के लिए। अंग्रेजी में इसे सैक्सुअल डेविलिटी भी कहते हैं। इस रोग के मुख्यतः 2 कारण हुआ करता है- 1. शिश्न का टेढ़ापन, ढीलापन और पतलापन आदि रोगों के कारण नामर्दी उत्पन हो जाना, 2. किसी अन्य शारीरिक दोषों के कारण जैसे- अत्यधिक मैथुन, गुदा सम्भोग करना, मैथुन, मस्तिष्क एवं स्नायु दुर्बलता, अस्थिर मानसिक विचारों का होना, अधिक समय मैथुन का त्याग कर देना ।हृदय की कमजोरी, वृक्कों के दोष, अन्डकोषों के दोष, वीर्य और वीर्य अंगों के दोष, हारमोन्स सम्बन्धी दोष, रक्त संचार में दोष, अधिक उपवास रहना, अधिक मद्यपान करना, वीर्य प्रमेह और स्वप्नदोष, सुजाक, उपदंश, मूत्राशय शोध, मूत्राशय की पथरी, अन्तड़ियों के कीड़े, मलाशय के रोग, लिंग के सीवन पर फोड़ा होना अथवा चोट लग जाना, नशीली और सुन्न करने वाली भांग, गांजा, अफीम इत्यादि का अधिक सेवन करना इत्यादि । इस रोग में लिंग शक्तिहीन हो जाता है तथा उत्थान होना बन्द हो जाता है। इसे एक प्रकार ...

हस्तमैथुन,maturbation

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           हस्तमैथुन,maturbation रोग परिचय-यह कोई रोग न होकर एक गन्दी आदत होती है जो कि स्वास्थ्य व समाज के लिए अशोभनीय है। यहाँ यह भी पुरुष वर्ग ही नहीं, बल्कि स्त्रियाँ भी इस घृणित आदत से ग्रसित हो जाती हैं किन्तु उनकी इस आदत को 'चपटी' कहा जाता है। इस लत का शिकार होकर मनुष्य अपने वीर्य को हाथों, जाँघों या तकिये की रगड़ से निकाल लेता है जबकि स्त्रियाँ अपनी अंगुली, मोमबत्ती, बैंगन, मोटी कलम अथवा पैसिल, मूली इत्यादि से अपना यह घृणित कार्य करती हैं। इस रोग का कारण एकान्त में रहना, कामवासना की अधिकता, बुरे-गन्दे विचार, नंगे चित्र अथवा चलचित्र देखना, सम्भोग प्रिय दुष्वरित्रा स्वी-पुरुष से मेल, पेटमें कीड़े होना, मूत्राशय में पथरी होना, सुपारी के मांस का लम्बा और संकीर्ण होना अथवा सुपारी पर मैल जम जाना इत्यादि है। इस घृणित आदत के फलस्वरूप स्वप्नदोष, वीर्य प्रमेह, शीघ्रपतन, नामर्दी, इन्द्री (लिंग) का छोटा, टेढ़ा-मेढ़ा और कमजोर हो जाना इत्यादि परिणाम झेलना पड़ता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति हताश, साहसहीन, उदास, व्यवसाय से घृणा करने वाला, एकान्तप्रिय, च...

शीघ्रपतन,digitalization,-Premature ijeculasan

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शीघ्रपतन,digitalization,-Premature ijeculasan रोग परिचय-सम्भोग के समय शिश्न योनि में प्रवृष्ट करने से पहले अथवा प्रवृष्ट करते समय ही इस रोग में तुरन्त वीर्य निकल जाता है। प्राकृतिक स्तम्भन शक्ति 2 से 5 मिनट तक होती है। इससे अधिक देर तक संभोगरत रह पाना जोड़े का संयम-धारण तथा विशेष प्रेमालाप एवं उत्तम स्वास्थ्य के कारण सम्भव हुआ करता है, किन्तु 2 मिनट से भी कम स्तम्भन शक्ति रखने वाला पुरुष शीघ्रपतन का रोगी कहलाता है। इस रोग का कारण मैथुन इच्छा की अधिकता, हस्त मैथुन, वीर्य प्रमेह, वीर्य की अधिकता, गुदा संभोग करना, अत्यधिक मैथुन करना, वीर्य की गर्मी, अधिक आनन्द प्राप्ति की कामना से बाजारू तिलाओं की अत्यधिक मालिश करना, दिल, दिमाग और यकृत की कमजोरी, वीर्य का पतलापन, मूत्राशय में रेत, पेट में कीड़े, स्त्री के गुप्त अंग का तंग और शुष्क होना, लिंग की सुपारी पर मैल जमना, सुपारी की बबासीर, सुजाक, मूत्र मार्ग की खराश, प्रोस्टेट ग्लैन्ड की शोथ इत्यादि होता है।उपचार • शुद्ध भाँग 24 ग्राम को 1 ढीली पोटली में बांधकर 1 कि. ग्रा. गाय के दूध में डालकर पकाकर खोया तैयार करें और फिर पोटली को निक...

supandosh,nightfall

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स्वप्नदोष, नाईट डिस्चार्ज,night fall,dipanshu रोग परिचय-इस रोग को उर्दू में एहतलाम के नाम से जाना जाता है। इस रोग में नींद में स्वी का स्वप्न आता है। रोगी स्वप्न में उस स्वी से संभोग. करता है, जिसके फलस्वरूप नींद में ही वीर्यपात हो जाता है और पहने हुए कपड़े गंदे हो जाते हैं। इस प्रकार स्वप्न में जब बार-बारं वीर्य निकलने लग जता है तब यह स्वप्नदोष रोग के नाम से जाना जाता है। इस रोग के प्रधान कारण- बुरे विचार, अत्यधिक मैथुन, हस्त मैथुन, गुदा मैथुन, कब्ज, बदहज्मी, चित्त पड़कर सोना, अविवाहित रहना, वृक्कों की गर्मी, भोजनोपरान्त तुरन्त सो जाना, स्वप्नदोष हो जाने का मन में भय बने रहना, पेट में कीड़े होना, प्रोस्टेट ग्लैन्ड की खराश, सुपारी का लम्बा होना, मूत्रमार्ग का प्रदाह, काम इच्छा बढ़ जाना, उत्तेजक एवं मादक पदार्थों का अत्यधिक सेवन, स्तम्भन शक्ति की कमी, वीर्य की थैलियों में ऐंठन, नंगे चित्र अथवा चलचित्रों का देखना, वीर्य की अधिकता, वीर्य की गर्मी, शारीरिक दुर्बलता, मूत्राशय की खराश, खट्टे अथवा अधिक भोजन खाना इत्यादि है। स्वप्नदोष के रोगी के कमर में दर्द रहने लगता है, उसका चेहर...

अपूर्ण कामेच्छा,sex iccha poori na hona,adhik kaam vasna

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अपूर्ण कामेच्छा,sex iccha poori na hona,adhik kaam vasna रोग परिचय-इस रोग में रोगी को बार-बार उत्तेजना होने लग जाती है तथा उत्तेजना के साथ ही लिंग से वीर्य तथा अन्य दूसरे प्रकार के तरल निकल जाया करते हैं। कई बार अत्यधिक मात्रा में वीर्यपात हो जाया करता है । वीर्य पानी की भाँति पतला और कमजोर हो जाता है। स्त्री के पास जाते ही वीर्य शीघ्र अथवा मैथुन से पूर्व ही निकल जाता है। स्वप्नदोष, वीर्य, प्रमेह आदि रोग हो जाते हैं। मूत्रप्रणाली में प्रायः जलन होती रहती है। इस रोग से ग्रसित रोगी का शरीर दुबला-पतला और चेहरा पीला, पिचका हुआ हो जाता है। सिर दर्द, सिर चकराना, दिल दिमाग कमजोर हो, रोगी उत्साहहीन हो जाता है। जठराग्नि कमजोर हो जाती है हाथ की हथेलियों और पाँव के तलुवों में जलन होती है तथा पीठ पर चीटियाँ सी रेंगती प्रतीत होती है। छोटी इलायची के बीज, बड़ी इलायची के बीज, बंशलोचन, अजवायन, अनार के फूल, संभालू के बीज, काहू के बीज, तज-कलमी, बिना छेद के माजू, बड़ी माई, बबूल की गोंद, कतीरा, सफेद खशखश के बीज, काली खशखश के बीज, गुलाब के फूल, ईसवगोल का छिलका सभी समभाग लेकर कूट-पीसकर चूर्ण तैया...

शुक्राशय की पथरी का दर्द,pathri ka ilaaj

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शुक्राशय की पथरी का दर्द,pathri ka ilaaj रोग परिचय- शुक्राशय में पथरी अटक जाने से भयंकर दर्द होता है। रोगी दर्द से अत्यन्त बेचैन होकर कष्ट से तड़पता रहता है।उपचार • त्रिकंटकादि क्वाथ (भै. रत्नावली) गोखरू, अमलतास का गूदा, दर्भ की जड़, कासमूल, धमासा, पाषाण भेद तथा हरीतकी प्रत्येक 48 ग्राम लेकर विधिवत् क्वाथ बनाकर 60 मि.ली. की मात्रा में मधु मिलाकर 2-3 घंटे पर पीना लाभप्रद है। • त्रिविक्रम रस (रस रत्न समुच्चय) 60 से 240 मि.ग्रा. तक मधु के साथ एक बार प्रतिदिन चाटकर ऊपर से 6 ग्राम बिजौरे की जड़ को जल में घिसकर पियें । नोट-इस औषधि के सेवन करने से यदि बेचैनी महसूस हो तो पीले पके नीबू के रस में शक्कर एवं थोड़ा सा जल मिलाकर पीलें। इस रसायन के प्रयोग कराने पर 1 घंटे तक गरम-गरम दूध चाय या काफी इत्यादि कोई भी अन्य गरम पेय कदापि न पियें । • संगेयहूद (हिजरल महूद) भस्म 240 से 480 मि.ग्रा. शर्बत बजूरी के साथ 1-1 घंटे के अन्तर से दिन में 2-3 बार सेवन करना लाभकारी है। • यवक्षार, बेर पत्थर भस्म, अपामार्ग क्षार प्रत्येक 15 मि.ग्रा. को इकट्ठा मिलाकर दही की लस्सी के साथ 4-4 घंटे बाद खाना अत्यन्त...

पौरुष ग्रन्थि-वृद्धि शूल (Prostate Enlargement)

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पौरुष ग्रन्थि-वृद्धि शूल (Prostate Enlargement) रोग परिचय वृद्ध पुरुषों की प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण मूत्र आना रुक जाता है। मूत्राशय मूत्र से भर जाता है जिसके फलस्वरूप मूत्र वेग के समय अत्यधिक दर्द होता है। रोगी व्याकुल होकर तिलमिला उठता है। उपचार • सर्वप्रथम उपयुक्त साइज के रबड़ कैथेटर को किसी योग्य चिकित्सक से लिंग में प्रविष्ट करवाकर मूत्राशय में समस्त एकत्रित मूत्र को बाहर निकलवा दें। इसके उपरान्त पेय पदार्थ कम से कम सेवन करें, ताकि मूत्र कम बने । • पुरस्थ वृद्धि हर वटी, शोभांजन की जड़ की छाल, शोभान्जन की गोंद, नीम पत्र, सिन्दुआर पत्र, श्वेत पुनर्नवा मूल, प्रत्येक 100 ग्राम तथा श्वेत फिटकरी भस्म 25 ग्राम एवं कन्टकारी भस्म 10 ग्राम लें। सभी को कूट पीस व कपड़छन कर त्रिफला के काढ़े से संयुक्त करके 250 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रखलें। यह 1-2 गोली दिन में 3 बार त्रिफला के काढ़ा से सेवन करें। • सहजन की जड़ की ताजी अन्तर छाल, श्वेत पुनर्नवा मूल, नीम की अन्तर छाल और रोहितक छाल प्रत्येक समभाग लेकर त्रिफला क्वाथ के साथ सूक्ष्म पीसकर लेप बनालें । इस लेप को शिश...

योनिशूल, मैथुन असहनीयता,vengina pain,yoni mei dard

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योनिशूल, मैथुन असहनीयता,vengina pain,yoni mei dard रोग परिचय-अधिक मैथुन अथवा चोट आदि विविध कारणों से स्वी की योनि में दर्द उत्पन्न हो जाता है जिससे उसे भारी अत्यधिक कष्ट रहता है। उपचार नारियल तैल 100 मि.ली. में कपूर 10 ग्राम मिलाकर योनि के अन्दर दिन और रात में लगाना लाभप्रद है। • प्रवाल पिष्टी 120 मि.ग्रा. मधु के साथ दिन में 2-3 बार चाटकर ऊपर से चावल का धोवन (पानी) 25 मि.ली. पीना लाभप्रद है। • नारियल तैल 100 ग्राम में कपूर और यशद भस्म 10-10 ग्राम मिलाकर दिन में 2-3 बार योनि के अन्दर लगाना अतीव गुणकारी है। • चन्द्रांशु रस (रस चन्डांशू) 1 गोली 30 मि.ली. जीरे के क्वाथ के साथ दिन में 2 बार सेवन करते रहने से योनिशूल नष्ट हो जाता है।• सफेद मोम 60 ग्राम, सफेदा 120 ग्राम, नारियल का तैल 120 मि.ली... और कपूर 12 ग्राम लें। सर्वप्रथम नारियल का तैल और कपूर मिलाकर गरम करें। जरा सा ठण्डा होने पर सफेदा मिलालें, फिर कपूर मिलाकर मरहम बनालें। रबड़ के दस्ताने पहन कर अँगुली से इस मरहम को योनि के अन्दर सुबह और शाम को लगायें। अत्यन्त लाभकारी मलहम है।

वृषणार्ति, अन्डकोषों के शोथ का दर्द,varicocele Symptoms and treatment

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वृषणार्ति, अन्डकोषों के शोथ का दर्द,varicocele Symptoms and treatment रोग परिचय-चोट लग जाने अथवा वीर्य के वीर्य बाहिनी नालिका में अटक • जाने आदि कारणों से अन्डकोष सूज जाते हैं तथा उनमें कभी कम और कभी बहुत तेज दर्द होने लग जाता है । उपचार • वृद्धि वाटिका वटी (भाव प्रकाश) 1 से 2 गोली प्रतिदिन जल के साथ लें। नोट-इसे सेवन करने के तुरन्त बाद गरम-गरम दूध, चाय, काफी न लें। यदि कब्ज न हो तो आरोग्य बर्द्धिनी बटी 2 गोलियाँ दिन में 2 बार साथ-साथ सेवन करें। • नित्यानन्द रस 1 से 2 गोलियाँ तक ठण्डे जल से दिन में 2 बार सेवन करें। यह अन्डकोष एवं वृषण शोथ में से उत्पन्न दर्द में गुणकारी है। गुग्गुल, एलुवा, कुन्दरू; लोध, फिटकरी, गन्धा बिरोजा प्रत्येक सममात्रा में लेकर जल में पीसकर लेप बनाकर अन्डकोषों के बालों को उस्तरे से साफ करके इस लेप को दिन भर में 3-4 बार लगाते रहने से सूजन व दर्द नष्ट हो जाता है।• त्रिफला चूर्ण (बरक संहिता) 2 से 6 ग्राम तक दिन में 1-2 बार गोमूत्र के साथ सेवन करना भी लाभकारी है। • छोटी कटेरी की जड़ की ताजा छाल 15 ग्राम (छाल यदि सूखी हो तो 10 ग्राम) काली मिर्च 7 दाने दोनो...

आध्मान के कारण दर्द, उदावर्त पीड़ा,stomach pain,

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आध्मान के कारण दर्द, उदावर्त पीड़ा,stomach pain,  रोग परिचय-कब्ज, अपच, गैस बनने आदि कारणों से पेट काफी फूल जाता है और तेज या हल्का-हल्का दर्द होने लगता है। उपचार • शंखवटी (योग रत्नाकर) 1 से 4 गोलियाँ तक जल से दिन में 3 बार या आवश्यकतानुसार सेवन करें। बच्चों को आधी मात्रा में सेवन करायें । • कत्यादि रस 240 से 480 मि.ग्रा. म‌ट्ठा और सैंधा नमक के साथ दिन में 2-3 बार तक सेवन करें । • अग्नि तुन्डी वटी 1 गोली दिन में 2 बार जल से सेवन करें। लाभप्रद है।

आन्त्र-कृमि ,pet ke keede,Intestinal Worms

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आन्त्र-कृमि ,pet ke keede,Intestinal Worms रोग परिचय-कभी-कभी आन्व में कृमि होने पर अत्यधिक तेज उदर पीड़ा (विशेषकर बच्चों को) होने लग जाती है। जब तक ये कृमि निकलते या मरते नहीं हैं तब तक ठहर-ठहर कर पेट में भयंकर दर्द होता रहता है। मंगल उपचार • कृमि कुठार रस 1 से 3 गोलियों को सत्यानाशी की जड़ के काढ़े के साथ दिन में 2 बार देना लाभप्रद है। • कृमि मुद्गर रस (योग रत्नाकर) 120 से 240 मि.ग्रा. नागरमोथा क्रे क्वाथ से दिन में 2-3 बार देकर 3 दिन के बाद (चौथे दिन) कोई हल्का विरेचन देकर पेट साफ कराना लाभप्रद है। • अनार की ताजी जड़ के छाल के टुकड़े 60 ग्राम, पलाश के बीजों का चूर्ण 6 ग्राम, बायविडंग का चूर्ण 12 ग्राम को 1200 मि.ली. जल मिलाकर ढक्कन से बन्द करके कलईदार बर्तन में डेढ़ घंटे तक खूब उबाललें। जब आधी शेष रह जाए तब ठण्डा होने पर कपड़े से छानकर कार्क (डाट) युक्त किसी साफ-स्वच्छ बोतल में सुरक्षित रखलें। इस क्वाथ की 60 मि.ली. की मात्रा में 6 ग्राम मधु मिलाकर प्रातःकाल प्रत्येक 30-30 मिनट पर 4 बार पिलायें। लाभप्रद योग है।• कटकरंज की मींगी, प्लाश के बीज, किरमानी अजवायन, कबीला और बायबि...

आँत उतर जाना (हार्निया) का दर्द,harniyan ka dard pain

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आँत उतर जाना (हार्निया) का दर्द,harniyan ka dard pain रोग परिचय-आँत या तो अन्डकोषों में या वक्षण नाल में उतर जाने से कभी-कभी भयंकर दर्द और बेचैनी होने लग जाती है। आँत जब तक ऊपर स्थान में जाती नहीं है, रोगी को असहनीय दर्द होता रहता है। उपचार • सर्वप्रथम आँत को वंक्षणछिद्र या जिस छिद्र से अपने स्थान से नीचे आयी हो, उसी मार्ग से ऊपर भेजने की यथा-संभव चेष्टा करें। यदि आँत ऊपर नहीं जा रही हो तो आँत शुद्धि हेतु रोगी को उपवास करायें तथा हल्की दस्तावर औषधि दें अथवा एनिमा लगायें। दर्द दूर करने हेतु दर्द निवारक योगों का सेवन करायें। यदि आँत अन्दर प्रविष्ट हो जाए तो उपयुक्त साईज की हानियल ट्रेस (पेटी) बाँधें तथा इसका निरन्तर प्रयोग जारी रखें ।• कब्ज दूर करने के लिए पंचसकार चूर्ण या त्रिफला चूर्ण सुबह-शाम 2 से 4 ग्राम तक जल से दें। • अन्ववृद्धि हर गुटिका 1 से 2 गोलियों तक जल से दिन में 2 बार सेवन करायें। बीड़ी, सिगरेट, गरम चाय, मिर्च व खटाई आदि का सेवन कदापि न करें। • अन्त्रवृद्धि हर चूर्ण 4 से 6 ग्राम तक, मिश्री चूर्ण, छोटी इलायची, दालचीनी, सौंठ एवं लौंग का चूर्ण मिलाये हुए 400 मि.ली....

सर्वांगशूल, समस्त शरीर में दर्द,body pain,sareer mein dard

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सर्वांगशूल, समस्त शरीर में दर्द,body pain,sareer mein dard रोग परिचय-अधिक चलने-फिरने या अधिक जागते रहने अथवा ज्वर, मलेरिया, हरारत इत्यादि तथा फोड़ा, विद्रधि, जले-कटे घाव आदि के कारण पूरे (समस्त) शरीर में दर्द होने लग जाता है।সমান उपचार • शोभांजन का गोंद, श्वेत फिटकरी का फूला, सौंठ का चूर्ण, हरड़ का चूर्ण, आँवला चूर्ण, बहेड़ा चूर्ण, गोदन्ती हड़ताल भस्म, संग जराहत भस्म और अरारोट प्रत्येक 10 ग्राम लेकर इक‌ट्ठा कर मिलाकर खरल में खूब घोटकर कपड़छन कर सुरक्षित रखलें। इसे 250 से 500 मि.ग्रा. अथवा 1 ग्राम तक हल्के गरम जब से सुबह-शाम हल्के नाश्ते के बाद खाने से समस्त शरीर का दर्द नष्ट हो जाता है। • पीली सरसों का तैल 100 ग्राम को इतना गरम करके कड़कड़ायें कि तैल के अन्दर का जलीयांश उड़ जाए। फिर इसमें 10 ग्राम कपूर, 5 ग्राम पिपरमेन्ट क्रिस्टल, 4 ग्राम अजवायन सत्व तथा लौंग का तैल 15 बूँद खूब मिलाकर हिला डुलाकर सुरक्षित रखलें। इस तेल में सम मात्रा में सरसों का तैल मिलाकर समस्त शरीर पर दिन में 1-2 बार मालिश करने से समस्त शरीर का दर्द (सर्वांग शूल) नष्ट हो जाता है।

कंधे का दर्द, स्कन्ध शूल (Solder Pain)

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कंधे  का दर्द, स्कन्ध शूल (Solder Pain) रोग परिचय-यकृत क्रिया की विकृति, यकृत शोथ, कन्धे में चोट, मोच, सोने में असावधानी इत्यादि कारणों से कन्धे में हल्की सी सूजन आकर उसमें दर्द होने लगता है जो हिलने-डुलने से बढ़ जाया करता है। সাগরী उपचार • शोभान्जन की जड़ की छाल, कटकरन्ज की भुनी मींगी, श्वेत फिटकरी और पुराना गुड़ सभी समभाग लेकर जल में पीसकर दर्द वाले कन्धे पर दिन में 2-3 बार लेप करना लाभप्रद है। दशमूल का काढ़ा 15 से 30 मि.ली. दिन में 2-3 बार पीना लाभप्रद है। • शूलगज केसरी (भै. र.) 1 से 2 गोलियाँ मधु एवं अदरक के रस (10) मि.ली.) के साथ सुबह-शाम सेवन करना लाभप्रद है। • अजवायन सत्व, पुदीना सत्व, असली कपूर (प्रत्येक 12 ग्राम) तारपीन का तैल 20 बूंद, लौंग का तैल 5 बूँद सभी को मिलाकर (तरल बनने पर) इसे पीड़ित कन्धे पर दिन में 2-3 बार मालिश करें। अत्यन्त लाभप्रद है।

पीठ का दर्द, पृष्ठ शूल, पृष्ठ वेदना,back pain,peeth ka dard

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पीठ का दर्द, पृष्ठ शूल, पृष्ठ वेदना,back pain,peeth ka dard  रोग परिचय - यह दर्द पीठ में ऊपर या नीचे रह-रहकर खूब तेज होता है। चलने-फिरने, झुकने, उठने, बैठने और सोने में रोगी को कष्ट होता है। पीठ अकड़ी हुई सी प्रतीत होती है। उपचार • शुभा भस्म 120 से 240 मि.ग्रा. मधु से दिन में 2-3 बार चटाना लाभकारी है। • महावात विध्वंसन रस (रस चन्डांश) 120 से 240 मि.ग्रा. तक सुबह शाम निर्गुन्डी पत्र स्वरस और मधु के साथ सेवन करना लाभप्रद है। • शूल वज्रिणी वटी (र. च.) 1 से 4 गोलियाँ तक बकरी के दूध या पानी से दिन में 3 बार सेवन करायें। लाभप्रद है। • पीली सरसों के तैल को खूब गरम करके 100 मि.ली. लें । 5 ग्राम कपूर, पिपरमेन्ट फूल 2 ग्राम और अजवायन सत्व 2 ग्राम को भली-भाँति मिलाकर दर्द के स्थान पर दिन में 3-4 बार मालिश करके पीड़ित स्थान को रुई से बैंक दें।

हड्डी-तोड़ ज्वर (Dengue Fever)

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हड्डी-तोड़ ज्वर (Dengue Fever) यह एक विशेष प्रकार के कीटाणु से पैदा होने वाला एक संक्रामक औरमहामारी के रूप में फैलने वाला ज्वर है, जो दक्षिण एशिया के समस्त देशों में पाया जाता है। वर्ष 1996 के अन्त में अपने देश की राजधानी दिल्ली में यह ज्वर फैल गया था। मच्छर के काटने से इस ज्वर का कौटाणु मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होता है। ज्वर के आरम्भ में सिर, आँखों के ढेले, हड्डियों के जोड़ों और कमर में सख्त दर्द होता है। रोगी बेचैन और बहुत कमजोर हो जाता है। ज्वर के तीसरे से पांचवें दिन रोगी के शरीर पर पित्नी के लक्षण पैदा होकर लाल दानें हाथ-पैर पर निकल आते हैं ज्वर भी बहुत तेज हो जाता है। यह अवस्था 2-4 दिन रहकर रोगी स्वस्थ हो जाता है। किन्तु इसी प्रकार ज्वर और लाल दानें इत्यादि लक्षण उभर कर पुनः ज्वर चढ़ जाता है। इस प्रकार के 2-3 बार रोगी को ज्वर के दौरे ठहर ठहर कर पड़ते हैं। इस ज्वर के समय रोगी को दस्त, पेचिश और यकृत शोथ भी हो जाता है। 001 उपचार • मच्छरों के काटने से बचाव हेतु दिन रात में मच्छरदानी का प्रयोग करें। दिन में मच्छदानी अवश्य लगायें क्योंकि यह मच्छर दिन में ही काटते हैं। मच...

मांसपेशियों का दर्द,muscles pain

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मांसपेशियों का दर्द,muscles pain चोट, मोच, आघात, कटने या कुछ चुभने अथवा अस्व-शख आदि के लगने, जलने, फटने या कैन्सर पैदा होने, घाव, व्रण, फोड़े-फुन्सी इत्यादि चर्म रोगों के होने आदि (विविध कारणों) से मांसपेशियों में प्रायः दर्द होने लगता है। उपचार • शूल वज्रिणी वटी (र. च.) आवश्यकतानुसार 1 से 4 गोलियों बकरी के दूध अथवा ताजा जल से प्रतिदिन 3 बार सेवन करना लाभप्रद है। • सुवर्ण भूपति रस (मो. र.) 120 से 180 मि.ग्रा. तक अदरक के रस तथा मधु के साथ लें। अथवा पिप्पली चूर्ण को मधु के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करना लाभकारी है। • सरसों के तैल को खूब गरम करके उसमें कपूर, पिपरमेंट और अजवायन सत्व (प्रत्येक समभाग) मिलाकर दिन में 2-3 बार पीड़ित मांसपेशी पर मालिश करना अत्यधिक लाभकारी है।

ऐंठन (आक्षेप) से उत्पन्न दर्द,cramps

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ऐंठन (आक्षेप) से उत्पन्न दर्द,cramps रोग परिचय- जब शरीर के किसी अंग में आक्षेप (ऐंठन) के साथ दर्द होता है तो वह उद्धेष्ट (Cramps) कहलाता है। यह दर्द प्रायः टांगों, हाथ-पैरों अथवा शरीर के दूसरे भागों के पु‌ट्ठों तथा अन्तड़ियों में सड़ाँध और अन्य दूषित पदार्थों के एकत्र हो जाने के फलस्वरूप होता है। हैजा में भी इस प्रकार के आक्षेप उत्पन्न हो जाते हैं। सर्दी लग जाने के कारण भी यह रोग हो जाया करता है। टाईप करने वालों अथवा दिन-रात लिखने वालों की कलाइयों में भी ऐंठन हुआ करती है।उपचार • लक्ष्मीविलास रस (रस योग सागर) 1 से 2 गोलियाँ मधु से दिन में 3 बार सेवन करना लाभप्रद है। रोग की तीव्रता तथा गम्भीर दशा में मृतसंजीवनी सुरा में यह औषधि खरल करके सेवन करें । • महावात विध्वंशन रस (रस चन्डांश) 1 से 2 गोलियाँ सिन्दुआर पत्र के स्वरस 10 मि.ली. और मधु के साथ दिन में 2 बार सुबह और शाम सेवन करना लाभप्रद है। • महायोगराज गुग्गुल (शारंगधर संहिता) 1 से 2 गोलियों तक मधु से चटाकर ऊपर से रास्नादि क्वाथ 15 से 30 मि.ली. दिन में 2 बार पिलायें । • दशमूल क्वाथ (शार्गधर संहिता) 15 से 30 मि.ली. अधवा आवश्यकत...

यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan

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यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan रोग परिचय- इस रोग में यकृत बढ़ जाता है और उसमें दर्द होने लगता है। इस रोग के उत्पन्न होने के निम्न कारण होते हैं- यकृत में फोड़ा होना, एमीबिक पेचिश के कीटाणु द्वारा यकृत में पहुँचकर शोथ उत्पन्न कर दें, जिसके फलस्वरूप यकृत के दाँए लोथड़े में फोड़ा बनकर यकृत बढ़ जाना। इसमें रोगी को धीमा ज्वर, कभी-कभी पेचिश रोग पुराना हो जाने पर दिन में 2-3 बार पेट में मरोड़ उठना इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। आधुनिक चिकित्सक फोड़े में अधिक पीप पड़ने पर एसपाइरेटर नामक यन्त्र से पीप निकाल लेते हैं। इस फोड़े को किसी यन्त्रको प्रविष्टि करके अथवा औषधि सेवन द्वारा चीरना या फोड़ना अथवा घाव को धोना बेहद हानिकारक सिद्ध होता है। यकृत में रक्त की अधिकता (Congesttion of the liver) के कारण से भी यह रोग हो जाया करता है। इसमें दाई पसलियों के नीचे बोझ और मामूली दर्द होता है। अजीर्ण, पेट फूल जाना, भूख न लगना, पेट में गैस, भोजनोपरान्त पेट में भारीपन, सिरदर्द, अत्यधिक मांस व मदिरा का सेवन, गर्मी की अधिकता, पुरानी कब्ज, फेफड़ों या दिल के रोगों इत्यादि के कारण भी ...

न्यूमोनिया फुफ्फुसावरण प्रदाह,pneumonia ka ilaj

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न्यूमोनिया फुफ्फुसावरण प्रदाह,pneumonia ka ilaj रोग परिचय-यह दर्द छाती के अन्दर फेफड़ों के ऊपरी पर्दो में शोथ आ जाने के कारण हुआ करता है। इन पदों की दो तहें होती है। निचली तहें फेफड़े के ऊपर चिपकी रहती हैं और दूसरी तह छाती का भीतरी दीवार के साथ लगी रहती हैं। इस रोग के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण-सर्दी लग जाना, पानी में भीगना, चोट लग जाना, क्षय रोग होने के कारण उसमें संक्रमण का होना आदि हैं। प्रायः ज्वर के समय अथवा न्यूमोनिया रोग होने से पूर्व अथवा बाद में यह रोग उत्पन्न हो जाया करता है। यदि न्यूमोनिया में छाती में सख्त दर्द हो तो यह पसली के दर्द (प्लूरिसी) का लक्षण है। आमतौर पर न्यूमोनिया रोग में ज्वर, खाँसी रहने के साथ कफ अधिकता के साथ निकला करता है तथा रोगी को सांस लेने में बहुत कष्ट हुआ करता है। यह दर्द छाती में बाँयी या दाई ओर की पसलियों में अत्यधिक तीव्रता के साथ हुआ करता है जो उस ओर के कन्धे तक जाता है। जोर लगाकर खाँगने या रोगग्रस्त छाती की ओर करवट से लेटने पर रोगी को दर्द और कष्ट बढ़ जाया करता है। इस रोग में ज्वर शुरू होकर 101 से 103 डिग्री फोरेनहाइट तक हो जाया करता ...

कट जाने पर होने वाले दर्द व घाव,wound pain

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कट जाने पर होने वाले दर्द व घाव,wound pain नीम के पत्ते, सिन्दुआर के पत्ते, पत्थर चूर (पाषाणभेद) के पत्ते प्रत्येक 100 ग्राम लेकर जल से धोकर सिल पर पीसकर रस निचोड़ कर कपड़े से छान लें। फिर कड़ाही में डालकर 250 मि.ली. नारियल के तैल में पकाकर (मन्दाग्नि पर पकायें) तेल सिद्ध होने पर इसमें विशुद्ध कार्बोलिक एसिड 125 मि.ली. मिलाकर सुरक्षित रखलें। यदि मरहम बनाना चाहते हों तो सफेद मोम को पिघलाकरइसमें मिलालें । मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें। कटे घाव, जख्म पर इस मरहम को दिन में 2-3 बार लगायें। अत्यन्त लाभप्रद है। व्रणरोपण रस (रस योग सागर) 1 गोली को मधु, शुद्ध गूगल या ताजे जल के साथ दिन में 2 बार सेवन करें। यह कटे या आछातीय व्रण, जख्म, समस्त नाड़ी व्रण और मकड़ी के विष से उत्पन्न व्रण में लाभप्रद है। • व्रणान्तक रस (रसयोग सागर) आवश्यकतानुसार 1 से 3 गोलियाँ तक घी के साथ दिन में 2 बार प्रयोग करें। यह प्रत्येक प्रकार के कटे, जले एवं घावों के लिए लाभप्रद है। उपदंश से उत्पन्न व्रणों में भी लाभकारी है। भोजन में गाय, भैस का घी अधिक प्रयोग करें। घर पर बनाना चाहें तो निर्माण विधि यह है-शुद्ध सफेद ...

त्रिधारा नाड़ी का दर्द ,Trgeminal Nuralgia

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त्रिधारा नाड़ी का दर्द ,Trgeminal Nuralgia रोग परिचय-यह दर्द आँखों की भवों, गालों एवं ठोड़ी में प्रायः दोपहर से पूर्व शुरू हो जाता है जो छुरी मारने की भाँति होता है। यह दर्द पुराना हो जाने पर जल्दी-जल्दी होने लग जाता है और कभी 2-4 बार होकर स्वयं ही दूरहो जाता है। वैसे यह रोग हर आयु में हो सकता है किन्तु 50 वर्ष की आयु से पहले बहुत ही कम होते देखा गया है। यह दर्द बड़ी आयु में विशेषकर स्वियों को होता है। इस दर्द में 1 आँख के ऊपर और कभी-कभी चेहरे के आधे भाग में दर्द होता है। यह दर्द सीलन युक्त मकानों में रहने, थकावट, चिन्ता, क्रोध एवं शारीरिक कमजोरी आदि कारणों से उत्पन्न हो जाया करता है। उपचार • त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम और पंचसकार चूर्ण 2 ग्राम एकत्र कर गरम जल से खायें, ताकि 1-2 पतले दस्त आकर पेट साफ हो जाए। इससे दर्द तुरन्त दूर हो जाएगा। • दालचीनी, सौठ, बादाम की गिरी को जल में घिसकर एक चम्मच में डालकर गरम करें तथा इसे दिन में 2-3 बार रोगी के माथे पर लगायें। इस प्रयोग से तत्काल दर्द शान्त हो जाता है। • सफेद फिटकरी 12 ग्राम को आक के दूध में खरल करके सुखाले तथा धतूरे के ताजे पत्तों...

प्रसवोत्तर वेदना (Postpartum Pain)

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प्रसवोत्तर वेदना (Postpartum Pain) पहला बच्चा पैदा होने पर दर्द कम होता है किन्तु अधिक बच्चा जन चुकने वाली स्वियों को यह दर्द अधिक होता है। यह दर्द प्रायः बच्चा पैदा होने के बाद 2-3 दिन अथवा 6 दिन तक रहकर दूर हो जाता है। बच्चा पैदा होने के बाद गर्भाशय में बार-बार सिकुड़ाव पैदा होता है और फैली हुई बच्चेदानी अपने प्राकृतिक साइज पर आने के कारण प्रसूता स्वी को सख्त दर्द होता है जिसके कारण उसे नींद तक नहीं आती है। यह दर्द होना भी जरूरी है। अतः इसमें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि गर्भाशय का मुख फैला हुआ और ढीला रह जाए तो इससे स्वी का पेट बढ़ जाता है और उसको कमर दर्द रहने लग जाता है। उपचार • ईंट गरम करके पेडू पर सेंक करने से यह दर्द दूर हो जाता है तथा गर्भाशय में रुके पड़े गन्दे रक्त के छिछड़े भी निकल जाते हैं और गर्भाशय के प्राकृतिक स्थान पर आने में भी सहायता मिलती है। • प्रसवोपरान्त 2-3 दिन तक पिप्पल्यादि चूर्ण 2 से 4 तक गरम गुड़ के जल के साथ सुबह-शाम अथवा दर्द के समय खाना अत्यन्त लाभप्रद है । • गरम पानी की बोतल से प्रसूता की नाभि पर सेंक करना लाभकारी है। • यवक्षार 2 ग्राम को ...

प्रसव-समय का दर्द (Labour Pains)delivery pain,baccha paida hote samaye dard ka hona

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प्रसव-समय का दर्द (Labour Pains)delivery pain,baccha paida hote samaye dard ka hona कई स्वियों को बच्चा पैदा होने के समय काफी दर्द और कष्ट होता है। शहरी वातावरण में रहने वाली विशेषतः धनवान समाज की स्वियों को प्रसव पीड़ा अधिक होती है। कई बार अनुभवहीन नर्स या दाई झूठे दर्दों को सच्ची प्रसव-पीड़ा समझकर बच्चा पैदा कराने का यत्न करने लग जाती है, जिसके कारण जच्चा और बच्चा दोनों को हानि होती है। कच्ची (झूठी) दर्द पेट के सामने से उठती है और अनियमित होती है। ध्यान रखें कि सच्ची (वास्तविक) प्रसव पीड़ा पीठ की ओर से प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे पेडू के चारों ओर फैलती जाती है। इन दर्दो के जोर से गर्भाशय में रुक-रुककर सिकुड़ाव की लहरें गर्भ के अन्तिम समय में उठने लग जाती है जो कैस्टर आयल से पिलाने से दूर हो जाती है। बच्चा कष्ट से पैदा होने के कुछ विशेष कारण हुआ करते हैं-सख्त कब्ज, मूत्राशय का मूत्र से भरा होना, सर्दी लग जाना, गर्भस्थ शिशु का सिर असाधारण रूप से बहुत अधिक बड़ा होना या गर्भाशय में बच्चा का प्राकृतिक दशा में न होना अर्थात् सिर नीचे की ओर होना इत्यादि । सच्ची प्रसव पीड़ा में प्रार...

मासिकधर्म दर्द से आना, कष्टार्तव,period pain,masik daram ka dard

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मासिकधर्म दर्द से आना, कष्टार्तव,period pain,masik daram ka dard • गाजर के बीज, एलुआ, अमरबेल प्रत्येक 10 ग्राम, सौंठ, अतीस और केशर, मोंगरा प्रत्येक 5 ग्राम लें। सबको एकत्र सूक्ष्म पीसकर कपड़छन कर तिलोंके जल से (12 घंटे पूर्व काले तिलों को जल में भिगोय रखें) 125 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम खाकर ऊपर से तिलों का जल 15 मि.ली. पियें। अत्यन्त लाभप्रद योग है। • तिल, सहजन, कपास तथा ब्रह्मदन्डी की जड़ की छाल, मुलहठी, पिप्पली, काली मिर्च, सौठ प्रत्येक 100 ग्राम लें। सभी को एकत्र कर बारीक पीसकर (चूर्ण बनाकर) सुरक्षित रखें। यह चूर्ण दिन में 2 से 3 ग्राम तक की मात्रा में 2 बार गरम चाय के साथ सेवन करने से दर्द तथा रजोरोध दोनों दूर हो जाते हैं। • कलौंजी, काले तिल और सपिस्तां समभाग लेकर जल में काढ़ा बनायें। 30 मि.ली. की मात्रा में यह काढ़ा 3 ग्राम गुड़ के साथ प्रयोग करने से पीड़ा और कुच्छार्तव दूर हो जाता है। • रेशमी कपड़े को जलाकर भस्म बनाकर सुरक्षित रखलें। इसे 2 से 5. ग्राम की मात्रा में मट्ठे के साथ खिलाने से कष्टार्तव तत्काल शान्त हो जाता है।

विरेचन (जुलाब) हेतु कुछ अन्य उपयोगी योग,constipation, kabaz ka ilaaj

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विरेचन (जुलाब) हेतु कुछ अन्य उपयोगी योग,constipation, kabaz ka ilaaj • रूमीमस्तंगी 3 ग्राम, मिश्री 6 ग्राम दोनों को बारीक पीसकर (यह 1 मात्रा है) रात्रि में सोते समय गर्म पानी या गरम दूध से लें। लगातार 3-4 दिन तक सेवन से कोष्ठबद्धता (कब्ज) से सदा-सदा के लिए छुटकारा मिल जाता है। • जुलाफा हरड़ 3 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम दोनों को बारीक पीसकर फाँकने से तथा ऊपर से गरम जल पीने से कब्ज दूर हो जाती है। चाहें कितना ही सख्त मेदा हो, यह योग निष्फल नहीं होता है। • स्वर्णक्षीरी (सत्यानासी) के 10 ग्राम बीज को हाथ में लेकर कई बार जोर-जोर से दबाने से टट्टी की हाजत होकर दस्त आ जाता है। • सोये के बीजों को पानी में पीसकर गुदा पर लेप करने से तुरन्त दस्त आ जाता है। अनुभूत योग है।

गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj

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गठिया, जोड़ों का दर्द, आमवात, सन्धिवात,arthritis, jodon ka dard ka ilaj  रोग परिचय-इस रोग में रोगी को तीव्र ज्वर हो जाता है। शरीर के किसी एक कई जोड़ों में शोध हो जाती है और उनमें बहुत ही तीव्र दर्द होता है। यह रोग कई प्रकार का हुआ करता है जैसे- बच्चों और युवाओं में गठिया का ज्वर, बूढ़ों में आर्थराइटिस, फाईब्रोसाइटिस, चूतड़ का दर्द, घुटने के जोड़ का दर्द इत्यादि। यह रोग चिकित्सीय दृष्टिकोण से 2 प्रकार का माना जाता है। 1- नया (एक्यूट), 2. पुराना (क्रोनिक) ।नये रोग में रोगी को ज्वर होकर जोड़ सूज जाते हैं और उनमें सख्न दर्द होता है। यह दर्द कभी एक जोड़ में होता है और कभी किसी दूसरे जोड़ में होता • है। दर्द और शोथ के स्थान बदलते रहते हैं। पुराने रोग में जो जोड़ बहुत अधिक सूजकर मोटे हो जाते है और प्रायः जुड़ जाते हैं, उन्हें हिलाना भी कठिन हो जाता है। यह रोग वर्षों तक रहता है और हर जोड़ में रोग हो जाता है। यह रोग एक विशेष प्रकार के कीटाणु (स्ट्रप्टो कोक्स और हेमालाइटित्स) से होता है। ये कीटाणु गले और टान्सिल द्वारा रोगी के शरीर में चले जाते हैं। यह रोग 4 वर्ष से 15 वर्ष के बच...